Wednesday, November 16, 2011

ये रास्ता कितना हसीन है - डॉ नूतन गैरोला


***ये रास्ता कितना हसीन है***

my_way_to_neverwhere_by_Dieffi

तू अपनी खुद्दारी की राहों पे चल निकल
जो ने तूने ठानी थी तू कर अमल|
ना ठुकरा अपनी झोपडी पुरानी ही सही
तू ईमान के बदले में न खरीद महल |
जीना तू गर जीना सर उठा के
बेईमानों का भी दिल ईमान से जाए दहल|
समेट ले खुद की इच्छाओं को
जीने की जरूरत हो जितनी तू उसमें बहल|


तू नवाजिश हो पाकीजा हो पाक पानी सी
खुद को बचा आज फैला है तिश्नगी का दलदल|

जिन दरख्तों पे खिलते हैं फूल ना ईमानी के 
तू चिंगारी बन कर ख़ाक कर दे वो जंगल | 
हो बुलंद इकबाल तेरा जरा तू संभल
नेकी की राहों पर चल के आगे निकल |
समेट ले खुद की इच्छाओं को
जीनेभर की जरूरतों में तू खुश हो बहल ||....
डॉ नूतन गैरोला २३ :४६ १५ -११- २०११

33 comments:

  1. तू नवाजिश हो पाकीजा हो पाक पानी सी
    खुद को बचा आज फैला है तिश्नगी का दलदल|
    kafi achchhi lines....
    behad sundar...

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  2. जो मिला है, उसी में ही प्रसन्न रहना सीख लें।

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  3. बहुत खूब कहा है आपने ।

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  4. तू नवाजिश हो पाकीजा हो पाक पानी सी
    खुद को बचा आज फैला है तिश्नगी का दलदल|
    हो बुलंद इकबाल तेरा तू संभल
    नेकी की राहों पर चल के आगे निकल |
    समेट ले खुद की इच्छाओं को
    जीनेभर की जरूरतों में तू खुश हो बहल ||.
    आज तो आपसे आशीर्वाद लेने का मन कर रहा है नूतन जी ..ना जाने क्यों लगता है कि ऐसा मेरे जीवन में भी होना चाहिए.

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  5. नेकी के रास्ते पर चलने का बहुत सुंदर संदेश देती हुई पंक्तियाँ !

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  6. बेहद खुबसूरत लिखा है.

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  7. बहुत खूबसूरत.......स्वाभिमान को दर्शाती ये पंक्तियाँ शानदार हैं|

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  8. स्वाभिमान को दर्शाती शानदार प्रस्तुति।

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  9. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति डॉ नूतन जी । ये पंक्तियाँ तो मन को छू गई -तू अपनी खुद्दारी की राहों पे चल निकल
    जो तुने ठानी थी तू कर अमल|
    ना ठुकरा अपनी झोपडी पुरानी ही सही
    तू ईमान के बदले में न खरीद महल |

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  10. मनोबल बढ़ाती है यह प्रस्तुति।

    सादर

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  11. सकारात्मक व भावपूर्ण रचना ।
    बहुत अच्छा लिखा है ।

    अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।

    औचित्यहीन होती मीडिया और दिशाहीन होती पत्रकारिता

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  12. Wah!!! Behatreen....

    www.poeticprakash.com

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  13. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच-701:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  14. बेहद प्रेरक ..सत्मार्ग की तरफ ले जाती हुई रचना.

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  15. वाह यह तो बड़ी सुन्दर रचना है...
    सादर बधाई

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  16. जिन दरख्तों पे खिलते हैं फूल ना ईमानी के
    तू चिंगारी बन कर ख़ाक कर दे वो जंगल

    अहा! क्या कमाल का लिख दिया है आपने.
    ना रहेगा बांस ,ना बजेगी बांसुरी.

    अब तो बस चिंगारी बनने की ही कोशिश करते हैं नूतन जी.
    आपके अनुपम लेखन को दिल से नमन.

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  17. AAMEEEN

    Ye duai jiske liye bhi nikli hain...dua hai ki puri hon.

    sunder abhivyakti.

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  18. बहुत ही खुबसूरत और भावपूर्ण अभिवयक्ति.....

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  19. प्रेरक ... जितना है उसी में गुजार हो सके तो जीवन सहज हो जाता है ... लाजवाब रचना है ...

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  20. बहुत ही खुबसूरत और भावपूर्ण अभिवयक्ति.....

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  21. अच्छी रचना के लिये धन्यवाद.

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  22. बेहद प्रेरक ..सुन्दर रचना....

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  23. खूबसूरत प्रेरक रचना के लिए आभार बेहतरीन पोस्ट ,...

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  24. आपके पोस्ट पर आकर अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट शिवपूजन सहाय पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद

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  25. आशा और विश्वास से भरी हुई कविता।

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  26. बेहद ख़ूबसूरत और शानदार रचना ! दिल को छू गई हर एक पंक्तियाँ!
    मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
    http://seawave-babli.blogspot.com

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  27. जिन दरख्तों पे खिलते हैं फूल ना ईमानी के
    तू चिंगारी बन कर खाक कर दे वो जंगल ।
    हो बुलंद इकबाल तेरा जरा तू संभल
    नेकी की राहों पर चल के आगे निकल ।

    प्रेरणा देने वाली सुंदर रचना।

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  28. आदरणीया डॉ.नूतन जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    समेट ले ख़ुद की इच्छाओं को…
    आपने संतोष धन की नये अंदाज़ में महत्ता रूपायित की है …

    बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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