Monday, June 6, 2011

पतंग इच्छाओं की - डॉ नूतन गैरोला

   

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  उसकी पलकों में
सपनों की कीलों पर
इच्छाएं जीवनभर लटकती रहीं
उतरी नहीं जमीं पर
ठीक उसी तरह
जिस तरह
उसके बचपन की पतंग
शाखाओं के सलीब पर  अटकी रही
फड़फड़ाती रही, फटती रही
और बचपन अबोध आँखों से
पेड़ के नीचे इन्तजार करता रहा
डोर का, पतंग का|
कितने ही मौसम बदले
गर्मी आई बारिश आई
और कागज की लुगदी
टुकड़ा टुकड़ा टपकती गयी, बहती गयी
रह गया सिर्फ पंजर
बारिक बेंत का क्रोस
डाल पर झूलता
और वो पेड़ भी तो अब गिरने को है|

०६-०६ –२०११  २२:१५
डॉ नूतन गैरोला  

35 comments:

  1. उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.... ....एक प्रभावी और संवेदनशील रचना .....

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  2. गहन भाव..उम्दा बिम्ब!!!

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  3. पतंग की संघर्ष यात्रा अच्छी लगी

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  4. पतंग के सहारे से जीवन की एक सच्चाई बयान कर दी आपने.
    क्या बात है.

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  5. पेड़ पर लटकना तो पतंग का ठिकाना नहीं, उसे तो बस उड़ना है, बारिश आने के पहले।

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  6. जीवन सन्दर्भों को सामने लाती कविता बहुत सशक्त अर्थ संप्रेषित करती है ....आपका आभार

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  7. सुंदर कविता नूतन जी

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  8. बचपन के सपनो की पतंग
    भविषय की सलीब पर लटकी रही--
    मेरे ख्याल से यहाँ शाखाओं की जगह भविशःय होना चाहिये था। बहुत ही अच्छी भावमय प्रस्तुती।

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  9. बेहद भावमयी प्रस्तुति।

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  10. बचपन के सपने सच में शाखा में लटकी पतंग ही तो बन कर रह जाते हैं..बहुत सटीक और संवेदनशील प्रस्तुति..बहुत सुन्दर

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  11. बहुत सुंदर दिल को छूती हुई कविता !

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  12. बारीक बेंत का क्रॉस
    डाल पर झूलता

    सुंदर बिंबों से सजी रचना.

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  13. बहुत ही मार्मिक ... संवेदनशील अभिव्यक्ति है ... सच है बहुत से बचपन ऐसे ही पिंजरा हो जाते हैं ... उम्र भर अटके रहते हैं ...

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  14. Apka blog pahali baar dekha, bahut achchha likhti hain aap.

    it's great to see your blog.
    Regards, Gajender Bisht.

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  15. आपकी रचनाएँ सार्थक सोच की असीम गहराईयों से गुजरती हैं जो मन
    को उद्वेलित करती हैं .. उत्कृष्ट रचना साधुवाद जी /

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  16. अच्छे बिम्ब प्रयोग किये हैं ज़िंदगी की सच्चाई बताने के लिए ..सुन्दर रचना

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  17. बहुत ही अच्छी भावमय प्रस्तुति| धन्यवाद|

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  18. बहुत मार्मिक लेकिन सुंदर रचना, धन्यवाद

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  19. बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!

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  20. bahut hi accha !mere blog par bhi aaye mere blog par aane ke liye yaha click kare- "samrat bundelkhand"

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  21. बहुत सुंदर.. पहली बार आपके ब्लाग को देख रहा हूं। वाकई अच्छा लगा।

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  22. अपने मनोभाव को खूब सुन्दर अंदाज़ में समेटा है आपने डा० नूतन. बहुत खूब.
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  23. wonderful creation . loving the expressions !

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  24. पतंग इच्छाओं की बहुत भावपूर्ण कविता है , जीवन के यथार्थ को पूरी मार्मिकता और तन्मयता से अभिव्यक्त करती हुई ।

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  25. रेह गया सिर्फ पंजर ... जीवन की अंत यात्रा ...
    एहसास महसूस कराती जीवन दर्शन ...?
    शुभकामनाएँ!

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  26. उसके बचपन की पतंग
    शाखाओं के सलीब पर अटकी रही
    फड़फड़ाती रही, फटती रही
    और बचपन अबोध आँखों से
    पेड़ के नीचे इन्तजार करता रहा
    डोर का, पतंग का|

    क्या बखूबी वर्णन किया है डॉ. नूतन... बधाई|

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  27. खूबसूरत कविता... बहुत बढ़िया...

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  28. बहुत ही बढ़िया रचना है,
    साभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  29. जीवन के एहसासों को खूबसूरती से परिभाषित करती खुबसूरत रचना |

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  30. अग्निहोत्री तेरे हसबेंड हैं ..क्या करते हैं वो.. यशवंत

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