Saturday, January 15, 2022

Omicron -


Omicron - B.1.1. 529 



Omicron .. the superfast cosmopolite .. Other than air it needs Human body to travel ( to spread ) and to survive ..


It's escaping our immunity, so one is vaccinated or not, can be infected. Though outcome or prognosis depends on his/ her health and immunization status.

Hence we should not provide our body to the virus
by
-maintaining proper social distancing,
-keeping double mask covering nose and mouth,
-hand wasing with soap and water,
-avoid gatherings,
- keeping in mind fomites and air borne problems and so all other hygienic and sanitization procedure.

Good sleep,
fresh nutritious meal,
proper hydration,
positive n happy thoughts,
daily exercises ( not too strenuous )
healthy life style and
habits will surely improve our health and immunity status..

We have forgotten all the safety measures and have become careless.
Plz help in breaking the chain of Omicron or Covid spread .. we'll also be safe from other contagious disease....

And don't be careless for other illness/ diseases Treat them too.

Be Happy,Healthy And Be Safe.

Dr Nutan Gairola

Color Imagination of Omicron and drawn by me.




Dr Nutan Gairola - after a long gape I am in my blog .. happy writing ..

ब्लॉग मे लंबे समय बाद ॥ उम्मीद कि इस महामारी के बुरे व्यक्त सब सुरक्षित रह पाएं ॥ 💕



