Sunday, October 31, 2010

पहाड़ / उत्तराखंड/ गढ़वाल ( गाँव ) की एक दीपावली - २००९ Dr Nutan Gairola

  पहाड़ / उत्तराखंड/ गढ़वाल ( गाँव ) की एक दीपावली - २००९

घर की सफाई, रंग-रोगन कुछ दिन पहले से शरू हो जाता है | फिर दीपावली के दिन सुबह सवेरे स्नान ध्यान के बाद बनती हैं फूल मालाएं | बच्चे लोग फूलों की मालाएं बनाते है और दीये के लिए बाती | माँ पिता घर की सफाई करते है और रसोई में बनती है -पूड़ी पकौड़ी .. इसके साथ ख़ास बनता है " पिण्डा " - पिण्डा गाये, बैल, बछिया को खिलाने के लिए पके हुए  चावल / भात , झंगोरा / ज्वार और आटे का हाथ से बनाया हुआ बड़ा बड़ा लड्डू होता हैं | पिंडों की थाली भी विशेष रूप से सजाई जाती है| हर पिण्डे पर एक फूल ( अक्सर गेन्दा ) रोपा हुआ  होता है |गाय की पूजा की जाती है| फूल मालाएं पहनाई जाती हैं | तिलक लगा के उनके सींगों पर तेल या घी की मालिश करते हैं .. और फिर उन्हें  " पिण्डा" खिलाया जाता है |


गौ पूजन और पिण्डा खिलाते हुए 


दरवाजों/ देल्ली  के चौखटों को और लकड़ी के खम्बों को सुन्दर पीले, लाल और सफ़ेद रंगों से क्रमशः हल्दी, रोली और आटे के बिंदियो से सजाते ( बिर्याते ) हैं | दरवाजे के दोनों कोनों पर थोडा सा गोबर लगा कर उसे रंगों से बिर्याते है और जौ से सजाते है व दरवाजे और पूजा घर को फूल मालाओं से सजाते है |

दिन में लडकियां और महिलाएं घर की सजावट में गेरू से रंग कर, पिसे चावल से रंगोली सजाते है | रंगीन मिट्टी भी कहीं कहीं पर इस्तेमाल करते है | या फूलों की रंगोली भी  और लक्ष्मी के पैरों के निशान घर के बाहर से भीतर जाते पूजाघर या अनाजघर तक जाते हुवे अंकित करते हैं |




दीये से सुसज्जित रंगोली, पूजा और घर



शाम को पूड़ी ( स्वाल ), पकौड़ी, हलवा बनता है| लजीज व्यंजन बनाये जाते है | पानी की धारा ( मंगरा ), हल के फल और जोल की व ओखली और मुसल ( गंज्याला ) को भी सजाया/ बिर्याया जाता है | इनकी पूजा की जाती है क्यूंकि किसानों के लिए गाय बैल हल, पानी और अनाज को कूटने वाला ओखल बहुत महत्वपूर्ण हैं |

पूड़ी, पकौड़ी, खील, बताशे, मिठाइयाँ और दीयों के थाल सज जाते है| पूजा की सामग्री के साथ पैसा या जेवर, सोना आदि भी रखा जाता है | गणेश जी और लक्ष्मी जी की पूजा होती है |



 जगमग दीये और गणेश लक्ष्मी की पूजा



फिर दीप मालाएं सजाई जाती हैं | घर का कोना कोना दीपज्योति से जगमगाने लगता है| आज कल फुलझड़िया, अनार, बम-पटाखे भी फोडे जाते है |






फूलझड़ी, अनार जलाते हुवे बच्चे 




किन्तु गाँवो में भेल्लो / भेलो खेलते है | जिसमें लकड़ियों का एक छोटा गट्ठा बाँध कर घुमातें हैं | गाँववासी इसका बहुत आनंद लेते है | दुसरे गाँव वाले भी, और सभी गाँव से बाहर इकठ्ठा हो कर नाचते हैं  और रोशनी का त्यौहार भेल्लो के साथ मानते है और " भेल्लो रे भेल्लो " गीत भी गातें हैं |




पारंपरिक भेल्लो खेलते हुए 



घर में बनी पूड़ी, पकौड़ी , खील- बतासे, मिष्ठान आदि का आदान प्रदान करतें हैं और दिवाली मिलन करते है | बच्चो को ये त्यौहार खासा पसंद आता है |

 दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएं  

प सभी का त्यौहार मंगलमय हो | खुशियों को लाने वाला, मन के अंधेरो, राग द्वेश को मिटाने वाला और आपसी प्रेम को बढाने वाला हो | दीपमालाएं प्रज्वलित कीजियेगा किन्तु नाहक बारूद को जला जला कर वातावरण प्रदूषित न किया जाये तो हम सबके लिए और हमारी पृथ्वी के लिए बेहतर होगा | आग से, बारूद से बचें और एक सुरक्षित, पर्यावरण संरक्षित और सौहार्दपूर्ण दीपावली मनाएं -

                  शुभकामनाएं सहित - डॉ नूतन गैरोला

     सभी फोटो मेरी निजी एल्बम से सिर्फ आखिरी फोटो को छोड़ कर - डॉ नूतन गैरोला

Monday, October 25, 2010

ये कैसा करवाचौथ था - ( आपबीती- जगतबीती ) - dr nutan gairola

करवाचौथ पर एक लघु कथा ( आपबीती- जगतबीती )  
करवाचौथ में उन बिन जी घबराया
छत पे चंदा तू भी आया
सजना मेरे किसके द्वारे
जल्दी से उनको मेरी राह दिखा दे |

ये कैसा करवाचौथ था ?
                         
          यूं तो पहाड़ों में करवाचौथ की परंपरा नहीं रही है फिर भी ये पति के लिए रखा जाने वाला व्रत सुहागवती स्त्रियों को  खासा  पसंद  आया है अतः अब पहाड़ो में भी मनाया जाने लगा है | इंदु ने भी करवाचौथ का व्रत लिया था|
              
                      इंदु ने  छुट्टी ली थी | हॉस्पिटल में वार्ड आया का काम करती थी | गरीबी में जैसे तैसे दिन बीत रहे थे  उसके  | मजबूरी में नौकरी करनी पड़ी | छोटे छोटे तीन बच्चे और पति की नौकरी नहीं | उस पर नौकरी न मिलने के गम में पति शराब  पीता | रोटी पानी के लिए रोज आये दिन घर में खिट-पिट होती | सो नौकरी की तलाश में निकल पड़ी| पढ़ी  लिखी थी , एक प्राइवेट  हॉस्पिटल में काम मिल गया - काम वोर्ड आया का था| मैं  भी वहीं कार्यरत थी | इंदु से पहचान हो गयी | अच्छी सभ्रांत महिला थी | मरीजों  की सेवा में तत्पर रहती थी | पर कभी बात होती तो  बच्चों  के भविष्य के लिए बहुत चिंतित, उनकी चिंता उसे खाए जाती थी |
                    
                        उस दिन मैं जब ओ पी डी  में  मरीज देख रही थी मरीज के घाव की पट्टी करनी थी | इंदु को आवश्यक हिदायत देने के लिए मैंने बुलाया तो पता चला कि वह आई नहीं है | मैंने पूछा क्यूं ? पता चला कि उसका करवाचौथ का व्रत है अतः आज छुट्टी  ली  है | पूरे चार  दिन और बीत गए बिना किसी छुट्टी के वह आई नहीं |
                      
                    
                    पांचवे दिन पता चला कि वह आज आई है | मैंने  उसे बुलवाया  | वह सामने आई तो उसने एक तरफ मुंह   ढका हुवा था | पहले सोचा यूंही ढका होगा | बाद में कहा - इंदु क्या बात है आज चेहरा क्यों ढका है, पल्ला  हटाओ  चेहरे के ऊपर से | तो बड़े शर्म के साथ उसने पल्ला हटाया | देख के मेरा दिल धक् हो गया | सुन्दरता की मूरत इंदु की एक आँख ही नहीं दिखाई दे रही थी एक तरफ मुंह  सूजा और काला पड़ा हुवा था , आँखे काली फूली हुवी.. उसके माथे  और आँख पे गहरी चोट लगी थी जिस से रिस कर खून अन्दर ही अन्दर गालों में भी फ़ैल गया था | मैंने पूछा -इंदु ये क्या हो गया तुझे ? वह बहुत रुवान्शी हो गयी..फिर बताया कि उसे पड़ोस  की महिलायें ले कर आई है | उसके पैर हाथो में भी काफी चोट आई है |
                       
