अरे! जहाँ देखो लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं …क्या इन्हें इतना नहीं पता कि भ्रष्टाचार तो जनता को आसानी से प्राप्त एक बहुत बड़ी सुविधा है जिसके रहते हर काम आसानी से हो जाते हैं | फिर ऐसा क्यूं … क्यूँ उठा रहे हैं ये आवाज … अन्ना जी और बाबा जी भी नाहक ही भूख हड़ताल में बैठे रहे / हैं …. और अपने दस नहीं दस हज़ारों दुश्मन बड़ा रहे हैं … हमें गर्व होना चाहिए के हम ऐसी जगह/ देश में हैं जहाँ हर कठिन से कठिन काम भी इतनी सुगमता से संभव हो जाता है ज्यूं फूंक से तिनका उड़ाना…. लक्ज़री कार फरारी ( अपना देश ) में बैठ कर भ्रष्टाचार के ईधन से हम मक्खन सी रोड ( असंवैधानिक /नाजायज /भ्रष्ट कार्य ) पर फिसलते जा रहे हैं और अपनी सुखद यात्रा पर इतराते हुवे अपनी मंजिल ( अनंत पैसों का जमावडा नितांत निज स्वार्थ के लिए) की ओर बेरोकटोक अग्रसर हैं … फिर ये बाबा जी और अन्ना जी को क्या हो गया जो मक्खन वाली सड़क पर कांच, गारे, पत्थर फैंक कर रोड़ा उत्तपन कर रहे हैं | छी छी छी.. कोई उन्हें समझाए कि एक ही तो सुविधा इस देश में आसानी से मुहैया है … जो भ्रष्ट लोगों को खूब भाती है… और ताकत से भरपूर राजनीती के कुछ नुमाइंदे इस भ्रष्टतंत्र के पोषक हैं …जिनके चलते आप घूंस कहीँ भी ले या दे सकते हैं … फिर भ्रष्टाचार जैसी सुविधा को अन्ना , बाबा , और जनता क्यों देश से हटाने पर तुले हैं… भ्रष्टाचार जैसी सुविधायें तो आम है .. ये सुविधाएँ आपको खड़े खड़े भी प्राप्त हो सकतीं हैं , कभी मेज के नीचे से , कभी लिफाफों के रूप में , कभी मिठाई के डब्बों में बंद, कभी धूप में किसी निर्माण क्षेत्र में , कभी बंद एयरकंडीसन्ड रूम में | भ्रष्टाचार में पैसे का आदान प्रदान तो आम है ..जिसे घूंस कहते है| देखिये मैं इसके कुछ फायदे सिर्फ थोड़े में ही कह पाऊँगी -
घूंस देने के लाभ -
घूंस लेने के फायदे -
जब आप के पास इतनी घूंस की दौलत हो तो कोई पागल कुत्ते ने काटा है क्या जो बाबा जी और अन्ना जी के साथ आंदोलन में बैठें या उनका साथ दें या खुद आवाज उठायें भ्रष्टाचार के खिलाफ|| आराम से घर में बैठेंगे या फिर कही छुपी गोष्ठी कर आंदोलनकारियों पर डंडे बल्लम की मार कर अश्रु गोलों फैंकवायेंगें या उनके कपडे फाड़ेंगे … लोकतंत्र की सरेआम ह्त्या कर भ्रष्टाचार का साथ देंगे और इसके खिलाफ आवाज लगाने वालों के साथियों रिश्तेदारों पर भी डंडा कर देंगे, ताकि वो आवाज दुबारा ना उठा सके या फिर एन वक्त कोई और बेसरपैर की बात का मुद्दा बना लिया जायेगा जैसे नृत्य विवाद- या अमुक इंसान अपने देश का नहीं है ..और भोलीभाली जनता का ध्यान और चिंतन उस ओर मुड जाए , और असली मुद्दे से वो भटक जाएँ - तो हैं ना भ्रष्टाचार में अजब की ताकत
तो आओ क्यूं ना इस भ्रष्टाचार रुपी देवता की आरती उतारें
जय भ्रष्टाचार देवा, जय भ्रष्टाचार देवा जो कोई तुझको पुजत, उसका ध्यान धरे जय भ्रष्टाचार देवा … तुम निशिदिन जनता का गुणी खून पिए भ्रष्ट लोगन को खूब धनधान्य कियो जय भ्रष्टाचार देवा भ्रष्ट लोग जनता पर खूब खूनी वार कियो दुष्ट भ्रष्ट लोगन को तुम असूरी ताकत दियो जय भ्रष्टाचार देवा जो कोई भ्रष्टी मन लगा के तुमरो गुण गावे उनका काला धन विदेश में सुरक्षित हो जावे जय भ्रष्टाचार देवा
