***ये रास्ता कितना हसीन है***
तू अपनी खुद्दारी की राहों पे चल निकल
जो ने तूने ठानी थी तू कर अमल|
ना ठुकरा अपनी झोपडी पुरानी ही सही
तू ईमान के बदले में न खरीद महल |
जीना तू गर जीना सर उठा के
बेईमानों का भी दिल ईमान से जाए दहल|
समेट ले खुद की इच्छाओं को
जीने की जरूरत हो जितनी तू उसमें बहल|
तू नवाजिश हो पाकीजा हो पाक पानी सी
खुद को बचा आज फैला है तिश्नगी का दलदल|
जिन दरख्तों पे खिलते हैं फूल ना ईमानी के
तू चिंगारी बन कर ख़ाक कर दे वो जंगल |
हो बुलंद इकबाल तेरा जरा तू संभल
नेकी की राहों पर चल के आगे निकल |
समेट ले खुद की इच्छाओं को
जीनेभर की जरूरतों में तू खुश हो बहल ||....डॉ नूतन गैरोला २३ :४६ १५ -११- २०११
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प्रेरक प्रस्तुति!
ReplyDeleteतू नवाजिश हो पाकीजा हो पाक पानी सी
ReplyDeleteखुद को बचा आज फैला है तिश्नगी का दलदल|
kafi achchhi lines....
behad sundar...
जो मिला है, उसी में ही प्रसन्न रहना सीख लें।
ReplyDeletekhoobsurat dua
ReplyDeleteबहुत खूब कहा है आपने ।
ReplyDeleteतू नवाजिश हो पाकीजा हो पाक पानी सी
ReplyDeleteखुद को बचा आज फैला है तिश्नगी का दलदल|
हो बुलंद इकबाल तेरा तू संभल
नेकी की राहों पर चल के आगे निकल |
समेट ले खुद की इच्छाओं को
जीनेभर की जरूरतों में तू खुश हो बहल ||.
आज तो आपसे आशीर्वाद लेने का मन कर रहा है नूतन जी ..ना जाने क्यों लगता है कि ऐसा मेरे जीवन में भी होना चाहिए.
नेकी के रास्ते पर चलने का बहुत सुंदर संदेश देती हुई पंक्तियाँ !
ReplyDeleteबेहद खुबसूरत लिखा है.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत.......स्वाभिमान को दर्शाती ये पंक्तियाँ शानदार हैं|
ReplyDeleteस्वाभिमान को दर्शाती शानदार प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति डॉ नूतन जी । ये पंक्तियाँ तो मन को छू गई -तू अपनी खुद्दारी की राहों पे चल निकल
ReplyDeleteजो तुने ठानी थी तू कर अमल|
ना ठुकरा अपनी झोपडी पुरानी ही सही
तू ईमान के बदले में न खरीद महल |
मनोबल बढ़ाती है यह प्रस्तुति।
ReplyDeleteसादर
सकारात्मक व भावपूर्ण रचना ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है ।
अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।
औचित्यहीन होती मीडिया और दिशाहीन होती पत्रकारिता
Wah!!! Behatreen....
ReplyDeletewww.poeticprakash.com
very encouraging poem
ReplyDeletevery beautiful../...
sare sher lajawabaab.bahut sundar
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-701:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
शानदार प्रस्तुति
ReplyDeleteGyan Darpan
Matrimonial Site
बेहद प्रेरक ..सत्मार्ग की तरफ ले जाती हुई रचना.
ReplyDeleteवाह यह तो बड़ी सुन्दर रचना है...
ReplyDeleteसादर बधाई
जिन दरख्तों पे खिलते हैं फूल ना ईमानी के
ReplyDeleteतू चिंगारी बन कर ख़ाक कर दे वो जंगल
अहा! क्या कमाल का लिख दिया है आपने.
ना रहेगा बांस ,ना बजेगी बांसुरी.
अब तो बस चिंगारी बनने की ही कोशिश करते हैं नूतन जी.
आपके अनुपम लेखन को दिल से नमन.
AAMEEEN
ReplyDeleteYe duai jiske liye bhi nikli hain...dua hai ki puri hon.
sunder abhivyakti.
बहुत ही खुबसूरत और भावपूर्ण अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteप्रेरक ... जितना है उसी में गुजार हो सके तो जीवन सहज हो जाता है ... लाजवाब रचना है ...
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत और भावपूर्ण अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteअच्छी रचना के लिये धन्यवाद.
ReplyDeleteबेहद प्रेरक ..सुन्दर रचना....
ReplyDeleteखूबसूरत प्रेरक रचना के लिए आभार बेहतरीन पोस्ट ,...
ReplyDeleteआपके पोस्ट पर आकर अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट शिवपूजन सहाय पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद
ReplyDeleteआशा और विश्वास से भरी हुई कविता।
ReplyDeleteबेहद ख़ूबसूरत और शानदार रचना ! दिल को छू गई हर एक पंक्तियाँ!
ReplyDeleteमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com
जिन दरख्तों पे खिलते हैं फूल ना ईमानी के
ReplyDeleteतू चिंगारी बन कर खाक कर दे वो जंगल ।
हो बुलंद इकबाल तेरा जरा तू संभल
नेकी की राहों पर चल के आगे निकल ।
प्रेरणा देने वाली सुंदर रचना।
ReplyDelete♥
आदरणीया डॉ.नूतन जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
समेट ले ख़ुद की इच्छाओं को…
आपने संतोष धन की नये अंदाज़ में महत्ता रूपायित की है …
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार