Tuesday, March 15, 2016

आधी रात के सपने सुबह आना...कहते हैं कि सुबह के सपने सच होते हैं .. और आधी रात के सपने भूले जाते हैं|
पर आज याद है कि बैंगनी रात के धुंधलके में
वह सपना एक दरवाजे के आगे जा कर खड़ा हो गया था ..... वह लकड़ी के पुराने दरवाजे के कांच से भीतर झाँकने की कोशिश कर रहा था ... पर दरवाजे के कांच पर भीतर से अखबार चिपका दिया गया था ताकि कोई कांच से टुकुरटुकुर अन्दर न झांके.... उसे पता था भीतर वही लड़की होगी जिसने चटख गुलाबी काली स्कर्ट पहनी है और रात को अपने गेसुवों को ढीला कर कन्धों के ऊपर खुला छोड़ दिया होगा कि जो कमर के नीचे तक झक्क लहराते होंगे| लड़की बालों के लच्छों के बीच घुमावदार छल्लों पर उंगलियाँ घुमाते हुए ध्यानमग्न जरूर कुछ याद कर रही होगी और याद करते करते उसकी आँखे बोझिल हो आई होंगी ... 
वह दरवाजे से झांकना चाहता है शायद कोई सुराख हो दरवाजे पर, किन्तु दरवाजे की फट्टियों के बीच सुराखों पर दीमक ने घर बना लिए हैं पर सपने को अपनी आँखों से बहुत प्यार है| वह यूं ही दरवाजे से अपनी सपनीली आँखें नहीं सटायेगा| वह जर्जर दरवाजे को जोर से भी नहीं हिलायेगा कि भीतर लेटी वह लड़की जाग न जाए जिसकी चमकीली आँखें अभी अभी नींद में डूबी हैं. उसके पास सोने का खूब वक्त भी नहीं तभी तो उसकी राते किताबों में गुजरती हैं .. किताब की पंक्तिया उसने लाल हरे पीले गुलाबी साइन पेन से रंगी हैं जिन रंगों की पंक्तियों को वह घड़ी की सुई के हिसाब से चुनती और पढ़ती हैं.. लड़की बेतरतीबी से बिस्तर और पास की मेज पर फैली मोटी मोटी किताबों के ढेर के बीच सोयी है और अभी पंक्तियों के बीच के रिक्त स्थान पर उसकी आँखें चकराने लगी थी और वह किताब अभी पढ़ते पढ़ते सर्रर से उसके हाथों से फिसली है, नींद ने उसकी आँखों पर जादू किया है....लड़की ने आज अपनी पसंदीदा गाड़े गुलाबी और काले चौखट खानों वाली फ्रॉक पहनी है..... उधर एक खोपड़ी का कंकाल उसके बिस्तर पर पड़ा है जिसने जाने क्या क्या सपने देखे होंगे और जाने क्या क्या सोचा होगा जबकि वह एक जीवन था एक हंसता बोलता चेहरा था और वहीँ एक जांघ की हड्डी भी पड़ी थी कोने पर, मनुष्य देह की इस सबसे लम्बी हड्डी ने कितनी पद यात्राएं की होंगी अब बिस्तर पर जाने किन रास्तों से गुजर कर आई होगी .... अब एक बॉन बॉक्स ही तो उन हड्डियों की रक्षा करता हैं जैसे उनकी देह अब बॉन बॉक्स हो....और अनोटॉमी पढ़ते हुए लड़की उन्हें एक एक कर निकालती है और ग्रेस अनाटोमी की इत्ती भार वाली किताब से पढ़ते हुए समझती है कि ये हड्डी जरूर किसी पुरुष की रही होगी .. ... लड़की कभी नहीं डरी उनके बीच पढ़ते पढ़ते लेटते पढ़ते हुए..... 
हां! फर्स्ट यीयर में एक बड़े हॉल में ६ लड़कियों को जब कमरा दिया गया था तो एक लम्बे अवकाश में सभी पांच लडकिया अपने अपनी घरों को चली गयीं थी और वह बड़ा सा हॉस्टल खाली हो गया था तब पहाड़ की यह लड़की जिसका घर उत्तर के छोर पर कई पहाड़ों के पीछे था जहाँ जाने का मतलब दो दिन और रात का सफ़र, उतना ही आने में वक्त और अतिरिक्त खर्चा.. लड़की ने कॉपी किताब खरीदने के लिए पैसे बचाए थे, मेडिकल की किताब महंगी थी न, सो. बेशक उसे घर की भी बहुत याद आती थी | पर हाँ! उस रात बहुत तेज आंधी चली थी बिजलियाँ चमकी और बादल के बहुत तेज गर्जन से तो वह पहले ही डरती थी. माँ से चिपक जाया करती थी... पर इधर तो तीन मंजिला ढाई सौ कमरों वाला वह हॉस्टल जो उसके लिए नया नया था पर था पुराना जिसके दरवाजे की चिटखनियाँ हिलते टूटते हुए दांतों की तरह लटक रही थी एक दम खाली हॉस्टल में वह लड़की अकेली थी... फिर बिजली भी चली गयी.... अचानक उसे यों ही ख्याल आया कि मैं अकेले नहीं... साथ में छः बॉन बॉक्स में छः कंकाल भी हैं और खुद ही उसने यों भी सोच लिया कि माना छहों उठ पड़े तो........ खैर डर कर उसने दरवाजा खोला तो बाहर कोरिडोर में गर्जना तर्जना के साथ तूफ़ान और अँधेरे का साम्राज्य व्याप्त था... फिर वह हँस पड़ी इससे अच्छा तो भीतर ही है... हम खुद की सोच से क्यूँ कमजोर पड़ जाते हैं, यह सोच कर वह कमरे में लौट आई और अलमारी खोल कर मोमबत्ती जलाई और उधर नट्स वाली चोकलेट पड़ी थी ... उसे धीरे धीरे काटते और मुंह में गलाते हुए उसके स्वाद लेते हुए चुपचाप लेट गयी थी.. रात बीत गयी थी वह..... फिर सेकेण्ड यीयर में उसका कमरा बदल गया था, उसे १५ नंबर अलोट हुआ था| कुछ छोटा था पर उसका बोनबोक्स और किताबे उस कमरे में शिफ्ट हो गए थे| और जारी रही दौड़ भाग और पढ़ाई पढ़ाई और पढ़ाई........ दो घंटे की नींद बमुश्किल से और कभी कभी पंद्रह तो कभी १० मिनट... ऐसे में किताबे अचानक की नींद में हाथों से टपक जाया करती ..
आज उसके सपने विचर रहे है वह जान नहीं पा रही थी कि ये सपना किधर जा रहा है अतीत के गलियों में तो नहीं कि उधर जाता तो पहचाने रास्ते लोग दीखते...........
पर हाँ वह भविष्य में आ खडी हुई है जहाँ बंद दरवाजे के इस ओर ये वर्तमान है जिसके उस पार कमरे में वह लड़की अतीत से होते हुए भविष्य की ओर जाती है .......... दरवाजे के ऊपर धुंधला सा पड़
चुका है १५ नंबर.......
१५ नंबर मिस साहब - भाग १०१



2 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " सुखों की परछाई - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति ...

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