Saturday, December 7, 2013

नेल्सन मंडेला के लिए …




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वो युगक्रांति के नायक ,
चमड़ी से गहरा और रंगों से ऊपर
एक विस्तृत युगविचार ..
पृथ्वी में पृथ्वी से वो ...
वो मिट नहीं सक्ते ..
जी रहे है दुनियाँ के तमाम रंगों के साथ
और जब तक दुनियां में रंग है ..
हर रंग में वो है.......……
ओ मेलिनिन के काले भूरे कणों
तुम सदा तत्पर रहोगे
एक देह की सुरक्षा के लिए
सूरज की जलाने वाली तपिश में

मनुष्य की जरूरत के लिए,
और याद दिलाते रहोगे
कि अभी रंगभेद की आग को बुझाने वाला
एक साधू पैगाम दे गया है
मानवता का प्रेम का .…….नतमस्तक नेल्सन .... ~nutan~

Tuesday, September 10, 2013

पुरानी पाती और लाल ख्वाब


 

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कुछ पुराने पत्र

अलमारी में

गुलाबी झालर वाले

पर्स में,

दो दशक बाद भी

उस कशिश के साथ

गिडगिडाते हुए .....

 

कि देखो मैंने श्याम श्वेत

ठोस उड़ानों को

लाल ख्वाबों के जाल में

फंसने के लिए छोड़ दिया है

जबकि मैं खुद को

परिवर्तित कर रही हूँ

लाल गुलाब में ....

 

मां पिता ने बलाए ली है

कि मैं श्याम श्वेत पथ से

शिखर पर जाने वाले

मार्ग को छोड़ दूँ .....

 

महावर भरे पैरों के निशान

तेरी दहलीज पे उकेर दूँ

और अपने बचपने को त्याग

लाल चुनर की

जिम्मेदारी को ओड लूँ .......

 

ख्वाबों के सतरंगी परिंदे

उनके क़दमों पर रख दिए

मैंने स्वीकार है तुझे

अपनी इच्छाओं की ठसक को छोड़

मैं खुद को लाल रंगों में

रंगने की भरसक कोशिश में

अपने को भुलाती हुई

तेरी ओर आती हुई .......

 

अभी मेरे हाथों में मेहंदी

लगी हुई है

घर के कोनों में हल्दी भरे

हाथो के निशां

और दरवाजे से

घर के अंदर आते हुए लाल महावर के निशां

और एक छत.........

 

और उस छत के नीचे

अजनबी की तरह जीते हुए

घुटनभरे

दो दशक

---------------------------------------------

शायद तेरे पुरुषत्व ने

कभी माफ नहीं किया उस छोटी लड़की को

जिसने अपनी ऊँची उड़ानों की जिद्द

आखिरकार छोड़ दी थी

और लाल चुनर ओढ़ ली थी ........... ~nutan~


Saturday, August 31, 2013

अँधेरे के वे लोग



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अँधेरे में छिपे वे लोग कभी दिखते नहीं

दिन के उजालों में भी

अदृश्य वे,

 

सड़क चलते आवारा कुत्ते

डरते है लोग उनसे

दूर से ही दिख जाते है

एक बिस्किट गिरा देते है या

थोड़ा संभल कर निकल जाते है ...

 

वही एक प्राचीर को गढ़ते

एक भव्य महल को रचते

एक बहुमंजिली ईमारतों को रंगते

वे लोग

नजर नहीं आते ...

 

उनकी देह की सुरंग में कितना अँधेरा है

एक नदी बहती है जहां

पसीने की

उसी में कही

वो डूब जाते है

अपनी मुकम्मल पहचान के लिए नहीं

अपने निर्वाण के लिए

मिट्टी की खुशबू के साथ ....

 

और रात को

जगमगाती रौशनी में

स्वर्ण आभाओं से सुसज्जित

लोग सम्मान पाते है वहाँ

उसी ईमारत में ....

 

नहीं दिखेगा उस इमारत की

जगमगाती रौशनी में वह कभी

 

कहीं  वह चिमनी में रोशनी के लिए

कुछ बूँद तेल की दरकार करता है

उधार

ब्याज पर

गिडगिडाता है|

…. ~nutan~

Thursday, August 1, 2013

अधूरी स्वीकृति



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अधूरी स्वीकृति
************
खिलता क्यों है फूल
टूट जाने के लिए
पंखुड़ी पंखुड़ी
बिखर जाने के लिए
रह जाते है शेष
कुछ कांटे कुछ ठूंठ
एक विराम की तरह|
कि जिससे पहले की गाथा
एक कोमल युग की कहानी थी
और जिसके बाद ..................... |
---------------------------------------------
कभी जान पाया है कोई कि उस पुष्प की अभिलाषा क्या थी ?
हर फूल की अपनी अपनी एक कहानी
कोई दलदल का कमल, तो कोई रात की रानी
कोई प्युली तो कोई बुरांस
कोई गुलमोहर तो कोई पलास
कोई चंपा कोई कचनार
कोई गेंदा तो कोई गुलाब ...........
-------------------------------------------------
तुम किस किस को बूझोगे किस किस को सुनोगे?
यह प्रश्न तो मेरे लिए है, तुम्हारे लिए एक सहज उत्तर ..
फिर भी साथ बने रहने के लिए
सुनो! उस सूखी बावड़ी के किनारे
जहाँ कोमल इच्छाएं करती हैं आत्महत्या
हम एक बागीचा लगा देते है सभी कोमल फूलों का
कि तुम हाथ में लिए रहो उनका लेखा जोखा
थोड़ी काली मिट्टी और बुरबुरी खाद
फिर बैठ कर साथ उन फूलों के रंगों पे गीत गायेंगे
बाटेंगे उनका सुख दुःख
उन्हें गले लगा अपनाएंगे
अपने मन में उठे कोलाहल को दबाये
पूर्ण स्वीकृति के साथ
हम बावड़ी के किनारे खिलते फूलों के साथ
अपने पलों को मह्कायेंगे|
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शर्त इतनी है मेरी
कि मुझमें फिर कभी मत ढूंढना
विराम से पहले का
वह कोमल गुलाब|
--------------------------
निगोड़ी तेरी नौकरी भी न सौतन, दुश्मन ... ~nutan~

Friday, July 26, 2013

फिर कहीं किसी रोज

 

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कभी जाती थी आ जाने के लिए तो कभी आती हूँ जाने के लिए ... यही तो जीवन है .. जिंदगी की रवायत है, रवानगी इसी में है ... छिपी है जिसमें आने की ख़ुशी तो जाने का गम भी है ... बेसाख्ता मुस्कुरा जाओ गर मेरे आने पर कभी तुम तो हिज्र की खलिश को भी सहने का दम भरना, ....मेरी रुखसती की इक स्याह रात को सह लेना इस कदर तुम .. कि न माथे पर शिकन लाना न आँखों में हो नमी .. . अब्र के घूँघट में मुस्कुराएगा महताब किसी रोज फूटेगी चाँदनी झिलमिल बरस बरस और आफ़ताब खिल उठेगा ले कर इक नयी सुबह . मुस्कुराएंगे गुल नए, कि महकेगी कली कली .. वक्त अपने दामन में ले आएगा खुशिया नयी नयी ........ मेरे जाने का गम न करना मैं आउंगी फिर कहीं किसी रोज ...
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और कानों में इक गीत लिखते लिखते बजने लगे ... रहे ना रहे हम महका करेंगे बन के कली, बन के सबा, बाग-ए-वफ़ा में  ~nutan~

Tuesday, July 16, 2013

समुन्दर किनारे, एक अनजाना


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नारियल के पेड़ के नीचे

समुद्री रेत पर

घोंघों संग

बीन रही थी कुछ शंख आकार

और कभी कभी ले लेती थी कोई क्लिक

जब  

सूरज की रौशनी मे

सागर सी अथाह भारी आवाज में

वह मछुवारा बोला

न खींचो तस्वीर मेरी

आपकी सभी तस्वीरें काली पड़ जाएंगी|……..