Tuesday, March 15, 2016

आधी रात के सपने सुबह आना...कहते हैं कि सुबह के सपने सच होते हैं .. और आधी रात के सपने भूले जाते हैं|
पर आज याद है कि बैंगनी रात के धुंधलके में
वह सपना एक दरवाजे के आगे जा कर खड़ा हो गया था ..... वह लकड़ी के पुराने दरवाजे के कांच से भीतर झाँकने की कोशिश कर रहा था ... पर दरवाजे के कांच पर भीतर से अखबार चिपका दिया गया था ताकि कोई कांच से टुकुरटुकुर अन्दर न झांके.... उसे पता था भीतर वही लड़की होगी जिसने चटख गुलाबी काली स्कर्ट पहनी है और रात को अपने गेसुवों को ढीला कर कन्धों के ऊपर खुला छोड़ दिया होगा कि जो कमर के नीचे तक झक्क लहराते होंगे| लड़की बालों के लच्छों के बीच घुमावदार छल्लों पर उंगलियाँ घुमाते हुए ध्यानमग्न जरूर कुछ याद कर रही होगी और याद करते करते उसकी आँखे बोझिल हो आई होंगी ... 
वह दरवाजे से झांकना चाहता है शायद कोई सुराख हो दरवाजे पर, किन्तु दरवाजे की फट्टियों के बीच सुराखों पर दीमक ने घर बना लिए हैं पर सपने को अपनी आँखों से बहुत प्यार है| वह यूं ही दरवाजे से अपनी सपनीली आँखें नहीं सटायेगा| वह जर्जर दरवाजे को जोर से भी नहीं हिलायेगा कि भीतर लेटी वह लड़की जाग न जाए जिसकी चमकीली आँखें अभी अभी नींद में डूबी हैं. उसके पास सोने का खूब वक्त भी नहीं तभी तो उसकी राते किताबों में गुजरती हैं .. किताब की पंक्तिया उसने लाल हरे पीले गुलाबी साइन पेन से रंगी हैं जिन रंगों की पंक्तियों को वह घड़ी की सुई के हिसाब से चुनती और पढ़ती हैं.. लड़की बेतरतीबी से बिस्तर और पास की मेज पर फैली मोटी मोटी किताबों के ढेर के बीच सोयी है और अभी पंक्तियों के बीच के रिक्त स्थान पर उसकी आँखें चकराने लगी थी और वह किताब अभी पढ़ते पढ़ते सर्रर से उसके हाथों से फिसली है, नींद ने उसकी आँखों पर जादू किया है....लड़की ने आज अपनी पसंदीदा गाड़े गुलाबी और काले चौखट खानों वाली फ्रॉक पहनी है..... उधर एक खोपड़ी का कंकाल उसके बिस्तर पर पड़ा है जिसने जाने क्या क्या सपने देखे होंगे और जाने क्या क्या सोचा होगा जबकि वह एक जीवन था एक हंसता बोलता चेहरा था और वहीँ एक जांघ की हड्डी भी पड़ी थी कोने पर, मनुष्य देह की इस सबसे लम्बी हड्डी ने कितनी पद यात्राएं की होंगी अब बिस्तर पर जाने किन रास्तों से गुजर कर आई होगी .... अब एक बॉन बॉक्स ही तो उन हड्डियों की रक्षा करता हैं जैसे उनकी देह अब बॉन बॉक्स हो....और अनोटॉमी पढ़ते हुए लड़की उन्हें एक एक कर निकालती है और ग्रेस अनाटोमी की इत्ती भार वाली किताब से पढ़ते हुए समझती है कि ये हड्डी जरूर किसी पुरुष की रही होगी .. ... लड़की कभी नहीं डरी उनके बीच पढ़ते पढ़ते लेटते पढ़ते हुए..... 
हां! फर्स्ट यीयर में एक बड़े हॉल में ६ लड़कियों को जब कमरा दिया गया था तो एक लम्बे अवकाश में सभी पांच लडकिया अपने अपनी घरों को चली गयीं थी और वह बड़ा सा हॉस्टल खाली हो गया था तब पहाड़ की यह लड़की जिसका घर उत्तर के छोर पर कई पहाड़ों के पीछे था जहाँ जाने का मतलब दो दिन और रात का सफ़र, उतना ही आने में वक्त और अतिरिक्त खर्चा.. लड़की ने कॉपी किताब खरीदने के लिए पैसे बचाए थे, मेडिकल की किताब महंगी थी न, सो. बेशक उसे घर की भी बहुत याद आती थी | पर हाँ! उस रात बहुत तेज आंधी चली थी बिजलियाँ चमकी और बादल के बहुत तेज गर्जन से तो वह पहले ही डरती थी. माँ से चिपक जाया करती थी... पर इधर तो तीन मंजिला ढाई सौ कमरों वाला वह हॉस्टल जो उसके लिए नया नया था पर था पुराना जिसके दरवाजे की चिटखनियाँ हिलते टूटते हुए दांतों की तरह लटक रही थी एक दम खाली हॉस्टल में वह लड़की अकेली थी... फिर बिजली भी चली गयी.... अचानक उसे यों ही ख्याल आया कि मैं अकेले नहीं... साथ में छः बॉन बॉक्स में छः कंकाल भी हैं और खुद ही उसने यों भी सोच लिया कि माना छहों उठ पड़े तो........ खैर डर कर उसने दरवाजा खोला तो बाहर कोरिडोर में गर्जना तर्जना के साथ तूफ़ान और अँधेरे का साम्राज्य व्याप्त था... फिर वह हँस पड़ी इससे अच्छा तो भीतर ही है... हम खुद की सोच से क्यूँ कमजोर पड़ जाते हैं, यह सोच कर वह कमरे में लौट आई और अलमारी खोल कर मोमबत्ती जलाई और उधर नट्स वाली चोकलेट पड़ी थी ... उसे धीरे धीरे काटते और मुंह में गलाते हुए उसके स्वाद लेते हुए चुपचाप लेट गयी थी.. रात बीत गयी थी वह..... फिर सेकेण्ड यीयर में उसका कमरा बदल गया था, उसे १५ नंबर अलोट हुआ था| कुछ छोटा था पर उसका बोनबोक्स और किताबे उस कमरे में शिफ्ट हो गए थे| और जारी रही दौड़ भाग और पढ़ाई पढ़ाई और पढ़ाई........ दो घंटे की नींद बमुश्किल से और कभी कभी पंद्रह तो कभी १० मिनट... ऐसे में किताबे अचानक की नींद में हाथों से टपक जाया करती ..
आज उसके सपने विचर रहे है वह जान नहीं पा रही थी कि ये सपना किधर जा रहा है अतीत के गलियों में तो नहीं कि उधर जाता तो पहचाने रास्ते लोग दीखते...........
पर हाँ वह भविष्य में आ खडी हुई है जहाँ बंद दरवाजे के इस ओर ये वर्तमान है जिसके उस पार कमरे में वह लड़की अतीत से होते हुए भविष्य की ओर जाती है .......... दरवाजे के ऊपर धुंधला सा पड़
चुका है १५ नंबर.......
१५ नंबर मिस साहब - भाग १०१



