एक बेडी तोड़ने का प्रयास .. बेहद कस दिया था जिसने जीवन .. बैल की नाक नकेल ..कोल्हू में फिर फिर पेरा गया बैल .. पिंजरे का दरवाजा .. बंद हुआ था ... एक बंद कमरा ... नक्कारखाने में आवाजों का घन सर पर चलता रहा .. तूती प्रताड़ित भयभीत और भी सिमटती रही .. अपने होने की हर जिम्मेदारियों का निर्वहन करती रही और नकारा जाता रहा उसे हर वक़्त .. महीनों की जद्दोजहद और एक दिन हुक्मरानों की गुलामी के तिलस्म को रुखसत कर … तोड़ के वो बेडी, निकाल के नकेल, खोल के दरवाजा , खुली हवा में तूती बड़े जोश से बजने चली .. पर बज न सकी क्यूंकि काली यादों की परछाइयों ने बेड़ियों की तरह जकड लिया था, नकेल से कस लिया था, चिल्ला कर उठ रहे थे ताजातरीन अतीत के पन्नों के वो मायावी जिन्न और भय के भयावने कमरे में कैद हो रही थी वह .. चंद, अपने से लगते लोग उसे डरावने से कमरे में धकेल बाहर से दरवाजे का कुंडा चढ़ा रहे थे .. भलाई के उसके दुहाई दे रहे थे ... लड़नी होगी उसको ये जंग .. फतह करना होगा उसको ये भय .. अतीत से उठ कर भविष्य के नीले खुले आकाश की ओर देखना होगा .. जिसके लिए आज की अपनी धरती पे आना होगा उसे और सुनहरे भविष्य के बीज बो कर उन्हें सीचना होगा, कुछ समय का इन्तजार कुछ समय की मेहनत.. कल उसका अपना होगा .. जहा वह मधुर मधुर गुनगुनायेगी मुस्कुरायेगी, अपनों को गले लगाएगी ... वह अब चलेगी अकेले ही पर उसे दूर से ही सही तुम्हारा आशीर्वाद चाहिए .. आज से उसका सफ़र शुरू हुआ ..शुभ हो प्रभात शुभदिवस …. डॉ नूतन गैरोला
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बिलकुल......
ReplyDeleteआस बंधी रहे...प्यास जगी रहे...बस.
शुभकामनाएं.
अनु
कुछ समय का इन्तजार कुछ समय की मेहनत.. कल उसका अपना होगा जहा वह मधुर मधुर गुनगुनायेगी मुस्कुरायेगी, अपनों को गले लगाएगी ... वह अब चलेगी अकेले ही पर उसे दूर से ही सही तुम्हारा आशीर्वाद चाहिए,,
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,,,,,,
MY RECENT POST: माँ,,,
बहुत बहुत शुभकामनायें...आजादी मुबारक हो !
ReplyDeleteसमय का साथ रहे, सर पर ईश्वर का हाथ रहे
ReplyDeleteप्रवीण जी! मैं आपके ब्लॉग मे आपकी पोस्ट तक नहीं पहुच पा रही हूँ ... देखिएगा ऐसा क्यों
Deleteआपकी आजादी आपको नयी खुशियाँ दे
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति आजादी पाने की ...
ReplyDeleteबड़े ध्येय के लिए कुर्बानी भी करनी पड़ती है.
ReplyDeleteआपका ध्येय 'सत्-चित-आनन्द' बना रहे और आप
सैदेव अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होती रहें यही
दुआ और कामना है मेरी.
योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते