इम्तिहान, इम्तिहान, इम्तिहान,.. न जाने जिंदगी कितने इम्तिहान लेगी, हर बार एक नया चौराहा, हर बार खो जाने का भय , मंजिल किस डगर होगी कुछ भी तो उसे खबर नहीं ,……. ……..मंथन मंथन मंथन जाने कितना ही आत्ममंथन, हर बार पहुंची उसी जगह ज्यूँ शून्य की परिधि पर चलती हुई …………..चढ़ते, चढ़ते, चढ़ते,.. जब शीर्ष पर पहुचने लगे -थरथरा रहे थे कदम, फूलने लगे थे दम, मंसूबों की कतरनों को थामें, ढलानों पर फिसलने लगी ….... ……मुस्कानें, मुस्कानें, मुस्कानें , ..देखो! गालों पर खिलती हुई कानों तक पहुंची मुस्काने, चमक रहे थे जो, दिखे नहीं किसी को, उसकी आँखों के धुंधलाते सितारे … शायद उसके भीतर बहुत कुछ टूट गया था, उसका विश्वास चरमरा गया था… फिर भी अभी एक आस है, क्यूंकि अभी कुछ सांस हैं………... उसने अंधेरों में एक चिराग जला लिया है और कम पड़ती रौशनी में चश्मा पौंछ कर पहन लिया है …... क्यूंकि आखिरी सांस भी जिंदगी दे जाती है और क्या पता जिंदगी थाम के हाथ, पहुंचा दे मंजिल के पास …. ..पर फिर मंजिल पर पहुँच कर एक नया मंसूबा एक नया चौराहा, सतत चलते रहने की चाह .…. यही गति है, यही जिंदगी है, यही जीने का नाम है .............................. नूतन - ४/१०/१२ .... १८ : २४ |
जीवन चलने का नाम.....
ReplyDeleteजाने कितने चौराहे पार करने हैं....
बहुत सुन्दर दर्शन.
अनु
जब लगता है कि अब स्थिरता आ गयी है, तभी चौराहे भरे रास्ते आ जाते हैं।
ReplyDeleteयही गति है, यही जिंदगी है, यही जीने का नाम है ..
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (06-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
आपने सही बात कही यही गति है,यही जिंदगी है, यही जीने का नाम है,,,,,,,,,,,,
ReplyDeleteRECECNT POST: हम देख न सके,,,
बहुत ख़ूब! वाह!
ReplyDeleteकृपया इसे भी देखें-
नाहक़ ही प्यार आया
आज 06-10-12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete.... आज की वार्ता में ... उधार की ज़िंदगी ...... फिर एक चौराहा ...........ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
गहन चिंतन ... चौराहों के पार ही तो जाना है ।
ReplyDeleteचलना ही ज़िन्दगी है।
ReplyDeletevery beautifully you expressed the life....
ReplyDeletehan, chauraaho se uchit marg chunNa bahut kathin hai. aur jeene k liye aasha ki umeed dhoondhna us se bhi mushkil.
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteगति से जीवन चलता है और चौराहे दोराहे मिलने भी स्वाभाविक है.
ReplyDeleteभावपूर्ण प्रस्तुति.
अभी एक आस है क्यूंकि अभी कुछ सांस हैं.
ReplyDeleteयह सांस ही तो प्रभु की नियामत हैं.
आस करते हुए उसकी ओर चलते रहना
ही तो कर्म योग है.जो कि स्वयं में मंजिल है.
फिर सांसे रहे या न रहें.
सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति के लिए आभार,नूतन जी.
गति ही जीवन है । सुंदर संदेश ।
ReplyDeleteइम्तिहान, इम्तिहान, इम्तिहान,..
ReplyDeleteन जाने जिंदगी कितने इम्तिहान लेगी,
हर बार एक नया चौराहा,
हर बार खो जाने का भय ,
मंजिल किस डगर होगी
कुछ भी तो उसे खबर नहीं ,……. ……..
मंथन मंथन मंथन
जाने कितना ही आत्ममंथन,
हर बार पहुंची उसी जगह
ज्यूँ शून्य की परिधि पर चलती हुई …………..
चढ़ते, चढ़ते, चढ़ते,..
जब शीर्ष पर पहुचने लगे -
थरथरा रहे थे कदम,
फूलने लगे थे दम,
मंसूबों की कतरनों को थामें,
ढलानों पर फिसलने लगी ….... ……
मुस्कानें, मुस्कानें, मुस्कानें , ..देखो! गालों पर खिलती हुई
कानों तक पहुंची मुस्काने,
चमक रहे थे जो,
दिखे नहीं किसी को,
उसकी आँखों के धुंधलाते सितारे …
शायद उसके भीतर
बहुत कुछ टूट गया था, उसका विश्वास चरमरा गया था…
फिर भी अभी एक आस है,
क्यूंकि अभी कुछ सांस हैं………...
उसने अंधेरों में
एक चिराग जला लिया है
और कम पड़ती रौशनी में
चश्मा पौंछ कर पहन लिया है …...
क्यूंकि आखिरी सांस भी
जिंदगी दे जाती है
और क्या पता
जिंदगी थाम के हाथ,
पहुंचा दे मंजिल के पास …. ..पर फिर मंजिल पर पहुँच कर
एक नया मंसूबा
एक नया चौराहा,
सतत चलते रहने की चाह .….
यही गति है,
यही जिंदगी है,
यही जीने का नाम है ...............
सुंदर प्रस्तुति...............