Monday, May 18, 2015

चौराहे का घर

स्त्री उठाती है अपनी डुगडूगी अपनी बोरी अपना डम्फरा
मुड कर देखती है फिर से सड़क के उस कोने
जहां नट ने बिछाए हैं सात नौटंकी के साजोसामान
अभी सड़क पर मज़मा लगना बाकी है
वह बुलाता नहीं रहा है पर स्त्री के पलट आने का कर रहा है इन्तजार.....
जम्बुरा भयातुर आँखों को उठा 

इनकार कर रोकना चाहता है नटनी को
पर शब्द मौन हैं और गुनाह के बोझ से पलकें झुकी है
प्रेम कभी कभी कितना कातर होता है एकतरफ़ा होता है
न जम्बुरे ने पुकारा है न नट ने ....
नटनी आज चुपचाप बड़ी चलती है आगे ...
आज उसके पाँव रस्सी पर नहीं कि आसमान पर संतुलन बना सके बिना पाँखो के
वह उन राहों में खड़ी है जहां से रास्ते निकलते है पर लौट कर नहीं आते हैं कभी
प्रलाप करता है रुक रुक कर उसका विद्रोही मन
बुदबुदाता है किसी कोने पर कि

कहो तो छोड़ देती हूँ अपने इन साजो सामान को
तुम्हारे बुरे वक्त के लिए
कभी हाथ तुम्हारे भी खाली न रह जाएँ मेरी तरह
क्या पता तुम थाम सकों कुछेक पलों को इनके बहाने
कि कभी कोई खुशगवार याद इनसे उठ कर तुम्हारे सिरहाने आ सके
क्या पता कभी लौट कर मैं ही आ सकूं इनके बहाने
अभी कही दबी कुचली अधमरी हैं उम्मीदों में साँसें बाकी है .

बोल जम्बुरे तेरी नटनी कहाँ
जब भी नट पूछे तुझसे
कह देना तू उस नट से
स्त्री चौराहों में भी घर बना देती है
कि वो प्रेम की दीवानी होती है
पर चौराहे स्त्री को आहत करते है
खेल तमाशा समझते है
स्त्री चाहती है अपना घर
जिसकी दीवारे अपने प्रेम के रंग से रंग सके ............... अनर्गल आलाप

Tuesday, April 7, 2015

प्रिय ब्लॉग मित्रों,
                         मेरी हाल ही में अनुनाद  ब्लॉग में प्रकाशित कवितायें ... आपकी नजर ...... सादर

डॉ नूतन गैरोला की कवितायें

Tuesday, November 25, 2014

आपका साथ साथ फूलों का में

मेरे प्रिय ब्लॉग मित्रों!!
                          मेरी कुछ कवितायें ब्लॉग आपका साथ साथ फूलों का में पढने को मिलेंगी ...
आप उन्हें इस लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते है ......

 डॉ नूतन गैरोला की कवितायें : आपका साथ साथ फूलों का

स्नेह और आदर के साथ ..मित्रों को शुभकामनाएं 

Thursday, November 13, 2014

छत्तीसगढ़ में नसबंदी केम्प - एक नजरिया


छत्तीसगढ़ में नसबंदी केम्प . एक नजरिया
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 बहुत शर्मनाक ढंग से छत्तीसगढ़ का नाम आज सुर्ख़ियों में है ... यह होना ही था कहीं न कहीं, कभी न कभी ... और यह स्तिथि देश के किसी भी कोने में हो सकती है ... महिलायें कोई गाजर मूली नहीं कि पेट में चाक मारा और औजार अन्दर .. आखिरकार एक ओपरेटिव प्रोसीजर है यह ... जिसके लिए औजारों का प्रॉपर स्टर्लाइजेशन ही नहीं मरीजों का सही चयन भी जरूरी है जो इस तरह के ऑपरेशन को बर्दास्त कर सके और सही परिणाम भी हासिल हों मतलब कि अपने मकसद में सफल ऑपरेशन हों जिसमें नसबंदी हो जाने के साथ साथ महिला का स्वास्थ भी दुरुस्त रहे ... किन्तु बड़े बड़े टार्गेट और वह भी केम्पों में .. भेड़ बकरी की तरह महिलायें लायी जाती हैं ... और बहुदा ओपरेशन थियेटर से बाहर कभी किसी प्राइमरी स्कूल के कमरे में तो कभी कहीं भी उपलब्ध जगहों ने केम्प लगा दिया जाता है ... और बाहर भीड़ अपने नम्बरों की इंतजारी में .... नसबंदी केम्प में मरीजों के ओपरेशन के लिए संख्याएं लिमिटेड की जानी चाहएं ... ताकि चिकित्सक पर कोई अतिरिक्त दबाव न हो ...
                                            केम्प के बाहर का परिदृश्य अलग ही होता है, किसी मज़मा मेला जैसा ... आशाएं (संपर्क कार्यकर्ता ) अपने अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए कभी कभी क्वालिटी बेस मरीज नहीं क्वानटीटी बेस मरीज / महिलायें ले आती है .... मतलब की जो महिलायें फर्टिलिटी के दायरे बाहर है उन्हें भी लाया जाता है क्यूंकि उनके ऊपर अधिक से अधिक केस लाने का भी दबाव होता है कि केम्प लग रहा है तुम लोग लक्ष्यों को पूरा करेंगी ( उनको कभी कभी बात करते सुनते है तो वे कह रही होती हैं कहाँ से लाये सबका तो ओपरेशन हो गया है अब जिनकी शादी अभी हुई है जिनको बच्चे चाहिए उन्हें तो नहीं लाया जा सकता है ) फिर प्रोत्साहन राशि अलग बात है जरूरी नहीं कि इसका प्रलोभन हो ... तब सभी आशाकार्यकर्ता, हेल्थ विसिटर यहाँ तक की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सब ध्येय की पूर्ती में लग जाते है .. और प्रत्येक केस पर उन्हें एक धनराशी भी दी जाती है ... महिला के केस के लिए जहाँ लगभग १५०रु ? प्रत्येक केस वहीँ पुरुष नसबंदी के लिए ३५०रु ? प्रत्येक केश ... फिर ३ केस एक ही आशा के होने पर उसे अतिरिक्त मान देय होता है और जनसंख्या नियंत्रण पखवाड़ों पर ५ केस पर भी अतिरिक्त राशि मिलती है ...
                                            .हां! पर यह भी सत्य है कि पुरुष नसबंदी के लिए आगे नहीं आते ...जबकि उनका ऑपरेशन सुपरफिसियल स्किन पंक्चर जैसा है और पेट या आँतों के ऊपर से हो कर कोई औजार नहीं गुजरता .. फिर भी सामाजिक मान्यताओं के चलते और कुछ अदद अंधविश्वास के चलते कि पुरुष की पौरुषता चली जायेगी या पुरुष नामर्द हो जाएगा या कमजोर पड़ जाएगा, पुरुष तो पुरुष महिलायें भी अपने पति को ओपरेशन के लिए आगे नहीं करती| घर की माएं भी कहती हैं की अरे हमारा लल्ला / बेटा भारी काम करता है, ओपरेशन तो उसका नहीं कराना हमें .. मतलब औरत रह जाती है ओपरेशन के लिएचाहे वह बीमार हो या कमजोर .. और नहीं करवाएगी तो कितने बच्चों को जन्म देगी या फिर बार बार के गर्भपात ..या फिर दवाइयां खा कर दवाइयों के साइड इफेक्ट को झेलो या कभी दवा खाने में भूल हुई तो विड्रोल ब्लीडिंग का शिकार या फिर अनचाहा गर्भ ......... ऐसे ही इंट्रायूटेराइन कोंट्रासेप्टिव डिवाइस की भी अपनी एक क्षमता है और मरीज का अक्सेपटेंस भी जरूरी है ......... तो वह महिला ही है जिसे हार थक कर ओपरेशन करवाने आना पड़ता है ..... तिस पर गाँवों में महिला रक्ताल्पता का शिकार ( anemia , बच्चेदानी की, ट्यूब की सूजन ( PID, Salpingitis, Fibroid आदि से ग्रस्त भी होती है तो कब ख्याल किया जाता है .. उनका BP सुगर लेवल कैसा है यह भी कौन देख रहा .. घर गाँव के काम से समय निकाल आशा दीदी के साथ चल देती है ऐसे जैसे कोई मेटिनी शो देखने जा रही हों ... इसके लिए उनकी पहले ही जांच हो जानी चाहिए घरों में या ओपरेशन से पहले एक दो माह से अस्पताल में उनका पूरा चेकअप ... किन्तु आज कल नीतियों ने इसे इतना सरल दिखाया है कि लगता है मानो सच में यह ओपरेशन न हुआ कोई इंजेक्शन लगाना हुआ|
                                      यह एक बहुत दुखद स्तिथि है कि सरकार जिस चिकित्सक को उसके त्वरित सेवा के लिए सम्मानित करती है अगले ही साल उसके सधे तेज हाथों से इतने सारी महिलायें कालकल्पित हुई ... अगर एक चिकित्सक की तरह सोचूं और  गहरे इन तथ्यों को खंगालूं  .... तो  यही साफ़ दृष्टिगत होता है कि किसी भी औजार को पूरी तरह से स्टरिलाइज होने में कम से कम आधा घंटा लगता है और यहाँ दो ओपरेशन के बीच आधा घंटे का स्पेस देना मतलब एक बहुत बड़ी मुसीबत को बुलावा देना होगा ... अक्सर यह देखा गया है कि किसी के ओपरेशन में देर हो रही हो या किसी को मना किया जा रहा हो तो केम्प में हंगामा खडा हो जाता है ... चिकित्सक के ऊपर शासन का ही दबाव नहीं होता बल्कि महिला के परिवार के साथ उन्हें वहां तक लाने वालों का भी बहुत बड़ा दबाव होता है|  जहाँ तक लगता है यह किसी तरह का संक्रमण था जो शल्य के बाद महिलाओं में फैला| एक दिन में अगर कई ओपरेशन रखे जाएँ तो यह हश्र जो हुआ उसकी संभावना बनी रहती है|  और जो हुआ वह बहुत ही दुखद और हृदयविदारक है कि महिलाएं किन किन सपनों के साथ आयीं थी होंगी वे और अपना घर परिवार सब छोड़ चल दी|

