बसंत की पूर्वसंध्या पर जब मौसम फिर कडाके की ठण्ड का दुबारा उद्घोष करने लगा| बहुत तेज ठंडी हवाओं ने, बादलों ने घुमड़ घुमड़ कर काला घना रूप ले लिया और दामिनी उस अंधियारी रात को अट्टहास करती अपने तीखी दन्त पंक्तियों को रात के अन्धकार में कड़क कड़क कर चमकाने लगी| आकाश से गिरती तेज बारिश ने रात के स्याह आँचल को बर्फीला बना दिया | बसंत के आगमन पर सर्दी का ये भयंकर लगने वाला तांडव नृत्य दिल को कंपा गया | तब गिरती बूंदों के साथ विचारों के कुछ बुलबुले मनमस्तिष्क पर उभरने लगे कि क्यों ये बसंत देर कर रहा है आने में - और तब लिखीं कुछ पंक्तियाँ |
ये पतझड़ भी कैसा था अबके बहुत लंबा और शीत ? घनी गहरी बरफ में हर फूल दबे मुरझाये| बसंत! तुमने क्यों कर न देखा मिट्टी में घुटते वो नन्हें बीज अंकुरित होने को जो थे व्याकुल | जिन्हें खा गयी मौन हिमशिला सर्द| और उस शीत का प्रेम देखो पुनः पुनः वापस आया| ज्यूं नवयोवना की प्रीति में हो उसका सुकुमार मर्द | विडंबना तुम आये पर आये देर से आये| क्या खिल सकेगा वो अंकुर इन्तजारी में जो दफ़न हुवा भूमि के अंदर एक अथाह भारी हिमखंड से कुचला मृत प्रायः | अबके बसंत में क्या वो पतझड का मुरझाया फूल फिर खिलेगा, खिलेगा तो अबकी खूब लड़ेगा कि बसंत तुम देर से क्यों आये ? डॉ नूतन गैरोला - ७ फरवरी २०११ २१:०३ |
sundar rachnayein!
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (12.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
दोनों रचनाएँ और फोटो बहुत सुन्दर है| धन्यवाद|
ReplyDeleteबसंत पर बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति , बधाई।
ReplyDeleteदोनों ही सुन्दर.एक का रूप सुन्दर तो दूसरी के भाव खूबसूरत.
ReplyDeleteआप की कलम को सलाम
सुन्दर प्रस्तुतियाँ, स्वागत बसन्त।
ReplyDeleteबहुत सुंदर.... कमाल की फोटोस हैं.... रचनाएँ हमेशा की तरह उम्दा....
ReplyDeletebahut shandar roop me basant ka swagat kiya hai aapne .itni sundar kavitaon ke sath .badhai .
ReplyDeleteहमारे यहां तो फ़िर से बर्फ़ गिर रही हे बसंत दुर दुर तक नही जी... बहुत सुंदर कविता, ओर अति सुंदर चित्र, धन्यवाद
ReplyDeleteडॉ.नूतन जी आपकी वासन्तिक कविता बहुत सुंदर लगी |आपको बधाई और शुभकामनायें |
ReplyDeleteडॉ. नूतन जी!
ReplyDeleteआपने तो वसन्त के साथ-साथ श्रीनगर (गढ़वाल) के मौसम का भी जीवन्त चिक्षण कर दिया अपनी रचना में!
नूतन जी! आपके शब्दों ने वसंत को भी आनंदित कर दिया होगा:)
ReplyDeleteनूतन जी! आपके शब्दों ने वसंत को भी आनंदित कर दिया होगा:)
ReplyDeleteदोनों रचनाएँ बहुत सुंदर हैं -बसंत का स्वागत है
ReplyDeleteहिम शिखर की नोंक पर
ReplyDeleteविस्फोटित होता बज्र भाला|
लिहाफों के भीतर बस्ती
ठिठुरी, सिमटी, सकुचाई|
कुछ जीव ओट की तलाश में
भटके थे उस रात भर |......
दोनों रचनाएँ सुन्दर और भावपूर्ण । बधाई।
वसंत से आपकी बतकही मन को छू गयी ! आभार !
ReplyDeleteएक-एक शब्द भावपूर्ण ..... बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteदोनों कवितायें पढ़कर और फोटो देखकर फिर से जाड़ा लगने लगा ,नूतन जी.
