Tuesday, December 14, 2010

तुम बदले ? न हम … डॉ नूतन

आभासीय दुनिया में खूब खाए लड्डू पकौड़े , पाई गिफ्ट , और बने अच्छे मित्र .. .. फिर ऐसा क्या कि सब कुछ बदला बदला सा लगने लगा … सब वैसा ही था फिर क्यों सब बदल गया था

     long-friends.


समय का पहियां
घूमता, फैलता, खींचता, समय..
बढती उमर ...

पकवान जो लुभाते थे ख्यालो में कभी
क्यों कर स्वाद फीका हो चला है..
और वो कोरे कागजों  के फूल 
इत्र उड़ा, मिटती सुगंध..

ज्यूं खट खट टक टक के संग 
आभासीय दोस्ती,
जो साथ थे पास थे
फासले समय के साथ
कितने बड़े
कि नदी के किनारे भी ना हुवे
जो मिलते कभी नहीं थे
समान्तर चलते भी ना रहे ...

तुम वही हो,
पर कितने बदल गए हो
और तुम्हारा नजरिया बदल गया है |
कभी लगता है मुझे
क्यूं तुम बदले ?
पर
खुद को समझी नहीं मैं ..
शायद नजरिया मेरा ही बदल गया है
धुंधला रही हैं नजरे मेरी,
एक झुर्रि भी इठला रही  माथे पर मेरे
और मुझे मोटा चश्मा चढ़ गया है ||


डॉ नूतन गैरोला ..१३=१२=२०१० १९ :५५
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37 comments:

  1. बहुत ही सुंदर नूतन जी, शायद चीजों को देखने का नजरिया ही तो बदलता रहता है उम्र, अनुभवों के साथ.

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  2. सही है समय के साथ जब अकल पड़ पर्दा पड़ जाता है तो लोगों का लोगों के प्रति नज़रिया भी बदल जाता है। एक बेहतरीन राचना।

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  3. yah mota chashma ... badalte waqt ka aakhiri sach !
    par kya sach me itna hi sach hai ?

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  4. समय के साथ रिश्तों की गर्मी भी कुछ ठसँडी होने लगती है। सुन्दर रचना। शुभकामनायें।

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  5. परिवर्तन प्रकृति का नियम है परन्तु परिवर्तन की दिशा स्वाभाविक अथवा ठीक हो इतनी आशा तो की ही जा सकती है.आपकी पोस्ट बहुत दिनों बाद पढ़ने को मिली.संभवतः व्यस्त रही होंगी. उम्र के साथ होते स्वाभाविक परिवर्तन को चित्रित करती आपकी कविता अच्छी बन पड़ी है.

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  6. वक्त के साथ हर पल परिस्थिति बदलती है ..रिश्तों में भी ठहराव आ जाता है ...खूबसूरती से लिखा है आपने इस बदलाव को ..

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  7. फ़ासले समय के साथ इतने बढे कि ,
    नदी के किनारे भी ना हुए।

    सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई।

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  8. नूतन जी, बहुत सुंदर विचार और उतना ही सुंदर प्रस्‍तुतिकरण।

    ---------
    दिल्‍ली के दिलवाले ब्‍लॉगर।

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  9. बहुत ही सुंदर एहसास के साथ सुंदर कविता....
    .
    सृजन शिखर पर " हम सबके नाम एक शहीद की कविता "

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  10. क्या सजीव चित्रण किया है बधाई एक सत्य को दर्शाती पोस्ट बड़ी शालीनता से बहुत कुछ कह दिया आपने

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  11. कभी लगता है मुझे
    क्यूं तुम बदले ?
    पर
    खुद को समझी नहीं मैं ..
    शायद नजरिया मेरा ही बदल गया है

    बहुत ही सुन्‍द शब्‍द रचना ।

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  12. बहुत ही सुंदर...कोई व्यक्ति विशेष बदले या खुद का नजरिया...दोनों ही सूरतों में तस्वीर ही बदल जाती है....

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  13. nice picture and writing and keshi hai aap?

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  14. esse est percipi...philosopher isi ko kahte hain..

