ये संस्मरण, राष्ट्र में एक भाषा की अनिवार्यता पर लिखें हैं - जिसके बिना हम अपने ही देश में परदेसी हो जाते हैं| हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, यह देश के हर नागरिक की भाषा होनी चाहिए| कम से कम देश के नागरिकों कों हिंदी की जानकारी तो होनी ही चाहिए| हिंदी का साहित्यिक स्तर पर कितना भी विकास हो लेकिन अगर देश की २० प्रतिशत से ऊपर जनता हिंदी बोल और समझ ही नहीं पाती तो यह हिंदी का कैसा विकास होगा जो सिर्फ कागज़ कलम और हिंदी के साहित्यकारों के साथ जुडा है, हिंदी बोलने और पढ़ने वालों की भी उतनी ही आवश्यकता है| हिंदी एक आम भाषा होनी चाहिए वो एक ऐसी भाषा है जो हमें आपस में जोड़ती है, एक दुसरे कों समझने का मौक़ा देती है तो आओ क्यों न हम हिंदी अपनाएँ और देश में आपसी प्रेम और सौहार्द कों बढ़ाएं| इसी सन्दर्भ में मेरे दो संस्मरण -
जब हम सर पीटते रह गए
बात उन दिनों की है| जब हम “ऑल इंडियन सर्जिकल कांफेरेंस” के सन्दर्भ में कोयम्बटूर गए थे| ज्यादातर हम लोंग पठन पाठन, परिवार और मित्रों में इतना व्यस्त रहते थे कि हमें भाषा संबंधी विभिन्नता का अहसास नहीं होता था| | कांफेरेंस में वर्कशॉप अटेंड करने के बाद हमने खाली समय पर शहर के बाहर साईट सीन करने का प्रोग्राम बनाया और जिस होटल में हम रुके थे वहाँ से एक टेक्सी हमें मिली| दोपहर बाद हम “ध्यानलिंगम” के लिए रवाना हुए| उत्तर भारत के पहाड़ों से उतर कर हम उतर दक्षिण भारत पहुंचे हुए थे| जहाँ हमारा दिन रात ऊँचे पहाड़ी रास्तों में देवदार चिनार चीड बुरांस का साथ रहा, वहीँ हम यकायक सर्पिल सीधी सड़कों पर दोनों तरफ नारियलों के वृक्षों से घिरे हुए| मन में कितनी ही कोतुहलता, कितना कुछ जानने समझने की इच्छा, जिन रास्तों से हम गुजर रहे थे उस जगह ठिकानों का नाम, संस्कृति, रहन सहन, पहनावा, पसंद नृत्य गीत आदि कों जानने की उत्सुकता, वहाँ की खासियत के बारे में सुन देख कर अपने मन मस्तिक पर छाप कर स्मृतिपटल पर उतारने की इच्छा …लेकिन हम जिन रास्तों से गुजर रहे थे वह ड्राईवर कृष्णामुर्थी उन रास्तों और जगह का नाम भी न बता पाया .. हमने ड्राइवर से बहुतेरी पूछने की कोशिश की पर वह समझने और बताने में विफल रहा और वो जो बताता वह हम समझने में विफल रहे| उसे हिंदी आती ही नहीं थी और इंग्लिश वह जानता भी न था| रास्ते में उसने नारियल पानी पिलाने के लिए रोका और इशारे से बोला वो - हमने कहा हम पियेंगे| फिर वहाँ जो भी लोंग हमें मिले कोई भी हिंदी नहीं जानता था न वह किसी शहर या गाँव का नाम हिंदी या इंग्लिश में मिला| हम तो अपने ही देश भारत में थे ..लेकिन हिंदी का ऐसा बुरा हाल, हिंदी का कोई एक शब्द नहीं जानता था वहाँ राजभाषा मातृभाषा क्या यही थी अपनी हिंदी अपना हिन्दुस्तान| फिर हम टेक्सी में बैठ कर आगे चल दिए काफी कोशिश के बाद भी जब वह कुछ नहीं बता पाता या सिर्फ जाने क्यूं हां का इशारा कर गर्दन हिला देता जबकि हम और कुह पूछ रहे होते ..हम मन मशोस कर रह जाते .. और हमारे बीच एक गहरी चुप्पी छा जाती ..जिसके बीच अचानक वह कुछ बोलता जो हमारी समझ से बाहर होता ऐसे में वह हमें कोई गाली भी दे रहा हो तो क्या हमारी समझ से परे था | उन अनजानी अनाम सड़कों पर हम जैसे तैसे गुजरे पर जो भी हो आखिरकार हम ध्यानलिंगम पहुँच गए |