ReplyDeleteदोनों रचनाएँ अद्भुत ....प्रकृति का सजीव वर्णन किया है ...
ReplyDeleteप्रकृति का सजीव वर्णन किया है .
ReplyDeleteकविता और चित्रों का अदभुत सामंजस्य है. दोनो रचनाएं आनंदित कर गई.
ReplyDeleteरामराम.
बसन्त की पूर्व सन्ध्या पर- रची कविता के साथ फोटो ने इस सौन्दर्य को और अधिक बढ़ा दिया है । 'तड़ित तोडती सन्नाटा' का सुन्दर अनुप्रास अनुस्यूत है ।
ReplyDeleteरामेश्वर काम्बोज
बेहद भावमयी और खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
इस जानदार और शानदार प्रस्तुति हेतु आभार।
ReplyDeletephool ka basant se ladna laazmi hai ki wo der se kyun aai...........
ReplyDeletesunder rachna..............mann ko bhaiiiiii
एक निवेदन-
ReplyDeleteमैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।
दो कवितायें, दो तस्वीरें...एक आपकी खिचीं हुई...शानदार सब कुछ :)
ReplyDeleteबसंत पे पहली कविता पढ़ा हूँ अभी तक(ब्लोग्स में)
बहुत अच्छा लगा...
कुछ अजीब फीलिंग्स आ जाती हैं मेरे अंदर इस मौसम में...बड़ा अच्छा लगता है :)
kavitaen dono bahut achchi lagi.photo alag se khoobsurat hai.
ReplyDeleteदोनो रचनाओं मे बसन्ती फुहार भिगो गयी। तस्वीरें बहुत सुन्दर हैं बधाई हो बसंत पर्व की।
ReplyDeleteआद.डा. नूतन जी,
ReplyDeleteबसंत पर आपकी कवितायें जीवन के रंगों की वो कहानी है जो सबकी अपनी है !
शब्दों का खूबसूरत समन्वय और भावों की गहन अभिव्यक्ति कविता को आकाशीय ऊंचाई प्रदान कर रहे हैं !
साधुवाद !
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति , बधाई
ReplyDeleteदोनों रचनायें बहुत प्रभावशाली लगीं। चित्र भी मनमोहक लगाया आपने।
ReplyDeleteआ ...हा.... हमें तो चित्र देख ठण्ड लग रही है नूतन जी .....
ReplyDeleteऔर आप भी कमाल करतीं हैं
एक साथ दो दो कवितायेँ वो भी शीत लहर के प्रेम रस में डूबी ....
jai vasant...jai jai vasant.......
ReplyDeletePahli baar ayi hun aapke blog pe! Bahut prabhavit kiya!
ReplyDeleteDono rachanayen behad sundar!Razayi odhke kavita dobara padhneka man hua!
meri kavita ki sarahna karne ke liye dhanyavad.
ReplyDeleteaap ki rachna padh kar accha laga.......chitr acche hai.......
basant ki donon rachnaye bahut sundar photography ko shouk lagta hai apka badhai
ReplyDeleteदोनों रचनाओं के साथ-साथ चित्र संयोजन ...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअबके बसंत में
ReplyDeleteक्या वो पतझड का मुरझाया फूल
फिर खिलेगा,
खिलेगा तो अबकी खूब लड़ेगा कि
बसंत तुम देर से क्यों आये ?