                       तब तक  एक पड़ोस की महिला आ गयी | उसने बताया कि डॉक्टर  साहब  चार दिन से ये घर में इस हालत में पड़ी है, राजू (इंदु का पति ) कोई दवा नहीं लाया तो हम इसे यहाँ ले कर आ गए है | मैंने पूछा कि हुवा कैसे - तब इंदु ने बताया कि उसने उस दिन करवाचौथ का व्रत रखा था | बहुत खुश थी वह आज छुट्टी  ले कर बच्चों और पति के बीच में रहेगी | सुबह खाना बनाया बच्चो और पति को खाना खिला कर खुद निर्जल उपवास रखा | पति कि दीर्घायु की कामना की और नयी साडी पहनी, खूब भर भर हाथ चूड़ियाँ पहनी, मेहँदी रचाई, पैरो पे कुमकुम - दुल्हन  जैसा श्रींगार किया | पूजा की पूरी तैयारी की | करवा सजाया | वर्तकथा पढ़ी , पर इन सब के बीच जो कमी उसे खल रही थी वो थी पति की | पति घर पे नहीं थे | 
                      
                        दिन में खाना खाने के बाद कही जा रहा हूँ , कह कर घर से निकल गए थे |देर रात हो आई थी |शारीरिक रूप से कमजोर इंदु को कमजोरी भी आने लगी पर जो नहीं आया वो था पति | सारी महिलायें महोल्ले की पूजा करने लगी  और सबके पति साथ थे| रात के  ग्यारह  बज चुके थे सब चाँद देख रहे थे छन्नी से .. और फिर पति को .. और वह छत पे खड़ी खाली सड़क पे पति का चेहरा तलाश रही थी | लेकिन उस अजगर सी लम्बी सड़क पर समय यूं फिसलता जा रहा था ज्यो एक पल ..पर पति का कहीं नामो निशान नहीं था.. पड़ोस  से नीलम दीदी ने आवाज लगायी -'क्या करेगी तू ' .. इंदु को  समझ नहीं आ रहा था क्या करे .. उसने कहा, जरा भाईसाहब को भेज  दीजिये इनकी तलाश के लिए क्या पता बाजार में किसी दोस्त की  दुकान  में बैठे हों| नीलम  ने कहा ठीक है.. और फिर  एक  घंटा और बीत गया | बच्चे सो चुके थे | भूख और कमजोरी और पानी की कमी से उसका  मुंह  सूखने लगा उसपर वह खड़े खड़े इंतजारी करती चिंतित भी और आक्रोशित भी| उसका शरीर  जवाब देने लगा .. मन की विश्वास की शक्तियां भी कुछ क्षीण पड़ने लगीं| सोचा की ऐसा कौनसा जरूरी काम आ पड़ा जो मेरा ख्याल भी नहीं आ रहा है .. वैसे पहले भी घर से गायब हो जाते थे जब दोस्तों के साथ कुछ ज्यादा पी लेते तो घर नहीं आ पाते थे  तो उनके ही यहाँ ठहर जाते थे .. तब रात्री  एक  बजे नीलम आई कहने लगी की भैया  जी कहीं  नहीं मिले सुना की आज वो दुसरे गाँव, अपने दोस्त रमेश के यहाँ गए है .. नीलम ने कहा की इंदु तू पूजा कर के खाना खा ले.. इंदु भी कमजोरी महसूस कर रही थी और फिर सोचा और दिन जैसे कई बार हुवा है पति शायद कल सुबह आएंगे |
                          
                  उसने पूजा की भगवान् से प्रार्थना की कि हे  भगवान् , वो जहाँ  कहीं  भी हो कुशल मंगल हो और उन्हें  दीर्घायु स्वस्थ रखना . फिर उसने भगवान् को टीका लगाया .. पति  की एक फ्रेम वाली तस्वीर ले आई और उस पर टीका लगाया और उस तस्वीर पर पति को माला पहनाई | फिर खाना पति की तस्वीर पर लगाया तब खुद खाने बैठी ..     
              
