Tuesday, June 28, 2011

पुनरावृति - डॉ नूतन गैरोला डिमरी

 नुत


 
जीती रही जन्म जन्म,
पुनश्च मरती रही,
मर मर जीती रही पुनः,
चलता रहा सृष्टिक्रम,
अंतविहीन पुनरावृति क्रमशः|

 

                        डॉ नूतन डिमरी गैरोला

 

 

32 comments:

  1. यही पुनरावृति होती रहती है

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  2. बहुत सुन्दर भाव|

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  3. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  4. बहत बड़ी बात कह दी आपने..बहुत सुंदर।

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  5. waah !
    kramshah ka itna sundar upyog

    pahli baar dekha kavita me


    bahut sundar...abhinav kavita...badhaai aapko !

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  6. यही क्रम है, बढ़ते रहने का।

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  7. जीवन की शास्वत पुनरावृत्ति का अंतहीन क्रम ..बहुत ही सुन्दर भाव....

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  8. Recycling of life is perpetual, some paths used to say ,its a mystic subject but existed so for, philosophy is running behind..Its a very precious thought in nutshell,appreciable one .Thanks .

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  9. बहुत बढ़िया...गहन अभिव्यक्ति....

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  10. भावमय करते शब्‍द ।

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  11. यही जीवन चक्र है।

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  12. यही तो है जिन्दगी । सुन्दर संयोजन...

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  13. यही तो है जिन्दगी. सुन्दर संयोजन...

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  14. यह सिलसिला तो चलता ही रहेगा॥

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  15. बहुत सुंदर भाव भरी बात कह दी आप ने .

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  16. जिंदगी का सफर ऐसे ही चलता है. अच्छे भाव.

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  17. वाह, बहुत सुंदर। फिल्म के एक गाने की दो लाइनें याद आ रही हैं।
    जिंदगी का सफर, है ये कैसा सफर, कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं।

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  18. आखिर इस पुनरावृति का उद्देश्य क्या है ?
    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,शायद कुछ समाधान मिले
    और इस पुनरावृति को ही पूर्ण विराम मिले.

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  19. वाकई बढ़िया ...सोंचने को मजबूर करती रचना ! बेहतरीन प्रयोग !
    शुभकामनायें आपको !

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  20. बहुत सुंदर, जिंद्गी ऐसी ही है,
    बधाई,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  21. आपका स्वागत है "नयी पुरानी हलचल" पर...यहाँ आपके पोस्ट की है हलचल...जानिये आपका कौन सा पुराना या नया पोस्ट कल होगा यहाँ...........
    नयी पुरानी हलचल

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  22. बेहद सटीक एवं सार्थक प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

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  23. आप का बलाँग मूझे पढ कर आच्चछा लगा , मैं बी एक बलाँग खोली हू
    लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/

    मै नइ हु आप सब का सपोट chheya

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