हँस पड़ी थी मैं पर कुछ न बोला

बस मुश्किल से दो पल, चार कदम चले थे साथ

और तेज क़दमों से मैंने रुख बदल लिया था  

दूर दूर मीलों दूर

पहाड़ों की ओर अपने गाँव को……

वर्षों पहले 

छोड़ आई थी सब कुछ उस तट पर

उस अजनबी काले आदमी को, वो नारियल के पेड़

वो रेत वो समुद्र, नाविक और नौकाएं ……

पर साथ आ गयी थी मेरे, अनजाने में ही

उन सब चीजों की यादें और एक निश्छल हँसी

किन्तु एक ऐसी टीस

जिसने चुपके से

इन सबके बीच

अपनी जगह बना ली थी

जी रही है मेरे भीतर  .................

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मानवीय भावनाएं चमड़ी के रंग से कहीं ऊपर होती है|  ---- ~nutan~


 

Wednesday, July 10, 2013

खुद से दूर - डॉ नूतन गैरोला


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तुम यकीन नहीं करोगे

सच

मेरी दौड है

खुद से

मैं खुद से जीत जाना चाहती हूँ

मैं यकीनन अपनी पहचान बचाना चाहती हूँ

तुम हो कि मेरे खुद में अतिक्रमण

कर चुके हो

व्याप्त हो चुके हो मुझमे

जैसे कोई दैत्य किसी देह में

आत्मा को जकड कर ………

पर

अभी चेतन्य है मन

और उसे मेरा यह खुद का रूप ग्राह्य भी नहीं

इसलिए वह दौड पड़ा है खुद से दूर

जैसे खुशियों से लिपटना चाहता हो पर

भाग रहा हो दुखों की ओर

और वह नदी

जो बलखाती तुम्हारे गाँव की ओर जा रही है

नहीं चाहती है पलट जाना

मुहाने की ओर

पर देखो

उसकी अविरल धार

रुकते रुकते सूख चुकी

क्यूंकि किसी ने भी नहीं चाहां

नदी का रुख मुड़े

तुम्हारे गाँव की ओर ……..

और

उसे बांधा गया है

बांधों में

पहाड़ी की दुसरी छोर|

जानती हूँ

अगर तुम नदी से मिलने आओगे

तो तोड़ दिए जायेंगे किनारे

दीवारे

सैलाबों मे ढाल दी जायेगी

नदी,

नदी नहीं रहेगी 

मिटा दी जायेगी|

……………………………………~nutan~  10 july 2013 .. 15:01

Saturday, June 29, 2013

मन देशी परदेश से




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शायद मैं अपना सब कुछ बचा जाना चाहती थी

तुमसे दूर कूच कर जाना चाहती थी .....

पेड़ पहाड़ झरने गाँव

खेत खलिहान रहट छाँव

सबसे दूर कहीं दूर

मेहराब वाली घनी आबादियों में ..

इसलिए मैंने सांकलों में

जड़ दिए थे ताले

और तुम देते रहे दस्तक

कि कभी तो दस्तक की आवाज पहुँच सके मुझ तक

और मैंने कान कर लिए थे बंद

नजरे फेर ली थी

लेकिन दिल और दिमाग

के लिए

न हाथ थे कोई न ऐसी कोई रुई

बस वो चलते रहे चलते रहे .......

इसलिए आकाश मे जब भी उमड़ते है बादल

बित्ता भर खुशी के पीछे हजार आंसुओं का गम लिए

मैं व्याकुल हो जाती हूँ

अपनी जड़ों तक पहुँच जाती हूँ

समझने लगती हूँ कि

इन जड़ों के बचे रहने का मतलब

कितना जरूरी है मेरे लिए,

जैसे बनाए रखना पहचान को

बनाए रखना अपने होने के भान को....

नहीं तो सूखा दरख़्त हो जाउंगी

ध्ररधरा के गिर जाउंगी

ढहते पहाड़ों की तरह ………..

------------------------------------------------

मेरे अस्तित्व का पहाड़ बना रहे|………………. ~nutan~

Friday, June 28, 2013

तुम्हें याद न करूँ तो बेहतर

उत्तराखंड में अपने पीडितों के दर्द को देख दिल रो उठता है बार बार
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तुम्हें याद न करूँ तो बेहतर ....

मेरी परछाइयाँ

जब

डूब गयी पानी मे

और बेअदब

चिल्लाते हुए बादल

फिर उमड़ रहे है ....

परछाइयां

सतहों से उठ उठ मांगती हैं

हिसाब अपना

लेना देना ...……………….

अभी हजारों जीवन बन् चुके है कर्ज तुझ पे

माटी से रूह खंडित की है तुने

चलती फिरती वो परछाइयां

किधर खो गयी है

मिट्टी पानी हो गयी हैं ...……. ..

उन परछाइयों को छूना चाहती हूँ अब भी

और इस प्रयास में

दिल पर इक गहरा जख्म टीस करता है

लहू धार धार बिखरने लगता है .............. ~nutan~


Monday, June 10, 2013

मुझे मेरी पहचना चाहिए -



और मुजरा चलता रहा” 

मेरी लिखी एक कहानी से ….

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शहर की बस्ती में

जब झिलमिलाने लगती है लाल बत्तियां

छन से घुंघुरू गीत गाते हैं

तेरे लिए ...

रातों की स्याही से लिख देती हूँ

चांदनी के उजालो में

कुछ दर्द कुछ मुहब्बत

तेरे हिस्से के .....

के गीत किसी दिन बन पड़े

के गुनगुनाये सारा जहाँ

दिन के उजालों में

मेरे लिए ....

अबकी आओ तो न जाने के लिए आना

जाओ तो संग मुझे लेते जाना

आना तो समझ के यह आना

के मुझे मेरी पहचान चाहिए

मुझे तेरा नाम चाहिए ........………………….. ~nutan~



Monday, June 3, 2013

तेरा मेरा होना - डॉ नूतन गैरोला



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तेरा मेरा होना
जैसे न होना एक सदी का
वक्त के परतों के भीतर
एक इतिहास दबा सा |
जैसे पत्थरों के बर्तनों मे
अधपका हुआ सा खाना
और गुफा मे एक चूल्हा
और चूल्हे में आग का होना |
तेरा मेरा होना
जैसे खंडहर की सिलाब में
बीती बारिश का रिमझिम होना
और दीवारों की नक्काशियों में
मुस्कुराते हुए चेहरों का होना|

........................................
तेरा मेरा होना
जैसे कोयले का आग के पीछे
हरेभरे बरगद का होना
और एक सकुन भरी शीतल छाया में
कुछ पल तेरा मेरा होना ...
तेरा मेरा होना
समय रेखा के दूसरे छोर के पर 
जैसे धरती के सीने से

प्रस्फुटित होने वाले बीज के भीतर
अंकुरित नवकोपल में
एक पीपल का होना|

...............................
तेरा होना होगा
कि जैसे बारिश का होना,

एक अरसे सूखे के बाद

और

धरती का सोंधी खुश्बू से

भीग भीग तर हो जाना|

तेरा मेरा होना
कि जैसे हो महकती हुई बासमती,

किसी भूख से भरी लंबी दोपहर के बाद

और तृप्त हो जाना |
कि जैसे एक सूखी सुराही में
भर दिया हो पानी
महकने लगे सुराही माटी की
पानी का

शीतल मीठा हो जाना|

तेरा मेरा होना है
कि जैसे जन्मों की प्यास

बुझाने का संकल्प

अमृत और क्षुधा का|

......................................

तेरा मेरा होना,

जैसे होना रहा हो
सूत्रधार प्राचीनतम इतिहास का
कि जैसे दो रूहों से संस्कृतियों का उदय होना

और दो रूहों का होना विलय जीवन में|

औरयह होना जैसे आज इस तारीख में

स्पंदन हो जीवन का
जिससे धडक रहा है

दिल माटी की देह के भीतर |
और तेरा भविष्य के आँचल में खोना

होगा मेरा, तेरे इतिहास में होना|

.........................................

तेरा मेरा होना

एक अकाट्य सत्य का होना

जैसे सूरज को

चाँद का, रात के घूंघट मे

शीतलता से भर देना|

और सुबह सवेरे सूरज का

रात के ठन्डे चाँद को

अपनी गुनगुनी नीली बाँहों के

आगोश में

छुपा कर भर लेना|

और चाँद सूरज कहते हैं

तुम हो, मैं हूँ और है वही तथस्ट आसमान

तभी लिखती है माटी कि
पूर्वार्ध मे भी तेरा होंना था,

उत्तरार्ध में भी तेरा होना है
जैसे आदि भी तुम थे, अनादी भी तुम्ही हो

और रहोगे तुम्ही सदा
तुम मेरे आगे और मैं तुम्हारे आगे
तुम मेरे पीछे और मैं तुम्हारे पीछे

इस ब्रह्मांड की परिधि में
एक दूजे की परछाई से
जन्मों से जन्मों तक
इस मिट्टी को जीवन देते
कतरा कतरा रूह बन कर|
तेरा मेरा होना
होगा शास्वत निरंतर
सृष्टि से सृष्टि तक
पुनश्च पुनश्च क्रमशः |

……………………………………………….. ~nutan~


Saturday, May 18, 2013

रात के ख्वाब

 

 

 Dreaming of Love

 

तेरी पलकों पर रख दूँ एक बोसा

मेरे सकून

कि तुझे मखमली नींद का अर्श दे दूँ |

होना मत  उदास

न तन्हा है तू कभी  | 

देख!

तुझे पलकों पर लिए फिरती हूँ सदा

कि ख्वाब से रहे हो तुम

कि मूर्त कर दूँ मैं तुम्हें

कि मैं दौड़ते क़दमों को कभी रोक लूँ ज़रा

कि फुर्सत के चंद पलों में

एक अदद छाँव में

तुझे उतार लूँ कांधो से

और

झूल लूँ तेरी नरम बाहों में

कि पत्ता पत्ता ओंस से नहा लूँ

और रात की झील में

हमारे प्यार की सरगोशियाँ

लहरों पर

न लौट कर जाने के लिए

बस डूबती रहे उभरती रहें

एक सच की तरह

बुलबुले की मानिंद

जो हर बारिश में

पानी की सतहों पर

बनते रहे और बनते ही रहे | ….. ….

 

पर न कभी मिली फुर्सत

न ही कोई छाँव

और न ठहरी मैं कभी

रात की झील पर |

और न साहिलों पर उतरे तुम

ख्वाबों की कश्ती से

इच्छा की पतवार लिए 

प्यार की मौज पर|

फिर नींद उदास आँखों से लौट लौट जाती रही

न ठहरी वो कभी

तेरी आँखों में 

न मेरी आँखों में…….

हर रोज ख्वाब रात के दुसाले को उतार

दिन के उजालों में खोता रहा

बस खोता रहा ………

और मैं चलती रही

सिर्फ चलती रही

धुंध से भरी

अनजान मंजिलों की ओर

बढ़ती रही, बढ़ती रही …..................................... नूतन १७ / ०५ /२०१३

Sunday, April 21, 2013

तुम कहाँ हो सीपी



तुम कहाँ हो सीपी …


सागर ने कभी बढ कर
दो बूंद भर कर भी नहीं दिया पानी
वह अपनी जगह लहराता रहा
पानी से भरपूर है यह अहम जरूर भरमाता गया ..
कहता था कि आओ कि डूब जाओ
छोडो उस किनारे को|
या दूर किसी पहाड़ के शिखर पर जाओ, चढते जाओ
रात के सर्द अंधेरों में ग्लेशियरों में जाओ, जा कर जम जाओ|
या रेत में जा कर भरी दोपहर में
मरीचिका के पीछे दौड़ो, अतृप्त प्यास से मर जाओ | ………….
और आंखे हैं कि बेहिसाब सागर को सोखती रही
बस वह घूंट घूंट चुप चुप पीती रही
नमक पानी से रोम रोम भिगोती रहीं
जो तरल मिला नहीं कभी सागर से
दीवारे सैलाब की  फटती रही भीतर से  …
फिर आँखों में  उसकी तलहट से छंट छंट कर 

कहाँ से आता रहा मोती सा |


मोती सा ?
हाँ मोती सा …
जो अभिव्यक्त होने में सदा शेष रहा
फिर भी व्यक्त होने के लिए पुरजोर रहा
सिर्फ तुमसे
हाँ सिर्फ तुमसे
इस तरह जैसे ..
कोई शब्द नहीं
कोई गीत नहीं
आवाज भी थी कोई नहीं|