                      अभी एक निवाला नहीं खा पाई थी कि दरवाजे पर दस्तक हुवी  उसने दरवाजा खोला तो पतिदेव खड़े थे| शराब  की दुर्गन्ध भक्क उसके  मुंह  पर आई .. पुछा  कहाँ  थे आप आज .. राजू ने जवाब नही दिया  उल्टे कहा  कि खाना चल रहा है तेरा .. खाना खा रही है तू .. तेरी इतनी हिम्मत .. आज करवाचौथ में पति के बगैर खाना .. इंदु ने  कहा - आप नहीं  पहुंचे  जब और  कमजोरी भी आने लगी  इसलिए  पूजा कर के खाना खाने लगी थी | पति ने पूजा घर की ओर देखा और देखा कि उसकी तस्वीर पर फूलमाला  चढ़ी  हुवी है| उसने पुछा - ये माला किसने पहनाई तस्वीर पर .. भोलीभली इंदु ने कहा कि मैंने आपको तस्वीर में माला पहनाई है .. और ये सुनना ही था कि राजू का गुस्सा सातवें  आकाश चढ़ गया .. उसने आव देखा न  ताव एक घूंसा सीधे इंदु के मुंह  पर जड़ दिया - इंदु यूहीं  कमजोरी महसूस कर रही थी चक्करा कर गिर गयी और राजू बेत ले आया और इंदु की पिटाई शुरू हो गयी .. मोहल्ले वाले घर के दरवाजे पर आ गए - राजू चिल्ला  चिल्ला  के सबको बता रहा था - 
इस करमजली को देखो - मेरी फोटो पे माला पहनाई - साली ने मुझे जीते जी  मार  डाला   है|                                      
                      
                                                     


कई प्रश्न एक साथ मेरे मन में उठ खड़े हुवे .. उनका जिक्र न  करुँगी .. चाहूंगी की हर रिश्ते मे प्रेम, स्नेह, सम्मान हो और रिश्तों की मर्यादा बनी  रहे |
                                

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चूड़ी छनकी बिंदिया चमकी
पैरों पे महावर  लगाया |
कुमकुम, महेंदी की ताज़ी खुश्बू संग
पिया पिया तेरा नाम आया |
गजरा महका,   मन  पगला  बहका 
पायल छनकी मृदु  गीत सुनाया | 
तेरी यादों की  जब   हवा चली तो  
फ़र-फ़र -फ़र मेरा आँचल लहराया |
पल पल बिन तेरे, मेरा  हर पल  बोझिल
और  तू न  आया, मेरा गजरा मुरझाया | 
 विकल मन की क्रूर आंधियां ने
कोमल  अभिलाषाओं  को भरमाया | 
 छत पर  अकेला चंदा जब  आया
 उन बिन करवाचौथ में जी घबराया |
दीपक पूजन  का   बुझने  दूं  न मैं
चंदा  को  है पैगाम भिजवाया  |
सजना मेरे सौतन के  द्वारे
जल्दी से उन्हें  मेरी राह दिखा दे |

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यह पोस्ट  उस  महिला  को समर्पित  है जिसके जीवन की घटना को एक रूप दिया है|

डॉ नूतन गैरोला 
२५ / १० / २०१० ( 21 :00 ) 
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Wednesday, October 20, 2010

मेला कर्फ्यू का --एक पहाड़ी लघुकथा - Dr Nutan Gairola

यह कहानी सत्य  घटना  पर  आधारित  है | ये घटना तब की है जब उत्तराखंड आन्दोलन होने पर कर्फ्यू लगा दिया गया था | मैंने उसका विस्तार अपनी सोच से किया है पर मूल में सच्चाई है..पहाड़ की एक सीधी साधी  वृद्ध महिला कर्फ्यू लगा है, कर्फ्यू एक मेला   होता है ऐसा समझ -----                                   

