जिस तरह जनम अपनी इच्छा से नहीं लिया जाता है, मौत भी एक अकाट्य सत्य है - जो चाह कर भी नहीं आती और न चाहते हुवे भी मिलती है | बचपन में मौत को कदाचित स्वीकार नहीं कर पाती थी और मौत की बात पर, मौत पर बेहद क्रोध आता था और भगवान पर भी | लेकिन अब इस सत्य को स्वीकार ही नहीं किया बल्कि रोज आये दिन रोग पीड़ित दुखी लोगो को देखा है - महसूस किया है कभी कितने बेवक्त पे आती है और कभी कितना दुखी कर जाती है.. और कभी बहुत तडपाती भी है ..और तब इंसान इस जन्म मौत के जाल से मुक्ति चाहता है | ये बाते मेरी बहुत कडुवी भी लग रही होंगी तो यही सत्य है | हमें इस कडुवाहट के साथ जीना भी पड़ता है | उस वक़्त प्रार्थना होती कि हे प्रभु ! तू मौत को सरल कर दे | बिना कष्ट के इस रास्ते को आसान कर दे |
मेरी सदा यही दुवा है और प्रार्थना है कि प्रभु ! सबको दीर्घायु रख , स्वस्थ रख , और अकाल मृत्यु को हर ले , और एक पूर्ण खुशियों से भरी स्वस्थ जिंदगी हो | डॉ नूतन गैरोला |
"एक दरखास्त "
मुझे डर नहीं कब पैरों तले धरती खिसक दलदल में मुझको फंसा देगी | मुझे खौफ नहीं कौनसा लम्हा मुड़ के मुझे मौत की नींद सुला देगा | खुद पे यकीं है, 'उस' की ताकत के परों पे सवार ऊपर उठ जाऊँगा मैं | जीने की मजबूरी में इस दुनिया को जी जाउंगा मैं | मिन्नते- ए- जिंदगी कर पशेमानी में न रहूँगा मैं | शब् -ए हिजराँ में ऐ मौत तू खिद्दमत कर रही होगी | रस्में मुहब्बत के तू फिर मुझसे निभा देगी | दर्द की बेड़ियाँ काट के होलें से हाथ मेरा थाम लेगी | अर्ज करता हूँ ख्याल बस इतना रखना नाजुक कलाई है मेरी , उठा लेना तू मुझे बड़ी हिफाज़त से | तनहा रहे ता- उम्र 'उस'के बिना मिला देना तू मुझे 'उस' खुदा से || डॉ नूतन गैरोला
एक अद्भुत चित्र देखा था - जिसमे एक सारस मगरमच्छ के पीठ पर बैठ के मछली की तलाश में बीच पानी में है , वो कितना बेख़ौफ़ है और उसे अपने पंखों पे भरोसा है | इस चित्र को मैंने उन भावनाओ के साथ जोड़ कर देखा है जो ऊपर लिखी हैं |
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सुन्दर भाव!
ReplyDeleteचित्र, रचना और कामना का सुन्दर समन्वय!
ReplyDelete--
यह कामना तो डॉ. नूतन गैरोला ही कर सकती है!
ख्याल बस इतना रखना .........बहुत सुदर पंक्ति
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता साथ में आपकी दुआ सबको किले यहीं प्रार्थना करुंगा. धन्यवाद.
ReplyDeleteशाश्वत सत्य को कहती अच्छी रचना है ....