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  15. ...रिश्ते नाजुक होते है..बद्लाव कई बार असह्य हो जाता है!..बहुत ही सुंदर रचना!

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  16. स्वाभाविक परिवर्तन को चित्रित करती सुन्दर कविता|

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  17. ब्लॉग का टेंम्प्लेट सुन्दर और मनोहारी तो है ही-
    मगर उससे भी सुन्दर आपका स्रजन है, जो श्रेष्ट है!
    --
    मगर लिखाई का रंग बहुत दब रहा है!
    हम जैसे बुड्ढों को पढ़ने में दिक्कत होती है!
    --
    मेरा सुझाव है कि
    आप फॉण्ट का साइज बढ़ा दे
    और लिखाईका रंग बदल दे तो अच्छा रहेगा!

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  18. खुद को समझी नहीं मैं ..
    शायद नजरिया मेरा ही बदल गया है
    धुंधला रही हैं नजरे मेरी,
    एक झुर्रि भी इठला रही माथे पर मेरे
    और मुझे मोटा चश्मा चढ़ गया है |
    वाह बहुत खूब

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  19. bhut hi khubsurati se likha hai aapne........bhut hi pyaara...

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  20. samay badalta hai ya swayam hum badal jaate hain....
    shayad dono anyonyasrit satya hain!
    sundar rachna!

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  21. बहुत सही बताया आपने
    हाँ कई बार जिन्हे हम अपना मानते है उनका बदलना काफी तकलीफदेय होता है

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  22. खुद को समझी नहीं मैं ..
    शायद नजरिया मेरा ही बदल गया है ...

    behatreen abhivyakti.
    aabhaar.

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  23. आपकी रचना अच्छी है बदलते समय का खूबसूरत चित्रण ..

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  24. नमस्कार जी,
    बहुत ही अच्छी,सुंदर प्रस्तुति

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  25. कई बार हमारा नज़्ररिया बदल जाता है और हमएं लगता है कि शायद ज़माना या वक्त बदल गया है ! सुन्दर प्रस्तुती !

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  26. अभाषी दुनिया .......... हकीकत की दुनिया भी बहुत बदली-बदली सी हो जाती है नूतन जी। क्या कहूं....कई बार लगता है कि सही में हमारा ही नजरिया बदलने लगा है। पर फिर से कमर कस के हम अपने पुराने नजरिए पर लौटने लगते हैं..भले ही पूरी तरह से नहीं पर काफी कुछ वैसे ही हो जाते हैं हम। हां इस बीच एक झिर्री औऱ चश्मे का नंबर जरुर बढ़ जाता है।

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  27. नूतन जी,
    आपकी कविता पढ़ कर ऐसा लगा जैसे जीवन की सच्चाई पर आपने शब्द अंकित कर दिये हैं !
    धन्यवाद !
    ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  28. समय के साथ-साथ संबंधों में परिवर्तन को सुंदरता से चित्रित किया है आपने ।
    कविता बहुत प्रभावशाली लगी।

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  29. बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
    हिन्दी को ऐसे ही सृजन की उम्मीद ।

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  30. नूतन जी, आज दुबारा आपकी कविता पढने का सौभाग्‍य मिला और कमेंट किये बिना न रहा गया। सचमुच जीवन के सत्‍य को आपने बहुत ही सलीके से आसान से लफ्जों में पिरो दिया है। हार्दिक बधाई।

    ---------
    मोबाइल चार्ज करने की लाजवाब ट्रिक्‍स।

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  31. समय बदलता है ,
    तो परिस्थितियाँ भी बदली-सी नज़र आने लगती हैं
    लेकिन नज़रिए पर
    कड़ी नज़र तो रखनी ही होगी.....

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  32. क्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
    आशीषमय उजास से
    आलोकित हो जीवन की हर दिशा
    क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
    जीवन का हर पथ.

    आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं

    सादर
    डोरोथी

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  33. khoobsurti se likhi bahut sunder pangtiyan.

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  34. समय के साथ देखने का नजरिया बदलता रहता है..बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति..

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