दर्दे जख्म को तुमने पल भर जो सहलाया होता,
ठंडी मलहम बन मरहम घाव भी भर आया होता |
न ये पीड़ा होती कि काश मेरा भी कोई अपना होता,
दर्द भी जाता, चराग आशनाई का न बुझ रहा होता |
जल न रही होती चिताएं मासूम सी तम्मनाओं की,
फाख्ता ए वफ़ा न अपने आसमां से गिर रहा होता|
दवा लगती नहीं, लाइलाज बन गया जो नासूर मेरा,
हमनवाँ होता तू तो अंदाजे-इलाज पे यकीं रहा होता|
मलाल होता है तोडी क्यों जंजीरें गुफ्तगूं की तूने
इख्तलाफ का गुलशन भी न यूँ आबाद होता|
रफ्ता रफ्ता खिलखिलाता गुल मुहब्बत का,
जश्ने बर्बादी का न सिलसिला जुड़ा होता |
हर रात न सही, तू चाँद ईद का होने को तो आता,
तेरे दीद को तरसती रही,न तू गैर के साये में छुपा होता|
बेदर्द, बेवफाई तेरी मेरी मौत का सामां हो गयी
वर्ना तू भी न मेरे हिज्र पर इस कदर तड़प रहा होता |
डॉ नूतन गैरोला डिमरी
२९-०३-२०११
|
कई प्रकार के अकेलेपन के अहसास को सुंदरता से पिरोया गया है. अच्छी रचना.
ReplyDeleteबहुत गहन अहसास...बहुत मर्मस्पर्शी उत्कृष्ट प्रस्तुति..हरेक पंक्ति अंतस को छू जाती है.
ReplyDeleteguftagu ki zanzeeren ... bhawnayen shabd shabd bolte hain
ReplyDeleteरुसवाई लेकिन प्रेम से औत प्रेत भाव .... ख्याल / भाब बहुत खूबसूरती से शब्दो मे पिरोया है आपने नूतन जी
ReplyDeleteदर्द-ओ-ज़ज़बात की गहन अभिव्यक्ति। संवेदनशील रचना।
ReplyDeleteबेहतरीन पंक्तियाँ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना .......ना यूं होता ...तो क्या क्या नहीं होता.....
ReplyDeleteमैं नही जानता था कि Forceps और knife भी सृजन के लिये इस तरह इस्तेमाल हो सकते हैं! वाह! सुन्दर भाव प्रवाह लिये सुन्दर रचना!
ReplyDeleteवाह! बहुत भावपूर्ण रचना...
ReplyDeletenice nutan ji
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण और बेहतरीन रचना| धन्यवाद|
ReplyDelete.
ReplyDeleteदवा लगती नहीं, लाइलाज बन गया जो नासूर मेरा,
हमनवाँ होता तू तो अंदाजे-इलाज पे यकीं रहा होता...
So true !...Faith works !
.
आपकी भावपूर्ण सुन्दर रचना शानदार चित्रों के साथ दर्द को अभिव्यक्त करती हुई दिल को कचोटती है.
ReplyDeleteमेरे डेशबोर्ड पर कुछ गडबड है,कोई पोस्ट दिखला ही नहीं रहा है.
आप मेरी पोस्ट 'बिनु सत्संग बिबेक न होई' पर आयें,जो मेरी इससे पहली पोस्ट'ऐसी वाणी बोलिए' पर आपकी टिपण्णी से प्रेरित होकर ही मैंने लिखी है.एक ब्लोगर को कुछ आपति है.आप गुण-दोष के आधार पर मेरी पोस्ट की विवेचना करें,तो मुझे भी सही-गलत का ज्ञान होगा.इसके लिए मै आपका बहुत आभारी हूँगा.
बहुत भावप्रवण रचना । रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिये आ की याद दिलाती हुई ।
ReplyDelete....एक विरहीनी के दिल से निकली आह ने सुंदर रचना का रुप ले लिया है!...बधाई डॉ.नूतन!
ReplyDeleteaapko parh ke achha laga..
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी कविता\ बधाई॥
ReplyDeleteA unique and beautiful presentation .
ReplyDeleteदर्दे जख्म को तुमने पल भर जो सहलाया होता,
ReplyDeleteठंडी मलहम बन मरहम घाव भी भर आया होता |
न ये पीड़ा होती कि काश मेरा भी कोई अपना होता,
दर्द भी जाता, चराग आशनाई का न बुझ रहा होता |
नितांत अक्षम हूँ ....नूतन जी जैसी सख्सियत के लिखे पर टिप्पड़ी करने में...अभी इनसे बहुत कुछ सीखना है मुझे...
फिर भी जो पंक्तियाँ मेरे ह्रदय के सबसे करीब है उनको मैंने यहाँ उद्दृत किया है.
घन्यवाद नूतन जी...मुझे आपके स्नेह और प्रोत्साहन कि जरूरत है !!
bahut sundar rachna,
ReplyDeletemeri post charchamanch par lagaane ke liye aapka bahut bahut dhnyvaad
अति सुन्दर .....
ReplyDeleteसभी मुक्तक भावपूर्ण
दर्द कविताओं में कितना खूबसूरत लगता है न...हम तारीफें कर के निकल लेते हैं और दर्द का अहसास तो उसको ही होता है जिसने कविता लिखी है :)
ReplyDeleteहै न :)
बढ़िया अभिव्यक्ति है जज़्बात की
ReplyDeleteबहुत ही ज़ज्बाती अभिव्यक्ति के लिएँ हार्दिक बधाई
ReplyDeleteप्रेम की पीड़ा से भरी -
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना -
एक एक शब्द से भावना के अथाह सागर उमड़ पड़े हैं -
very nice
ReplyDeleteAsha
बहुत ही भावपूर्ण कविता.. मन भीग गया !
ReplyDeleteवियोग को प्रतिबिंबित, और प्रतिफल को संयोजित करती रचना . किन्तु एक बात और - सम्पूर्ण रचना में उर्दू का अत्यधिक प्रयोग ग्राह्य नहीं है .
ReplyDeleteबहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteरचना में शब्दचयन बहुत बढ़िया है!
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteइच्छा मृत्यु का प्रतिनिधित्व करती छवि के सहारे, भावनात्मक सरोकारों को केंद्र में रख कर, बहुत सारी मानवीय संवेदनाओं को अभिव्यक्त करती हुई बेहद असरदार प्रस्तुति| बधाई स्वीकार करें नूतन जी|
ReplyDeleteबढ़िया भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteनवसंवत्सर 2068 की हार्दिक शुभकामनाएँ|
ReplyDeleteBAHUT KHOOBSOORAT EHSAAS AUR UTNA HI KHOOBSOORTI SE KIYA GAYA CHITRAN...BADHAYEE.
ReplyDeleteदर्द कविता बन के छलक आया है ... किसी के न होने का गम ... किसी की जुदाई ...
ReplyDeleteअल्फाज़ों को भाव दे दिए है नूतन जी ...
जल न रही होती चिताएं मासूम सी तम्मनाओं की,
ReplyDeleteफाख्ता ए वफ़ा न अपने आसमां से गिर रहा होता।
वाह, मानो शब्दों के मोती पर भावनाओं की किरणें चमक रही हैं।
बहुत खूब लिखा है बधाई
ReplyDeleteआशा