जो गिरा आँख से
सिर्फ तुमसे था
वह एक बूंद
केन्द्र का बिंदु
प्रेम का निचोड़ 
तुम्हारी झोली में आ गिरा, रे सागर!
जिसमे मन का हँसना रोना मुस्कुराना
प्यार मनुहार सभी कुछ मिला था
भावनाएं सान्द्र अति सान्द्र
बस ठोस नहीं हुई बचा गई अपना तरल 
जिसमें दिल की हर पुकार और घना प्यार निहित/बंधा बेहद सान्द्र|
वह एक बूंद मौन चाँद को इंगित करता रहा
जैसे कहता हो चाँद! बेशक तुम रात के रथ पर
मगन
कभी रोशन कभी धूमिल
कभी आते कभी गुम जाते हो
मुझे नजरअंदाज कर चले जाते हो
फिर भी  
उत्तर दिशा की रात का एक ध्रुव हूँ मैं 
अटल
तुम्हारे न आने, चुपके से चले जाने से
बेशक अंदर से हिल जाता हूँ
फिर भी
बिन हिले 
बिन आशा के
बस अडिग अटूट प्रतीक्षा में !
बेशक प्यार के सीपी में
उस एक बूँद की
मोती बनने को दौड  जारी है
लेकिन बहना उसकी प्रवृति है
ठोस उसकी मृत्यु है
वह मृत्यु को नहीं चुनेगा
पर शास्वत मृत्यु की ओर सतत चलेगा
तुमसे मिलने को …. 

Wednesday, April 10, 2013

हाँ! ये तुम्हीं से हैं|

 

 it__s_in_your_eyes____by_Made_0f_Dreams

 

तुम मेरे

अनछुवे ख्वाब हो

पाकीजा|

जैसे किसी बच्चे की झोली में आ गिरे

एक डॉलर हो

बेहद अनमोल,

खर्च करने लायक नहीं हो जो

सिक्कों की तरह|

तंगहाली में भी

पेट की भूख में भी

रहता है  उसकी जेब में बंद

एक रोटी की तरह

एक सूरज की तरह|

तुम मेरी

पलकों में छुपा कर रखे हुए

अदेखे ख्वाब हो

जिसे रोज प्रस्फुटित होते देखती हूं खुद के भीतर |

जैसे एक पुरानी  बंद

बेशकीमती इत्र की शीशी में

सुकूने जिंदगी की खुश्बू

जो खुलती नहीं है बाहर

सदा महकती रहती है

‘साँसों के साथ

मन के भीतर|

ख्वाब पूरा होने के लिए नहीं

कि फिर एक नया ख्वाब ले जन्म

तुम्हारा अधूरापन ही बेहतर है|

इससे पहले की नींद पूरी हो

और ख्वाब टूट जाए

नहीं नहीं

मैं तुम्हें बसने नहीं दूंगी पलकों पे

पूर्ण हो कर तुम्हें लुप्त भी न होने दूंगी,

तुम शेष रहोगे हमेशा

अशेष संभावनाओं के साथ

सदा रहोगे विशेष

बन् कर

मेरी आँखों में चमक

मेरी आँखों की नमी |

हाँ ! ये तुम्हीं से हैं |

 

…………………….~nutan~

 

Tuesday, April 2, 2013

एक मदद मिलेगी ?

प्रिय ब्लॉग मित्रों! पिछले डेढ़ दो माह से मैं डेशबोर्ड में किसी भी ब्लॉग को नहीं देख पा रही हूँ... जिन्हें मैंने फोलो किया था .. न ही ब्लॉग के इस नए कलेवर को मैं समझ पा रही हूँ .. मैं सभी ब्लॉग पोस्टों को पढ़ने से वंचित हो गयी हूँ ... मैंने इस बीच गूगल प्लस पर क्लिक किया था जहाँ मित्र बनाने के ऑप्सन थे .... मुझे नहीं मालूम की यह गडबडी कहाँ से शुरू हुई और यह कैसे पूर्ववत  ठीक हो... कृपया आप मेरी मदद कर सकेंगे तो मैं ब्लॉग पर आना सार्थक समझ पाऊं ... नहीं तो सिर्फ अपनी पोस्ट को प्रकाशित करने का कोई औचित्य शेष नहीं रहता जबकि हम अन्य ब्लॉग पोस्टिंग को न पढ़ पा रहे हो ... आप सभी का धन्यवाद ...... नूतन 

नदी की खुशियाँ - डॉ नूतन गैरोला



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नदी की खुशियाँ
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खुशियाँ जब जब आईं
मैने मुट्ठी भर भर बिखरा दिया चारों तरफ
इस आशा से कि लहलहाएं -
खुशियों की हरियाली चारों दिशाओं में ...
मुस्कुराते रहें चेहरे अपनी उमंगों में
और उनकी मुट्ठी में रहे सलामत खुशियों की सौगात
और उनको मुस्कुराते देख
मेरे भी चेहरे पर निरापद बनी रहे मुस्कान
न रहे अपनी फिक्र - न किसी से पाने की उम्मीद,
मेरे हाथ खाली हैं
और झोली में कुछ भी नहीं है शेष ..
नहीं चाहिए मुझे अब नदी होने का सम्मान
कि बहती रहूँ बिना कुछ मांगे
बूंद बूंद सोख ली जाऊं
किन्हीं अनजान बहारों की खातिर ...
न नदी कहकर देना मुझे भुलावा
कि जो आये और धो जाए अपने हाथ
और मेरे पावन तट को कर जाए पंकिल,
देखो ध्यान से
अब मैं बूँद नहीं उस पानी की
जो ठहर जाऊं किसी पलक के किनारे ...
कि आंसू बन टपक कर गिर जाऊं
अपनी आँखों से असहाय –

आज मत पूछो मुझसे
कि जिन्दगी के हानि-लाभ में
क्या खोया - क्या पाया है मैंने,
बेशक हाथ खाली हैं
और भर आया है मन -

