Friday, February 11, 2011

मेरी दो कविताएँ - बसंत की पूर्वसंध्या पर - डॉ नूतन गैरोला

बसंत की पूर्वसंध्या पर जब मौसम फिर कडाके की ठण्ड का दुबारा उद्घोष करने लगा| बहुत तेज ठंडी हवाओं ने, बादलों ने घुमड़ घुमड़ कर काला घना रूप ले लिया और दामिनी उस अंधियारी रात को अट्टहास करती अपने तीखी दन्त पंक्तियों को रात के अन्धकार में कड़क कड़क कर चमकाने लगी| आकाश से गिरती तेज बारिश ने रात के स्याह आँचल को बर्फीला बना दिया | बसंत के आगमन पर सर्दी का ये भयंकर लगने वाला तांडव नृत्य दिल को कंपा गया | तब गिरती बूंदों के साथ विचारों के कुछ बुलबुले मनमस्तिष्क  पर उभरने लगे  कि क्यों ये बसंत देर कर रहा है आने में - और  तब लिखीं कुछ पंक्तियाँ 

बसंत की पूर्वसंध्या - मेरी कविता और  मेरी फोटोग्राफी - डॉ नूतन गैरोला

          
यहाँ बसंत की पूर्वरात्री को हुवी शीतल वर्षा- चित्र मेरे छत का                         DSC06842 - Copy

सभी कहते हैं कि बसंत पंचमी आई   है …पर यहाँ मुड-मुड के शीत ऋतू लौट आयी है,  हवा सर्द सरसराती हैं घन गरजे, बरसे जोर .कहीं हुवा है हिमपात, ये संदेशा लायी है ||
 
 बसंत पंचमी की पूर्व संध्या पर .... यह फोटो खींची थी मैंने -- जबकि बसंत का सूरज ५-६ घंटे में उगने वाला था ... सर्द हवाओं और तेज बारिश ने जाती हुवी शीत ऋतू को पुनः स्थापित कर  यूं याद दिलाया ज्यूं बुझने से पहले दीये की लौ तेज हो कर थरथराती है.... और शीत ऋतू का जाना बसंत का उद्गम है|
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कितनी सर्द थी वो रात|
हवा के तीव्र शीतल बवंडर
तड़ित तोडती सन्नाटा |
हिम शिखर की नोंक पर
विस्फोटित होता बज्र भाला|
लिहाफों के भीतर बस्ती
ठिठुरी, सिमटी, सकुचाई|
कुछ जीव ओट की तलाश में
भटके थे उस रात भर |
और दूर कहीं शुरू हुवा भोर
रंग लिए रुपहला बासंती |

स्वागत करें इस बसंत का ... खुशहाली से भरपूर सुकून लाये जिंदगी में ...
डॉ नूतन गैरोला - ८ फरवरी २०११
फोटो - रात्री ११ बजे, दिनांक ७ फरवरी २०११ - डॉ नूतन गैरोला

बसंत तुम देर से क्यूं आये - डॉ नूतन गैरोला



ये पतझड़ भी कैसा था
अबके बहुत लंबा
और शीत ?
घनी गहरी बरफ में
हर फूल दबे मुरझाये|
बसंत! तुमने क्यों कर न देखा
मिट्टी में घुटते वो नन्हें बीज
अंकुरित होने को जो थे व्याकुल |
जिन्हें खा गयी
मौन हिमशिला सर्द|
और उस शीत का प्रेम देखो
पुनः पुनः वापस आया|
ज्यूं नवयोवना की प्रीति में

हो उसका सुकुमार मर्द |
विडंबना तुम आये पर
आये देर से आये|
क्या खिल सकेगा
वो अंकुर
इन्तजारी में जो
दफ़न हुवा
भूमि के अंदर
एक अथाह भारी हिमखंड से
कुचला मृत प्रायः |
अबके बसंत में

क्या वो पतझड का मुरझाया फूल
फिर  खिलेगा,
खिलेगा तो अबकी खूब लड़ेगा कि
बसंत तुम देर से क्यों आये ?


डॉ नूतन गैरोला - ७ फरवरी २०११ २१:०३

Saturday, February 5, 2011

एक लड़का और सेब का पेड़- डॉ नूतन डिमरी गैरोला ‘नीति’

यह बहुत ही मार्मिक, शिक्षाप्रद कहानी चित्र मुझे नेट पर मिला था जिसे मैंने फेसबुक में शेयर किया था | आज यहाँ मैं हिंदी अनुवाद के साथ चित्रों को लगा रही हूँ | और कुछ अपने विचारों को रख रही हूँ | उम्मीद है, कहानी  आप सब को भी उसी तरह पसंद आएगी जिस तरह मुझे आई थी ………

 