  
पहाड़ के लोग सीधे साधे .. और तब और ज्यादा जब  कि वो दूर-दराज के रहने वाले हो -- ऊपर से जब कोई वृद्धा की बात हो | ऐसी ही एक सीधे साधे पहाड़ी वृद्ध माता ( रुक्मा - काल्पनिक नाम )  की बात  लिख रही हूँ .. ,, बात तब की है जब उत्तराखंड आन्दोलन जोर पे था  | पहाड़ में माहोल बहुत शांतिमय रहा करता था .. लोगो ने दंगा फसाद नहीं जाना ना देखा था ... और फिर कर्फ्यू का क्या मतलब ? लोग गाँव के खेती किसानी में  व्यस्त और कभी मेला ठेला  होता तो वहां चरखी में घूमना .. सर्कस देखना .. तब चाट गोलगप्पे खाना .. रंगबिरंगी चूड़िया पहनती महिलाये, बालों के लिए  चुटिया खरीदती .मेले में बिकते  बुडिया के बाल खाती ...यही मौका होता जब काम से दूर सहेलियों के साथ हंसी  ख़ुशी मनाते..  या फिर कही देवी भाग्वत होता, कथा प्रवचन होता तो खेत से आने के बाद नहा धो कर कथा सुनने जाते और प्रसाद पा कर धन्य हो जाते ...
                                                ऐसे भोले भाले लोग जिन्होंने टेढ़ी बात देखी ना सोची, ... एक दिन वहां के छोटे छोटे शहरों  में कर्फ्यू का ऐलान हो गया | लोग घरों  में बंद .. रुक्मा  विधवा वृद्धा .. खेतों में काम करते समय बातो बातों में सुना कि आज शहर में कर्फ्यू लगा है |जैसे कोई मेला लगा हो | रुक्मा  ने पूछा  अन्य  महिलाओ से कि ये कर्फ्यू क्या होता है... महिलाओं ने बताया कि हमने सुना है पर देखा नहीं... सुना है उधर शहर में जाने नहीं दे रहे है... रुक्मा के मन में भाँती भाँती की मिठाइयों की दुकाने,  झूले , प्रदर्शनी, मेला ,सर्कस, कथा  प्रवचन घुमने लगे .. शायद कर्फ्यू ऐसा ही कुछ होता होगा .. फिर उसने पूछा कि कोई मेरे साथ कोई चलेगा देखने .. वहां  पर काम करती महिलाओं ने कहा बच्चे अभी घर पर  रो रहे होंगे हमें तो घर जाना जरूरी है .. घर गए तो फिर बाजार नहीं जा सकेंगे .. देर हो जाएगी .. गाँव खेत से दुसरी तरफ है शहर  बाजार दुसरी तरफ .. फिर उन महिलाओं ने मिल कर वृद्धा को कहा -बोडी ( ताई ) तू चली जा ना - घर में कौनसे कोई तेरा इन्तजार कर रहा है.. और बताना कैसा था कर्फ्यू .. कल हम भी साथ चलेंगे .. आज कपडे भी अच्छे नहीं पहने हैं .. . रुक्मा जो गाँव के सहयोग में आगे रहती थी सोचा कि चलो आज मैं चली जाउंगी ..कल इन लोगो के साथ मैं फिर चली जाउंगी... और फिर रुक्मा ठहरी अकेली घर में, बच्चे भी बहुत दूर कहीं देश ( पहाड़ से दूर ) में .. कोई पूछने वाला भी नहीं.. सो वह कथा प्रवचन , रामलीला , मेले में जाना पसंद करती .. इस तरह से वो अपना बुडापा काट रही थी |
                                 रुक्मा शहर की ओर चली | खेतों को पार करके जंगल और फिर शहर  की ओर जाता तीखा ढलान | ढलान को पार कर के वो जंगल के दुसरे छोर  जा  निकली ... वहां स्कूल को पार किया तो किसी ने पूछा माता जी कहाँ  जा रही हो ? वह बोली बेटा कर्फ्यू देखने जा रही हूँ | व्यक्ति बोला वहां  मत जाना ..मनाही है पुलिस  भी लगी है | ठीक है बेटा ..  मैंने तो कोई अपराध नहीं किया मुझे क्यों पुलिस पकड़ेगी ..पुलिस का कुछ नहीं बिगाड़उंगी | किसी का बुरा नहीं करुँगी .. चुपके से कर्फ्यू देख कर लौट आउंगी ..
                          बुडी रुक्मा पुलिस और कर्फ्यू का आपसी सम्बन्ध न  समझ पाई | ये आखिरी ढलान थी जहाँ  दोनों ओर बेतरतीबी से बिखरे पहाड़ी शहर के मकान थे | खिड़की से एक औरत ने आवाज लगायी - ए बड़ी जी  ( ए ताई जी ) कहाँ  जा रही हो ? वहां मत जा बडी- पुलिस लगी  है | बड़ी( रुक्मा )  ने कहा सिर्फ कर्फ्यू देखने जा रही हूँ | महिला बोली बड़ी हिम्मत है - लोग तो नहीं जा रहे |
            रुक्मा ने सोचा एक तो आज तक कभी कर्फ्यू नहीं लगा यहाँ " पहली बार लगा है .. कैसे सोये लोग हैं ये जो मेला तो देख लेते है जो साल में दो बार लगता है...और कर्फ्यू पुलिस की डर से नहीं देख रहे है ...पुलिस वाले भी तो हमारे बेटे ही है... गाँव का रग्घू भी तो पुलिस वाला है ... कितना अच्छा बच्चा है ...  और फिर मैंने तो पूरी उम्र ही बिता  दी पर कभी कर्फ्यू नहीं लगा .... इतना ख़ास है ये कर्फ्यू - सुना है कि बाहर से पुलिस  भी आई है... फिर क्यों ना देखें - कल तो मेरे गाँव की महिलायें भी आएँगी -
                  रुक्मा बाजार पहुँच  गयी - अरे ये क्या ?  बाजार बंद है लोग भी नहीं दिख रहे है... रुक्मा सोचने लगी -- हाँ~~~~ ये कर्फ्यू का कमाल है |  इतना सुन्दर प्रोग्राम होगा तो सभी दुकाने बंद कर कर्फ्यू देखने गए है.. रुक्मा तेज़ी से कदम बड़ा कर कर्फ्यू वाली जगह ढूंढने लगी | तभी एक पुलिस वाले की कर्कश आवाज कान में गूंजी - ऐ बुडी कहाँ  जा रही है - रुक्मा बोली - बेटे ! कर्फ्यू देखने - कहाँ  है वो ? पुलिस वाले ने और सख्त और कर्कस आवाज में कहा - चुपचाप घर फौरन चली जा | जाउंगी जाउंगी .. पुलिस वाला बोला ठीक है | रुक्मा तेज कदम से आगे बढने लगी  पुलिस वाला भी दुसरी राह हो लिया... रुक्मा सोच रही थी इतनी दूर से थक हार के यहाँ आई हूँ अब ऐसा कैसे हो कि कर्फ्यू ना देखूं | फिर कोई बताने वाला भी नहीं कि कहाँ  पर कर्फ्यू का पंडाल सजा है | .. थोड़ी दूर पर एक पुलिस वाला दिखाई   दिया रुक्मा सड़क की दुसरी तरफ जाने लगी तो पुलिस वाला बोला - माता जी कहाँ  जा रही हो - वापस घर जाओ -  रुक्मा बोली कर्फ्यू देखने - पुलिस वाला बोला क्या मजाक है - सीधे सीधे वापस जा - रुक्मा  बोली नहीं जाउंगी - कर्फ्यू  कहाँ है ? कैसा होता है ? सब लोग कर्फ्यू देख रहे है यहाँ ..आज तो मैं कर्फ्यू देखे बगैर नहीं जाउंगी| पुलिस वाले ने कहा कहना नहीं मानेगी तू ... और यह कह कर एक बहुत तेज़ डंडे का  वार रुक्मा  की पीठ पर कर दिया | रुक्मा  पीड़ा से चिल्लाई .. दर्द से करहाते हुवे बोली यह क्या है क्यों मारा तुने  ? पुलिस वाला बोला यही कर्फ्यू है अब ले कर्फ्यू का मजा यह कह कर उसने रुक्मा  के पैरों पर तेजी से डंडे के प्रहार किये ... रुक्मा का  बुड्ढा शरीर इन अप्रत्याशित वारों को झेल ना पाया -एक तीखी चीख के साथ उसकी उसकी आवाज गले में फंस गयी ...  उसकी आँखों  के आगे अन्धेरा छाने लगा    ........................................    