आज मैंने अपनी मुट्ठी बांध ली है बेहिचक।……………. ~ nutan ~

Thursday, March 21, 2013

गौरैया लौट आओ


विश्व गौरैया दिवस २० मार्च २०१३ को मेरी भावना और मेरी खींची हुई तस्वीर
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     “चुनचुन करती आयी चिड़िया दाल का दाना लायी चिड़िया” .. माँ यह गीत गाती तो हम बच्चों की आँखें टुपुर- टूपूर छत और आँगन की ओर निहारने लगती .. फुदकी रहती वो सफ़ेद और भूरी गौरैया छज्जे और मुंडेर में , घर के आँगन में .. दाना डालते तो चुगती, चीं-चीं बातें करती और अचानक किसी हवा के झोंके सी उड़ जाती, दरख्तों पर सुबह सवेरे सांझ को उनकी मन्त्रमुग्ध करने वाली चहक, सुबह का सुरीला गीत, घर के आँगन की एक रौनक ... अलसाई दोपहर में चुलबुलाहट बन उतरती आँगन में और बच्चों की खिलखिलाहट बन जाती .. और छिछले पानी के कोटरों में दिन की धूप में छुडबढ़- छुडबढ़ नहाना, पंख फडफडाना कितना अच्छा लगता था उसे घंटो निहारना फुदकती नाचती लगती थी वह … कभी देखती तिनका तिनका जोड़ती घोसला बनाती और छोटे छोटे अंडे देती, छोटे छोटे बच्चे होते जो बड़े बड़े मुंह खोल चीं चीं करते, और माँ गौरैया और पिता गौरैया खाने की जुगाड कर लाते और उनकी चौंच में चोंच डाल उनकी भूख को शांत करते …यह सिलसिला मैंने कई बरसों देखा . पर अब तो चुनचुन करती आई चिड़िया गाने वाली मेरी प्यारी माँ जाने किस दुनियाँ में जा बसीं और ये पनीली आँखें माँ संग अब इन गौरैया को भी ढूँढती है| मेरा आँगन सूना हो चला है .. मैं गौरैया को पुकारती हूँ और कहती हूँ गौरैया एक पूरी प्रजाति हो तुम किस जहाँ में जा बसने लगी हो... कालातीत नहीं होने देगा तुम्हें आने वाला कल, गौरैया तुम लौट आओ देखो मैंने कुछ पौधों को रोपा है इस उम्मीद में कि कल दरख्तों पे होगा तुम्हारी खुशियों का घर आँगन .. होगी कुछ खुली हवा कुछ हरियाली, इसलिए तुम उन काली आँधियों की फिकर न करना जिन्होंने चिमनियों से उठ कर इस हवा को जहर से भरा है, उन कंक्रीट की फिकर न करना जिसने तेरे आम बरगद, टेसू नीम को नेस्तानाबूत किया है, कुछ चिंता की लकीरें माथे पर बलखाने लगी है इंसा की कि ऐसी आबोहवा में जब अस्तित्व गौरिया का खतरे में पड़ा तो आने वाले कल में काली हवाओं के शिकंजे में हमारी पीडी का क्या होगा, चेत रहा है आदमी, कुछ तो ऐसा करेगा आदमी कि हरितिमा का श्रृंगार करेगी धरती फिर से .. गौरैया तुम लौट आओ ....
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यह गीत आज फिर याद आया ----
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ओ री चिरैया, नन्ही सी चिड़िया |
अंगना में फिर आजा रे ||
ओ री चिरैया, नन्ही सी चिड़िया |
अंगना में फिर आजा रे ||
अँधियारा है घना और लहू से सना, किरणों के तिनके अम्बर से चुन के |
अंगना में फिर आजा रे ||
हमने तुझपे हजारो सितम हैं किये, हमने तुझपे जहां भर के ज़ुल्म किये |
हमने सोचा नहीं, तू जो उड़ जायेगी ||
ये ज़मीं तेरे बिन सूनी रह जायेगी, किसके दम पे सजेगा मेरा अंगना |||
ओ री चिरैया, मेरी चिरैया |
अंगना में फिर आजा रे ||
तेरे पंखो में सारे सितारे जडू, तेरी चुनर ठनक सतरंगी बुनू |
तेरे काजल में मैं काली रैना भरू, तेरी मेहंदी में मैं कच्ची धुप मलू ||
तेरे नैनो सजा दूं नया सपना |||
ओ री चिरैया, मेरी चिरैया |
अंगना में फिर आजा रे ||
ओ री चिरैया, नन्ही सी चिड़िया |
अंगना में फिर आजा रे ||
ओ री चिरैया…..
आज गौरैया दिवस पर अपनी खींची यह गौरैया तस्वीर - मेरा क्लिक

Wednesday, March 20, 2013

कविता और प्यार



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मैंने तुम्हें
पन्नों पन्नों में ढूँढा है
जहाँ कही भी मिली हो पढ़ा है |
कलम उठाई तो
उकेरा है हर कागज़ में|
जानती हूँ ..
तुम्हारा पन्नों से है गहरा वास्ता
इसलिए मैंने तुम्हें दिल से उतार 
पन्नों में गढा है|
तुम मेरे पन्नों में लिखी इबादत हो
तुम मेरी गुफ्तगू का निज तत्व हो 
मेरे प्यार का मकबरा भी हो तुम
और तुम्हीं मेरे जीने का सबब हो 
तुम मेरी प्यारी कविता हो | ……………. नूतन
लव यू फॉरएवर











Monday, March 18, 2013

मेरे घर में बसंत


 
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मैंने पाया बसंत

घर की दालान से बाहर

आम्र मंजरी बन् पेड़ों पर खिलता रहा

टेसू पर दहकती लालिमा लिए

सरसों बसंत की ओढनी ओढ़े हुए

कुहुक कर बुलाती कोयलिया मुझे

और मैं

दीवारों के भीतर के

पतझड़ को चुनती रही

मौन

डाली से गिरे पत्तों को समेटती रही

आस्था के जल से सीचती रही

कि खिलेगी बहार मेरे घर के भीतर भी

मेरी जिद्द है कि

इन ठूंठ पर भी उग आये हरे कोंपल

मेरी जीत के

या कि हार कर हो जाऊं मैं भी ठूंठ ........……… नूतन ९:४४ रात्री १८ / ३/ २०१३

Monday, March 4, 2013

बालिकाओं पर एक दिवसीय कार्यशाला


                              मित्रों! यह बताते हुए मुझे अति प्रसन्नता हो रही है कि १७ फरवरी को  धाद महिला एकांश, देहरादून द्वारा बालिकाओं (Teenager/ Adolescent ) के समग्र विकास  के लिए  एक कार्यशाला का आयोजित की गयी थी जिसमें बालिकाओं के स्वास्थ सम्बन्धी, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक पहलुवों पर शिक्षा और अधिकार, भविष्य की योजनाओं के अनुरूप कार्य किस तरह से करें यानी प्लेनिंग के बारे में बताया गया| उनके अंदर निहित रचनाशीलता को बढाने और जागरूक करने के लिए उनसे कार्यशाला से कुछ दिन पहले ही उन्हें “समाज और परिवार में बालिका की स्तिथि” पर पेंटिंग, कविता और लेख लिखने के लिए दिया गया| कार्यशाला के दिन  उन्हें इन विधाओं पर भी समग्र जानकारी दी गई और छोटी से छोटी  बच्ची ने भी माइक में अपने विचार खुल कर रखे, अपनी कवितायेँ सुनाई |
                                       मेरे लिए खुशी की बात यह थी कि उस दिन मंच का संचालन मैंने किया और जैसा मैंने पाया और औरों ने भी बताया मेरा संचालन काफी अच्छा था और कार्यशाला में एक पारिवारिक माहोल बन गया जिस से बालिकाओं ने निर्भीक अपने विचार रखे और जानकारी हासिल की| मैंने बालिकाओं को स्वस्थ सम्बन्धी पहलुओं पर भी जानकारी दी तथा उनकी स्वास्थ सम्बन्धी समस्याओं पर उनको उपयुक्त सुझाव दिए | यह एक दिवसीय कार्यशाला जरूर थी किन्तु इसमें १ महीने पहिले से ही बालिकाएं अपनी प्रविष्टियों लेख कविता पोस्टर द्वारा भाग लेने लगी थी|



