Thursday, February 7, 2013

क्या तुम मुझे पहचान पाओगे - जब कभी …..



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क्या तुम मुझे पहचान पाओगे…
जब भी कानों में मद्दम सा इक राग गुनगुनायेगी हवा
मैं सुर की वीणा पर बैठ तुम्हारे अधरों में इक गीत बन जाउंगी
उस सुर की लय में  
क्या तुम मुझे पहचान पाओगे?
 
क्या तुम मुझे पहचान पाओगे…
जब भी तुम्हारी यादों के पैमाने भरेंगे मेरे आँसुओं से
बरखा की रिमझिम बन बरस जाऊंगी तुम्हारे आँगन में
रिमझिम की सोंधी खुश्बू में
क्या तुम मुझे पहचान पाओगे?
 
क्या तुम पहचान पाओगे मुझे…..
जब कभी हथेली उठा कर अपने हिस्से का आसमान चाहोगे तुम
सरसराती हवा बन कर सहला जाउंगी  तुम्हें
उस रेशमी स्पर्श की छुवन में 
तब क्या तुम मुझे पहचान पाओगे?
 
क्या तुम मुझे पहचान पाओगे….
जब कभी प्यार भरी नजरों की चाहत होगी तुम्हें साकी से
दूर कहीं बादलों से इक नजरे,  तुम्हें प्रेम से निहारती होंगी |
बादलों से बरसते पानी में
क्या तुम मुझे पहचान पाओगे|
 
क्या तुम मुझे पहचान पाओगे
जब कभी दोस्तों को मुखोटे पहने पाओगे
और भ्रमजाल में खुद को फंसा पाओगे
दूर किसी पवित्र मंदीर में दुआ का हाथ उठता होगा
दुआओं के लिए बुदबुदाते होठों में तुम्हारा ही नाम होगा।
आवाजों के शोर में   
क्या तुम मुझे पहचान पाओगे?
 
क्या तुम मुझे पहचान पाओगे
जब कहीं  किसी प्रेम की  मृगतृष्णा में विकल मन  तड़प रहा होगा
दूर कहीं इक खामोश दिल में  प्रेम का दरिया मचलता होगा |
ख़ामोशी के विस्तार में 
क्या तुम मुझे पहचान पाओगे?
 
क्या तुम मुझे पहचान पाओगे
जब कभी दरमियां सर्द  रिश्तों  में बेहद ठंड का अहसास होगा
दूर कहीं समय की राख के नीचे इक कोयला प्रेम का सुलग रहा होगा
गुनगुनी धूप  में जाड़ों की
क्या तुम मुझे पहचान पाओगे?
 
क्या तुम मुझे पहचान पाओगे,
जब कभी तुम अपनों की भीड़ में खुद को तन्हा पाओगे
और फिर चाहतों में किसी अपने को आता पाओगे
ख्वाहिशों के शेष में 
क्या तुम मुझे पहचान पाओगे?
 
क्या तुम मुझे पहचान पाओगे
जब कहीं कोई प्रेमपाश में  तुम्हें जबरन जकड़ता होगा
मजबूरियों का हास तुमपर  बरस कर अकड़ता  होगा
ठहाकों में  गर कोई चुभन हो  
तब क्या तुम मुझे पहचान पाओग|
 
क्या तुम मुझे पहचान पाओगे
क्या तुम मुझे पहचान पाओगे
नहीं तुम मुझे कभी नहीं पहचान पाओगे
क्यूंकि तुमने मुझे कभी जाना ही नहीं | …………… Nutan


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