ये सच ही तो है और कितना भयानक सच… एक देह जिसके अरमान थे, जीवन अभी बचपन से उठ कर खिल रहा था - गाँव की वह विवाहित अति सुन्दर बाला की सुंदरता उसे किस कदर हैवानों के आगे लील गयी… आज भी मुझे याद आता है तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं …. उसके जिस्म के टुकड़े होते हुवे देखे.. एम् बी बी एस के तृतीय वर्ष में उस दिन का अनुभव हमारे लिए नया था ..उस के बाद तो आम हो गया| मोर्चुरी का पहला दिन याद आने लगता है मुझे मेडिकल कॉलेज और एम्,बी.ब.एस कोर्स का तीसरा साल / दूसरा प्रोफेसनल … हमें १५ - २० बच्चों के ग्रुप में बाँट लिया जाता था - और स्थान – मोर्चुरी - जहाँ रहस्यमय मौत या सडन डेथ के कारणों का और मौत के समय का पता करने के लिए मरणोपरांत शवपरिक्षण (postmortem) किया जाता है| यह महिला सुन्दर पीली साड़ी में ऐसा लगता था जैसे अभी बोलती हो… बस जरा गले की ओर नजर ना पड़े तो| हम सब का दिल भर आया था| और उसकी बातें कर रहे थे वो हमारे लिए अनजान थी और मात्र एक शव थी जिस में हम जीवन के अंश ढूंढ रहे थे| दूसरा शव एक छोटे बच्चे का था उम्र लगभग ५ साल - बैलगाडी के पहिये के नीचे सर आ जाने से मौत हुवी थी|| तीसरा शव दो हिस्सों में विभाजित दो टुकड़ों में, रेलवे क्रोसिंग पर यह शव मिला था| और चौथा शव - एक प्युट्रीफाइड लाश एक पुरुष की - पेट सडती हुवी गेस से गुब्बारे की तरह फूल गया था - पेट के अंदर गेस का प्रेशर इतना ज्यादा था कि जीभ पूरी मुँह से बाहर निकल कर फूल गयी थी| सड़ी बदबू से बुरे हाल हो रहे थे| हम लोग वहाँ से भागना चाहते थे किन्तु टीचर का डर था| रेजिडेंट्स वहाँ खड़े थे सों बाहर की खुली हवा में जा नहीं सकते थे .. नाक पर रुमाल लिए थे| पेट उलट रहा था | कि दो आदमी बहुत बड़े चाक़ू ले कर आये एक ने उसके पेट पर उलटे चाकू से हल्का निशान लगाया ..ताकि इन्सिजन की लाइन को हम भी समझ सके..तब उसने पेट पर जैसे ही गहरा चाकू घुसाया, पेट से ब्लास्ट करती हुवी सड़ी हवा पुरे वेग से बाहर छत पर टकराई और साथ में कीड़ों / मेगेट्स का फव्वारा खुल गया ..कीड़ों की बारिश सी होने लगी… सभी विद्यार्थी कमरे से बाहर भागे …किन्तु दरवाजे में रेजिडेंट टीचर बाहर से आ कर खड़े हो गए| हुक्मनामा हुवा ..अंदर जाओ -- मेरे सभी साथियों का चेहरा घृणा से लाल और शरीर बदबू से बेहाल हो रखा था … हम लोग कमरे में उल्टियां कर रहे थे और विशेषग्य लोग शव से विसरा के सेम्पल कलेक्ट कर रहे थे --- कैसे थे वो दिन .. -- डॉ नूतन गैरोला १७ – १० – २०११ 23:38 |
जीती रही जन्म जन्म, पुनश्च- मरती रही, मर मर जीती रही पुनः, चलता रहा सृष्टिक्रम, अंतविहीन पुनरावृत्ति क्रमशः ~~~और यही मेरी कहानी Nutan
Monday, October 17, 2011
वह अनजान स्त्री - डॉ नूतन गैरोला
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दिल को दहला देने वाला सत्य ...
ReplyDeleteसंस्मरण भी हम जैसों को भयावह ही लगेंगे ..
