Wednesday, January 15, 2014

बर्फ के खिलाफ जारी है उसका विद्रोह

वो
सामने एक बर्फ का ढेला
औंधी पडी कुल्फी सा  
प्लेट पर ...
कि जिसको चाहा था राजिया ने 
बेसब्री से
और
कि कुछ गर्मी तो हो 
उसके लिए ....
कि छू सके 
सहला सके
प्रेम से हाथों में उठा तो सके  ...
छूने की इस तमाम ख्वाहिश में
ठोस ढेला खो गया
पानी पानी हो गया .............
और हादसे के बाद
जब भी पानी को देखती है राजिया 
तमाम उष्माओं को खो कर
प्रेम में
बर्फ हो जाना चाहती है
ढेले को छूना चाहती है
पोरों पर
और हाथों में हाथ रख कर
हथेलियों की जुम्बिश में खो देना चाहती है

चेतना को  ...........
-------------------------------
पर इसके पलटवार
शहर की गलियों में
राजिया को चुस्की खाते देखा है
लोगों ने
लाल लाल होंठों पर
शायद राजिया दर्ज करती है  विद्रोह 
बर्फ के खिलाफ

गर्मी के खिलाफ ....................

Saturday, January 4, 2014

सीमित परवाज की अबाबील नहीं हो तुम - तुम्हें उड़ना है दूर तक



 

      DSC00930
 

हाहाहा
प्यार भी किस चिड़िया का नाम है

है ना ..

औचक सी रह जाती हूँ मैं
कंधे पर फुदक कर बैठ जाती है जब
किसी जंगल की खुशबू का आभास लिए
पर्वतों पर आ जाती है वह
चहकती हुई लुभाती हुई
..........

ओ अबाबील तुम प्रवासी हो
पहाड़ का सम्मोहन तुम्हें खींच लाता है इधर
पर
तुम नहीं जानती कि कब बदल जायेंगे ये मौसम
और तुम्हें जाना होगा वापस .....


पहाड़ पर बहते हुए तुम्हारे प्रेम राग
और कन्धों पर तुम्हारे पंखों की फडफडाहट
गुदगुदा जाते है बहुत ..........

.
और देखों उन हाथों में
दोना है अनाज  का
वो तुम्हें चुगाएगी नहीं
बेशक तुम बहुत अच्छी हो अबाबिल ......


फिर भी ध्यान रखना
वो अभिशापित है निष्ठुरता के लिए
तुम पर जारी निष्ठुरता के लिए प्रतिबद्ध है

इसलिए वो खुद के प्रति अन्यायी हो जाती है

और हो जाती है  खुद से निष्ठुर .......
फिर भी
अगर तुम्हें भूखा न वो देख पाए

और स्नेह से बिखरा दे दानें
पर तुम न चुगना दानो को

न उनके फेर में पड़ जाना ........
ये पहाड़ है हिमालय के


जहाँ पाषाण बहुतेरे और हरियाली है कम 

और जाने कब बदल जाए मौसम
आ जाए कोई बर्फीला तूफ़ान
और नन्ही अबाबील हो जाए लुप्त ...
इससे पहले ही तुम
उसके कंधे से उतर जाओ
जाओ परवाज लगाओ .......
पहाड़ से दूर बहुत दूर
क्यूंकि वो भी चाहती है तुम्हारी दीर्घ खुशी
और तुम्हारी उन्मुक्त लंबी उड़ान .......

ये जायज है कि तुम्हारा लक्ष्य
एक कंधे के लिए संकीर्ण हो नहीं सकता

तुम्हें फैलाने होंगे वृहद समाज के लिए अपने पांखें

दूर तक उड़ना होगा  

और सुनाना होगा सबको मधुर राग .….. नूतन





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