Monday, April 5, 2010

दिल है छोटा सा साझा .... 20 अक्टूबर 2009 को 23:23 बजे


दिल है छोटा सा
20 अक्टूबर 2009 को 23:23 बजे





आज फिर मेरी आँखों से आंशू बहे है ,
कतरा कतरा दिल के हजारो गिरे है
हंसी मुझको भाति है लेकिन,
इस हंसी के हजारो दुश्मन हुवे है


याद आती है बीती वो बाते
जब हम बच्चो सा खेला किये थे
दिल जो छोटा रह गया है
अपनों की दुहाई है चुप हुवे है

क्यों आती है जवानी क्यों आता बुडापा,
क्यों खिलते है फूल, क्यों झड़ता मुरझाता,
क्यों मिलता है जीवन, क्यों मिटता है जीवन,
क्यों ना अमर होते सभी, है ये ख्याल सिमट आता

आज फिर मेरी आँखों से आंशू बहे है ,
कतरा कतरा दिल के हजारो गिरे है

Nutan 04- 09- 09






AN INNOCENT HEART
Today I’m tearful once again, tear droplets
As if my heart broke into a thousand fragments
Laughter does suit me but alas!
My laughter is envied by many an enemy.
Those days of yore I fondly remember
Like children so playful we were
This heart now reduced to a naught
Is the handiwork of the so-called ‘our lot’.
Why is there ‘youth’ n why the ‘old age’
Why does a flower blossom only to wilt n wither
Why are we given life only to be taken away
Why isn’t everyone immortal,this thought forever lingers.
Today I’m tearful once again....


2 comments:

  1. ्दर्द उभर कर आ गया है।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार (06-08-2013) के "हकीकत से सामना" (मंगवारीय चर्चा-अंकः1329) पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete

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