लड़का और सेब का पेड़ 


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बहुत समय पहले एक बहुत बड़ा पेड़ था |


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वह एक छोटे लड़के को बहुत प्यार करता था, लड़का भी रोज वहाँ आना और पेड़ के इर्दगिर्द खेलना पसंद करता था | 

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वह पेड़ के ऊपर चढ़ता

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सेब खाता

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पेड़ के नीचे आराम करता

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वह पेड़ को प्यार करता था , पेड़ बहुत खुश था |

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समय गुजरता गया

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एक दिन लड़का पेड़ के पास वापस आया | पेड़ ने कहा “आओ और मेरे साथ खेलो |” 

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“मैं अब बच्चा नहीं रहा,अब मै पेड़ का चारो ओर नहीं खेलने वाला”

“मुझे खिलौने चाहिए और मुझे उन्हें खरीदने के लिए पैसों की जरूरत है |”



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    माफ़ी चाहूँगा. लेकिन मेरे पास पैसे                      लड़का बहुत खुश हुवा उसने

नहीं ..किन्तु तुम मेरे सारे सेब तोड़ कर                      तुरंत सारे सेब निकाल लिए                                                                             लिए

उन्हें बेच सकते हो| तब तुम्हारे पास पैसे हो जायेंगे|            और खुशी खुशी                                                                                           चल दिया|      

                                                                पेड़ बहुत खुश  था |



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लड़का सेब तोड़ने के बाद कभी वापस नहीं आया |

पेड़ दुखी था | 


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एक दिन, लड़का जो अब बड़ा हो गया था और आदमी बन गया था, वापस आया उसे देख पेड़ बहुत खुश और उत्साहित हो गया| “आओ आओ मेरे साथ खेलो “ पेड़ बोला |


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मेरे पास खेलने के लिए समय नहीं है| मुझे परिवार के लिए काम करने हैं |

हमें घर की जरूरत है “क्या तुम मेरी मदद कर सकते हो ?” 


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“माफ करना,मेरे पास कोई घर नहीं है|
किन्तु तुम मेरी शाखाओं को काट कर अपना घर बना सकते हो|”


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तब आदमी ने पेड़ की सारी शाखाएं काट कर खुशी खुशी घर चल दिया|

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पेड़ यह उसे खुश देख कर बहुत प्रसन्न हुवा किन्तु वह आदमी उसके बाद कभी वापस नहीं आया|

पेड़ दुबारा फिर अकेला हो गया और दुखी हो गया |

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एक गर्मी में आदमी वापस आया और पेड़ बहुत खुश हुवा और  बोला - “आओ, आओ और मेरे साथ खेलो|“

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मैं बुढा हो रहा हूँ| मैं समुद्री यात्रा पर जाना चाहता हूँ ताकि मुझे कुछ आराम मिले | “क्या तुम मुझे एक नाव दे सकते हो?”  आदमी ने कहा|



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“ मेरे तने का इस्तेमाल कर तुम नाव बना लो|”  पेड़ बोला | “तुम समुद्री यात्रा में दूर तक जा सकते हो और खुश रहो| ”


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तब आदमी ने नाव बनाने के लिए पेड़ का तना काटा| वह समुद्री यात्रा पर निकल गया और फिर काफी समय तक वापस नहीं आया |

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आखिरी में एक दिन, काफी सालों बाद वह आदमी वापस आया|

“माफ करना मेरे बेटे| अब मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं बचा | तुम्हें देने के लिए कोई सेब भी नहीं मेरे पास ..”पेड़ बोला
“कोई बात नहीं अब मेरे सेब खाने के लिए दांत नहीं हैं” - आदमी ने जवाब दिया

 
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“अब कोई शाखा या टहनी भी नहीं जिस पर तुम चढ सको |”

“अब मै बहुत बुढा हो चला हूँ ऐसा नहीं कर सकता हूँ अब”- आदमी बोला


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“ अरे हाँ ! पुराने पेड़ की जड़ें पसरने और आराम करने के लिए बहुत अच्छी जगह होती हैं”

आओ, आओ मेरे साथ बैठ जाओ और आराम करो |


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और आदमी जड़ पर बैठ गया पेड़ बहुत खुश हो गया और उसके खुशी के आंसूं बहने लगे ..