बहुत खेद के साथ कटाक्ष के रूप में उपरोक्त बातें लिखी हैं | जब मैंने पाया सत्याग्रहियों और जनता पर आधी रात को इस तरह से आक्रमण किया गया जैसे आजादी से पूर्व अंग्रेजों के हाथ जलियावाला बाग था| तिस पर कई साथी लेखकों ने सत्याग्रह के खिलाफ, बाबा के खिलाफ,आवाज उठायी … और कुछ अजीब से नए मुद्दे बना डाले …मैं उनसे भी कहना चाहूंगी अभी मुद्दा सिर्फ भ्रष्टाचार के खिलाफ है.. इस पर राजनीति नहीं चाहिए - सिर्फ और सिर्फ देशहित चाहिए |
|
जीती रही जन्म जन्म, पुनश्च- मरती रही, मर मर जीती रही पुनः, चलता रहा सृष्टिक्रम, अंतविहीन पुनरावृत्ति क्रमशः ~~~और यही मेरी कहानी Nutan
Saturday, June 11, 2011
क्या भटका रहे हैं बाबा और अन्ना - जागो भारत जागो
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बहुत सटीक व्यंग..हम को वर्त्तमान आंदोलन को सिर्फ़ भ्रष्टाचार के खिलाफ ही सीमित रखना चाहिए और इसे राजनीतिज्ञों के हाथ में एक खिलौना न बनने दें..बहुत सार्थक प्रस्तुति..आभार
ReplyDeleteसटीक बात कही है आपने रोचक अंदाज में .आभार
ReplyDeleteबढ़िया व्यंग्य!
ReplyDeleteडॉ. गैरोला, बहुत सटीक व्यंग्य है। जगह पर चोट करती।
ReplyDeleteजय भारत माता की।
घूस... गंदा शब्द है जी, इसे हथेली पर मक्खन लगाना कहें तो कैसा रहेगा :)
ReplyDeleteगहरे व्यंग।
ReplyDeleteसब कुछ समेट लिया आपने तो.......भ्रष्टाचार का हर रंग है आपके इस उम्दा व्यंग में....
ReplyDeleteव्यंग्य के माध्यम से एक सार्थक अभिव्यक्ति .... और साथ ही अशोक जी की दहाड़.... वाह !!!
ReplyDeleteव्यंग्य और कविता दोनों ही ईमानदार भारतीय की घुटन स्पष्ट व्यक्त कर रहे हैं।
ReplyDeletebahut achha laga
ReplyDeletebahut khoob likhaa apne.......
waah !
रोचक अंदाज में सटीक व्यंग| धन्यवाद|
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDeleteखास चिट्ठे .. आपके लिए ...
बहुत करारा व्यंग्य वाह!
ReplyDeleteजहर को जहर मारता है इस लिये बाबा खुद करोंदों कमा कर मुहिम चला रहे थे मगर कुछ कच्चे निकले मैदान मे लोगों को पिटते म्देख भाग खडे हुये वो भी औरतों के भेस मे। जागो इस धार्मिक भ्रष्टाचार के खिलाफ भी कुछ बोलो इधर क्यों पट्टी बान्ध रखी है आँखों पर लोग ही जाने या उनकी ान्धी आस्था।
ReplyDeleteनिर्मला जी.. सादर मेरा मानना है कि
ReplyDeleteपैसे तीन तरह से आता हैं -
१) घूस/ गलत तरह से
२) मेहनत
३) किस्मत
हम गलत तरह से कमाए गए धन की निंदा कर रहे हैं - ना की मेहनत से( मेहनत जो आम जनता के हित के लिए की गयी - उसमे किसी का बुरा करना शामिल नहीं है ) और दान / किस्मत मिले धन की निंदा क्यू करे ... मेहनत और सत्कर्म से अगर कोई करोड़पति हो गया तो वो बुरे नहीं है..इर्ष्या करने वालों की नजरों का दोष है ये .... और वो धन भी तो अपने भारत खुला है हमारे उपयोग के लिए -- ना कि स्विस बेंक में काला धन छुपा है ..
कहते हैं जान है तो जहाँ है .. जान से ज्यादा बढ़ कर इस दुनिया में कुछ नहीं है... जब जान जाने का ख़तरा था ..तभी ऐसा भेष लेना पड़ा ... और तभी वो अनसन आगे बड़ा पाए ....यहाँ पर धार्मिकता की कोई बात नहीं हो रही है.... ना धरम से जुडी... सिर्फ बात है .... जो भ्रष्टाचार के खिलाफ है...चाहे वह हिंदू या किसी भी मजहब का हो ...भ्रष्टाचार किसी भी मायने में असहनीय है ... और जो धन विदेशों से वापस लेन की बात की गयी है ..वो सिर्फ जनता और देश के लिए मांग है... किसी धर्म के लिए नहीं... इंसानियत का धर्म ही सबसे बड़ा धर्म है...
