आ
तेरी पलकों पर रख दूँ एक बोसा
मेरे सकून
कि तुझे मखमली नींद का अर्श दे दूँ |
होना मत उदास
न तन्हा है तू कभी |
देख!
तुझे पलकों पर लिए फिरती हूँ सदा
कि ख्वाब से रहे हो तुम
कि मूर्त कर दूँ मैं तुम्हें
कि मैं दौड़ते क़दमों को कभी रोक लूँ ज़रा
कि फुर्सत के चंद पलों में
एक अदद छाँव में
तुझे उतार लूँ कांधो से
और
झूल लूँ तेरी नरम बाहों में
कि पत्ता पत्ता ओंस से नहा लूँ
और रात की झील में
हमारे प्यार की सरगोशियाँ
लहरों पर
न लौट कर जाने के लिए
बस डूबती रहे उभरती रहें
एक सच की तरह
बुलबुले की मानिंद
जो हर बारिश में
पानी की सतहों पर
बनते रहे और बनते ही रहे | ….. ….
पर न कभी मिली फुर्सत
न ही कोई छाँव
और न ठहरी मैं कभी
रात की झील पर |
और न साहिलों पर उतरे तुम
ख्वाबों की कश्ती से
इच्छा की पतवार लिए
प्यार की मौज पर|
फिर नींद उदास आँखों से लौट लौट जाती रही
न ठहरी वो कभी
तेरी आँखों में
न मेरी आँखों में…….
हर रोज ख्वाब रात के दुसाले को उतार
दिन के उजालों में खोता रहा
बस खोता रहा ………
और मैं चलती रही
सिर्फ चलती रही
धुंध से भरी
अनजान मंजिलों की ओर
बढ़ती रही, बढ़ती रही …..................................... नूतन १७ / ०५ /२०१३
वाह....
ReplyDeleteपलकों पर बोसा...और मखमली नींद...
बहुत सुन्दर!!!
अनु
बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteman ko chhooti huyee rchna.
ReplyDeleteek atript trsha liye huye.
स्तब्ध हूँ .. सच कहूं तो जज्बातों के सागर में डूबकर रचा गया काव्य है ये ...
ReplyDeleteअपने पथ को पहचानूँ मैं,
ReplyDeleteबीत गया जीवन यह सारा।
Awesome!!
ReplyDeleteरूह को साथ लिए चलती है ये नज़म ...
ReplyDeleteबाखूबी शब्दों का ताना बाना उन है जो कहीं बहा ले जाता है ...
धुंध से भरी
ReplyDeleteअनजान मंजिलों की ओर
बढ़ती रही, बढ़ती रही …..............
..सच कहा आपने धुंध भरी राहों में अनजान मंजिल को तलाशना बहुत कठिन है .....कभी एक जिंदगी भी कम लगती हैं इसके लिए ..
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति ...