उसकी पलकों में
सपनों की कीलों पर
इच्छाएं जीवनभर लटकती रहीं
उतरी नहीं जमीं पर
ठीक उसी तरह
जिस तरह
उसके बचपन की पतंग
शाखाओं के सलीब पर अटकी रही
फड़फड़ाती रही, फटती रही
और बचपन अबोध आँखों से
पेड़ के नीचे इन्तजार करता रहा
डोर का, पतंग का|
कितने ही मौसम बदले
गर्मी आई बारिश आई
और कागज की लुगदी
टुकड़ा टुकड़ा टपकती गयी, बहती गयी
रह गया सिर्फ पंजर
बारिक बेंत का क्रोस
डाल पर झूलता
और वो पेड़ भी तो अब गिरने को है|
०६-०६ –२०११ २२:१५ डॉ नूतन गैरोला |
उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.... ....एक प्रभावी और संवेदनशील रचना .....
ReplyDeleteइच्छाओं की पतंग का सार्थक चित्रण।
ReplyDelete---------
कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत किसे है?
बाबाजी, भ्रष्टाचार के सबसे बड़े सवाल की उपेक्षा क्यों?
गहन भाव..उम्दा बिम्ब!!!
ReplyDeleteपतंग की संघर्ष यात्रा अच्छी लगी
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDeleteआज के खास चिट्ठे ...
पतंग के सहारे से जीवन की एक सच्चाई बयान कर दी आपने.
ReplyDeleteक्या बात है.
पेड़ पर लटकना तो पतंग का ठिकाना नहीं, उसे तो बस उड़ना है, बारिश आने के पहले।
ReplyDeleteजीवन सन्दर्भों को सामने लाती कविता बहुत सशक्त अर्थ संप्रेषित करती है ....आपका आभार
ReplyDeleteसुंदर कविता नूतन जी
ReplyDeleteबचपन के सपनो की पतंग
ReplyDeleteभविषय की सलीब पर लटकी रही--
मेरे ख्याल से यहाँ शाखाओं की जगह भविशःय होना चाहिये था। बहुत ही अच्छी भावमय प्रस्तुती।
बेहद भावमयी प्रस्तुति।
ReplyDeleteबचपन के सपने सच में शाखा में लटकी पतंग ही तो बन कर रह जाते हैं..बहुत सटीक और संवेदनशील प्रस्तुति..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर दिल को छूती हुई कविता !
ReplyDeleteबारीक बेंत का क्रॉस
ReplyDeleteडाल पर झूलता
सुंदर बिंबों से सजी रचना.
बहुत ही मार्मिक ... संवेदनशील अभिव्यक्ति है ... सच है बहुत से बचपन ऐसे ही पिंजरा हो जाते हैं ... उम्र भर अटके रहते हैं ...
ReplyDeleteApka blog pahali baar dekha, bahut achchha likhti hain aap.
ReplyDeleteit's great to see your blog.
Regards, Gajender Bisht.
आपकी रचनाएँ सार्थक सोच की असीम गहराईयों से गुजरती हैं जो मन
ReplyDeleteको उद्वेलित करती हैं .. उत्कृष्ट रचना साधुवाद जी /
अच्छे बिम्ब प्रयोग किये हैं ज़िंदगी की सच्चाई बताने के लिए ..सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी भावमय प्रस्तुति| धन्यवाद|
ReplyDeleteबहुत मार्मिक लेकिन सुंदर रचना, धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeletegahanta se paripurn rachna
ReplyDeletebahut hi accha !mere blog par bhi aaye mere blog par aane ke liye yaha click kare- "samrat bundelkhand"
ReplyDeleteबहुत सुंदर.. पहली बार आपके ब्लाग को देख रहा हूं। वाकई अच्छा लगा।
ReplyDeleteअनुपम अभिव्यक्ति..!!
ReplyDeleteअपने मनोभाव को खूब सुन्दर अंदाज़ में समेटा है आपने डा० नूतन. बहुत खूब.
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
wonderful creation . loving the expressions !
ReplyDeleteपतंग इच्छाओं की बहुत भावपूर्ण कविता है , जीवन के यथार्थ को पूरी मार्मिकता और तन्मयता से अभिव्यक्त करती हुई ।
ReplyDeletenice post
ReplyDeleteरेह गया सिर्फ पंजर ... जीवन की अंत यात्रा ...
ReplyDeleteएहसास महसूस कराती जीवन दर्शन ...?
शुभकामनाएँ!
उसके बचपन की पतंग
ReplyDeleteशाखाओं के सलीब पर अटकी रही
फड़फड़ाती रही, फटती रही
और बचपन अबोध आँखों से
पेड़ के नीचे इन्तजार करता रहा
डोर का, पतंग का|
क्या बखूबी वर्णन किया है डॉ. नूतन... बधाई|
खूबसूरत कविता... बहुत बढ़िया...
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया रचना है,
ReplyDeleteसाभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
जीवन के एहसासों को खूबसूरती से परिभाषित करती खुबसूरत रचना |
ReplyDeleteअग्निहोत्री तेरे हसबेंड हैं ..क्या करते हैं वो.. यशवंत
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