                                                                         धाद की रिपोर्ट ( फोटो मैंने जोड़ दी हैं )
 
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                                                                   कार्यक्रम की शुरुआत की घोषणा करते हुए मैं


                      दिनांक १७ फरवरी २०१३, को धाद महिला एकांश देहरादून द्वारा, श्री गुरुराम राय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में एक वृहद स्तर पर बालिकाओं पर कार्यशाला हुई जिसमें बालिकाओं ने चाहे वह डिग्री कॉलेज की हों या स्कूल जाने वाली हों या वो जो किन्हीं पारिवारिक परिस्तिथियों से स्कूल नहीं जा पायीं, बढ़चढ़ हिस्सा लिया| लेख, कविताओं, पोस्टर के माध्यम से और कार्यशाला में शिरकत कर अपनी उपस्तिथि दर्ज करने वाली बालिकाओं की संख्या १३० से भी अधिक थी| ............कार्यक्रम दो सत्रों में हुआ प्रथम सत्र में बालिकाओं की कार्यशाला रखी गयी जिसमे सीधे सीधे बालिकाओं से जुड़े मुद्दों पर बालिकाओं से बातचीत होनी थी , दूसरे सत्र में विशेषज्ञों ने बालिकाओं से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर बच्चों को बताया|

 

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                                            कार्यक्रम की शुरुआत में बालिकाएं

 

पहले सत्र का मंच संचालन डॉ नूतन गैरोला जी, जो कि

स्त्रीरोग विशेषग्य होने के साथ धाद की धाद महिला एकांश की संयोजिका भी हैं, ने बहुत सुन्दर तरीके से बच्चों को सहज बनाते हुए किया, ताकि बालिकाएं बेहिचक अपनी जिज्ञासा और अपने भावों के बारे में बातचीत कर सकें| इस सत्र में बालिकाओं की “बालिका की परिवार में स्तिथि” विषय पर लेख, कवितायें और चित्रकला द्वारा दी गयी प्रविष्टियों पर व् उनके स्वास्थ और मनोविज्ञान पर बालिकाओं से चर्चा व बातचीत की गयी और उनकी शंकाओं का समाधान और उन्हें उपयुक्त सलाह दी गयी व बालिकाओं द्वारा उठाये गए सीधे सीधे प्रश्नों का उत्तर दिया गया| कार्यशाला की शुरुआत में सत्र की अध्यक्ष श्रीमती नीलम प्रभा वर्मा को ससम्मान मंच पर स्थान ग्रहण करने के लिए निमंत्रित किया गया| तदुपरांत कविता/ पेंटिंग/ लेख/ बालिका मनोविज्ञान और समाज पर/ बालिका और स्वास्थ पर बालिकाओं से चर्चा और बातचीत करने के लिए क्रमवार राजेश कुमारी जी/ कल्पना बहुगुणा जी/ द्वारिका बिष्ट जी/ उषा रतूडी शर्मा जी को / स्वास्थ विषय पर चर्चा करने के लिए स्वयं डॉ नूतन गैरोला थी) आदरपूर्वक मंच पर बुलाया गया| कु.सोनाली, कु अम्बिका कुमारी, कु नीलू पाल, कु प्रीती क्षेत्री, कु संगीता कुमारी ने कार्यक्रम अध्यक्ष और और पेनल को पुष्प भेंट किये|

                

       ऊषा रतूडी जी ( मनोविज्ञान ) , बालिका, नीलमप्रभा जी (अध्यक्ष ), कल्पना बहुगुणा जी( चित्रकला ), राजेश            कुमारी जी ( कविता )

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                                                        पहले सत्र का पैनल

 

कार्यक्रम की शुरुआत में गुरुराम राय की प्राचार्य मधु डी सिंह, प्राचार्य रावत जी, अध्यक्ष नीलम प्रभा और अन्य सभी ने सरस्वती के सम्मुख दीपप्रज्वलित किया और सरस्वती वंदना की| वंदना में हारमोनियम पर श्री सूर्यमोहन खंडूरी थे और आवाज दी श्रीमती द्वारिका बिष्ट, कल्पना बहुगुणा, राजेश कुमारी और डॉ नूतन गैरोला ने|

 

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                                                      वंदना के कुछ चित्र

 

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वंदना के पश्चात कवि लेखक नन्दभारद्वाज की कविता “बाकी बची मैं” की पंक्तियाँ –

[ जबसे मैंने होश संभाला है,

अपने को इसी धूसर बियाबान में

जीने की जिद्द में ढाला है ] ........

के साथ समाज में बालिका के स्तिथि पर प्रकाश डालते हुए डॉ नूतन गैरोला ने कहा कि लड़कियां अगर कोख से जीवित बच कर निकल गयी तो उनकी जीने की जिजीविषा उन्हें प्रतिकूल परिस्थितयों में भी खुद को ढालते हुए अपने अस्तित्व की लड़ाई में, उन्हें जीने का हौसला देती है, और यही वजह है कि हर हाल में महिला अपने परिवार को संभालती है| उन्होंने बताया कि धाद कैसे समाज से जुड़े हर मुद्दों पर पहाड़ में सक्रिय रहा है और हर आपदा में सहायतार्थ आगे आया है, धाद सांकृतिक मूल्यों और लोकभाषा, साहित्य और नृत्य नाटक के क्षेत्र में भी जनजागरण के लिए काम कर रहा है| यही वजह है कि धाद महिला एकांश ने पाया कि नारी सशक्तिकरण की बाते लाख करने पर भी इन बातों से अछूती बालिकाओं के सशक्तिकरण के बगैर समाज में नारी का सशक्तिकरण नहीं हो सकता, न ही भविष्य में समाज की भलाई सोची जा सकती है, क्यूंकि आज की बालिका कल के समाज का सृजन है, कल की माँ है अतः महिला धाद एकांश ने बालिकाओं को ले कर यह कार्यशाला बालिकाओं को अपने स्वास्थ, अपने अधिकार, अपनी शिक्षा, क़ानूनी मुद्दों, बालिकाओं की सुरक्षा से सम्बंधित बातों और सुरक्षा सेवाओं को ले कर, व उन्हें अपने अंदर के कलाकार को विकसित करने व् अपने अंदर खुशियों का संचार भरने की जरूरत और जागरूकता को ले कर किया|

 

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इसके पश्चात कार्यशाला में मौजूद सभी बालिकाओं ने एक एक कर अपना परिचय दिया और उन्होंने विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार रखे, कई बालिकाओं ने बहुत सुन्दर सुन्दर कवितायेँ गाई और सुनाई| उनका जोश और उनकी देखते बनती थी| उनके अंदर के कलाकार को देख कर बेहद खुशी का भाव जागा| उनके अंदर समाज को ले कर कई चिंताए थी| एक बालिका ने कहा कि वह कचरा कूड़ा बीनते बच्चों को देख बहुत उदास हो जाती है और सोचने लगती है कि इनको भी शिक्षा अन्न कैसे मिले, किसी ने पर्यावरण पर बात की, कुछ एक ने शिक्षिका,कुछ ने डॉक्टर बनने की इच्छा जाहिर की, एक ने कहा कि वह समाज के लिए काम करना चाहती है वह समाजसेवी बनेगी, ऐसे ही अलग भावनाओं को ले कर बच्चियों ने अपने मन की बाते बताईं|

 

         

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इसके बाद पैनल से कल्पना बहुगुणा जी ने बच्चों से रंग और कलाकारी पर बात की व बालिकाओ को कला के विषय में जानकारी दी| बताया कि कला के माध्यम से अपने विचारो को अपने दर्द को अपने भावो को अभिव्यक्त कर सकते हो| उन्होंने बताया कि कोइ चित्र बनाना उतना म्हत्वपूर्न नही जितना उससे आनंद लेना और कुछ उससे सीखना| उन्होंने कला के तत्व के बारे मै तथा रंगो के बारे मे भी जांनकारी दी .

