समय का पहियां
घूमता, फैलता, खींचता, समय..
बढती उमर ...
पकवान जो लुभाते थे ख्यालो में कभी क्यों कर स्वाद फीका हो चला है..
और वो कोरे कागजों के फूल इत्र उड़ा, मिटती सुगंध..
ज्यूं खट खट टक टक के संग
आभासीय दोस्ती,
जो साथ थे पास थे
फासले समय के साथ
कितने बड़े
कि नदी के किनारे भी ना हुवे
जो मिलते कभी नहीं थे
समान्तर चलते भी ना रहे ...
तुम वही हो,
पर कितने बदल गए हो
और तुम्हारा नजरिया बदल गया है |
कभी लगता है मुझे क्यूं तुम बदले ? पर
खुद को समझी नहीं मैं ..
शायद नजरिया मेरा ही बदल गया है
धुंधला रही हैं नजरे मेरी,
एक झुर्रि भी इठला रही माथे पर मेरे
और मुझे मोटा चश्मा चढ़ गया है ||
डॉ नूतन गैरोला ..१३=१२=२०१० १९ :५५ ==============================
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बहुत ही सुंदर नूतन जी, शायद चीजों को देखने का नजरिया ही तो बदलता रहता है उम्र, अनुभवों के साथ.
ReplyDeleteसही है समय के साथ जब अकल पड़ पर्दा पड़ जाता है तो लोगों का लोगों के प्रति नज़रिया भी बदल जाता है। एक बेहतरीन राचना।
ReplyDeleteyah mota chashma ... badalte waqt ka aakhiri sach !
ReplyDeletepar kya sach me itna hi sach hai ?
समय के साथ रिश्तों की गर्मी भी कुछ ठसँडी होने लगती है। सुन्दर रचना। शुभकामनायें।
ReplyDeleteपरिवर्तन प्रकृति का नियम है परन्तु परिवर्तन की दिशा स्वाभाविक अथवा ठीक हो इतनी आशा तो की ही जा सकती है.आपकी पोस्ट बहुत दिनों बाद पढ़ने को मिली.संभवतः व्यस्त रही होंगी. उम्र के साथ होते स्वाभाविक परिवर्तन को चित्रित करती आपकी कविता अच्छी बन पड़ी है.
ReplyDeleteवक्त के साथ हर पल परिस्थिति बदलती है ..रिश्तों में भी ठहराव आ जाता है ...खूबसूरती से लिखा है आपने इस बदलाव को ..
ReplyDeleteफ़ासले समय के साथ इतने बढे कि ,
ReplyDeleteनदी के किनारे भी ना हुए।
सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई।
नूतन जी, बहुत सुंदर विचार और उतना ही सुंदर प्रस्तुतिकरण।
ReplyDelete---------
दिल्ली के दिलवाले ब्लॉगर।
बहुत ही सुंदर एहसास के साथ सुंदर कविता....
ReplyDelete.
सृजन शिखर पर " हम सबके नाम एक शहीद की कविता "
क्या सजीव चित्रण किया है बधाई एक सत्य को दर्शाती पोस्ट बड़ी शालीनता से बहुत कुछ कह दिया आपने
ReplyDeleteकभी लगता है मुझे
ReplyDeleteक्यूं तुम बदले ?
पर
खुद को समझी नहीं मैं ..
शायद नजरिया मेरा ही बदल गया है
बहुत ही सुन्द शब्द रचना ।
बहुत ही सुंदर...कोई व्यक्ति विशेष बदले या खुद का नजरिया...दोनों ही सूरतों में तस्वीर ही बदल जाती है....
ReplyDeletenice picture and writing and keshi hai aap?
ReplyDeleteesse est percipi...philosopher isi ko kahte hain..
ReplyDelete...रिश्ते नाजुक होते है..बद्लाव कई बार असह्य हो जाता है!..बहुत ही सुंदर रचना!
ReplyDeleteस्वाभाविक परिवर्तन को चित्रित करती सुन्दर कविता|
ReplyDeleteब्लॉग का टेंम्प्लेट सुन्दर और मनोहारी तो है ही-
ReplyDeleteमगर उससे भी सुन्दर आपका स्रजन है, जो श्रेष्ट है!
