बच्चे के जन्म से ले कर उसकी परवरिश और उसे देश का एक उत्तम नागरिक बनाने में महिला के योगदान से कोई इनकार नहीं कर सकता .. और महिला की यही खूबी उसको समाज में श्रेष्ठ स्थान देती है - एक महिला ही है जो समाज की स्तिथि की निर्धारक है, समाज की नींव है | और आज के दिन ही नहीं मैं सदा यही कहूँगी कि समाज में स्त्री और पुरुष एक दूसरे के कन्धों से कंधे मिला कर चलें, एक दूसरे का पूर्ण सम्मान करें और एक दूसरे की महत्ता को समझें - क्यूंकि पुरुष और स्त्री के बिना समाज की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती - दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे है, और दोनों एक दूसरे के पूरक हैं | जहाँ पुरुष ताकत का पर्याय है वही स्त्री कोमलता का -- प्रेम, भावनाएं दोनों में होतीं हैं किन्तु अभिव्यक्ति के तरीके अलग अलग होते हैं , जिसको न समझने पर भ्रम और गलतफहमियां पैदा हो जाती हैं ... तो मैं क्या कह रही थी - हाँ मैं कह रही थी कि प्रेम और भावनाएं दोनों में हैं - फिर ऐसा क्यों हुवा कि समाज में स्त्री का वो मान नहीं जैसा रहना चाहिए था ..
- क्यों जगत जननी स्त्री को जिसकी कोख से हर मानव (स्त्री / पुरुष ) जन्म लेता है, उस स्त्री को उसी की कोख में जन्म से पहले कुचल कर खत्म किया जाता रहा है …
- क्यों वो पैदा नहीं हुवी ….
- क्यों पैदा होने पर उन्हें बोझ की संज्ञा दे दी जाती है|
- क्यों खाने, कपडे, शिक्षा प्राप्ति में उनका स्थान लड़कों से पीछे रखा जाता रहा है ....
- क्यों नहीं वंश वृक्ष में लड़कियों, बेटी, बहुवों का नाम दर्ज किया जाता है ....
- क्यों थी सतीप्रथा,
- क्यों पर्दाप्रथा स्त्रियों के लिए - आज भी कई जगह मुस्लिम महिलाएं इसका अनुपालन न करें तो दंडनीय हैं
- क्यों बाँझ दंपत्ति में सारा दोष स्त्री पर मढ़ा जाता है और स्त्री को ताने सुनने पड़ते हैं..जबकि बच्चे के जन्म के लिए स्त्री पुरुष दोनों का योगदान होता है |
- क्यों पुत्रीयों को जन्म देने वाली माताएं अपने ही परिवार में, अपने समाज में लोगों से प्रताड़ित होतीं हैं - वैज्ञानिक आधार पर पुरुष से ही, बच्चा, लड़का है या लड़की होगी, निर्धारित होता है, हालांकि ये तो पुरुष भी नियंत्रित नहीं कर सकता - ये भगवान की देन है.. .. या नास्तिक कहे तो कहेगा ये होना था या संयोग से हुवा ..
- क्यों नहीं विधवा विवाह कर पुनः स्थापित हो सकती है, जबकि विधुर बहुत सुन्दर सज धज बारात ले जा कर कर पुनः विवाह कर लेते हैं |
- क्यों दहेज प्रथा बनी, जैसे लड़कियों को अपनी शादी करने के लिए जुरमाना ..या दूसरे के घर का बोझा अब दूसरे के घर दिया जा रहा है तो जुर्माने के तौर पर दहेज दिया जाता रहा है -
- महिला अगर कामकाजी है तो भी घर के काम की पूरी जिम्मेदारी महिला की है- घर अगर गन्दा है तो सवालिया निशां महिला पर होगा|
- पति पत्नी कमाने वाले हों तो लड़की खुल कर यह नहीं कह सकती कि वह घर के निर्माण व्यवस्था के लिए खर्चा करती है -अगर कहें तो ससुराल में बवाला खडा हो जाये|
- क्यों नारी को भोग की वस्तु समझ हर बाजारू चीज के विज्ञापन में उसे असम्मानित रूप से प्रस्तुत किया जाता है …
- ..आदि आदि .. ऐसे कई प्रश्न हैं ..