लेखक - डॉ नूतन गैरोला - २०/१०/२०१०  १८ : ४५  

Saturday, October 16, 2010

पुनरावर्ती - Dr Nutan gairola


जीती रही, जन्म  जन्म  पुनश्च
मरती रही, मर मर जीती रही पुनः
चलता रहा सृष्टिक्रम
अंतविहीन  पुनरावृत्ति  क्रमशः ~~~

डॉ नूतन गैरोला / १६ - १० - २०१० २०:१२

Friday, October 15, 2010

Instant Picture Comments - Dr Nutan

चाय के संग - एक तरोताजा दिन - शुभप्रभात  



मृदु मंद सुगन्धित शीतल बयार हो,
आशाओं से सिंचित जीवन के तार हो,
कर्म में सृजनता व दिल में लगाव हो,
प्रफुल्लित मन हो खुशियों का संचार हो .
.


शुभप्रभात और शुभदिवस की कामनाओं के साथ , आपका दिन अनुकूल हो ..
और हो एक तरोताजा दिन ..


मेरे पेज पर चाय के साथ स्वागत है आपका :)) 



सहायतार्थ


जिंदगी इतनी आसान नहीं कि, कागजो में लिखी जाये |
जो चाहा मन में देखा सपना, उसको भी जी लिया जाये||
कितने ही हाथ मांगते सहारा, हम बन उनका सहारा
कुछ अपनों के लिए, कुछ गैरों के लिए भी जिया जाये ||
......................................
द्वारा - डॉ नूतन गैरोला

मौन


मुझे चुप रहने दो ..
खुद से बाते करने दो ..
ना पूछना कि यहाँ लिखा क्यों ..
ख़ामोशी का इजहार तो करने दो ...



