Friday, April 8, 2011

माँ और सपने- माँ की चौथी पुण्यतिथि पर

आज माँ की पुण्यतिथि है| वात्सल्य, दया, प्रेम  की मूर्ति माँ उतनी ही कर्तव्यपरायण और कर्मठ रहीं जितनी परोपकारी | वह जितनी अच्छी पत्नी थी, उतनी ही प्यारी माँ थीं| माँ घर की ही नहीं आसपास के बच्चों को भी बहुत प्रेम करती थी, नेक सलाह देती थी और बच्चे भी माँ का सम्मान करते और उनके कहने पर पढाई कर आगे बढ़ने की सोचते| वह सबका भला चाहतीं और सबको प्रोत्साहित करतीं | एक बात और वह कभी अन्याय होते नहीं देख सकती थी इसलिए वो न्याय के लिए, किसी निरीह की मदद के लिए अकेले ही आगे चली जातीं थी चाहे कोई उनका साथ दे या ना दे| उन्होंने हमें हमेशा ये शिक्षा दी के जितना भी हो सके सबका भला करो, इसमें तुम्हारा भी सदा भला होगा| उन्होंने हमें बहुत लाड से पाला और हमारी भलाई के लिए कड़क हो जाती थी वो, उन्हें फूलों से बहुत प्यार था.. तरकारी के अलावा या उससे ज्यादा वो बगीचे में फूलों को उगातीं थीं  … - जिस समय मैं यह लिख रही हूँ आज से  ४ साल पहले इसी समय माँ न चाहते हुवे भी हमें छोड़ गयी थी - उनकी कमी से मन में निर्वात हो गया है - वो जगह कभी नहीं भर सकती जो स्थान माँ का था| माँ के वियोग में मन बहुत तड़पा, तब चाहा  माँ कभी सपने में मिले किन्तु माँ कभी सपने में दिखाई नहीं दी.. तब लगा कि क्या माँ के प्रति मैंने अपने कर्तव्यों में वफ़ादारी न की, कहीं कोई गलती हुवी क्या जो माँ सपने में भी नहीं आई|
                         

                                                   माँ और मंदिर
                       

फिर ठीक एक माह के बाद माँ ने सपने में आ कर मेरा हाथ थामा, बहुत प्यार से ले गयी और एक पूजास्थली दिखाया जहाँ एक बड़ा दीया था और कहा - चिंता नहीं करना तुम, मेरी यहाँ पूजा होती है .. और फिर मैंने खुद को माँ के साथ एक रिक्शे में बैठा देखा , जिसको एक लड़का चला रहा था, और सोया हुवा था, माँ मुझे  एक पहाड़ी ढाल पर ले गयीं, जहाँ खेतों के पार दूर पहाड़ पर एक सफ़ेद मंदिर दिखाई दे  रहा था| माँ ने बताया बबली ( मेरे घर का नाम ) यह मेरा घर है| मैंने वहाँ जाने के लिए अपने कदम खेत पर रखे, लेकिन कदम टस से मस नहीं हुवे, तब माँ बोली - वहाँ जाने के लिए कदम जमीन से ऊपर हवा में पड़ने चाहिए| तब मैंने कोशिश की लेकिन मेरे कदम जमीन पर ही पड़ते थे और मैं उस पार उस मंदिर में ना जा पायी जहाँ माँ का निवास था| फिर माँ ने मेरे गाल पर थप्पड़ मारा और कहा उठ, फिर नहीं कहना माँ नहीं आई - और उस थप्पड़ से मेरी नींद खुल गयी और मुझे यह अहसास हुवा कि माँ अभी अभी मेरे साथ थी और वह सपना भी याद रहा …


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और दूसरा सपना लगभग एक महीने बाद दिखा था जिसमें मैं माँ के साथ एक रेलयात्रा पर हूँ उसका विवरण इस कविता में हैं |
                 