 

    कल्पना बहुगुणा जी, चित्रकला पर बात करते हुए,          एक बालिका के विचार इस पेंटिंग पर   

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   राजेश कुमारी जी ने बालिकाओं को कविता लेखन के विषय में जानकारी दीं उन्होंने कविता लेखन की विभिन्न विधाओं से उनको परिचित कराया तथा उनको तुकांत तथा छंद बद्ध रचना लिखने के लिए प्रोत्साहित किया राजेश कुमारी ने अपनी स्वरचित कुछ विभिन्न विधाओं में कविता को सोदाहरण प्रस्तुत किया तथा उनके माध्यम से कविताओं की कुछ महीन जानकारियाँ दीं जिनको सभी बालिकाओं ने बहुत ध्यान पूर्वक समझा और फिर उन्होंने अपनी रचनाओं का जिक्र किया|

 

 

                                राजेश कुमारी जी, कविता विधा पर बताते हुए 

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    उषा जी ने बच्चों को बताया कि समाज का मनोविज्ञान क्या है, उनकी सुरक्षा के लिए क्या जरूरी है, माता पिता का आदर सम्मान करना और उनकी बातों को मानना और नैतिकता पर चलने की क्या महता को बताया| उन्होंने कन्या भ्रूण ह्त्या के तथ्यों पर भी जानकारी दी और उन्होंने फोन नंबर भी दिया कि किसी संदिघ्ध मामले में कहाँ फोन मिलाया जाए!

 

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                                  ऊषा रतूडी शर्मा जी द्वारा संबोधन

 

द्वारिका बिष्ट जी ने बालिकाओं के लेख पर से उठे मुद्दों पर बात की और लेख कैसे लिखा जाता है और लेख की शैली पर भी बात की |

डॉ नूतन गैरोला ने बालिकाओं को बताया कि स्वस्थ होने का मतलब सिर्फ स्वस्थ शरीर होना ही नहीं बल्कि स्वस्थ मन, स्वस्थ समाजिक रिश्ते होना भी है| उहोने कहा कि इलाज से बेहतर बचाव है जिसके लिए स्वच्छ भोजन रहन सहन अपनी और घर के आसपास के सफाई है| उन्होंने टीकाकरण और बालिकाओं के लिए संतुलित आहार पर जोर दिया और पतले बनने की चाहत में मानसिक रूप से बीमार हो कर बुख खतम हो जाने से बचने को कहा| व बीमार होने पर पूरा इलाज लेने को कहा| बच्चों से उन्होंने उनके स्वस्थ और बिमारी के बारे में पूछा और उनको इलाज के बावत सलाह दी|

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                           द्वारिका बिष्ट जी ( धाद महिला एकांश देहरादून की अध्यक्ष )

 

उसके बाद अध्यक्ष नीलम प्रभा जी के अध्यक्षीय भाषण हुआ और उन्होंने कहा कि माँ बच्चों की सबसे प्यारी सहेली है उन्होंने बालिकाओं को सशक्तिकरण का सही मायने बताया| और उनके उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनाएं दीं |

 

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                                                     अध्यक्ष   नीलम प्रभा जी

डॉ नूतन गैरोला ने बालिकाओं को शुभकामनाएं दी कि वो आसमान की ऊँचाइयों को छुएं और धरती पर मील का पत्थर बने| डॉ नूतन ने माणिक

वर्मा जी की लिखी यह पंक्तियाँ सुनाई

चल पड़ी तो गर्द बन कर आसमानों पर दिखो,
और अगर बैठो कहीं, तो मील का पत्थर दिखो।
..

तत्पश्चात द्वारिका बिष्ट जी ने , (धाद महिला एकांश की अध्यक्ष ) कार्यशाला की इस सत्र की अध्यक्ष नीलम प्रभा जी को धन्यवाद दिया और श्री गुरुराम राय पब्लिक कॉलेज को, डॉ मधु दी सिंह व् समस्त विद्यालयों की अध्यापिकाओं और बालिकाओं को धन्यवाद दिया और सत्र विसर्जन की घोषणा की | इसके बाद सभी का दोपहर का भोजन वहीँ हुआ

  भोजन के साथ साथ बच्चों से भी कई बाते खुली हुई, उन्होंने कई विषयों के बारे में पूछा और उन्हें विशेषज्ञों द्वारा विषय विशेष पर जानकारी दी गयी|

  

         

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भोजनोपरांत दूसरा सत्र विषय विशेग्यों का था जिसमे बालिकाओं से सम्बंधित विषयों पर जरूरी जानकारियां दी गयीं| इस सत्र की अध्यक्षता श्रीमती संतोष डिमरी जी ने की, और मुख्य अतिथि इंजिनियर हिमेश्वरी शर्मा (निदेशक और प्रिंसिपल पोलीटेक्नीक देहरादून), विशिष्ट अतिथि रामेंदरी मन्द्रवाल जी थी| इस सत्र का संचालन धाद महिला एकांश देहरादून की सचिव ममता बडोनी ने किया| कार्यक्रम की शुरुआत मे अध्यक्ष श्रीमती संतोष डिमरी व Er हिमेश्वरी जी व् विशिष्ट अतिथि रामिन्दरी मन्द्रवाल ( बालिका सुरक्षा/संरक्षण अधिकारी ) जी के क्रमशः स्थान ग्रहण करने के पश्चात डॉ किरण खंडूरी ( प्रवक्ता रसायन विज्ञान ), इंजनियर माधुरी रावत जी ( धाद महिला एकांश- कोटद्वार की अध्यक्ष ), प्रोफ़ेसर मधु डी सिंह ( प्रोफ़ेसर आंग्लभाषा विभाग – SGRR PG College, संयोजक – वोमेन स्टडी सेंटर ), प्रिसिपल विनय बोडाई ( SGRR PG college ) ने मंच पर अपना स्थान लिया| छोटी छोटी बालिकाओं से आ कर इन्हें पुष्प भेंट कर अभिनन्दन किया|

 

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   तदुपरांत बालिकाओं के साथ आई विभिन्न विद्यालयों की शिक्षिकाओं ने अपना परिचय दिया| शिक्षिका मीनाक्षी जुयाल ने अपनी मीठी आवाज में बालिकाओं पर एक सुन्दर कविता का पाठ किया|