तभी समाज की इस स्तिथि पर लिखा गया
अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी,आँचल में है दूध और आँखों में पानी
२१ वीं सदी का पुरुष समझदार है और वह अपने से पूर्ण कोशिश में है कि वह समाज में व्याप्त इस असमानता को मिटा दे, किन्तु युगों युगों से चली आ रही ऐसे कुसंस्कारों की जड़ें इतनी गहरी पैठी हैं कि वो मस्तिष्क से विचार करता है और स्त्री पुरुष की समानता को स्वीकारता है ..पर खून के रंग के साथ बहते इन स्त्री पुरुष के भेद के रंग छूटते नहीं .. पुरुष भी इस सोच से निजाद पाना चाहता है, पर पार नहीं पाता - इसके लिए उन्हें समय की आवश्यकता है - जिसमे उनका साथ उनकी पत्नी, माता, बहन दें तो बहुत जल्दी ही नारी बराबरी के मुकाम में पहुँच जायेगी| किन्तु ज्यादा तर देखा गया है कि स्त्री ही स्त्री का पूर्ण सम्मान नहीं करती| सास बहु की बहु सास की , पड़ोसन पड़ोसन की टांग खींचते देर नहीं करती| गर्भ में पुत्री तो नहीं इसके लिए सास और स्वयं गर्भवती महिला ( होने वाली माँ ) जाती है अल्ट्रासाउंड करवाने जाते हैं | स्त्री स्त्री का सम्मान करें | माँ बेटी का आपसी प्रेम , सास बहु का बहु सास का, माँ अपने कोख से जन्मे बच्चों में फर्क न करे …न ही कोख में आये बच्चे का सेक्स डिटरमिनेसन करवाने की सोंचें… और इन सब के पीछे है समाज की सोच - जो एक दिमाग की नहीं अनेक दिमागों की देन है .. और इस समाज से जहाँ महिला की समाज में दोयम दर्जे की स्तिथि रही है, उस समाज से डर कर ही यह भेद-भाव और बढ़ता गया है| तो हम सब मिल कर अपनी सोच के उन स्याह धब्बों को धो डालें जो समाज में पुरुष महिला में भेदभाव की नीव हों | हम मिल कर एक सुन्दर समाज की रचना करें जहाँ हमारे भाई के साथ हमारी बहनें, हमारे बेटे के साथ साथ हमारी बेटियाँ और हमारी माताएं भी स्वस्थ खुश स्वछन्द हों और उनके अधिकारों में समानता हो … दादी, नानी का प्यार, माँ के प्रेम, बहन का प्यार , प्रेयशी का प्रेम, पत्नी का प्यार, सखी का प्रेम और बेटी का प्यार .. कितना प्यार हैं इनमे, ये हमारी देखभाल में कभी कमी नहीं करतीं और हमेशा हमारी खुशहाली के लिए प्रार्थना करतीं हैं ,.. तभी नारी के लिए जयशंकर प्रसाद जी ने लिखा था - नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पगतल में पीयूष स्त्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में आज अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर मैं एक कहानी लेख शेयर कर रही हूँ जो कहानी कम और हकीकत ज्यादा है, एक महिला रोग विशेषग्य होने की वजह से मैंने स्त्रियों का बहुत दुःख देखा है, किस स्तिथि में वो आती हैं, अक्सर एनीमिया की शिकार गाँव की महिलायें, काम पर काम करती रहतीं है बीमारी में भी काम और बहुत सीरियस होने पर ही अस्पताल में लायी जाती हैं .. बांझपन का इलाज लेने आई महिलाएं समाज द्वारा बहुत प्रताड़ित होती हैं.. यहाँ पर मैं अपनी एक आपबीती कहानी “ एक चीख” प्रस्तुत कर रही हूँ जो मैंने पिछले साल अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर लिखी थी | | " एक चीख " एक सच्ची घटना .. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवसपर ये कैसा महिला का महिला के प्रति प्यार ? अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर मैं ( डॉ नूतन ) मरीज की तीमारदारी करती हुवी एक चीख मेरे कानो में गूंजती है ..