.........................................................................................

डॉ नूतन गैरोला 



 पाबन्दी

.

दिल पे लगे जख्म बयां किये नहीं जाते,
और मुंह भी सी दिया गया हो जब ,
बस एक आँख ही तो रह जाती है.. 
नस्तर सी दिल की चुभन लिए....


 ..

द्वारा नूतन







पत्थरों का जमाना




दीवारों  पे यूं  न  सजाओ  तस्वीर मेरी कि  पत्थरों  से  जमाना  है ...
जिनकी  दोस्ती  पे  फक्र  है  हमें  ....
उनका  भी  कहाँ   ठिकाना  है ...



द्वारा नूतन








कैसा रहेगा - मातृत्व की तम्मना



तुम आकाश से उतरो
मेरे घर मेरे आँगन में आओ .. कैसा रहेगा

तुम मेरी पलकों से उतरो
मेरे सपनो से मेरे संसार में आओ .. कैसा रहेगा






द्वारा डॉ नूतन



मुस्कान के पीछे 


मेरी इस मुस्कराहट पे न जाना,
इक गम का तूफ़ान छुपा हुवा है,
आन्सुवों  का सैलाब रुका हुवा है ,
अरमान सारे राख में खाकसार हुवें हैं ,
जलने को अब बचा भी क्या है,
बस वो दर्द दिल में रचा बसा हुवा है ...


.
फोटो - माँ की तेहरवीं पर

 .
माँ तू कहाँ -- ---तेहरवीं पे- नूतन




एक मीठी नींद की आवाज

डॉ नूतन गैरोला


जब चाँद गगन पर आने लगे ,
और रात का अँधेरा शर्माने लगे |
तुम एक नीलिमा सी बन फूलों की,
मेरे सपनो में आ गुनगुनाने लगे
||
by nutan
....----................................................................
.......                                    .



एक मीठी नींद की लिए आगाज ..
have a sound n soothing sleep.. Good Night...Dr Nutan Gairola...
feb 13 - 2010
फोटो  सौजन्य  -गूगल ईमेज



शुभकामनाएं



अंधेरो में भी झिलमिलाती रौशनी का कारवाँ मिले,
सूरज में  प्रकाश   संग  शीतलता का अहसास मिले..
तुझे दुनियां  जहाँ की हर खुशियों का साथ मिले..
तुझे तेरे अपनों का सच्चा प्यार मिले ..



शुभप्रभात .. शुभदिवस ..



द्वारा डॉ नूतन डिमरी गैरोला

Tuesday, October 12, 2010

On Mayank's Birthday 18 sep 2010

मयंक के जन्म दिन पर  १८ / सितम्बर / २०१०
पंक्तिया भाई श्री प्रकाश जी के सौजन्य से
पिक्चर प्लेट मैंने बहुत जल्दी में बनायीं थी .. रात १७ / सितम्बर /२०१०
ये पोस्ट फेसबुक में . १८ / सितम्बर / २०१०
















आशाओं की नव कोंपल सा..
आम्र मंजरी की महक सा..
प्रभात के सुकुमार मुख सा..
महके हर पल जीवन..
फूलों सा बहारों सा ...

*स्वागत* * स्वागत* * स्वागत*


फेसबुक की मित्रमंडली की ओर से मयंक को जन्मदिन मुबारक मनमोहन जी को और परिवार को बधाई व शुभकामनाएं ..
मयंक जीवन में नित प्रगति हो ..जीवन खुशियों से भरपूर हो .. दीर्घायु भवः

Sunday, October 10, 2010

खून यकीन का ( स्वरचित - डॉ नूतन गैरोला )


                            खून यकीन का        



उनकी गुफ्तगू में  साजिशों  की महक आती रही ,


शहर-ए-दिल में फिर भी उनकी सूरत नजर आती रही |


शिकायतों के पुलिंदे  बांध  लिए  थे   मैंने ,

 मुंह  खोला नहीं कि  उनको ऐब नजर आने लगे |


पीठ पे मेरे खंजरो की साजिशें  चलती रही,


मौत ही मुझ को अब  बेहतर नजर आने लगी |


यकीनन यकीन का  खून  बेहिसाब बहने लगा ,


लहू अश्क बन  नजरों  में जमने लगा |


झूठे  गुमान   भी जो वो मुझमे भरने लगे ,


चाह कर भी मौत मुझको मयस्सर न होने लगी  |


कोई जा के कह दे मेरी मौत से कि वो टल जाये ,


कि जीने के  तरीके  अब मुझे भी आने लगे है  ||

                                 ......*....* डॉ नूतन गैरोला .. १७ / ०५ / २०१०.......*...*....