 

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डॉ किरण खंडूरी ( प्रवक्ता रसायन विज्ञान ने) शिक्षा के अधिकार अधिनियम २००९ के बारे में बताया जो अप्रैल २०१० में पारित हुआ| उन्होंने बाताया कि ६ से १४ साल तक के बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार है और १ से ८ कक्षा तक निशुल्क शिक्षा, पाठ्यपुस्तक और यूनीफॉर्म मिलेगी .. आदि आदि जानकारी दी और बताया कि सर्वशिक्षा अभियान के तहत “देवभूमि की मुस्कान”, “सपनों की उड़ान” ऐसी योजनाएं है जिनसे जल्दी जल्दी रहने का स्थान बदलते माता पिता के बच्चों को और सड़क में घूमते भिखारी, कूड़ा बीनते बच्चों को भी शिक्षा दी जाती है|

 

      डॉ किरण खंडूरी                                                             माधुरी रावत जी

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माधुरी रावत जी ने बालिकाओं को रचनाधर्मी होने की महत्ता को बताया| उन्होंने लड़कियों के अंदर निहित इच्छा शक्ति के बारे में बोलते हुए एक की कविता की चार पंक्तियाँ बताई

हम कमांदों को चाँद सूरज पर डाल सकती हैं
हम आसमान पर पत्थर उछाल सकती हैं
हमारी हैसियत को इंचों से नापने वालों
हम रेत से दरिया निकाल सकती हैं|

उन्होंने कहा हम जहाँ भी हुए, जिस भी परिस्थिति में रह रहे हैं हमें वहां निरंतर आगे बढ़ना है। अपने चारों ओर जो कुछ भी हो रहा है उस पर रचनात्मक तरीके से अपनी कलम उठाते रहना है ताकि आपकी आवाज पहुंचे दूर तक। क्योंकि लेखनी में बड़ी ताकत होती है। उन्होंने बालिकाओं को मलाल युसुफजई और जे के रोलिंग के उदाहरण से भी प्रेरणा लेने को कहा|

डॉ मधु डी सिंह ने बताया कि लड़कियों को आज के आधुनिक युग में कैसे रहना चाहिए | उन्होंने वोमेन स्टडी सेंटर के बारे में भी समग्र जानकारी दी| प्राचार्य विनय बोड़ाई ने नारी के सशक्तिकरण के बारे में कई पहलू रखें हैं |

 

     डॉ मधु डी सिंह ( प्रवक्ता, SGRR PG college)         डॉ विनोद बोदाई ( प्राचार्य SGRR PG college )

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                         रामेंदृ मन्द्रवाल जी - जिला महिला सुरक्षा अधिकारी

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डॉ नूतन गैरोला स्त्री रोग विशेषग्य                                     इंजिनियर हिमेश्वरी शर्मा ( निदेशक व् प्रधानाध्यापिका पोलिटेक्निक )

रामिन्दरी मद्र्वाल जी ने बच्चों से मित्रता भरे अंदाज में बातें करते हुए उनके खानपान पर बात की, बताया कि सस्ता और स्वस्थ से भरपूर क्या खाएं, उन्होंने बच्चों से पूछा कि वो बड़े हो कर क्या बनना चाहते हैं, और उन्होंने उन्हें अलग ग्रुप कर भविष्य की तैयारी के लिए कैसे फोकस स्टडी करें बताया| साथ ही कभी कोई महिला के साथ दुर्घटना घाट रही हो तो किस किस नंबर में इन्फोर्म करें बताया. उन्होंने बालिकाओं को अपना मूबाइल नंबर भी नोट करवाया|

डॉ नूतन गैरोला ने टीनेज में बालिकाओं को लगने वाले टीकाकरण के बारे में बताया| उन्होंने कहा कि गर्भाशय की ग्रीवा का केंसर ( Cervical Cancer ) भारत में सबसे ज्यादा पाया जाने वाला केंसर है| केंसर की वजह से महिलाओं में होने वाली मौत का सबसे बड़ा कारण सर्विकल केंसर है अतः उन्होंने बच्चियों को आगाह किया कि यही उमर है, जब वो उस से बचाव के लिए टीका लगवा सकती हैं |

मुख्य अतिथि इंजिनियर हिमेश्वरी शर्मा जी ने कहा कि बालिकाओं के विकास के लिए उनका शिक्षा अच्छा भोजन मिलना चाहिए| महिला जब तक आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं होगी उसका सम्पूर्ण विकास संभव नहीं है और उन्होंने बालिका की शिक्षा को माता पिता द्वारा किया गया अहसान जताने वाली मानसिकता को बदलने के लिए भी कहा| उन्होंने बालिकाओं को शुभकामनाएं भी|

कार्यक्रम अध्यक्ष संतोष डिमरी जी ने कहा कि बालिकाओं की माँ सबसे अच्छी सहेली होती है उसे अपनी माँ से अच्छा बुरे के बारे में पूछना चाहिए| उन्होंने बालिकाओं के स्वास्थ और आहार पर भी बात की और रंगों के समायोजन और रचना पर भी बात की और उनके भविष्य के लिए शुभकामनाएं दी

आखिर में ममता बडोनी जी द्वारा अध्यक्ष महोदया, मुख्य एवम विशिष्ट अतिथि को, मंचासीन विशेषज्ञों को धन्यवाद बालिकाओं और कार्यशाला में मौजूद तमाम लोगो को धन्यवाद के साथ बच्चों को पुरस्कार और सर्टिफिकेट दिए गए और भविष्य में बालिकाओं के लिए इसी तरह की कार्यशाला रखने की बात कह कार्यशाला को बंद की गयी|

यह कार्यशाला बहुत ही सफल रही| बालिकाओं को विभिन्न मुद्दों पर जानकारी मिली| यह सबसे बढ़िया बात थी कि बालिकाओं ने बहुत रूचि ली और मंच पर आ आ कर अपनी भावनाओं को आवाज दी, कवितायेँ सुनाई, और हर विषय की जानकारी ली और अपनी डायरी में उपयोगी बातों को नोट किया| कार्यक्रम तनमय ममगाईं जी के दिशा निर्देशन में हुआ| श्रीमती शोभा रतूडी जी का सहयोग बहुत ही सराहनीय था| युवा धाद से रविन्द्र सिंह नेगी, बिमल रतूडी, अपूर्व आनंद, अमित रावत के सहयोग से कार्यक्रम की सफलता को आयाम मिला|

 

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इस कार्यक्रम में प्रविष्टियों में

लेख देखे - श्रीमती द्वारिका बिष्ट जी ने और रिटायर्ड प्रधानाध्यापिका श्रीमती उनियाल जी.

चित्रकला – श्रीमती कल्पना बहुगुणा जी|

कविताओं पर निर्णय लिया - राजेश कुमारी जी, शोभा रतूडी जी, डॉ नूतन गैरोला जी, ने|

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