मेरी हदों को पार कर
मत आना तुम यहाँ
मुझमे छिपे हैं शूल और
विषदंश भी जहाँ |
फूल है तो खुश्बू मिलेगी
तोड़ने के ख्वाब न रखना|
सीमा का गर उलंघन होगा
कांटो की चुभन मिलेगी …
सुनिश्चित है मेरी हद
मैं नहीं
मकरंद मीठा शहद ..
हलाहल हूँ मेरा पान न करना |
याद रखना
मर्यादाओं का उलंघन न करना ||
********* “शहद” शीर्षक के नीचे लिखी गयी मेरी कविताओं के संकलन से एक कविता********** डॉ नूतन गैरोला |
सशक्त रचना
ReplyDeletetoo good .i have given your post link on BHARTIY NARI
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteलगता है देवी दुर्गा अपना
साक्षात काली रूप प्रकट कर
असुरों को ललकार रही हो.
मन सशक्त हो, तन सह लेगा..
ReplyDeleteसुनिश्चित है मेरी हद ..bahut khoob..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया....
ReplyDeleteअनु
एक दम ऐसा हो होना चाहिये ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (01-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत सही! हर एक को अपने लिए एक दायरा बनाने की छूट है कि उसमें कोई बिना अनुमति प्रवेश न कर सके.
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteबहुत अच्छी उत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteयह शक्ति अक्षय रहे ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
बहुत सुंदर। मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteप्रभावी .... हद को पार न करना ...
ReplyDeleteनारी कभी भी अबला नहीं है ... भावमय प्रस्तुति ...
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From India