आज माँ की पुण्यतिथि है| वात्सल्य, दया, प्रेम की मूर्ति माँ उतनी ही कर्तव्यपरायण और कर्मठ रहीं जितनी परोपकारी | वह जितनी अच्छी पत्नी थी, उतनी ही प्यारी माँ थीं| माँ घर की ही नहीं आसपास के बच्चों को भी बहुत प्रेम करती थी, नेक सलाह देती थी और बच्चे भी माँ का सम्मान करते और उनके कहने पर पढाई कर आगे बढ़ने की सोचते| वह सबका भला चाहतीं और सबको प्रोत्साहित करतीं | एक बात और वह कभी अन्याय होते नहीं देख सकती थी इसलिए वो न्याय के लिए, किसी निरीह की मदद के लिए अकेले ही आगे चली जातीं थी चाहे कोई उनका साथ दे या ना दे| उन्होंने हमें हमेशा ये शिक्षा दी के जितना भी हो सके सबका भला करो, इसमें तुम्हारा भी सदा भला होगा| उन्होंने हमें बहुत लाड से पाला और हमारी भलाई के लिए कड़क हो जाती थी वो, उन्हें फूलों से बहुत प्यार था.. तरकारी के अलावा या उससे ज्यादा वो बगीचे में फूलों को उगातीं थीं … - जिस समय मैं यह लिख रही हूँ आज से ४ साल पहले इसी समय माँ न चाहते हुवे भी हमें छोड़ गयी थी - उनकी कमी से मन में निर्वात हो गया है - वो जगह कभी नहीं भर सकती जो स्थान माँ का था| माँ के वियोग में मन बहुत तड़पा, तब चाहा माँ कभी सपने में मिले किन्तु माँ कभी सपने में दिखाई नहीं दी.. तब लगा कि क्या माँ के प्रति मैंने अपने कर्तव्यों में वफ़ादारी न की, कहीं कोई गलती हुवी क्या जो माँ सपने में भी नहीं आई|
माँ और मंदिर
फिर ठीक एक माह के बाद माँ ने सपने में आ कर मेरा हाथ थामा, बहुत प्यार से ले गयी और एक पूजास्थली दिखाया जहाँ एक बड़ा दीया था और कहा - चिंता नहीं करना तुम, मेरी यहाँ पूजा होती है .. और फिर मैंने खुद को माँ के साथ एक रिक्शे में बैठा देखा , जिसको एक लड़का चला रहा था, और सोया हुवा था, माँ मुझे एक पहाड़ी ढाल पर ले गयीं, जहाँ खेतों के पार दूर पहाड़ पर एक सफ़ेद मंदिर दिखाई दे रहा था| माँ ने बताया बबली ( मेरे घर का नाम ) यह मेरा घर है| मैंने वहाँ जाने के लिए अपने कदम खेत पर रखे, लेकिन कदम टस से मस नहीं हुवे, तब माँ बोली - वहाँ जाने के लिए कदम जमीन से ऊपर हवा में पड़ने चाहिए| तब मैंने कोशिश की लेकिन मेरे कदम जमीन पर ही पड़ते थे और मैं उस पार उस मंदिर में ना जा पायी जहाँ माँ का निवास था| फिर माँ ने मेरे गाल पर थप्पड़ मारा और कहा उठ, फिर नहीं कहना माँ नहीं आई - और उस थप्पड़ से मेरी नींद खुल गयी और मुझे यह अहसास हुवा कि माँ अभी अभी मेरे साथ थी और वह सपना भी याद रहा …
और दूसरा सपना लगभग एक महीने बाद दिखा था जिसमें मैं माँ के साथ एक रेलयात्रा पर हूँ उसका विवरण इस कविता में हैं | |