ReplyDeleteबहत खूबसूरत, बेमिसाल
ReplyDeleteमुझे खौफ नहीं
ReplyDeleteकौनसा लम्हा
मुड़ के मुझे
मौत की नींद सुला देगा |
बहुत सुन्दर भाव
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteअर्ज करता हूँ
ReplyDeleteख्याल बस इतना रखना
नाजुक कलाई है मेरी ,
उठा लेना तू मुझे
बड़ी हिफाज़त से |
तनहा रहे ता- उम्र 'उस'के बिना
मिला देना तू मुझे
'उस' खुदा से ||
बहुत सुंदर ।
ek behad sundar aur masoom si rachna--badhaaii
ReplyDeleteशबे हिज्रां में ऐ मौत तू ख़िदमत कर रही होगी।
ReplyDeleteख़ूबसूरत पंक्ति, अच्छी रचना बधाई।
प्रार्थना स्वीकार होगी :)
ReplyDeleteWah!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteतनहा रहे ता- उम्र 'उस'के बिना
ReplyDeleteमिला देना तू मुझे
'उस' खुदा से ||
बेहतरीन प्रस्तुति ... गहरे जज्बात के साथ लिखी गई सुंदर कविता
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना मंगलवार 23 -11-2010
ReplyDeleteको ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
अद्भुत भाव ..बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteBahut sundar bhavon se piroyee rachna... bahut achhi lagi..
ReplyDeleteAAp mere blog par aayee iske liye dhanavaad... aapne meri profile ke pechhe jis pahad ka ulekh liya hai wah bilkul sahi hai.. ham joshimath gaye the, wahin mere husband ne photo lee thi.. mujhe achhi lagi isliye profile mein lagayee hai...
आपका ब्लॉग बहुत सुंदर है, और कविता भी, बधाई स्वीकारें !
ReplyDeleteगज़ब का चिन्तन और भाव दोनो ही लाजवाब ………………उम्दा प्रस्तुति।
ReplyDeleteमौत की घाटियों से गुजरते वक्त भी परमेश्वर हमारे हाथों को थामे रखता है, जैसे वो जीवन भर हमारे साथ रहता है और हर हाल में हमें निर्भय बने रहने की प्रेरणा देता है. पर मानव मन की दुर्बलताएं हमें इस सत्य को स्वीकारने से कई बार रोक देती है. दिल को गहराई से छूने वाली खूबसूरत और संवेदनशील प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
नूतन जी, संभवतः आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ है...आपकी प्रस्तुत रचना पढ़ी जो बहुत अच्छी लगी...निसंदेह शब्द चयन और भाव दोनों लाज़वाब है....बधाई .स्वीकारें.
ReplyDeleteनूतन जी Dr. तो इश्वर का भेजा हुआ दूत है जो तकलीफ में बीमारी में रोगों से निवारण का जरिया होता है!और मृत्यु अटल सत्य है इसे भी एक Dr. ही अच्छे से समझ सकता है!
ReplyDeleteएक अच्छी कविता और बहुत कुछ कहता मगरमच्छ की पीठ पर बैठा सारस.. दोनों ही उत्कृष्ट है !
बहुत ही सुंदर.... मनोभावों को खूब प्रस्तुत किया.... बधाई
ReplyDeleteमैं सोच रहा हूं कि अब तक मैं था कहां और यहां तक कैसे नहीं पहुंचा । आपके ब्लॉग का कलेवर गजब ढा रहा है तिस पर आपकी रचना ने तो कयामत का मंज़र ला दिया है । बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको
ReplyDeleteहाथ थामने वाला तो ब्स एक ईश्वर ही है ... और ऐसे में ईश्वर मिल जाए तो जीवन भी सफल है ...
ReplyDeleteगहरे भाव समेटे प्रभावी रचना ....
kaash k hum iss akaatya satya se nahi haarte aur issey itni aasaani se swikaar kar patey :(
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया लिखा है आपने.
ReplyDeleteबेहतरीन रचना। बधाई।
ReplyDeleteभयानक मृत्यु का सुन्दर स्वागत ...
ReplyDeleteकुछ कुछ गीतांजलि जैसे भाव ...
सुन्दर !
बहुत सुन्दर भाव और बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति ! एक अद्भुत विश्वास और आस्था से परिपूर्ण आपकी यह रचना बहुत अच्छी लगी ! बधाई एवं शुभकामनाएं !
