एक हल्की छुवन जैसे किसी ने मयूरपंख से छु कर प्रेम के अनजान सुप्त समुन्दर में लहरों को जगा दिया हो … . . अनुभूतियां तरंगित हुवी लाज से वह सिमट गयी … माथे पे बूंदें शबनम सी घबरा के निखर गयी … गालों पे सुर्ख गुलाब शरमा के उभर आये .. चितचोर की झलक पे पलकें झुकी जब उठ न पाए … कहने को तो जाने क्या कुछ बहुत न था आवाज बंद थी होंठ लरजाये… अंग अंग बोझिल हुआ मदभरा शुरूर छाये ….. . . यह पहला स्पर्श था सावन का.. बूंदों की रिमझिम पर छुईमुई सी वह लजा जाए |… .... . . डॉ नूतन गैरोला .. ८/१/२०१२,,, ८:१६ सुबह …….मेरी नीजि खींची तस्वीर … घर के आंगन में छुईमुई पे जब फूल खिला तो मैं तस्वीर लिए बिना न रह सकी .. तस्वीर भी आज ही की खींची हुई … |
वाह.................
ReplyDeleteफूल से कोमल विचार.....
बहुत सुन्दर नूतन जी...
अनु
छुईमुई को छूते ही भीतर कितना कुछ घट गया...बहुत सुंदर भाव और चित्र भी,आपका आंगन बहुत मोहक है !
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत भाव और तस्वीर भी
ReplyDeleteभावमय करती प्रस्तुति ...
ReplyDeleteसुन्दर रचना.....
ReplyDeleteवाह, कोमल रचना..
ReplyDeleteयह पहला स्पर्श था सावन का..
ReplyDeleteबूंदों की रिमझिम पर
छुईमुई सी वह लजा जाए,,,,,
बहुत बढ़िया नूतन जी,,,,बधाई,,,
रक्षाबँधन की हार्दिक शुभकामनाए,,,
RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteश्रावणी पर्व और रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteश्रावणी पर्व और रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाएँ!