जीती रही जन्म जन्म, पुनश्च- मरती रही, मर मर जीती रही पुनः, चलता रहा सृष्टिक्रम, अंतविहीन पुनरावृत्ति क्रमशः ~~~और यही मेरी कहानी Nutan
Thursday, December 15, 2011
Sunday, December 4, 2011
तुम मेरे सच्चे साथी हो --
तुम बिना कोई शिकायत के चुपचाप मेरे पास बरसों से आ कर बैठ जाते हो .. मेरे अन्तरंग समय में मुझसे बहुत बतियाते हो तुम मेरे सच्चे साथी हो | भावनाओं के हर भंवर में लहरों के उतार चढाव संग मेरे सुख दुःख के साथ ही तुम भी बहे जाते हो| तुम मेरे सच्चे साथी हो| छोड़ गए जो तन्हा मुझको दुःख भरे मेरे तन्हा पल में मन की ताकत बन जाते हो तुम तुम मेरे सच्चे साथी हो | कागज़ की श्वेत चादर पर सफर में संग उड़े जाते हो आंशुवो को नीलिमा में ढाल भावनाओं के महल बनाते हो .. तुम मेरे सच्चे साथी हो| जो बात किसी से कह ना पाऊं वो तुम समझ ही जाते हो मुझे छोड़ गया निर्मोही बन उसका तुम विद्रोही मेरा साथ निभा जाते हो तुम मेरे सच्चे साथी हो .. सेवा में – “ मेरी कलम “ ४-१२-२०११ १५ :५१ |
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