दिल से लिखा गया आपका लेख गहरा, तीखा कटाक्ष करता है, और गीत के लिये श्री अशोक राठी जी का बहुत-बहुत आभार!
ReplyDeleteइसे कहते है व्यंग्य की तलवार , इससे बचे ना कोए
ReplyDeleteव्यस्तता के कारण देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ.
ReplyDeleteभावप्रवण कविता पढवाने का आभार
बिल्कुल सही कहा है आपने ! सच्चाई को आपने बड़े सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! अद्भुत रचना!
क्या सरकार को जैस तैसे वोट को इकट्ठा करके सरकार बना कर उसको मनमर्ज़ी करने की छूट दी जा सकती है ? आख़िर जनभावना का ख्याल सरकार क्यो नही करती ? क्या जनभावना को सरकार समझने असफल रहती है ? फिर जनता क्या करे / अगर सदकॉ पर शांति पूर्वक उतरने पर भी रामलीला मैदान की तरह उसको अपने हाथ पैर तुड़वाने पड़ते है ? फिर जनता क्या करे? क्या सरकार के ज़ुल्म सहती रहे? बस मात्र 5 साल मे एक बार वोट देकर सोती रहे ? सरकार कोई भी हो ? पता नही क्यो सरकारें अपने को भगवान- सा समझनेलगती है ? जैसे भगवान के सामने जनता असहाय सी रहती है , भगवान का कुछ भी नही कर सकती मात्र -विधवा विलाप करके रोना ही उसकी जिंदगी मे रहता है ! बस ऐसा ही सरकारों के समक्ष भी जनता करती रहे, यही सरकारों की मंशा रहती है ! क्या जनता इसके लिए राज़ी है ? यह तय करना जनता का काम है ?" जिंदा कौमे 5 साल तक इंतजार नही करती " अब जनता तय करे उसको जिंदा क़ौम बनना है या मुर्दा- सीअसहाय जनता ?
एक करारा पञ्च है व्यग्य का गाल पर, परन्तु इतना पचाने की शक्ति है उनमे. वे तो बेशर्मी से हँस देंगे.सच मानिए. जब सड़क और पुल डकार जाते है.. तो आगे क्या कहने?
ReplyDeleteकमाल कर दिया आपने तो मैडम
ReplyDeleteआपने अपने लेख ..व्यंग के माध्यम से बहुत कुछ कहें दिया...बता दिया
ReplyDeleteऐसा सच जो सबकी नजरो से बचा हुआ था अब तक...बहुत बहुत धन्यवाद इस लेख को सब तक
पहुँचाने के लिए
वही बात वही आक्रोश जो उन सभी के मन में है जो चोर नहीं हैं पर आपने बहुत प्रभावक शैली में अभिव्यक्त किया है, आपके पास बहुत सशक्त भाषा शैली है हो सके तो कुछ कहानियाँ और लघुकथाएँ भी लिखें।
ReplyDeletebahut sahi likha hai nutan ji.
ReplyDeleteरोचक व सटीक व्यंग्य,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
आपका तीखा व्यंग बढ़िया लगा. अशोक जी की कविता भी अच्छी लगी.
ReplyDeleteनूतन जी आपका व्यंग जबरदस्त है । बाबा ने करोडों कमाये किसके लिये अपने पातंजली योग विद्यापीठ के लिये और क्यूं नही लोग पहले छानबीन कर के फिर लिखते हैं । मुद्दा जैसे कि आपने लिखा है भ्रष्टाचार का है । उसके विरोध में आंदोलन जारी रहना चाहिये जो कि बाबा और अण्णा कर रहे हैं, हमसे हो सके तो साथ दें ना तो चुप तो रहें ।
ReplyDeleteबहुत ज़बरदस्त व्यंग्य किया है आपने.
ReplyDeleteसादर
बहुत अच्छा व्यंग लिखा है ..और अशोक रथी जी कविता भी बहुत अच्छी लगी
ReplyDeleteYou nailed it all directly on head !!