तू कौन ? - एक पागल की पीड़ा ? Dr Nutan Gairola

तू कौन ? - एक पागल की पीड़ा ?



चिंतन एक पागल के मन का



मन रे पागल मन
कभी इस डाल से बंधता
तो कभी दूर छिटकता
तो कभी इस पात पे होता
तो कभी उस शाख से फंसता
कभी तुझे  सड़कों  पे देखा
तो कभी मिट्टी से लोटा

मैंने देखा है तुझे नाचते इठलाते
अपनी धुन में गुनगुनाते
तो कभी बुझे मन से चुप
अपनी धुन में खोया
गुमसुम सा किसी
दुकान के नीचे सोया
कभी किसी मकान के पीछे
कागज के चिथड़े पर
कुछ अंकित करता हुवा
यूँ कि जैसे कोई
ख़त लिखता  हुवा
जो दर्द कोई न समझे
उस दर्द को बयाँ करता  हुवा  

मन ऐ मन मैंने पाया है
तुझे भीड़  में या कभी सुनसान में
तू चिल्लाता  हुवा  सड़क पर
कभी किसी राहगीर पर
बेवजह गुर्राता हुवा
यह वजह बेवजह नहीं
यह उस घुटन का
उस तड़पन का
उस छटपटाहट का
उस चुभन का
अहसास है जो उस मन की
तुमने कभी सुनी न  देखी 

कभी तेरे दर्द का
किसको अहसास रहा
तू दर्द में रोता रहा
देख यह कोई हँसता रहा
तू जब भी  पीड़ा  से छटपटाता रहा
देख यह कोई तुझे थप्पड़ लगाता रहा
तू दर्द सारे बीती बाते,
बीती यादे दिल में छुपाये
अपने दिल के दर्द के अहसासों को दबाये
गलियों में हँसता गाता रहा है

तेरी उलझन पीड़ा का उफान
जब हद से पार हुवा है
तेरा क्या कसूर
तुने बहुत रोका
भावनाओं के उन  सैलाबों  को
अजीबो गरीब  ख्यालातों  को
जब बांधे नहीं बंधा, तो टूट गया
तूफ़ान  हवा  में उठ गया,
और फिर तू रोता
हँसता  गिड़गिडाता
गली में चीखता चिल्लाता,
कभी डंडा पटकते तो
कभी पत्थर उठाये
एक पांव में जूता तो
दुसरे में  मोजा  लगाये
अपनी भावनाओं पे
दुसरी भावनाओं को दर्शाता हुवा,
रोता मन तू हँसता गाता हुवा ,
फटे  चिथड़ों  से
मटमैला तन दर्शाता हुवा,
कभी किसी हास्य नाटक के
कमेडियन पात्र की तरह
तो कभी किसी विरहन वियोगी
या फिर योगी
कभी जेंटलमैन की तरह,
अपने गम को छुपाये
किसी से हाथ मिलाता हुवा
रोता मन तू हँसता गाता हुवा|
सोचो तो तू कौन ?
एक पागल या एक आ
म इंसान ?




















Tuesday, October 5, 2010

बस इतनी सी चाहत-----DR Nutan

.
                           न  मुझे   यश  चाहिए, ना मुझे नाम ,
                                   ना मुझे कीर्ति चाहिए ना मुझे दौलत ख़ास
                                  शुकून भरी जिंदगी हो, हो आत्मविश्वास
                                  
निश्छल हंसी हो, गमो में कमी हो,
                                  दो जून की रोटी हो और हो अपनों का प्यार..         ,,,nutan.. 03/06/2010

                                   

फोटो गूगल - ये बच्चा बाल श्रमिक है .. किसी मोटर वर्क शॉप  में काम करता है .. इसकी आँखों में कुछ विशेष भाव और कुछ अजीब सा दर्द है .. क्या हम महसूस कर सकेंगे की ये बच्चे क्या चाहते है जिसके लिए इनेह अपना बचपन खोना पड़ता है काम के पीछे | डॉ नूतन . ५ / १० / २०१०


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