बसंत का स्वागत करती हुई सुंदर कविताएं अच्छी लगीं।
बधाई एवं शुभकामनाएं।
अगर आपको समय मिले तो मेरे ब्लॉग http://www.sirfiraa.blogspot.com और http://www.rksirfiraa.blogspot.comपर अपने ब्लॉग का "सहयोगियों की ब्लॉग सूची" और "मेरे मित्रों के ब्लॉग" कालम में अवलोकन करें. सभी ब्लोग्गर लेखकों से विन्रम अनुरोध/सुझाव: अगर आप सभी भी अपने पंसदीदा ब्लोगों को अपने ब्लॉग पर एक कालम "सहयोगियों की ब्लॉग सूची" या "मेरे मित्रों के ब्लॉग" आदि के नाम से बनाकर दूसरों के ब्लोगों को प्रदर्शित करें तब अन्य ब्लॉग लेखक/पाठकों को इसकी जानकारी प्राप्त हो जाएगी कि-किस ब्लॉग लेखक ने अपने ब्लॉग पर क्या महत्वपूर्ण सामग्री प्रकाशित की है. इससे पाठकों की संख्या अधिक होगी और सभी ब्लॉग लेखक एक ब्लॉग परिवार के रूप में जुड़ सकेंगे. आप इस सन्दर्भ में अपने विचारों से अवगत कराने की कृपया करें. निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकार, कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" फ़ोन:9868262751, 9910350461 email: sirfiraa@gmail.com
ReplyDeletekhubsurat rachna........Badhai
ReplyDeleteनूतन जी, हमेशा की तरह शानदार रचनाएं, मन को छू जाने वाली। बधाई।
ReplyDelete---------
शिकार: कहानी और संभावनाएं।
ज्योतिर्विज्ञान: दिल बहलाने का विज्ञान।
nutan ji mai pichhle saptah bhi aayi aapke blog par aapki kavitayen padhi par koi tipnni nahi kar payi .net kafi slow ho jata hai kabhi 2 jis karan tippni ka box khul nahi pata..........kafi khed hai......... der se aane ka
ReplyDeleteaapki rachnayen kafi achhi lagi..........aabhar
bahut sundar rachna apki. really you are great writer.
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना...मन मुदित हो गया पढ़कर....
ReplyDeleteआप भी जरूर आएं...
http://veenakesur.blogspot.com/
आपकी कविता की सराहना करने के साथ साथ मुझे आपकी फोटो ग्राफी भी बेहद पसंद आयी.आप की दृष्टि कैमरे एवं कलम दोनों से बराबर देख पति है/स्वागत आपका,धन्यवाद भी /सदर
ReplyDeleteडॉ.भूपेन्द्र
dono hi sundar hai ,tasvir bhi pyaari hai .
ReplyDeleteदेर से ही सही
ReplyDeleteबसंत आया तो सही
खु्बसूरत रचनाएं
डॉ नूतन जी,
ReplyDeleteबहुत अच्छी कवितायें पढी आपके ब्लॉग पर, मुझे भी पाईयेगा उसी पतझड़ के मुरझाये फूल के साथ बसंत से शिकायत करते हुये कि तुम! देर से क्यों आये हो ?
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
कवितायन
सुंदर.!!
ReplyDeleteउम्दा..!!!
ReplyDeleteमोबाइल के कैमरे में ये सुविधा बड़े काम की है कि आप अपना मनपसंद कोई भी क्षण इसमें कैद कर सकते हैं, आपने भी बेहतर लाभ उठाया है।
ReplyDeletenamaste,
ReplyDeleteaap jese guroojano ke kadamo par chalte huye blog parivaar main kadam rakha hai , sayoug aur utsahvardhan ki asha karoongi.
krati-fourthpillar.blogspot.com
namaste,
ReplyDeleteaap jese guroojano ke kadamo par chalte huye blog parivaar main kadam rakha hai , sayoug aur utsahvardhan ki asha karoongi.
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dono rachnaye sunder lagi.........
ReplyDeleteदोनों रचनाएँ बहुत सुन्दर और भावमयी..फोटो भी बहुत सुन्दर..
ReplyDelete"शीत के बाद देर से बसंत आने का गम और फिर बसंत में ही फिर से शीत का संगम,दोनों रचनाओं की अभिव्यक्ति है नूतन."
ReplyDeleteफोटो और रचनाएँ अति सुंदर लगी .
आपका मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा 'पर आपका स्वागत है.कृपया ,बहुमूल्य वैचारिक दान कर मेरा मनोबल बढ़ाएं .
फोटो और कविता दौनों अच्छी लगीं |बधाई
ReplyDeleteआशा
वाह सुंदर
ReplyDeleteDr. Nutan Ji aapko bhi basan t ki hardik badhai
ReplyDeletesorry for late .....
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteलेकिन मन संतुष्ट नहीं है
यहाँ जिस उम्मीद से आया था वो पूरी नहीं हुयी
अगले पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी
nutan ji , basant ki shubhkaamanye , aapke chhitr to acche hi hai , lekin kavitao ne jyaada man ko choo liya ,
ReplyDeletebadhayi .
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मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
bahut acche lage dono jeevant kavita...
ReplyDeleteनीचे गीरे सूखे पत्तों पर अदब से चलना झरा |
ReplyDeleteकभी कड़ी धूप में तुमने इनसे ही पनाह माँगी थी ||