सोचती हूँ कितना दर्द होगा उन कैदीयों का, जो कभी बिना अपराध के ही परिस्तिथिजनित, असत्य साक्ष्यों की वजह से मुजरिमकरार किये जाते हैं और वो अपनी सफाई में कोई सबूत तक नहीं पेश कर पाते और भेज दिए जाते हैं कालकोठरी में जीवन बिताने के लिए, फिर उम्र के आखिरी पड़ाव में उनको उनके अच्छे व्यवहार के लिए पेरोल पर छोड़ दिया जाता है| वो किन मानसिक यंत्रणाओं से गुजरते है जबकि उनको शारीरिक आघात भी कम नहीं पहुंचाए जा रहे होते है|| जेल के कैदी मानसिक रोगों से भी पीड़ित होते हैं जो बहुत लंबे समय तक अपना जीवन कैद में बिता रहे होते हैं उनमें “स्टॉकहोम सिंड्रोम” जैसी एक साईकोलोजिकल स्तिथि उत्पन्न हो जाती है और कैदी जेल में दी जा रही यंत्रणाओं को व वहाँ के माहोल को पसंद करने लगता है….मानव मन, कैद की स्तिथि में कैसे प्रतिक्रिया करता है यह उसका उदाहरण है | फिर सोचती हूँ जमींदारी और सामंतवाद में कभी कभी जबरदस्ती दुल्हन बना ली गयी महिलायें भी क्या ऐसा ही महसूस करती थी होंगी……………… नूतन (नीति) |
जीती रही जन्म जन्म, पुनश्च- मरती रही, मर मर जीती रही पुनः, चलता रहा सृष्टिक्रम, अंतविहीन पुनरावृत्ति क्रमशः ~~~और यही मेरी कहानी Nutan
Wednesday, June 22, 2011
आजन्म कारावास और पेरोल पर कैदी - डॉ नूतन डिमरी गैरोला
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
kaidi ki jindgi ka mansik chitran bahut hi satik kiya hai apne
ReplyDeleteएक अनछुए विषय को आपने अपनी कविता में गूंथने का सफल प्रयास किया है। प्रयास सराहनीय है। कविता कहीं चोट करती है, कहीं उदास, कहीं आक्रोश जन्म लेता है कहीं हताशा। कविता अपने लक्ष्य में सफल है।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति।
बहुत मार्मिक और प्रेरक रचना!
ReplyDeletebahut bhayavah sthiti hai ye.aapki abhivyakti unki vedna ko bahut marmik shabdon me vyakt kar rahi hai aur ye abhivyakti bahut kathin hai.badhai.
ReplyDeleteकैद नहीं सुख देती, पंछी रह रह उड़ना चाहे।
ReplyDeleteपिंजड़े के पंछी रे तेरा दरद न जाने कोय
ReplyDeleteसंवेदनापूर्ण , मार्मिक एवं ह्रदय स्पर्शी रचना.....
ReplyDeleteनियति का खेल ही कहा जायेग इसे........
एक अनछुवे विषय पर मार्मिक और सार्थक रचना। ड: नूतन जी को बधाई।
ReplyDeleteनये विषय पर बेहद सशक्त और संवेदनशील रचना सोचने को विवश करती है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ढंग से एक नए विषय पर लिखी रचना के लिए बधाई
ReplyDeleteआशा
बहुत मार्मिक और ह्रदय स्पर्शी रचना|
ReplyDeleteदिल को छू लेने वाली रचना लिखा है आपने! मार्मिक एवं प्रेरक रचना! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
नए विषय पर नए ढंग से लिखी गई कविता । भीतर तक सिहरा देती है । कभी रूस की जेलों की हालत पर एक दिल दहला देने वाली किताब पढ़ी थी । नाम मात्र की गलती या गलतफ़हमी में भी लोगों को सींखचों के पीछे जीवन खपाना पड़ता है ।आपको बहुत बधाई नूतन जी
ReplyDeletesunder rachna.dil ko chu gayi
ReplyDeleteबहुत ही गहनता से आपने इस विषय पर बेहद सटीक एवं सार्थक लिखा है ..आभार इस प्रस्तुति के लिये ।
ReplyDeleteकैद तो कैद है, कैदियों की मानसिक स्थति की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति बधाई ...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना पढ़ना बहुत अच्छा लगा |अच्छी पोस्ट के लिए बधाई
ReplyDeleteThanks for raising this point, so poignantly.
