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रात में अक्सर मेरी खिडकी से एक साया उतर कमरे की हवा में घुल जाता है| आने लगती है गीली माटी की गंध और आँखे मेरी फ़ैल जाती है छत पर जहाँ से अपलक निहारता है मुझे मेरा वृद्ध स्वरुप|
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रात में अक्सर जब लोग घरों के दरवाजे बंद कर देते हैं तब खुलता है एक द्वार कलमबद्ध करता है कुछ जंग खाए कुंद दिमाग के जज्बात और मलिन यादों के चलते जो अक्सर रह जाते हैं शेष |
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रात में अक्सर याद आता है वो सफर जो सफर नहीं था था एक ठहराव खुशियों का खिलखिलाती ताज़ी कुछ हंसी जैसे किसी काले टोटके ने रोक ली हो और मुस्कुराता चेहरा धूमिल हो डूब जाता है आँखों के सागर में |
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रात में अक्सर जब शिथिल हो कर गिर जाती है थकान शांत बिस्तर में रात उंघने लगती है तब पर तन्हाइयां उठ कर जगाने लगती हैं और कानाफूसी करती है कानों में नीलाभ चाँद देर रात तक खेला करता तारों से|
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द्वारा - डॉ नूतन डिमरी गैरोला सभी चित्र नेट से … उनका आभार जिनकी ये तस्वीरें हैं .. |
जब हम अकेले होते हैं तो हमारे विचार, हमारे चिंतन बहुत स्पष्ट होते हहैं।
ReplyDeletebhut sundar....ek chalchitra sa kheench raha hai saamne..kalpnao ka....laazwaab:)
ReplyDeleteरात का सृजीय एकांत, भूत और भविष्य दोनों ही वर्तमान से बतियाने आ जाते हैं तब।
ReplyDelete*सृजनीय एकांत
ReplyDeleteमन से की गई अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteरात से जुड़ी सारी अभिव्यकतियां एक सच की ओर ईंगित करती हैं
ReplyDeleteजो हममें से किसी न किसी के साथ पैबंद है।
बहुत ही खूबसूरती से रात के एकांत को आपने बहुत ही सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है आपने
ReplyDeleteयथार्थ परक चिंतन .....अति सुन्दर रचना ............शुभकामनाएँ..
ReplyDeletesunder raat ki abhivaykti....
ReplyDeleteरात में अक्सर
ReplyDeleteजब शिथिल हो कर
गिर जाती है थकान
शांत बिस्तर में
रात उंघने लगती है तब
पर तन्हाइयां उठ कर जगाने लगती हैं
और कानाफूसी करती है कानों में
नीलाभ चाँद देर रात तक
खेला करता तारों सेद्य
भावों की गहनता कविता को श्रेष्ठ बना रही है।
रात
जब सारा आलम
सोता है
कोई गीत व्यथा के
गाता है।
बहुत खूबसूरती से लिखा है जो शांत मन से अक्सर याद आता है ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
रात के सन्नाटे में मन में उभरने वाली अनकही अनसुनी बातों के खामोश आहटों का सूक्ष्म चित्रण...बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
खुबसूरत रचना....
ReplyDeleteसादर...
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति| आभार|
ReplyDeleteबहुत खूब ... नए नए बिम्ब हैं इस लाजवाब नज़्म में .. रात में अक्सर शिथिल हो कर गिर जाती है थकान ... बहुत ही कमाल का बिम्ब है ...
ReplyDeleteयही विचार तो नव सृजन को जन्म देते हैं।
ReplyDeleteखूबसूरत ...
ReplyDeleteखुबसूरत रचना....
ReplyDeleteसादर...
bahut sundar........par akaelapan jhalkta hain...
ReplyDeleteरात्रि के एकांत में अंतर्मन अपने आप से मिलता है, जो दिन के कोलाहल में संभव नहीं होता, आपने इस कविता में नए प्रतीकों का प्रयोग कर एक सुंदर शब्द चित्र प्रस्तुत कर दिया है... आभार!
ReplyDelete.
ReplyDeleteBeautiful imagination but kinda scary as well !
Nice creation !
.
शब्दों एवं चित्रों का बेहतरीन सामंजस्य ! सुंदर प्रस्तुति ,
ReplyDeleteआभार............
पी.एस. भाकुनी
Beautiful as always.
ReplyDeleteIt is pleasure reading your poems.
बेहद गहन भाव संजोये है रचना…
ReplyDeleteसुन्दर तस्वीरों के साथ सुसज्जित गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत ,भावपूर्ण नज्में !
ReplyDeleteआभार !
गहन भावों का समावेश लिये बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteअदभुत भावपूर्ण प्रस्तुति.
ReplyDeleteविचारों का द्वंद और भावों की गहनता छाप छोडती है मन पर.
अनुपम अभिव्यक्ति के लिए आभार.
रात का एकांत
ReplyDeleteऔर मन की भावनाएं
बहुत ही प्रभावशाली शब्दों में
अभिव्यक्त हो उठीं हैं ....
अनूठा सृजन .
SHABDON OR CHITRON KO BEJOD SANGAM DIKHAYI DETA HAI....
ReplyDeleteBAHUT ACHI LAGI APKI YE RACHNA.............................
JAI HIND JAI BHARAT
बहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteअनुपम अभिव्यक्ति गहन प्रस्तुति...सुन्दर
ReplyDeleteबिलकुल यही मनोदशा रहती है इंसान की.
ReplyDeleteयथार्थपरक सुन्दर संवेदनशील रचना...
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सन्देश देती हुई रचना!
ReplyDeleteits wonderful.
ReplyDeleteसुन्दर रचना, खूबसूरत अंदाज़
ReplyDeleteरात के सन्नाटे में गहन उठते एहसास
ReplyDeleteक्या कहूँ , आपकी इस नज़्म ने कई कोलाज़ बना दिये है मन के कनवास पर .. मेरे पास इस वक्त शब्द नहीं है .. कुछ कहने के लिये .. बस एक मौन ...इस सुन्दर कविता को धीरे धीरे पिघलते हुए देखने के लिये ..
ReplyDeleteआभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
नूतन जी, बहुत गहरी बातें कह दी आपने कविता के माध्यम से। अभिभूत हूं पढकर।
ReplyDelete------
कम्प्यूटर से तेज़!
इस दर्द की दवा क्या है....