ReplyDeleteNice read
Well done
नूतन जी मुझे यहाँ तक लाने के लिए धन्यवाद ....अगर कुछ लोगों को छोड़ दिया जाए जिनके पास अथाह अवैध संपत्ति है तो सभी लोग आज त्रस्त हैं यहाँ तक कि बड़े और ईमानदार उद्योगपति भी ...जनमानस की यही प्रथम प्रतिक्रिया होती है अगर कोई काम नहीं हो रहा तो .....यार कुछ ले-देकर निपटा दो..कल्पना से भी अधिक गहराई तक धंस चुके हैं हम ...विडम्बना यह कि इसे नियति मान लिया गया है ....नहीं जानते कि देवदूत नहीं आएगा कोई इस शापित पीढ़ी की खातिर ...हमारी गर्दन की तरफ बढते हाथ हमें खुद ही काटने होंगे
ReplyDeleteआज वही व्यक्ति सत्ता के पक्ष में खड़ा दिखायी दे रहा है जो कहीं ना कहीं उपकृत है या आशा रखता है। या वे व्यक्ति है जो साक्षात भ्रष्टाचार से जुडे हैं। अब यदि अन्ना और बाबा के प्रयास से भ्रष्टाचार पर लगाम लगती है तो फिर इन बेचारों का क्या होगा?
ReplyDeleteबहुत सटीक और करारा कटाक्ष है...
ReplyDeleteअशोक राठी जी को पढ़वाने का आभार.
hasy-vyang vidha men ak gambheer mudde per bahut hi chuteela aur marmik rachana.hardik dhanyavad. laxmikant.
ReplyDeleteडा.नूतन जी,
ReplyDeleteआपके ब्लोग पर भ्रमण किया !
शानदार ब्लोग !
रोचक रचनाएं !
भ्रष्टाचार पर आंदोलन
और फ़िर उस पर आपके करारे व्यंग्य,
वाह !
बधाई !
जय हो !
==========================
www.omkagad.blogspot.com
www.kavikagad.blogspot.com
www.ompurohit.blogspot.com
हजारों जुर्म कर के भी फिरे उजाले लिबासों में
ReplyDeleteकरिश्मे हैं सियासत के,वकीलों के,अदालत के
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत ही बढ़िया और सटीक व्यंग्य! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना, आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा, आप चाहे तो भारतीय ब्लॉग लेखक मंच में लेखक बनाकर अपना योगदान दे सकते है. अपना मेल आई डी भेजे indianbloger@gmail.com
ReplyDeleteबधाई ....बहुत सटीक एवं प्यारा व्यंग्य ...हाँ प्यारा...(क्योंकि आजकल जो विविधि व्यंग्य अनावश्यक..असत्य भाव...ऊल जुलूल भाषा ..असंगत विषय ...अभद्र भाषा में व्यंग्य चल रहे हैं ...कविता में भी वे व्यर्थ ही हैं और अकर्म....)|
ReplyDelete----निर्मला जी के कटाक्ष का भी समुचित उत्तर दिया है आपने..हम पैसे की बुराई नहीं कर रहे...अपितु भ्रष्ट तरीकों की भ्रष्टाचार...अनाचार की ....
बढिया व्यंग..
ReplyDeleteएकदम सही लिखा है आपने।रिश्वत लेने वाले ही नहीं, देने वाले भी इसमें खुश हैं। और फ़िर कोई सवाल उठाये तो उल्टे उसपर ही लांछन लगाये जाते हैं।
ReplyDeleteबहुत सार्थक,यथार्थपरक एवं सटीक व्यंग्य लेख ..........
ReplyDeleteइससे रचनाकार के अंतस की पीड़ा स्वतः प्रकट हो रही है
"चारों और देख ले भैया छाई यही बहार है
रिश्वत लेना पाप कहाँ अब ?जन्मसिद्ध अधिकार है "
घूस देते देते हालात इतने बदल गए कि घूस शब्द भी घूंस हो गया.. क्या बात है.............. अरविंद कुमार
ReplyDeleteबाबा के होने से कई डॉक्टरों की दुकानदारी और लूट ख़त्म होती है... आपकी भी क्या...
ReplyDeleteAnonymous ji.. ( अरविन्द कुमार? ) .. आपने सही कहा कि बाबा के होने से लूट खत्म हो जायेगी.. दुकानदारी नहीं ... दुकानदारी चलती रहे सभी की .. अगर सरकार सभी को रोजगार दे दे उनकी योग्यता के हिसाब से तो दुकानदारी की किसी को जरूरत नहीं... लेकिन यहाँ देश में तो बेरोजगारी की समस्या मुंह फाड़े खड़ी.. तो कोई क्या स्वरोजगार या समाज सेवा ना करे ... खैर ...शायद आप भी वाही कहना चहते हैं जो हम... लेकिन समझ नहीं पाए..
ReplyDeleteघूसखोरी और भ्रष्टाचार पर्याय बन गए हैं ....अत्यंत ही सार्थक लेख ....सत्य को उजागर करने का प्रयास...शुभ कामनाएं एवं अभिनन्दन....!!!
ReplyDelete