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जिस तरह वह पेड़, उस लड़के  को उसके बाल्यकाल से ले कर उसके बुढ़ापे तक अपना सर्वस्य परित्याग कर समर्पित करता रहा - इस एकमात्र इच्छा के लिए कि वह बच्चे को हर स्तिथि में खुशी दे सके चाहे इस खुशी देने के लिए उसे अपने शरीर के टुकड़े ही क्यों न करने पड़े हों, जबकि वह लड़का बहुत ज्यादा स्वार्थी था और पेड़ के पास सिर्फ काम पड़ने पर आता था और पेड़ अकेले उदास हो जाता था किन्तु पेड़ फिर भी अपने पास कुछ ना होते हुवे भी अपने बचे अंशो से ही उसे खुशी और आराम देने के साधन जुटाता रहा |

 

उसी तरह हम सबके जीवन में हमारा एक सेब का पेड़ है जो हमें हर हाल में खुश देखना चाहता है और वो हमारे बुडापे तक भी, अगर वो है तो अपनी हर सांस भी हमें देने के लिए तैयार रहता है चाहे हम कितने भी स्वार्थी और लालची क्यों ना हो, चाहे हम उस सेब के पेड़ की बेकदरी क्यों ना करे, लेकिन उसकी आत्मा तो सिर्फ हमारी खुशियों को देख कर खुश और संतुष्ट होती है |

और

वह सेब का पेड़ और कोई नहीं, हमारे माँ  -पिता हैं

जो बच्चों की खुशी के लिए खुद का सब कुछ लुटा देते हैं| स्वयं  जब वो बूढ़े हो जाते है तब भी अपनी बची-खुची उर्जा अपने बच्चों के लिए सहेज, उन्हें देने के लिए तैयार रहते हैं चाहे बच्चे उन्हें उपेक्षित रखते हों, इस बात का दर्द वो दिल में दबा लेते हैं और निस्वार्थ भाव से बच्चों और उनके बच्चों की भी  देखभाल करते हैं और सदा उन्हें खुश देखना चाह्तें हैं |

 

ध्यान रहे कि हम कहीं इस कहानी के बच्चे की तरह स्वार्थी तो नहीं हो रहे| कहीं हमारे माँ पिता अकेले और उपेक्षित तो नहीं हो रहे हैं|

 

आज हमारे माता पिता जिस जगह पर हैं कल हम वहाँ होंगे .

आज हम जिस जगह पर है कल हमारे बच्चे उस जगह पर होंगे |

और जो हम करेंगे उन्हीं संस्कारों का बच्चे वहन करेंगे |

 

यूं तो दिल शरीर के अंदर धडकता है किन्तु बच्चे, माँ पिता के शरीर से निकला हुवा उनका वो दिल है जो बाहरी दुनिया में धडकता है - माता पिता के लिए बच्चे उनका कलेजे का टुकड़ा, आँखों का तारा होते हैं इसी लिए इन मुहावरों की उत्पत्ति हुवी | …………. यूं तो बच्चे को जिंदगी माता पिता देते हैं  किन्तु बच्चे के जन्म के बाद माता पिता अपनी जिंदगी बच्चे को दे देते हैं | …………  उनका अपने बच्चों से  जो निर्विकार, निस्वार्थ, अविरल, अविरत प्रेम है उसकी सम्पूर्ण व्याख्या कोई ग्रन्थ भी नहीं कर पाया …………ये प्रेम सिर्फ महसूस होता है …..… हम अपनी संवेदनाओं को ना खो कर अपने माता पिता के प्रेम को महसूस करें | उनको अपना साथ दें, उनका मान रखें , उनकी जरूरत का ख्याल करें |…….. उन्होंने हमें बड़ा बनाने के लिए हमारी साफ़ सफाई, सुरक्षा, भोजन, भाषा, रहन सहन, कपडे लत्ते, पढाई लिखाई, शिक्षा घर क्या नहीं उपलब्ध करवाए और हमें काबिल बनाने के लिए सतत प्रयासरत रहे| हमारी भावनाओं का भी ख्याल रखा, अपने प्रेम से हमें सिंचित किया   और हमें बड़ा बनाने के लिए किन किन कठिनाइयों का सामना किया होगा, वो बातें भी हमें ज्ञात ना होंगी| अब हम बड़े हो गए हैं, समझने लगें है  …………वो वृद्ध हो चले हो और थोडा देर से समझते हों, आँख कम देखते हों, कान कम सुनते हों, याददाश्त कमजोर हो, या जल्दी चिढते हों या शारीरिक कमजोरी हो, जो भी तकलीफ हो उन्हें, सहनशील हो कर उनका सहारा बन कर न सिर्फ हमें एक तृप्ति का अहसास होगा, बल्कि हम कर्तव्य के मार्ग में भी चल रहे होंगें |…………. बच्चे मूक दर्शक होते हैं वह इन सब बातों को चुपचाप समझते हैं और आत्मसात करते हैं क्यूंकि माता पिता उनके लिए आदर्श होते है अतः  हम अपने बच्चों को जिस मार्ग पर ले जाना चाहते है, हमें स्वयं उस मार्ग पर चलना होगा|  
 

 

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आप कितने भी व्यस्त हों, कुछ समय आप अपने माता पिता के साथ जरूर बिताएं |

 

डॉ. नूतन गैरोला

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