स्थिर थी वो जो रक्स करती रोशनियों के संग इठलाती| आज चंचल बनी, कुलबुलाती है लौ| कंपकंपाती है, थरथराती है लौ | है घड़ी अंतिम बिदाई की लपक आखिरी यूं लपलपाती है | आत्मा की परी लंबी उड़ान के लिए ज्यूं पंख फडफडाती है | कुछ चिंगारियां है शेष धूमिल आखिरी धुवें का अवशेष आँधियों का शोर जोरों पे है, कालरात्रि का भंवर भोर पे है| कमजोर अँधेरे उठ खड़े हुवे हैं लुप्त होता जान लौ को एक शीत मुस्कराहट के संग अपने उजले भविष्य पर दंग स्वागत गीत गाते हैं वो| समय का खेल जल चुका है तेल| माटी से गढा दीया माटी में पड़ा दीया अब माटी होने को है| रे कुम्हार! सुन मेरी आखिरी विनती पुकार कर सृजन अगण्य दीयों का| जिनसे हार चुका उजाला उस तमस को दूर करना| डॉ. नूतन गैरोला .. ९ जुलाई २०११
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bahut sundar
ReplyDeleteNutan ji, aapne goodh bhavon ko bahut hi sahej dhanf se vyakt kar diya hai. Badhayi.
ReplyDeleteसुन्दर संदेश देती बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteआज आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
कमजोर अंधेरे उठ खड़े हुए हैं................
ReplyDeleteओह, क्या अभिव्यक्ति है| बहुत खूब|
बेहतर है मुक़ाबला करना
अति सुन्दर,प्रेरणास्पद, दिल को छूती अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत आभार.क्या सुन्दर चित्र खींचा है आपने 'आखरी लपक' का.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आकर सुन्दर भावपूर्ण टिप्पणी करके मुझे कृतार्थ कर दिया है आपने.
हृदय से शुक्रिया.
सार्थक सोच और सुंदर भाव की अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteदीये के साथ तेल और बाती भी चाहिए ... सुन्दर अभिव्यक्ति ..
ReplyDeletebahut hi gahri abhivyakti
ReplyDeleteआदरणीय बहन सुश्रीनूतनजी,
ReplyDeleteकृपया आप नीचे दिए गए लिंक पर, `देल्ही बेली` फिल्म का रिव्यु और फिल्म की लिंक भी पढ सकेंगी,आपने मेरे गुजराती आर्केटिल्स के ब्लॉग की मुलाकात ली थीं । हीन्दी का ब्लॉग लिंक निम्न प्रकार है । मेरा उत्साह-वर्धन करने के लिए आपका अनेकोनेक धन्यवाद।
आपका मेईल ऍड्रेस न होने के कारण यहाँ मैसेज छोड़ा है,मुझे क्षमा करें प्लीज़..!!
http://mktvfilms.blogspot.com (Hindi Articles)
एक कवि हृदय की सृजनकर्ता से सच्ची गुहार!
ReplyDeleteसुन्दर, सार्थक अभिव्यक्ति|
ReplyDeleteWaah aap bahut accha likhtee hain.
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति, बधाई।
ReplyDeletesunder bimb ka prayog kiya hai. sunder sandesh deti abhivyakti.
ReplyDeleteसुन मेरी आखिरी विनती पुकार
ReplyDeleteकर सृजन अगण्य दीयों का|
जिनसे हार चुका उजाला
उस तमस को दूर करना|
बहुत ही सुन्दर...बधाई
कर सृजन अगण्य दीयों का ...
ReplyDeleteअच्छी संदेशपरक कविता
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबहुत बधाई ||
दिल की गहराई से लिखी गयी रचना बधाई
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी यह रचना!
ReplyDeleteअभी दुबारा पढी कविता, लगा फिर से कुछ कहूं। अन्तिम पंक्तियों में कविता का निचोड़ सा आ गया है। बधाई।
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कर निर्माण उन दीयों का जो कर सकें तम को दूर ...
ReplyDeleteबहुत प्रवाहमयी .... लाजवाब ओज़स्वी रचना है ...
बहुत सुंदर ! गहन संदेश छिपाए भावयुक्त कविता !
ReplyDeleteडा. साहब मैं निःशब्द हूँ की क्या कहूँ इस रचना के लिए
ReplyDeleteआखिरी लपक ...
ReplyDeleteजिनसे हार चुका उजाला
उस तमस को दूर करना
.........................व्याकुल भाव ...हर हाल में अन्धकार का विनाश हो
यह लपलपाती लौ भी बुझने के पहले न जाने क्या क्या कर जाना चाहती है।
ReplyDeleteसुन्दर संदेश देती बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteगहन भावों का समावेश .. ।
ReplyDeleteक्यों रात भर नहीं आती .आपके ब्लॉग पर आके अच्छा लगा .कई जगह आपका नाम देखा पढ़ा आज साक्षात ब्लॉग दर्शन किया .शुक्रिया .मरीज़ के मानसिक कुन्हासे का बेहद खूबसूरत चित्रण .
ReplyDeleteसृजन के क्षणों का एहसास कराती रचना .अँधेरे उजाले का शाश्वत संघर्ष ,कशमकश चलती है चलती रहेगी .यही तो द्वंद्व है .