 जहाँ तक मेरा मानना है  

· बंधीकरण इतिहास में वास्तव में पशुवों का किया जाता था, स्थायी तरीकों के अलावा भी हमारे पास अन्य बेहतर तरीकें हैं जिनकी जानकारी लाभार्थी को होनी चाहिए पर अगर आज के आधुनिक युग में जबकि साधन उपब्ध है, जानकारी उपलब्ध है अच्छे एंटीबायोटिक हैं ओपरेशन के लिए दूरबीन है तब भी तमाम ऐहतियात के साथ ही बंधीकरण/नसबंदी किया जाना चाहिए|

 · शासन की ओर से कार्यकर्ताओं पर कोई भी दबाव नहीं होना चाहिए| टारगेट जैसी संख्याएं नहीं होनी चाहिए| शिविर में लिमिटेड संख्या को ही एक दिन के लिए रजिस्टर करना चाहिए ताकि औजारों को ईस्टरलाइज करने का समय मिले|

· बड़ी संख्या में लाभार्थियों के आने से केम्प में अफरा तफरी सी बनी रहती है| यह बहुत ज्यादा लोगो का आना सबसे ज्यादा गड़बड़ी को फैलाता है|

 · चूँकि परिवार नियोजन केम्प में काफी तादाद में ओपरेशन होते है अतः वहां लेप्रोस्कोप और अन्य टाँके लगाने और ओपरेशन के औजार कई होने चाहिए ताकि जब शल्य क्रिया हो रही हो उस वक्त कुछ अन्य औजार और लेप्रोस्कोप स्टेरीलाईजेशन में संक्रमण विहीन हो रहें हों जो कि दुसरे तीसरे केस के लिए प्रयोग करने के लायक सही हों||

· इसके लिए प्रोत्साहन राशि अलग से न हो| महिलाओं और पुरुष को प्रोत्साहन राशि मिल जाने की ख़ुशी के लिए नहीं बल्कि स्वस्थ परिवार स्वस्थ समाज, और छोटा परिवार सुखी परिवार जैसी उनकी निजी और सामाजिक उपलब्धता के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए|

 · मुझे लगता है कि हर अस्पताल में एक अलग यूनिट होनी चाहिए जो नसबंदी के लिए आने वाले लाभार्थी को पूरी साफ़ सफाई और समय के साथ हर रोज नसबंदी के लिए आने वालों को यह सुविधा दें|

 · अगर केम्प हो तो लाभार्थी महिला पुरुष का स्वास्थ परिक्षण और परिवार नियोजन सम्बंधित काउंसलिंग नियोजित तरीके से पहले ही होनी चाहिए|

----------------------  इसके लिए चिकित्सकों को इधर से उधर पटका जाए या उनको गुनाहगार ठहराने की बजाये शासन परिवार नियोजन शिविर  के लिए सही नीतियों का निर्धारण करें... संख्याओं पर ही आधारित नहीं बल्कि गुणवत्ता पर ज्यादा ध्यान दें|

Wednesday, September 3, 2014

ससुराल जाती ध्याण और नंदादेवी राजजात



ससुराल जाती ध्याण और नंदादेवी राजजात यात्रा

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बेटी ... को जब ध्याण कह कर पुकारते है तो कितना, स्नेह, लगाव, सम्मान दिल में उमड़ पड़ता है कि आंसू छलछला आते हैं आँखों में ...बेटी अपनी आत्मीय, अपनी आत्मा का टुकड़ा जो रीतिरिवाजों से जुड़ी, सामाजिक दायित्व में बंधी अपने घर अपने बचपन से दूर पहाड़ की कठिन दिनचर्या में ससुराल में कैसे दिन बिताती है कि मायके के लोग उसकी विदाई में रो पड़ते हैं ..ध्याण मतलब विवाहित बेटी ... ब्याह कर दुसरे मुल्क गयी बेटी ... माँ पिता भाई बहन और गाँव वालों की ध्याण ... स्नेह का प्रतीक ... सब जानते है वह ससुराल में कितनी ही पहाड़ जैसी जिम्मेदारियों के बीच खुद का ख्याल नहीं रख पाती होगी ... जब आती है वह मायके तो उसे आराम और सबका स्नेह मिलता है ..गाँव वाले भी आदर सत्कार करते है .. भोजन पे बुलाते है अपने घरो में ... भेंट समोण देते है ... ससुराल जाती है तो जो भी हो सकता है, बेटी को देते है पकवान बनाते है उसके लिए... उसके ससुराल एक डाल्ली ( रिंगाल की टोकरी )जाती है जिसमे गुड़ से बने स्वादिष्ट रौठ, आरसे होते है | पहले सारा गाँव उसकी विदाई में रो पड़ता था और जहाँ जहाँ जहाँ से ध्याण गुजरती थी रास्ते के लोग रो पड़ते थे .... ध्याण भी तो पूरी आवाज के साथ विलाप करते थकती नहीं बल्कि बीच बीच में उसे रोते रोते चक्कर भी आते थे ..पूरी वादी में उसकी रोने की आवाज गूंजती थी लोग रोते हुए उसे आश्वासन देते थे जा बुबा नी रो ..फिर बुलायेंगे तुझे तू फिर आएगी .... कितना कठिन था उस वक्त पहाड़ का जीवन बर्फीले पहाड़ों में आग पानी की व्यवस्था करती ससुराल में बेटी लकड़ी काटती, जंगल जाती, गाय भेंस की देखभाल, खेतो का काम, घर का काम, सबकी देखभाल करती हुई और खुद को भूली जाती थी ..बस तभी तो पहाड़ के गीतों में बेटी का अपने घर माँ पिता और गाँव को याद करने का दर्द बसा है, हालांकि आज विकास के दौर में बिजली, रसोई गेस, मोटर व् सड़कें, मॊबाइल आदि ने इन कठिनाइयों और दूरियों को कम किया है .... पहाड़ में नंदा देवी जो ध्याण है पहाड़ की, हर बारह साल में आज भी उस बेटी का मायके आना और उसके साथ दूर तक उसे ससुराल भेजने जाना, और बरबस ही सबका बेटी बहन नंदा को विदा करते हुए रो पड़ना ... बेटी के लिए प्रेम का प्रतीक और बेटी से की प्रतिज्ञा का निर्वहन है, नंदादेवी राजजात पहाड़ की परम्परा है, रिश्तों में आस्था का द्योतक है ... आज जहां समाज में महिला का जीवन कोख से ले कर कफ़न तक असुरक्षित लग रहा है वहां रिश्तों में आस्था, स्नेह और सम्मान की यह यात्रा निसंदेह समाज को एक महिला के प्रति सकारात्मक सोच का सन्देश देगी| ................ यही नहीं इस यात्रा के मार्ग पर गाँव के लोग आज भी अथिति देवो भवः की तर्ज पर यात्रियों की सेवा करते दिखते है.. ३० अगस्त को बस्ती को छोड़ आखिरी गाँव वाण जो कि आखिरी ग्रामीण पड़ाव है वहां से यात्रा सूदूर दुर्गम चढ़ाइयों में निर्जन पहाड़ियों से गुजरते हुए कल कठिनतम मार्ग ज्यूँरा गली को पार कर गयी ... आज होमकुंड में पूजा अर्चना कर नंदा को इस यात्रा की अंतिम विदाई दे कर श्रद्धालु और यात्रीगण वापसी की ओर कूच कर जायेंगे ...| यात्रा की सफलता और यात्रियों के खुशहाली के लिए जागर की ये पंक्तियाँ



सुफल ह्वेजाया नंदा तुमारी

जातरा तुमारा नौ कू आज कारजे उरायो.....

धन्य उत्तराखंड म्यरो

धन्य गढ कुमाऊं देश

धन्य देव भूमि म्येरी

धन्य मातृ भूमि म्येरी

धन्य धन्य होया आज सो नन्दा घुंघुटी ............... डॉ नूतन डिमरी गैरोला

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