ReplyDeleteचित्र और कविता का तालमेल बेहतरीन है
ReplyDeleteकितनी खूबसूरती से आपने चित्र और कविता को जोड़ दिया है..बहुत बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteदेर से आया हूँ आपके ब्लॉग पे, अब आना बना रहेगा..
पहली बार आपको पढ़ रहा हूँ !निस्संदेह आप अपना प्रभाव छोड़ने में समर्थ रही हैं ! आज से आपको भविष्य में पढने के लिए फालो कर रहा हूँ !
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें !
really excellent!congratulation!
ReplyDeletekhoobsurat likh dena hi paryapt hai sundar kavita ke saath sundar gajab ka sanyog
ReplyDeletenutan ji,
ReplyDeleteshastri ji ke maadhyam se aapke yahaan aana hua...bahut khoobsoorat bhaavon ke saath aap apni bhavnaaon ko kaagaz par utaarti hain!
likhte rahiye!
surender.
बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! चित्र भी बहुत सुन्दर है!
ReplyDeletevery much thanks for your nice comments
ReplyDeletebahut sunder.
ReplyDeleteनूतनजी,
ReplyDeleteखुद पे यकीं है,
'उस' की ताकत के परों पे सवार
ऊपर उठ जाऊँगा मैं |
जीने की मजबूरी में
इस दुनिया को जी जाउंगा मैं |
बहुत ही भावनात्मक रचना के साथ चित्र संयोजन है | दोनों के तालमेल से ईश्वर पर भरोसा और आपकी रचना के अर्थ भी अपनाप खुलते हैं | बधाई |
Acha laga padh kar mam ! Khash kar kavita ka shirshak , aur chitra ..:) uttam hai .
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aap kabhi mere blog par bhi padharein , tippani de kar hame protsahit karein .
www.ygdutt.blogspot.com
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Aapke ashirwaad ke utsukta mein ,
Yagya
Ek chiz or likhana bhool gaya , blog ka background kuch jyada hi dark hai , mujhe padhane me thodi dikkat hui , post nahi baaki links or tippani ..
ReplyDeleteसही कहा है आपने। दुख इस बात का नहीं कि कब आकर जमीन पैरो तले से निकल जाए। सच में दुख तब होता है जब हम कोशिश करके भी स्थिति को संभाल नहीं पाते। दुख तब भी होता है जब देखते हैं कि महज चंद हजार के लिए 14 किसान एक ही दिन में खुदकुशी कर लेते हैं और एक शादी में करोड़ो रुपये खर्च हो रहे होते हैं। अगर कुछ लोग चाहें तो हजारों कि जिंदगी बच सकती है। पर यही तो किस्मत है हम सब कि। रोज ब रोज मर्मांतक सच से रुबरु होना पड़ता है क्या करें। आपके पेशे में तो खासकर।
ReplyDeleteवाह, बहुत सुंदर प्रस्तुति एवं खूबसूरत चित्र .........
ReplyDeleteमन के तारों को झंकृत करती रचना। बधाई।
ReplyDelete---------
ईश्वर ने दुनिया कैसे बनाई?
उन्होंने मुझे तंत्र-मंत्र के द्वारा हज़ार बार मारा।
नूतन जी
ReplyDeleteबहुत प्रेरक विचार और , ख़ूबसूरत कविता के लिए आभार ! … और बधाई !!
मिला देना तू मुझे उस ख़ुदा से …
आख़िरकार सबको मिलना ही है …
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
पहली बार पढ़ा आपको...बहुत अच्छी कल्पना कर के बहुत सुंदर शब्दों से सजाया भावों को.
ReplyDeleteनूतन.....इसे मैंने इक प्रार्थना की तरह पढ़ा है.....इसमें गहरे डूबा हूँ.....और अभी कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं....मेरी निर्वाकता ही मेरी प्रतिक्रिया है इस पर....!!!
ReplyDeleteडॉ. नूतन जी,
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरणादायक पोस्ट है !
आसमान तो बस उसी का होता है जिसके पास हौसलों के पंख होते हैं !
साधुवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बहुत शुभकामना