बात छह महीने पहले की है ..जबकि एक चीख की आवाज पर मैं अपने चेम्बर से बाहर निकली तो पाया - दर्द में पीड़ित महिला को, जो आठ माह के गर्भ से थी काफी रक्तस्त्राव की वजह से पीली पड़ी हुवी थी | मैं स्त्रीरोग विशेषज्ञ होने की वजह से इमरजेंसी के समय अल्ट्रासाउंड भी करती हूँ | उसका अल्ट्रासाउंड करते समय मन में विचार आ रहे थे और चिंता थी कि किस तरह से रक्तस्त्राव को रोका जाये तभी उसकी सास और खुद मरीज की आवाज कान में आई कि जरा ध्यान से करियेगा अल्ट्रासाउंड | मैंने कहा कि आप चिंता न करिएगा कहीं कोई कमी नहीं की जाएगी | सास ने कुछ फुसफुसाने के अंदाज में कहा ..जरा ध्यान से देखिएगा .. मुझे आश्चर्य हुवा कि ये कौन से ध्यान की बात कर रहे है .. मैंने पूछा क्या चाहते है आप मुझसे .. तो वो बोली की देखिये की पेट में शिशु लड़का है कि लड़की .. मैं हतप्रभ रह गयी .. मैंने कहा जो है वो भगवान् का दिया है आप ऐसी अमानवीय बातें न करें .. मरीज की और बच्चे की स्तिथि खराब है किस तरह से उन्हें ठीक किया जाये बस अभी यही सवाल है .. आप देख रहीं हैं कि मरीज तकलीफ में है .. फिर भी आप ऐसी बात कर रहीं हैं .. तभी मरीज भी बोली..नहीं डॉक्टर साहब हाथ जोडती हूँ ..बताइए की ( पेट की और इशारा कर ) ये क्या है ? .....ओह .. तो आप लोगो को अपने और बच्चे के स्वास्थ से कोई मतलब नहीं | मैंने अपना काम किया | अल्ट्रासाउंड का प्रोब वापस मशीन पर रखा और स्टाफ को आर्डर देने लगी की ये इंजेकशन लगाओ .. और दवाई का परचा बनाया .. मरीज की सास जी को बुलाया गया .. वह मुझसे लड़ पड़ी कि आप बतायें कि वो क्या है..? मैंने उन्हें बताया कि यह कार्य मैं नहीं करती हूँ | मैंने दवाई का परचा बनाया चुपचाप परचा सरकाया और कहा मरीज की हालत ठीक नहीं है कृपया ये दवाई उसे दिलवा दे और अस्पताल में भरती करवा दें...उन्हें सघन चिकित्सीय संरक्षण की जरुरत है .... वह (सास ) बोली आप बता नहीं रही हैं क़ि क्या है .. हमने पहले भी कहीं बाहर से अल्ट्रासाउंड करवाया है.. उन डॉक्टर ने बताया है क़ि लड़का है तब हमने इस बच्चे को रखा है..और देखिये मैंने देवी से मनौती भी मांगी है पुरे नौ दिन का नवरात्रि का व्रत रखा है .. पर आप चुप हैं तो इसका मतलब है क़ि पेट में लड़की है.. फिर हम क्यों इस के लिए दवाई लें |..मैंने कहा - मैं मरीज की बीमारी की डाइग्नोसिस और उस हिसाब से इलाज हेतु अल्ट्रासाउंड करती हूँ |लड़का लड़की को देखने के लिए नहीं और आपने पूर्व में किसी डाक्टर से दिखवाया है ..ये आप और वो समझ सकते है पर मुझे तो मरीज को और पेट के शिशु को ठीक करना है और यह भी कि लड़की की कितनी जरूरत है समाज को कितना महत्व है लड़की का ..समझाया ..लड़की को पढाया लिखाया जाये तो वो प्रेम स्नेह की प्रतिमूर्ति होगी और लडकों से कम न होगी किसी भी क्षेत्र में और ये भी बताया कि तुमने जिस देवी का व्रत लिया है वह भी स्त्री है .....पर वो मरीज और उसकी सांस कहने लगे की चाहे कुछ भी हो इलाज तभी लेंगे जब की ये गर्भ में शिशु पुत्र हो.. सास कहने लगी की मैं तो अपने बेटे की दूसरी शादी करवा दूंगी किन्तु आश्चर्य यह भी हुवा कि खुद बहु भी सास का साथ देती रही कि लड़की होगी तो मैं नदी में कूद लगा दूंगी | मेरे लिए बड़ी असमंजश की स्तिथि थी | मैंने कहा इन्हें भर्ती कर दो आप हॉस्पिटल में .. सास और बहु साथ साथ बोले लड़का होगा तभी भर्ती.... ..