ध्यानलिंगम में पहुँच कर
वहाँ की हवाओं में निहित देवत्व, स्नान, शांति, ध्यान, समाधि का जो अवर्णित परमसुख मन कों मिला उस विषय पर नहीं जाउंगी| हाँ वापसी में हम ड्राईवर कों समझाने में सफल हुए कि कल की यात्रा के समय कोयम्बटूर का नक्शा ले कर आना ताकि हम समझ सके कि हम किस जगह है और किन सडकों से गुजर रहे है | आखिरकार वह समझ गया कि शायद हम नक़्शे की बात कर रहे हैं|| भाषा की इस खाई कों यूँ इशारों से पाटने के बाद तो ड्राइवर और हमारे चेहरे पर ऐसी मुस्कान थी जैसे हमने एवरेस्ट फतह कर लिया हो|
कोडिसिया ट्रेड फेयर के द्वार पर स्वागत कुछ यूँ हुआ |
अगले दिन सुबह सुबह हमें कोंडीसिया ट्रेड फेयर कॉमप्लेक्स जाना था जहां कोंफ्रेंस चल रही थी | तैयार हो कर बाहर निकले तो ड्राइवर कों बाहर मुस्कुराते हुए पाया| स्वागत करते हुए उसने गाडी का दरवाजा खोला और हम दन से उस पर सवार हो गए| यह सब कुछ खामोशी के बीच हुआ| इसमें भाषा कों कोई आदान प्रदान नहीं था| आगे दो चौराहे पार करने के बाद उसने आवाज निकाली और इशारा किया और एक कागज हमारी और बड़ा दिया| हमने कहा “ मेप ? नक्शा ? ” ? वह बोला ? उसने हामी में उत्तर दिया| हम भी बड़ी खुशी से से मेप खोलने लगे सोचा चलो आज तो हमें सड़कों और जगह का ज्ञान हो जाएगा| लेकिन जैसे ही नक्शा खुला हम माथा पीटते रह गए| पूरे के पूरे मेप में तेलगु भाषा थी और हमारे समझने लायक कुछ भी नहीं था | क्या यह हिन्दुस्तान था? हाँ यह हिन्दुस्तान का दूसरा चेहरा था जहां हिंदी का कोई अस्तित्व ही नहीं था| क्यों हिंदी कों बढ़ावा नहीं मिला और क्यों कई राज्यों में हिंदी कों नजरअंदाज किया गया| |
nice presentaion beautiful photos .ख़ामोशी में आपकी सम्बंधित रचना बहुत पसंद आई .हिन्दी दिवस की शुभकामनायें . .औलाद की कुर्बानियां न यूँ दी गयी होती
ReplyDeletenutan ji aapka yah sansmaran bada hi rochak laga
ReplyDeleteकोयम्बत्तूर में मिला नक़्शा शायद तमिळ में रहा होगा, तेलुगु में नहीं। सभी अहिन्दीभाषी हिन्दी जानें, यह अपेक्षा रखने के बजाय यदि कुछ हिन्दी भाषी भी अन्य भारतीय भाषायें सीखने लगें तो सम्वाद आसान हो जायेगा।
ReplyDelete1997-98 हमें भी कोयम्बटूर जाने का मौका मिला.
ReplyDeleteबच्चे भी साथ थे.उन्होंने 'हिंदी-मलयालम' और
'हिंदी-तमिल' सीखाने वाली पुस्तकें ली हुई थीं.
कुछ कुछ शब्दों -वाक्यों को उन्होंने सीख लिया था.
बड़ा अच्छा दुभाषिये का काम किया.उन्होंने
वहाँ बहुत से तमिल-मलयालम आदि के शब्द जाने
और हिंदी के शब्दों का ज्ञान भी कराया.
तब से यही समझ आया कि जहाँ भी जाओ तो
हिंदी और उस प्रदेश की भाषा सीखाने वाली पुस्तक
भी अवश्य साथ हो.
आपकी प्रस्तुति बहुत ही रोचक और जानकारीपूर्ण लगी.
डॉ गैरोला जी का मूक बघिर का रोल तो सचमुच बहुत
ही दिलचस्प और हँसानेवाला रहा होगा,
सभी फोटो लाजबाब हैं.
आभार नूतन जी.
मेरी टिपण्णी कहाँ है नूतन जी?
ReplyDeleteक्या स्पैम की शोभा बढ़ा रही है अभी?
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteआभार !