हे पुरुष!
तुम मायासुत जैसे,
मर्यादित..
तन मन की व्यथा भुला कर ..
भूख प्यास से ऊपर उठ कर ..
घर द्वार को पीछे रख कर ..
दंभ हिंसा से कोसों दूर
दया, प्रेम को अपनाकर
निष्कपट हो कर…
नीतिपथ पर
निर्विकार
सतत कर्म की
मानवसेवा की अलख जगाये हो|
सुन !!
फिर भी तुम
मायासुत ना बन सकोगे …
जानती हूँ कि
यूँ तो
यश की तुम्हें कोई कामना नही|
फिर भी
सत्कर्म कर
नीतिपथ पर चल कर भी
उंगलियां उठती रहेंगी तुम पर कितनी
और तुम उनमें कुछ आभाविहीन उंगिलयों को जर्द जान
प्राण सिंचित कर दोगे
अपनी रक्त लालिमा से|
और अडिग अपने पथ,
कर्तव्य की बेदी पर
मानवता की सेवा में
अदृश्य ही बलिदानी हो जाओगे|
इसलिए हे पुरुष !!
तुम वन्दनीय हो|
तुम श्रेष्ठ हो|
तुम पूर्ण हो|
तुम ह्रदयकोष्ठ में हो|
डॉ नूतन डिमरी गैरोला … ७/८/२०११ … २२:४२
फोटो - मेरी खींची हुई
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sunder bhav ki sunder prastuti
ReplyDeleteसुन्दर काव्याभिवादन।
ReplyDeleteआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 08-08-2011 को चर्चामंच http://charchamanch.blogspot.com/ पर सोमवासरीय चर्चा में भी होगी। सूचनार्थ
ReplyDeleteहृदय कोष्ट में जगह बनाती प्रस्तुति
ReplyDeletever very nice
ReplyDeletedil ko chuti rachna...
ReplyDeleteह्रदय से उपजे श्रद्धा भाव और सुंदर तस्वीर ! सराहनीय पोस्ट!
ReplyDeleteइस अनमोल रचना के लिए आपका अभिनन्दन....
ReplyDeleteसादर...
सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ... चित्र भी बहुत बढ़िया ...कहाँ का है ? यह भी लिखना था न .
ReplyDeletesunder bhav liye sunder prastuti.badhaai sweekaren.
ReplyDelete"ब्लोगर्स मीट वीकली {३}" के मंच पर सभी ब्लोगर्स को जोड़ने के लिए एक प्रयास किया गया है /आप वहां आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। सोमवार ०८/०८/११ को
ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।
बहुत सुन्दर रचना .....
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण एवम सारगर्भित रचना, तस्वीर भी अति मनमोहक.
ReplyDeleteरामराम.
फिर भी सतकर्म पर चल कर तुम पर उंगलियां उठती रहेंगी।
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति, बधाई।
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना |बधाई
ReplyDeleteआशा
सुन्दर भावाभिव्यक्ति !
ReplyDeleteफिर भी
ReplyDeleteसत्कर्म कर
नीतिपथ पर चल कर भी
उंगलियां उठती रहेंगी तुम पर कितनी
और तुम उनमें कुछ आभाविहीन उंगिलयों को जर्द जान
..sach to yahi hai ki mahan log kabhi satkarm karne mein peechne nahi rahti, bolne walon ka kaam sirf bolne tak hi simit rahta hai...
bahut badiya tasveer ke saath badiya prabhavkari rachna prastuti ke liye aabhar!
भावप्रवण रचना . आभार
ReplyDeletekhoobsoorat abhivyakti,aabhaar
ReplyDeleteराजनेताओं की मक्कारी और अनवरत भ्रष्टाचार के बावजूद
भारतीय स्वाधीनता दिवस की शुभकामनाएं .
मार्मिक भाव ,सकारात्मक, समर्पण लिए वैचारिक कृति ...
ReplyDeleteसराहनीय है .../ बधाई जी /
बहुत भावमयी और सारगर्भित रचना....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..
ReplyDeleteइस उत्कृष्ट रचना के लिए साधुवाद !
ReplyDeleteबेहद भावमयी और खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
बहुत ही सुन्दर और प्यारा लेख है बधाई हो आपको आप भी जरुर आये साथ ही यहाँ शामिल सभी ब्लागर साथियो से आग्रह है की मेरे ब्लाग पर भी जरुर पधारे और वहां से मेरे अन्य ब्लाग पर क्लिक करके वह भी जाकर मेरे मित्रमंडली में शामिल होकर अपनी दोस्तों की कतार में शामिल करें
ReplyDeleteयहाँ से आप मुझ तक पहुँच जायेंगे
यहाँ क्लिक्क करें
MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......
नूतन जी नमस्कार
ReplyDeleteआप मेरे ब्लाग पर आये सबसे पहले उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद्
डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…
एक बड़ा झटका लगा आपके ब्लॉग ज्ञान की कुंजी में आ कर ..और हतप्रभ भी हूँ मैं..पूछियेगा क्यूं..
आपके इन वाक्यों का मैं मतलब नहीं समझा की आप हतप्रभ क्यों है ज़रा सा आप बताएँगे की क्या कारण है
neelkamalkosir@gmail.com
कमाल की अनुपम प्रस्तुति है आपकी.
ReplyDeleteदेरी से आने के लिए क्षमा चाहता हूँ.
जन्माष्टमी के पावन पर्व पर आपको हार्दिक शुभकामनाएँ.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
भक्ति व शिवलिंग पर अपने सुविचार प्रकट कीजियेगा.
नूतन जी नमस्कार
ReplyDeleteबहुत सी सुन्दर और सार गर्भित रचना है बधाई स्वीकारें....
मुझे बहुत ख़ुशी हुई की मेरे इस शीर्षक से आपके जिंदगी के दो पहलु जुड़े है धन्यवाद् आपके आगमन और स्नेह टिपण्णी का आशा है आगे भी आपका स्नेह रूपी विचार आते रहेंगे इसी आशा के साथ....
और हां आप कह रहे थे कुछ परेशानी हो रही है टिपण्णी करने में नीचे मेरे मेल आई डी में जरुर बताये क्या परेशानी हो रही है धन्यवाद
neelkamalkosir@gmail.com
Neelkamal Vaishnaw "Anish"
09630303010
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कविता! दिल को छू गई हर एक पंक्तियाँ!शुभकामनाएं.
ReplyDeleteअहिंसा के विचार के जनक को आपने अच्छी श्रद्धांजलि दी है।
ReplyDeleteउंगलियां उठती रहेंगी तुम पर कितनी
ReplyDeleteऔर तुम उनमें कुछ आभाविहीन उंगिलयों को जर्द जान
प्राण सिंचित कर दोगे
अपनी रक्त लालिमा से|
और अडिग अपने पथ,
कर्तव्य की बेदी पर
मानवता की सेवा में
अदृश्य ही बलिदानी हो जाओगे|
बहुत सुंदर ।