यह एक बहुत दुःख भरी शर्मनाक सामाजिक सोच थी... जिसका मैं सामना कर रही थी | किसी तरह से मैंने फिर उन्हें सेम्पल से मुफ्त की दवाई दिलवाई ताकि महिला और बच्चा बिना दवाई के गंभीर न हो जाये और वो सास बहु वापस घर चले गए | मैं समाज में लोगो की इतनी संकुचित मानसिकता पर दुखी हो गयी... Foetal Monitoring during labour – Dr Nutan Gairola एक चीख - चार दिन बाद फिर वही चीख और हो हल्ला ..अबकी बार देखा बहुत सारे लोग महिला को घेरे हुवे थे और वह दर्द से बेहाल चिल्ला रही थी ..मुझे देखते ही साथ चिल्लाई डॉक्टर मुझे बचा लो मुझे बचा लो . यह वही मरीज थी जो चार दिन पहले सुरक्षित तरीके से इलाज लेने के लिए तैयार न हुई थी ... उसकी वही रुढ़िवादी सास भी साथ थी .. बहुत स्तिथि गंभीर थी .. घर में चार दिन से दाई काफी प्रयाश कर चुकी थी और खून भी काफी जाया हो चुका था .. वह एक जटिल केस में तब्दील हो चुका था ..तुरंत ऑपरेशन थीएटर में शिफ्ट किया गया और बहुत तेज़ी से इलाज किया गया सधे हाथों से और औजारों से और दवाई से और चाक से और वह एक नीला पड़ा हुवा शिशु था जो की शिथिल पड़ चूका था ..सांस नहीं ले रहा था और कोई आवाज नहीं थी उसकी | वह उस महिला के इच्छाओ के अनुरूप पुत्र ही था | लेकिन एकदम निस्तेज और शिथिल इतना कि बच्चे का शरीर झूल रहा था | नवजात को बचाना था .. कार्डियक मसाज की, ऑक्सीजन दी गयी, नाभि से दवाइयां इंजेक्ट की गयी , मुंह और श्वास नली से पानी खिंचा गया और कृत्रिम शवास दी गयी,तथा वातानुकूलन का सम्पूर्ण ख्याल रखते हुवे कोशिश की गयी और बाल रोग विशेषज्ञ की बुला दिया गया ..तभी हमारी मेहनत सफल हुवी और बच्चा खुल के रोने लगा | और उसका रंग भी गुलाबी होने लगा | मेरे और मेरे साथ कार्यरत अन्य सभी लोगो क चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ पड़ी | एक चीख के साथ हमारा मुस्कुराना रुक गया | मरीज कह रही थी की ये बच्चा मुझे नहीं चाहिए इसे आप लोग अपने पास रखिये | स्टाफ नर्स बोली शुभशुभ बोलो बच्चा बड़ी मेहनत के बाद रो पाया है और आपकी इच्छा के मुताबिक बेटा हुवा है | मरीज बोली इस तरह की आवाज लड़की की होती है | आप लोग मुझसे झूठ बोल रहे है | इसे नाली में फैंक दो .. हम एक दुसरे का मुंह देखते रह गए | मन तो किया की एक तमाचा जड़ दो किस तरह से हम मेहनत कर रहे हैं , किस तरह से जीवन मिल पाया और यह उसको नाली में फैंकने की बात कर रही है ..उसको चुप करना जरूरी था क्यूंकि वह ४ दिन से स्ट्रेस में थी | बच्चे को उसके हाथ में दिया और वह फिर ख़ुशी से तालियाँ बजाने लगी | मरीज को शिफ्ट करना था .. सो बच्चे को अच्छी तरह से कपडे में लपेटा गया और मैं ऑपरेशन थियेटर से बाहर निकली और बधाई कहते हुवे जैसे ही बच्चा, बच्चे की दादी के हाथ पकड़ाना चाहा वह छिटक कर दूर जा खड़ी हुई | एक चीख गूंजी की ये बच्चा हमें नहीं चाहिए .. हम इसे गोद नही लेंगे .. मैंने कहा आपके लिए ख़ुशी की बात है ..सब कुछ अंत में ठीक हो गया ..बच्चे में जान आ गयी .. आप इसे अपनी गोद में ले लें .आपका नाती हुवा | वह बोली - आप झूठ बोल रही है | इस बच्चे को हम न पालेंगे इसे आप ही रखिये | मैं भौचक्की रह गयी | मैंने बच्चे के चाचा को आवाज लगायी ..