Monday, June 3, 2013

तेरा मेरा होना - डॉ नूतन गैरोला



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तेरा मेरा होना
जैसे न होना एक सदी का
वक्त के परतों के भीतर
एक इतिहास दबा सा |
जैसे पत्थरों के बर्तनों मे
अधपका हुआ सा खाना
और गुफा मे एक चूल्हा
और चूल्हे में आग का होना |
तेरा मेरा होना
जैसे खंडहर की सिलाब में
बीती बारिश का रिमझिम होना
और दीवारों की नक्काशियों में
मुस्कुराते हुए चेहरों का होना|

........................................
तेरा मेरा होना
जैसे कोयले का आग के पीछे
हरेभरे बरगद का होना
और एक सकुन भरी शीतल छाया में
कुछ पल तेरा मेरा होना ...
तेरा मेरा होना
समय रेखा के दूसरे छोर के पर 
जैसे धरती के सीने से

प्रस्फुटित होने वाले बीज के भीतर
अंकुरित नवकोपल में
एक पीपल का होना|

...............................
तेरा होना होगा
कि जैसे बारिश का होना,

एक अरसे सूखे के बाद

और

धरती का सोंधी खुश्बू से

भीग भीग तर हो जाना|

तेरा मेरा होना
कि जैसे हो महकती हुई बासमती,

किसी भूख से भरी लंबी दोपहर के बाद

और तृप्त हो जाना |
कि जैसे एक सूखी सुराही में
भर दिया हो पानी
महकने लगे सुराही माटी की
पानी का

शीतल मीठा हो जाना|

तेरा मेरा होना है
कि जैसे जन्मों की प्यास

बुझाने का संकल्प

अमृत और क्षुधा का|

......................................

तेरा मेरा होना,

जैसे होना रहा हो
सूत्रधार प्राचीनतम इतिहास का
कि जैसे दो रूहों से संस्कृतियों का उदय होना

और दो रूहों का होना विलय जीवन में|

औरयह होना जैसे आज इस तारीख में

स्पंदन हो जीवन का
जिससे धडक रहा है

दिल माटी की देह के भीतर |
और तेरा भविष्य के आँचल में खोना

होगा मेरा, तेरे इतिहास में होना|

.........................................

तेरा मेरा होना

एक अकाट्य सत्य का होना

जैसे सूरज को

चाँद का, रात के घूंघट मे

शीतलता से भर देना|

और सुबह सवेरे सूरज का

रात के ठन्डे चाँद को

अपनी गुनगुनी नीली बाँहों के

आगोश में

छुपा कर भर लेना|

और चाँद सूरज कहते हैं

तुम हो, मैं हूँ और है वही तथस्ट आसमान

तभी लिखती है माटी कि
पूर्वार्ध मे भी तेरा होंना था,

उत्तरार्ध में भी तेरा होना है
जैसे आदि भी तुम थे, अनादी भी तुम्ही हो

और रहोगे तुम्ही सदा
तुम मेरे आगे और मैं तुम्हारे आगे
तुम मेरे पीछे और मैं तुम्हारे पीछे

इस ब्रह्मांड की परिधि में
एक दूजे की परछाई से
जन्मों से जन्मों तक
इस मिट्टी को जीवन देते
कतरा कतरा रूह बन कर|
तेरा मेरा होना
होगा शास्वत निरंतर
सृष्टि से सृष्टि तक
पुनश्च पुनश्च क्रमशः |

……………………………………………….. ~nutan~


9 comments:

  1. अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.

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  2. तेरे-मेरे होने के एहसास से फूटता दिव्य व अविरल प्रवाह .... निर्मल गंगा की निश्चल लहरें.... अद्भुत आनंद की छलकती बूँदें ....कतरा-कतरा बनती कविता ............

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  3. बेहतरीन रचना.

    रामराम.

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  4. अद्भुत पंक्तियाँ, मन के अनमोल उद्गारों को स्थान देती कविता।

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  5. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ४ /६/१३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आप का वहां हार्दिक स्वागत है ।

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  6. बहुत सुन्दर उदगार

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  7. तेरा मेरा जब एकाकार होते है तो जिंदगी सहज हो उठती है ..
    बहुत सुन्दर भाव

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  8. waah! prem ka amritras...bahut khoob:-)

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  9. भावपूर्ण प्रस्तुति.

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