जीती रही जन्म जन्म, पुनश्च- मरती रही, मर मर जीती रही पुनः, चलता रहा सृष्टिक्रम, अंतविहीन पुनरावृत्ति क्रमशः ~~~और यही मेरी कहानी Nutan
जीती रही जन्म जन्म, पुनश्च मरती रही, मर मर जीती रही पुनः,चलता रहा सृष्टिक्रम,अंतविहीन पुनरावृति क्रमशः|
डॉ नूतन डिमरी गैरोला
sunder bhav..........
bahut hi mukhar ehsaas hain
यही पुनरावृति होती रहती है
बहुत सुन्दर भाव|
bhavpoorn abhivyakti.
bahut hi sundar ahsaas
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति!
बहत बड़ी बात कह दी आपने..बहुत सुंदर।
waah !kramshah ka itna sundar upyog pahli baar dekha kavita me bahut sundar...abhinav kavita...badhaai aapko !
यही क्रम है, बढ़ते रहने का।
जीवन की शास्वत पुनरावृत्ति का अंतहीन क्रम ..बहुत ही सुन्दर भाव....
Recycling of life is perpetual, some paths used to say ,its a mystic subject but existed so for, philosophy is running behind..Its a very precious thought in nutshell,appreciable one .Thanks .
बहुत बढ़िया...गहन अभिव्यक्ति....
भावमय करते शब्द ।
यही जीवन चक्र है।
यही है जीवन क्रम
यही तो है जिन्दगी । सुन्दर संयोजन...
यही तो है जिन्दगी. सुन्दर संयोजन...
यह सिलसिला तो चलता ही रहेगा॥
यही तो जीवनचक्र है!
बहुत सुंदर भाव भरी बात कह दी आप ने .
जिंदगी का सफर ऐसे ही चलता है. अच्छे भाव.
वाह, बहुत सुंदर। फिल्म के एक गाने की दो लाइनें याद आ रही हैं।जिंदगी का सफर, है ये कैसा सफर, कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं।
आखिर इस पुनरावृति का उद्देश्य क्या है ?मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,शायद कुछ समाधान मिले और इस पुनरावृति को ही पूर्ण विराम मिले.
सुन्दर भाव...
वाकई बढ़िया ...सोंचने को मजबूर करती रचना ! बेहतरीन प्रयोग !शुभकामनायें आपको !
सच!! :)
बहुत सुंदर, जिंद्गी ऐसी ही है,बधाई, विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
आपका स्वागत है "नयी पुरानी हलचल" पर...यहाँ आपके पोस्ट की है हलचल...जानिये आपका कौन सा पुराना या नया पोस्ट कल होगा यहाँ........... नयी पुरानी हलचल
बेहद सटीक एवं सार्थक प्रस्तुति के लिये आभार ।
आप का बलाँग मूझे पढ कर आच्चछा लगा , मैं बी एक बलाँग खोली हूलिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/मै नइ हु आप सब का सपोट chheya
bahut badiya chitramay prastuti...
sunder bhav..........
ReplyDeletebahut hi mukhar ehsaas hain
ReplyDeleteयही पुनरावृति होती रहती है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव|
ReplyDeletebhavpoorn abhivyakti.
ReplyDeletebahut hi sundar ahsaas
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteबहत बड़ी बात कह दी आपने..बहुत सुंदर।
ReplyDeletewaah !
ReplyDeletekramshah ka itna sundar upyog
pahli baar dekha kavita me
bahut sundar...abhinav kavita...badhaai aapko !
यही क्रम है, बढ़ते रहने का।
ReplyDeleteजीवन की शास्वत पुनरावृत्ति का अंतहीन क्रम ..बहुत ही सुन्दर भाव....
ReplyDeleteRecycling of life is perpetual, some paths used to say ,its a mystic subject but existed so for, philosophy is running behind..Its a very precious thought in nutshell,appreciable one .Thanks .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...गहन अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteभावमय करते शब्द ।
ReplyDeleteयही जीवन चक्र है।
ReplyDeleteयही है जीवन क्रम
ReplyDeleteयही तो है जिन्दगी । सुन्दर संयोजन...
ReplyDeleteयही तो है जिन्दगी. सुन्दर संयोजन...
ReplyDeleteयह सिलसिला तो चलता ही रहेगा॥
ReplyDeleteयही तो जीवनचक्र है!
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव भरी बात कह दी आप ने .
ReplyDeleteजिंदगी का सफर ऐसे ही चलता है. अच्छे भाव.
ReplyDeleteवाह, बहुत सुंदर। फिल्म के एक गाने की दो लाइनें याद आ रही हैं।
ReplyDeleteजिंदगी का सफर, है ये कैसा सफर, कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं।
आखिर इस पुनरावृति का उद्देश्य क्या है ?
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आईयेगा,शायद कुछ समाधान मिले
और इस पुनरावृति को ही पूर्ण विराम मिले.
सुन्दर भाव...
ReplyDeleteवाकई बढ़िया ...सोंचने को मजबूर करती रचना ! बेहतरीन प्रयोग !
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
सच!! :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर, जिंद्गी ऐसी ही है,
ReplyDeleteबधाई,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
आपका स्वागत है "नयी पुरानी हलचल" पर...यहाँ आपके पोस्ट की है हलचल...जानिये आपका कौन सा पुराना या नया पोस्ट कल होगा यहाँ...........
ReplyDeleteनयी पुरानी हलचल
बेहद सटीक एवं सार्थक प्रस्तुति के लिये आभार ।
ReplyDeleteआप का बलाँग मूझे पढ कर आच्चछा लगा , मैं बी एक बलाँग खोली हू
ReplyDeleteलिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
मै नइ हु आप सब का सपोट chheya
bahut badiya chitramay prastuti...
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