बच्चे को पकड़ो तो वह भी न आगे आया | तब मैंने कठोर आवाज में कहा के अगर इस तरह से करोगे तो मुझे आपके विरूद्ध कठोर कदम उठाने पड़ेंगे और यह आपका भतीजा है मैंने खुलासा किया दुबारा | तो चाचा जैसे ही बच्चे को पकड़ने के लिए आगे बड़ा ..दादी चिल्लाई ..पकड़ना मत पहले देख कि क्या है | उनकी बातों से मेरा सर शर्म झुक गया | जब उन्होंने बच्चा नहीं पकड़ा तो मैं उनके कमरे के बिस्तर में बच्चे को रख आई और सोचा की देखती हूँ अब क्या करते हैं | मैंने देखा की वो दूर दूर से ही बच्चे के पास गए और दूर से नफरत से बच्चे के कपडे पलटने लगे और जब उन्होंने देखा की यह एक पुत्ररत्न है ..ख़ुशी से वहाँ गूंज उठी ... और इस एक चीख के साथ मेरे दिमाग में हजारो प्रश्न दौड़ने लगे | क्या यह समाज का दर्पण है ? आज भी हमारे समाज में ऐसे लोगो की कमी नहीं जो इन मनोविकारों से त्रस्त हैं ... पुरुष और महिलाओ में भेद है .. समाज में रहने वाले कई लोग ऐसे है जिन्हें पुत्र चाहिए.. पुत्री हो या ना हो.. पुत्री को गर्भ में ही कुचलने की साजिशें रची जाती हैं और पैदा हो जाये तो क्या ठिकाना कि कहाँ नाली में फैंक दी जाये और पाली भी जाये तो पुत्री होने का खामियाजा भुगतती रहे जिंदगी भर ....उपेक्षित और तानों के बीच ..... कब होगा यहाँ समानता का व्यवहार .. ऐसा नहीं की आज सभी की सोच ऐसी है | फिर भी अभी ऐसा सोचने वालो का अनुपात कुछ कम नहीं ..... यह चीख आज भी मेरे मन मस्तिष्क में गूंजती है ..कि अगर वह नवजात शिशु बच्ची होती तो क्या मिलता उसको जीवन में.. ऐसे परिवार में कन्या होने पर जीवन भर यंत्रणा .. और महिला ही महिला पर ऐसे अत्याचार क्यों करती है ? सास बहु पर और माँ गर्भ में पल रही कन्या शिशु पर ...और ये भी कि देवी कि पूजा तो करते है जो कि नारी का स्वरुप है फिर इस स्वरुप को अपनाने में हिचकते क्यों है...और कहते है कि " यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते , रम्यनते तत्र देवता " मेरी डायरी से - अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर लिखी .. एक कहानी लेख | एक कविता
बाँध सका न जिसको कोई, रोक सका न जिसको कोई , मैंने बाँधा है और रोका है समय के चरखे को परिधि में | टिक टिक चलती जाती हूँ मै दिन हो या हो रात , चलती चक्की की तरह अनवरत घिसती जात | कान ऐंठ कर कहते वो, उठा देना जगा देना . अपना अलार्म बजा देना, दुनियाँ काम में हो या आराम में मशगूल, मैं पल पल चलती जाती हूँ | खुद के लिए नहीं उनके लिए हूँ आवाज लगाती - बाबू उठ जाओ भोर भयी , मालिक उठ जाओ ऑफिस की देर भई बच्चे उठ जाओ, पढ़ लो परीक्षा आ गयी उठो मुसाफिर तेरी मंजिल आ गयी देखो न दिन दोपहरी बीत गयी और तुम भी कुछ थके अकुलाए सो जाओ आधी रात बीत गयी , मुझे तो कर्मों पे अपने जुते रहना है रात और न ही दिन कहना है सुई की नोक के संग ढलते रहना है | शिशु नवजात का जन्मसमय बताती और जीवन को बांधती जन्मकुंडली में बड़े बड़े ज्योतिषी करेंगे तब ताल ठोक कर बड़ी बड़ी भविष्यवाणी और खुद का भविष्य कभी मैं समझ नहीं पाती |
पुरानी पड़ जाऊँगी तो घर के किसी कोने में फैंक दी जाऊँगी , या किसी नए इलेक्ट्रोनिक उपकरण के बदले बदल दी जाऊँगी | मुझे इस्तेमाल करते हैं बेहिसाब बात करते समय के हिसाब से, और मैंने वादा निभाया साथ निभाया हर पल की टिक टिक के साथ अब आप ही बताये कि मै एक घडी हूँ ..या हूँ मैं एक स्त्री ? एक पुरानी कविता - महिला दिवस पर डॉ नूतन गैरोला |