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मगर लिखाई का रंग बहुत दब रहा है!
हम जैसे बुड्ढों को पढ़ने में दिक्कत होती है!
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मेरा सुझाव है कि
आप फॉण्ट का साइज बढ़ा दे
और लिखाईका रंग बदल दे तो अच्छा रहेगा!
खुद को समझी नहीं मैं ..
ReplyDeleteशायद नजरिया मेरा ही बदल गया है
धुंधला रही हैं नजरे मेरी,
एक झुर्रि भी इठला रही माथे पर मेरे
और मुझे मोटा चश्मा चढ़ गया है |
वाह बहुत खूब
bhut hi khubsurati se likha hai aapne........bhut hi pyaara...
ReplyDeletesamay badalta hai ya swayam hum badal jaate hain....
ReplyDeleteshayad dono anyonyasrit satya hain!
sundar rachna!
बहुत सही बताया आपने
ReplyDeleteहाँ कई बार जिन्हे हम अपना मानते है उनका बदलना काफी तकलीफदेय होता है
खुद को समझी नहीं मैं ..
ReplyDeleteशायद नजरिया मेरा ही बदल गया है ...
behatreen abhivyakti.
aabhaar.
आपकी रचना अच्छी है बदलते समय का खूबसूरत चित्रण ..
ReplyDeleteनमस्कार जी,
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी,सुंदर प्रस्तुति
कई बार हमारा नज़्ररिया बदल जाता है और हमएं लगता है कि शायद ज़माना या वक्त बदल गया है ! सुन्दर प्रस्तुती !
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुतिकरण
ReplyDeleteविज्ञानं पहेली-२
अभाषी दुनिया .......... हकीकत की दुनिया भी बहुत बदली-बदली सी हो जाती है नूतन जी। क्या कहूं....कई बार लगता है कि सही में हमारा ही नजरिया बदलने लगा है। पर फिर से कमर कस के हम अपने पुराने नजरिए पर लौटने लगते हैं..भले ही पूरी तरह से नहीं पर काफी कुछ वैसे ही हो जाते हैं हम। हां इस बीच एक झिर्री औऱ चश्मे का नंबर जरुर बढ़ जाता है।
ReplyDeleteनूतन जी,
ReplyDeleteआपकी कविता पढ़ कर ऐसा लगा जैसे जीवन की सच्चाई पर आपने शब्द अंकित कर दिये हैं !
धन्यवाद !
ज्ञानचंद मर्मज्ञ
समय के साथ-साथ संबंधों में परिवर्तन को सुंदरता से चित्रित किया है आपने ।
ReplyDeleteकविता बहुत प्रभावशाली लगी।
बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
ReplyDeleteहिन्दी को ऐसे ही सृजन की उम्मीद ।
नूतन जी, आज दुबारा आपकी कविता पढने का सौभाग्य मिला और कमेंट किये बिना न रहा गया। सचमुच जीवन के सत्य को आपने बहुत ही सलीके से आसान से लफ्जों में पिरो दिया है। हार्दिक बधाई।
ReplyDelete---------
मोबाइल चार्ज करने की लाजवाब ट्रिक्स।
समय बदलता है ,
ReplyDeleteतो परिस्थितियाँ भी बदली-सी नज़र आने लगती हैं
लेकिन नज़रिए पर
कड़ी नज़र तो रखनी ही होगी.....
क्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
ReplyDeleteआशीषमय उजास से
आलोकित हो जीवन की हर दिशा
क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
जीवन का हर पथ.
आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं
सादर
डोरोथी
khoobsurti se likhi bahut sunder pangtiyan.
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए...
ReplyDelete*काव्य-कल्पना*:-दर्पण से परिचय
*गद्य सर्जना*:-पुराने साल की कुछ यादे
अति सुंदर नूतन जी, सचमुच मजा आ गया।
ReplyDelete---------
ध्यान का विज्ञान।
मधुबाला के सौन्दर्य को निरखने का अवसर।
समय के साथ देखने का नजरिया बदलता रहता है..बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति..
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