Tuesday, March 29, 2011

न यूँ होता - डॉ नूतन डिमरी गैरोला

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दर्दे  जख्म  को तुमने पल भर जो सहलाया होता,
ठंडी मलहम बन मरहम घाव भी भर आया होता |
  न ये पीड़ा होती कि काश मेरा भी कोई अपना होता,
दर्द भी जाता, चराग आशनाई का न बुझ रहा होता |
 
जल न रही होती चिताएं मासूम सी तम्मनाओं की,
फाख्ता ए वफ़ा  न अपने आसमां से गिर रहा होता|
दवा लगती नहीं, लाइलाज बन गया जो नासूर मेरा,
हमनवाँ होता तू तो अंदाजे-इलाज पे यकीं रहा होता|
 
मलाल होता है तोडी क्यों जंजीरें गुफ्तगूं की तूने
इख्तलाफ का गुलशन  भी न  यूँ आबाद होता|
रफ्ता  रफ्ता खिलखिलाता  गुल मुहब्बत का,
जश्ने  बर्बादी  का  न सिलसिला जुड़ा  होता |
 
हर रात न सही, तू चाँद ईद का होने को तो आता,
तेरे दीद को तरसती रही,न तू गैर के साये में छुपा होता|
बेदर्द, बेवफाई  तेरी  मेरी मौत  का सामां हो गयी
वर्ना तू भी न मेरे हिज्र पर इस कदर तड़प रहा होता |

 

                                             डॉ नूतन गैरोला डिमरी
                               २९-०३-२०११





















37 comments:

  1. कई प्रकार के अकेलेपन के अहसास को सुंदरता से पिरोया गया है. अच्छी रचना.

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  2. बहुत गहन अहसास...बहुत मर्मस्पर्शी उत्कृष्ट प्रस्तुति..हरेक पंक्ति अंतस को छू जाती है.

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  3. guftagu ki zanzeeren ... bhawnayen shabd shabd bolte hain

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  4. रुसवाई लेकिन प्रेम से औत प्रेत भाव .... ख्याल / भाब बहुत खूबसूरती से शब्दो मे पिरोया है आपने नूतन जी

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  5. दर्द-ओ-ज़ज़बात की गहन अभिव्यक्ति। संवेदनशील रचना।

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  6. बहुत सुंदर रचना .......ना यूं होता ...तो क्या क्या नहीं होता.....

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  7. मैं नही जानता था कि Forceps और knife भी सृजन के लिये इस तरह इस्तेमाल हो सकते हैं! वाह! सुन्दर भाव प्रवाह लिये सुन्दर रचना!

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  8. वाह! बहुत भावपूर्ण रचना...

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  9. बहुत भावपूर्ण और बेहतरीन रचना| धन्यवाद|

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  10. .

    दवा लगती नहीं, लाइलाज बन गया जो नासूर मेरा,

    हमनवाँ होता तू तो अंदाजे-इलाज पे यकीं रहा होता...

    So true !...Faith works !

    .

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  11. आपकी भावपूर्ण सुन्दर रचना शानदार चित्रों के साथ दर्द को अभिव्यक्त करती हुई दिल को कचोटती है.
    मेरे डेशबोर्ड पर कुछ गडबड है,कोई पोस्ट दिखला ही नहीं रहा है.
    आप मेरी पोस्ट 'बिनु सत्संग बिबेक न होई' पर आयें,जो मेरी इससे पहली पोस्ट'ऐसी वाणी बोलिए' पर आपकी टिपण्णी से प्रेरित होकर ही मैंने लिखी है.एक ब्लोगर को कुछ आपति है.आप गुण-दोष के आधार पर मेरी पोस्ट की विवेचना करें,तो मुझे भी सही-गलत का ज्ञान होगा.इसके लिए मै आपका बहुत आभारी हूँगा.

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  12. बहुत भावप्रवण रचना । रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिये आ की याद दिलाती हुई ।

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  13. ....एक विरहीनी के दिल से निकली आह ने सुंदर रचना का रुप ले लिया है!...बधाई डॉ.नूतन!

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  14. मर्मस्पर्शी कविता\ बधाई॥

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  15. A unique and beautiful presentation .

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  16. दर्दे जख्म को तुमने पल भर जो सहलाया होता,

    ठंडी मलहम बन मरहम घाव भी भर आया होता |

    न ये पीड़ा होती कि काश मेरा भी कोई अपना होता,

    दर्द भी जाता, चराग आशनाई का न बुझ रहा होता |

    नितांत अक्षम हूँ ....नूतन जी जैसी सख्सियत के लिखे पर टिप्पड़ी करने में...अभी इनसे बहुत कुछ सीखना है मुझे...
    फिर भी जो पंक्तियाँ मेरे ह्रदय के सबसे करीब है उनको मैंने यहाँ उद्दृत किया है.
    घन्यवाद नूतन जी...मुझे आपके स्नेह और प्रोत्साहन कि जरूरत है !!

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  17. bahut sundar rachna,

    meri post charchamanch par lagaane ke liye aapka bahut bahut dhnyvaad

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  18. अति सुन्दर .....

    सभी मुक्तक भावपूर्ण

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  19. दर्द कविताओं में कितना खूबसूरत लगता है न...हम तारीफें कर के निकल लेते हैं और दर्द का अहसास तो उसको ही होता है जिसने कविता लिखी है :)
    है न :)

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  20. बढ़िया अभिव्यक्ति है जज़्बात की

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  21. बहुत ही ज़ज्बाती अभिव्यक्ति के लिएँ हार्दिक बधाई

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  22. प्रेम की पीड़ा से भरी -
    बहुत सुंदर रचना -
    एक एक शब्द से भावना के अथाह सागर उमड़ पड़े हैं -

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  23. बहुत ही भावपूर्ण कविता.. मन भीग गया !

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  24. वियोग को प्रतिबिंबित, और प्रतिफल को संयोजित करती रचना . किन्तु एक बात और - सम्पूर्ण रचना में उर्दू का अत्यधिक प्रयोग ग्राह्य नहीं है .

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  25. बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति!
    रचना में शब्दचयन बहुत बढ़िया है!

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  26. बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति.

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  27. इच्छा मृत्यु का प्रतिनिधित्व करती छवि के सहारे, भावनात्मक सरोकारों को केंद्र में रख कर, बहुत सारी मानवीय संवेदनाओं को अभिव्यक्त करती हुई बेहद असरदार प्रस्तुति| बधाई स्वीकार करें नूतन जी|

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  28. बढ़िया भावपूर्ण अभिव्यक्ति.

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  29. नवसंवत्सर 2068 की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  30. BAHUT KHOOBSOORAT EHSAAS AUR UTNA HI KHOOBSOORTI SE KIYA GAYA CHITRAN...BADHAYEE.

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  31. दर्द कविता बन के छलक आया है ... किसी के न होने का गम ... किसी की जुदाई ...
    अल्फाज़ों को भाव दे दिए है नूतन जी ...

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  32. जल न रही होती चिताएं मासूम सी तम्मनाओं की,
    फाख्ता ए वफ़ा न अपने आसमां से गिर रहा होता।

    वाह, मानो शब्दों के मोती पर भावनाओं की किरणें चमक रही हैं।

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  33. बहुत खूब लिखा है बधाई
    आशा

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