                                          एक रेलगाड़ी और हम
                           
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मैंने देखा था इक सपना
एक रेलगाड़ी और हम
पिताजी टिकट ले कर आते हुवे
और लोग स्टेशन का पता पूछते हुवे 
इतने  में रेल चल पड़ी थी
खड़े रह गए थे वो(पिता जी ) अकेले स्टेशन में
बेहद घबराये छटपटाये थे 
और याद नहीं घर के लोग किधर बिखर गए थे
रेलगाडी दौड़ रही थी सिटी बजाती
और उस डब्बे में थे तुम और मैं
और कुछ भीड़ सी औरतों की, मर्दों की,
भजन गाती|
कुछ अनचाहे चेहरे, क्रूर से, मेरे पास से गुजरे थे
और तुम ने समेट लिया था मुझे,
छुपा लिया था मुझको  खुद के आगोश में
स्नेह भरे उस आलिंगन में फेर लिया था मेरे सर पे हाथ
कितना  भा रहा था मुझको तेरा मेरा साथ
भीग रहा था मन और तन, झूम स्नेह की बरखा आई
इतने  में एक आवाज तुम्हारी पगी प्रेम में  आई
जो बोला  तुमने भी न  था, न मैंने कानों से सुनी
वो आवाज मेरी आँखों ने मन-मस्तिष्क से पढ़ी  
तुमने कहा मजबूत बनों खुद, ये साथ न रहे कल तो?
और तुम्हारे चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच आयीं थी |
जाने क्यों वक़्त रेल की गति से तेज भागता जाने कहाँ रिस गया
जाने क्यों मैं नीचे की बर्थ पे बैठी रही
और तुम ऊपर की बर्थ में कुछ परेशान सोच में |
रेल धीरे.. धीरे... धीरे.... और रुकने लगी
साथ भजन की आवाजे तेज तेज तेजतर गूंजने लगी
जाने क्यों में रेल से नीचे उतर आयी कानों में लिए भजन की आवाज
रेल का धुवां और सिटी की आवाज जब दूर से कानों पे आई
तो जाना मैं अकेले स्टेशन में थी
और वह रेल तुम्हें ले कर द्रुत गति से चल दी थी आगे कहाँ, जाने किस जहां
तुम्हारे वियोग में मैं हाथ मलती खड़ी बहुत पछताई
और टूट गया था वो सपना, था वो कुछ पल का साथ
मैं भीगी थी पसीने से और बीत रही थी रात
आँसू के सैलाब ने मुझको घेरा था
मैंने जाना सब कुछ देखा जैसा, वैसा ही तो था
क्यों पिताजी की आँखों में सदा रहती थी नमी
हमारी खुशियों की खातिर सदा मुस्कुरा रहे थे वो
जब कि उनको भी बेहद कचोट रही थी कमी...
तब चीख के मैंने उन रात के सन्नाटों को पुकारा था...
उस से पूछा था
तुम कहीं भी फ़ैल जाते हो एक सुनसान कमरे से एक भीड़ में
अँधेरे से उजाले में, धरती-पाताल से आकाश और दूर शून्य में
और वो तारा टिमटिमा रहा है जहाँ, वहाँ भी तो तुम रहते हो
फिर तुमने देखा तो होगा उनको .. बोलो बोलो मेरी माँ है कहाँ ..
सन्नाटा भी था मौन और फिर हवा से कुछ पत्तों के गिरने की आवाज थी..
जैसे कह रहें हों  कि जो आता है जग में वो एक दिन मिट्टी में मिल जाता है..
तुम मिट्टी में मिल गयी ये स्वीकार नहीं मुझको
फिर वो रेल कहाँ ले गयी तुमको
किस परालोकिक संसार में
पुकारती हूँ तुमको फिर भी इस दैहिक संसार में ...
बोलो मेरी प्यारी माँ तुम कहाँ, तुम कहाँ 
इंतजारी है मुझको अब उस रेल की
तुमसे दो घडी का नहीं, जन्म जन्म के मेल की ..


                                                    डॉ नूतन गैरोला

                                                     तीन चित्र

maan माँ

                      माँ ( श्रीमती रमा डिमरी ) पारंपरिक नथ पहने हुवे, मेरे साथ |



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                                                      माँ इक्कीस साल की

maa

                मैं ( छः महीने की) माँ की गोद में, साथ में पिता जी, दोनों बड़े भाईसाहब
                                       



                      माँ तुमको शत् शत् नमन


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                   माँ के चरणों में श्रद्धासुमन

30 comments:

  1. aapki maa ko shat shat naman '''''''''''''
    maine bhi apni maa ko 10 saal pehle kho diya hai
    kavita pardkar man bhar aya

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  2. हार्दिक श्रद्धांजलि।

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  3. माँ को हार्दिक श्रधांजलि|

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  4. कहते है परमात्मा को किसी ने न जाना
    पर क्या यह सच नहीं कि माँ रूप में उसको सबने है पहचाना
    दिल की हर धडकन जब उससे जुडी थी
    ममता की मूरत बन जब वह हमारे सामने खड़ी थी
    उसकी गोद में पल कर बड़े हुए हम
    याद आते ही, हमारी स्मृति में छाजाती है हरदम
    क्या माँ शरीर से जुदा हो,मन से जुदा हो सकती है
    ऐसा कभी हो नहीं सकता,यदि माँ में जरा भी भक्ति है.

    आपकी माँ के प्रति प्रेम और भक्ति से आँखें नम हो आईं.
    परमात्मा के दर्शन माँ में ही तो सर्वप्रथम होते हैं,पिता रूपमें उसके बाद
    इसीलिए कहा गया कि 'त्वमेव माताश्च पिता त्वमेव'

    आप मेरे ब्लॉग पर नहीं आ रहीं हैं ,कोई नाराजगी तो नहीं मुझसे?
    आपकी टिपण्णी से प्रेरित हो कर ही तो मै पोस्ट लिख पा रहा हूँ,वर्ना
    टा टा बाई बाई करना पड़ेगा ब्लॉग जगत से.प्लीज,निराश न कीजियेगा मुझे.

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  5. उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि ...नमन....

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  6. Nice post.
    हरेक आदमी को सोचना चाहिए कि समाज में उसकी क्या पहचान है ?
    उसे किस तरह के सुधार की ज़रुरत है ?
    बेहतर व्यक्तित्व और बेहतर समाज के निर्माण के लिए भी और अपनी संतुष्टि के लिए , हर तरह से यह बात लाजिमी है.


    दिल है ख़ुश्बू है रौशनी है मां
    अपने बच्चों की ज़िन्दगी है मां

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  7. मां की ममता और उसकी याद तो जीतेजी आती ही रहेगी\ उसका रिक्त स्थान कोई क्या भरेगा। बस... यादों के सहारे उनका साथ रहेगा॥ ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।

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  8. माँ की याद में स्मृति पुष्प चढ़ाये हैं ....उनको मेरी विनम्र श्रद्धांजली ..एहसास बखूबी लिखे हैं ...

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  9. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (09.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  10. हृदयस्पर्शी पोस्ट! माँ की कमी कौन पूरी कर सकता है?
    श्रद्धांजलि!

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  11. चाह कर मनचाहा सपना देखा जा सकता तो क्या क्या नहीं देख लेते हम लोग ...
    माँ की सुमधुर स्मृतियाँ हमेशा साथ बनी रहे ...
    उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि !

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  12. आप कि माता जी को श्रद्धांजलि

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  13. माँ को मेरी भी हार्दिक श्रध्धांजलि -
    कैसे कहूँ क्या भाव उठ रहे हैं मन में .....
    मुझे अपनी भी माँ की याद तरोताज़ा हो आई ....
    माँ को शत शत नमन ...

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  14. विनम्र श्रद्धांजलि

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  15. विनम्र श्रद्धांजलि और शत शत नमन

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  16. उनको मेरी विनम्र श्रद्धांजली

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  17. माँ की यादों को आपने बखूबी शब्द दिए हैं .
    उनके चरणों में हमारे भी श्रद्धा पुष्प .
    विनर्म श्रद्धांजलि माताजी को.

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  18. मै पिछले २० साल से मां को सिर्फ़ महसूस कर रहा हूं . मां का होना कितना जरुरी है यह तब पता चलता है जब वह साथ नही होती

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  19. विनम्र श्रद्धांजलि और शत शत नमन

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  20. भ्रष्टाचारियों के मुंह पर तमाचा, जन लोकपाल बिल पास हुआ हमारा.

    बजा दिया क्रांति बिगुल, दे दी अपनी आहुति अब देश और श्री अन्ना हजारे की जीत पर योगदान करें आज बगैर ध्रूमपान और शराब का सेवन करें ही हर घर में खुशियाँ मनाये, अपने-अपने घर में तेल,घी का दीपक जलाकर या एक मोमबती जलाकर जीत का जश्न मनाये. जो भी व्यक्ति समर्थ हो वो कम से कम 11 व्यक्तिओं को भोजन करवाएं या कुछ व्यक्ति एकत्रित होकर देश की जीत में योगदान करने के उद्देश्य से प्रसाद रूपी अन्न का वितरण करें.