बहुत ही मार्मिक कविता।
ReplyDeleteअपने पेशे के दौरान ऐसी घटनाओं से अक्सर दो चार होना पडता है जिसमें दहेज के लोभ में नवविवाहिता को मार डाला गया हो या फिर किसी और कारण से हत्या कर दी गई हो....
आपकी रचना पढकर मन भर आया.....
बाद का विवरण भी मार्मिक ही है......
इन मृत शरीरों के परीक्षण के बाद ही चिकित्सक जिंदगी को बचाने के गुर सीखते हैं...
बेहतरीन प्रस्तुति......
एक डाक्टर की सोंच को नमन ,समाज का सही चित्रण , संवेदनशील रचना आभार
ReplyDeleteजिंदगी की सच्चाई को बयां करती मार्मिक रचना| धन्यवाद|
ReplyDeleteअत्यन्त मार्मिक।
ReplyDeletedil dimaag sunn ho chala hai ... ek dr ka yah nazariya ! chehre se paar kuch dhoondhna her kisi ko nahin aata
ReplyDeleteउफ़ नूतन जी ये क्या प्रस्तुत कर दिया सोच कर ही रूह कांप रही है……………क्या कहूँ पढकर ही बुरा हाल हो गया है………………पता नही आप सबने कैसे सहा होगा और देखा होगा …………।
ReplyDeleteसंवेदनशील पोस्ट .
ReplyDeleteसही है बहुत कठिन जीवन है।
ReplyDeleteडाक्टरों को ऐसे पलों को झेल पाना सख्त इंसान बनाने के लिये शायद जरुरी होता होगा. लेकिन ऐसे अनुभव कपां डालते है अंतरात्मा तक.
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक एवं संवेदनशील पोस्ट ....
ReplyDeleteये चीर फाड तो बडे दिल-गुर्दे का काम है ॥
ReplyDeleteसचमुच रोंगटे खड़े करने वाले अनुभवों को लिखा है!
ReplyDeleteसंवेदनशील कविता!
मार्मिक कविता ||
ReplyDeleteMujhe shabd nahi mil rahe hain kuch kahne ko. Itna jarur kahunga ki aap me bahut himmat hai jo aap ye sab dekh sakti hain aur yahan varnit kar sakti.
ReplyDeleteAbhar.
My Blog: Life is Just a Life
My Blog: My Clicks
.
अदालती कार्य के दौरान ,पोस्टमार्टम करने वाले बहुत से चिकित्सकों से बातचीत में बहुत से अनुभव बिल्कुल ज़ुदा लगे ।एक बार फ़िर आपने अलग ही अनुभव साझा करके सोच में डाल दिया । कविता मार्मिक है , बेहद संवेदनशील
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक किन्तु सच्चाई से परिपूर्ण रचना
ReplyDeleteहम कब तक सभ्य बनने का नाटक करते रहेंगे , ऐसे अमानवीय कृत्यों के साथ ?
medical line ki jatiltaon se avgat karati post...
ReplyDeleteसच्चाई को आपने बड़े ही खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है! बेहद ख़ूबसूरत एवं संवेदनशील रचना! बधाई!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
Oh... Bahut hi jiwant chitran hai.
ReplyDeletePost mortem kamre me pahunchane se oahle eak laaah ka vivran shyad is link me hai.
http://kavyasansaar.blogspot.com/2011/09/blog-post_7910.html?m=1
उफ़! ये सत्य का अनावरण....
ReplyDeleteजाने कैसी मनोदशा रही होगी कलमबद्ध करते वक्त....
सादर...
Post mortem house ki mahila ko is link par jakar dekhe shyad pahchan sake
ReplyDeletehttp://bhartiynari.blogspot.com/2011/09/blog-post_21.html
संवेदनशील पोस्ट...
ReplyDeleteभावपूर्ण पोस्ट....
ReplyDeleteपोस्टमार्टम हौसे के बाहर कई बार घंटों रुकना पड़ा है मुझे ...एक बार तो सारी रात ही गुजारनी पड़ी है
ReplyDeleteआज अंदर का हाल जान के रोंगटे खड़े हो गए !
और उस अनजान स्त्री कि मृतक देह से आपने जैसे उसके जीवन कि गाथा को बहार निकाला है बहु बहुत ही मर्मस्पशी है ..लग भाग रुला ही दिया आपने !