ReplyDeletedinesh srivastava
sundar rachna...
ReplyDeleteमार्मिक और सार्थक रचना
ReplyDelete▬● नूतन , बेबस पंछी से कैदी को शब्दाभिव्यंजित कर उसकी हरेक मनोभाव को उकेर दिया है तुमने........ बहुत सुन्दर....... :)
ReplyDelete(मेरी लेखनी, मेरे विचार..)
(अनुवादक पन्ना..)
(my business site >>> http://web-acu.com/ )
डियर डॉक्टर... बड़ी रूहानियत से आपने निरपराध की मनोस्थिति को कलमबद्ध किया है ... साधुवाद
ReplyDeleteसादर भरत
एक अनछूवा विषय , आपकी समर्थ लेखनी ने इसको सजगता से उकेरा है . सुँदर कविता
ReplyDeleteकविता पढकर मुझे एक महिला पत्रकार की याद आई. शायद वह उन दिनों इन्डियन एक्सप्रेस में थी. फोटोग्राफी भी करती हैं. उनकी एक फोटो-प्रदर्शनी देखी थी जिसमे महिला कैदियों की जिंदगी को समेटा गया था.वे श्वेत-श्याम चित्र बेहद मार्मिक थे, ठीक आपकी कविता की तरह.
ReplyDeleteडॉ नूतन डिमरी गैरोला जी बहुत सुन्दर विचार आप के और आप की रचनाएँ -निम्न ने सुन्दर भाव व् सन्देश
ReplyDeleteशीशे में खुद की सूरत भी तो बदल चुकी है ..
और अब तो बाहर की दुनिया भी अजनवी हो चली है ..
होता है ऐसा -
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
प्रतापगढ़ साहित्य प्रेमी मंच
जितनी सुन्दरता से आपने किसी बेगुनाह कैदी की व्यथा को शब्द दिये हैं उतनी ही सुन्दरता से जमींदारों व सामंतवादियों की जबर्दस्ती से रखैल बना दी गई स्त्रियों की व्यथा को भी.
ReplyDeleteअत्यंत भाव पूर्ण प्रस्तुति ...अंतर्मन की संवेदनाओं की गुहार...अपार शुभ कामनाएं....
ReplyDeleteनूतन जी,आपका हृदय कितना कोमल और संवेदनशील है,यह आपकी सहृदयता की भावनाओं से परिलक्षित है.प्रभु आपको दिल से हमेशा यूँ ही सुन्दर बनाये रक्खे.
ReplyDeleteईश्वर के बाद तुम ही धरती पर भगवान हो... चेहरा अधूरा नाकाफी.. लोअर हाफ खुला दिखाएं तो और अच्छी गजल होगी... अजमेरी
ReplyDeleteसार्थक रचना..नूतनजी बधाई...
ReplyDeleteसार्थक रचना...नूतनजी बधाई..
ReplyDeleteबहुत मार्मिक और सटीक अंतर्मन की गुहार..बधाई नूतन जी..
ReplyDeleteस्टॉक होम सिंड्रोम ...शानदार कृति नूतन जी आपकी लेखनी भी कमाल कर रही है ,,, मुझे तो लगता है मेरे जैसा हर इन्शान इस दुनिया में इस सिंड्रोम से ग्रस्त है ,,,न जाने क्यों???
ReplyDelete