    महत्वपूर्ण सूचना:-अब भी समाजसेवी श्री अन्ना हजारे का समर्थन करने हेतु 022-61550789 पर स्वंय भी मिस्ड कॉल करें और अपने दोस्तों को भी करने के लिए कहे. पत्रकार-रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना हैं ज़ोर कितना बाजू-ऐ-कातिल में है.

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  21. सपना अनमोल,
    बेहद खूबसूरत कविता,
    तस्वीरें बेशकीमती..

    श्रधांजलि मेरी भी.

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  22. ईश्वर करें आप उनका स्नेह महसूस करती रहें ! शुभकामनायें !

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  23. आप जब भी मेरे ब्लॉग पर आती हैं,ज्ञान की 'नूतन'रसधार बहाती हैं
    आपका मेरे ब्लॉग पर आने का बहुत बहुत आभार.
    कृपया,एक बार फिर मेरे ब्लॉग पर आयें मेरी नई पोस्ट पर.

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  24. बहुत ही हृदयस्‍पर्शी लेखन। स्‍वर्गीया मां की को शत शत प्रणाम और श्रद्धांजलि।

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  25. अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....

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  26. अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....

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  27. देश और समाजहित में देशवासियों/पाठकों/ब्लागरों के नाम संदेश:-
    मुझे समझ नहीं आता आखिर क्यों यहाँ ब्लॉग पर एक दूसरे के धर्म को नीचा दिखाना चाहते हैं? पता नहीं कहाँ से इतना वक्त निकाल लेते हैं ऐसे व्यक्ति. एक भी इंसान यह कहीं पर भी या किसी भी धर्म में यह लिखा हुआ दिखा दें कि-हमें आपस में बैर करना चाहिए. फिर क्यों यह धर्मों की लड़ाई में वक्त ख़राब करते हैं. हम में और स्वार्थी राजनीतिकों में क्या फर्क रह जायेगा. धर्मों की लड़ाई लड़ने वालों से सिर्फ एक बात पूछना चाहता हूँ. क्या उन्होंने जितना वक्त यहाँ लड़ाई में खर्च किया है उसका आधा वक्त किसी की निस्वार्थ भावना से मदद करने में खर्च किया है. जैसे-किसी का शिकायती पत्र लिखना, पहचान पत्र का फॉर्म भरना, अंग्रेजी के पत्र का अनुवाद करना आदि . अगर आप में कोई यह कहता है कि-हमारे पास कभी कोई आया ही नहीं. तब आपने आज तक कुछ किया नहीं होगा. इसलिए कोई आता ही नहीं. मेरे पास तो लोगों की लाईन लगी रहती हैं. अगर कोई निस्वार्थ सेवा करना चाहता हैं. तब आप अपना नाम, पता और फ़ोन नं. मुझे ईमेल कर दें और सेवा करने में कौन-सा समय और कितना समय दे सकते हैं लिखकर भेज दें. मैं आपके पास ही के क्षेत्र के लोग मदद प्राप्त करने के लिए भेज देता हूँ. दोस्तों, यह भारत देश हमारा है और साबित कर दो कि-हमने भारत देश की ऐसी धरती पर जन्म लिया है. जहाँ "इंसानियत" से बढ़कर कोई "धर्म" नहीं है और देश की सेवा से बढ़कर कोई बड़ा धर्म नहीं हैं. क्या हम ब्लोगिंग करने के बहाने द्वेष भावना को नहीं बढ़ा रहे हैं? क्यों नहीं आप सभी व्यक्ति अपने किसी ब्लॉगर मित्र की ओर मदद का हाथ बढ़ाते हैं और किसी को आपकी कोई जरूरत (किसी मोड़ पर) तो नहीं है? कहाँ गुम या खोती जा रही हैं हमारी नैतिकता?

    मेरे बारे में एक वेबसाइट को अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान भेजने के बाद यह कहना है कि- आप अपने पिछले जन्म में एक थिएटर कलाकार थे. आप कला के लिए जुनून अपने विचारों में स्वतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं. यह पता नहीं कितना सच है, मगर अंजाने में हुई किसी प्रकार की गलती के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ. अब देखते हैं मुझे मेरी गलती का कितने व्यक्ति अहसास करते हैं और मुझे "क्षमादान" देते हैं.
    आपका अपना नाचीज़ दोस्त रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"

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  28. कितना सुखद लगता है .. माँ साथ नही होती पर फिर भी साथ रहती है जीवन भर ...
    जीवन में जब जब उसकी कमी लगती है वो किसी न किसी रूप में आ ही जाती है ...

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