एक लंबा पथ लक्ष्य की ओर अग्रसर अभिशरण, उन्मार्ग करती भ्रमित रास्ते की बाधाएं....... बदबू , दुर्गन्ध, बास पर तुम हो कि चुन चुन लाते हो, सुगंध धुंआ होती अगरबत्ती से और मैं चन्दन हो जाती हूँ सुवासित | कंकड़, प्रस्तर, अँधेरे और तुम रश्मिपुंजों को थाम समावेशित हो जाते हो मेरे भीतर और मैं हीरा हो जाती हूँ आलोकित| कीचड़, कुआं, दलदल जिन पर तुम चलने लगते हो गोद में लिए मुझे, करते अभियुत्थान मेरा और मैं कमल हो जाती हूँ खिल खिल उठती हूँ परिमार्जित | शूल, कांटे, अंगारे मेरे पैरों के पोरों पर ढल जाते हैं मखमली गलीचों से तुम्हारा स्पर्श कोमल पुष्प सा मुकुलित हो जाता है कदमों पर बन जाती हूँ मैं राज्ञी, सौभाग्यशाली राजवंत पी लेती हूँ तुम्हारे साथ का अमृतरस | मुझे नहीं है भय बाधाओं का बदबू, दुर्गन्ध, बास का, कंकड़, पत्थर, अंधेरों का कीचड़, कुँए, दलदल का शूल, कांटे, अंगारे का| बस मुझे तो अविरल चलना है| जैसे सूरज एक सुधांग एक , मेरी एक डगर मेरा परमलक्ष्य दूर क्षितिज के राजमहल में होगा परममिलन |………………….. नूतन |
मन में आशा का संचार करती सुन्दर भावप्रणव रचना!
ReplyDeleteसभी इस परम मिलन की आकांक्षा में ही जीवित है. किसका प्रयास सफल होगा यही एक प्रश्न रहा जाता है. भावपूर्ण कविता.
ReplyDeleteकोमल पावस प्रेम की मधुर अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना ...
खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....शानदार |
ReplyDeleteसुन्दर, भावप्रणव की लालबाब अभिव्यक्ति,,,,
ReplyDeleterecent post हमको रखवालो ने लूटा
पथ पर पथ की बात मिलेगी,
ReplyDeleteअंधकार की रात मिलेगी।
बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 17-12-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1096 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
अत्यंत ही भावप्रवण नाजुक अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
वाह ! विश्वास हो तो ऐसा..बहुत सुंदर भाव !
ReplyDeleteबस मुझे तो अविरल चलना है|
ReplyDeleteजैसे सूरज एक
सुधांग एक ,
मेरी एक डगर
मेरा परमलक्ष्य
दूर क्षितिज के राजमहल में
होगा परममिलन |…
सारगर्भित रचना.बहुत बहुत बधाई .