Tuesday, June 28, 2011

पुनरावृति - डॉ नूतन गैरोला डिमरी

 नुत


 
जीती रही जन्म जन्म,
पुनश्च मरती रही,
मर मर जीती रही पुनः,
चलता रहा सृष्टिक्रम,
अंतविहीन पुनरावृति क्रमशः|

 

                        डॉ नूतन डिमरी गैरोला

 

 

Wednesday, June 22, 2011

आजन्म कारावास और पेरोल पर कैदी - डॉ नूतन डिमरी गैरोला


                      आजन्म कारावास और पेरोल पर कैदी
 
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जब आशाएं बिखर जाती है

उम्मीद भी तार तार हुवे फटे दामन को सिकोड़ लेती हैं

तब वही निरपराध कैदी

जो बंधक बनते समय

हाथ पैर पटकता है

चिल्लाता है

कहता है

मेरा ये घर नहीं, मेरी ये जगह नहीं

और जेल में तमाम दूसरे कैदी उसकी मजाक बनाते हैं

कैसे कैसे उस पर वार करते हैं

अपने भाग्य पर रोता वह पुरजोर कोशिश करता है बाहर जाने की

खुली हवा में उड़ जाने की

वह देखता है नफरत भरी निगाहों से कैद की दीवारों को

जेलर को, जेल के नुमाइंदों को

और उन बदसलूक साथियों को जो जरूर अपराधी होंगे

या उसकी तरह बेवजह सबूतों के अभाव में बेड़ियों में जकड़े होंगे|

पर जेल में कैदी पर कितने ही जुल्म ढ़‌‍ाए

मानसिक शारीरिक सामाजिक अवसादों से घिर गया वो

और इतनी यंत्रणा दी गयी और प्रताड़ित किया गया कि

उसकी आवाज गले में फंस उसके लिए फांसी का फंदा हो गयी|

और तब वह हार जाता है अपनी ही आवाजों से

हार जाती हैं आशाएं,  उम्मीदें तिनका तिनका हवाओं में उड़ जाती है

तब वह

स्वीकार कर लेता है अपना आजन्म कारावास

मान लेता है उस जेल को अपना घर

और वहाँ की कडुवाहट घुटन ये उसके अपने जीने के सामान हो जाते है

वह जीने लगता है मरने के लिए

या मर मर के भी मरता है, रोज जीने के लिए

दसकों बाद उसका सदाचार सनैः सनैः हो जाता है उजागर

और फिर मुनादी होती है,आता है हुक्मनामा

कैदी के, पेरोल का |

कैदी असमंजस में

अब बाहर उसका कोई अपना नहीं

टूट चुके शीशों के किरचो सा, सपना भी कोई बचा नहीं

पहले उसे बदनाम किया था, अब कहीं उसका नाम नहीं

शीशे में खुद की सूरत भी तो बदल चुकी है

और अब तो बाहर की दुनियां भी अजनबी हो चली है

बाहर जाना मतलब बिना दीवारों की कैद में होना

सभ्य अजनबी चेहरों में अपने चहेते क्रूर बंदियों का अभाव का होना

और फिर पतझड़ में मुरझाया फूल गुजरे बसंतों में खिल नहीं सकता

इसलिये

गुहार करता है कैदी , हुक्मरानो से

पेरोल उसकी खारिज करो

बंद कैद में ही उसको सड़ने दो, मरने दो|




                                     डॉ नूतन डिमरी गैरोला      २२ – ०६ - २०११

              
              सोचती हूँ कितना दर्द होगा उन कैदीयों का, जो कभी बिना अपराध के ही परिस्तिथिजनित, असत्य साक्ष्यों की वजह से मुजरिमकरार किये जाते हैं और वो अपनी सफाई में कोई सबूत तक नहीं पेश कर पाते और भेज दिए जाते हैं कालकोठरी में जीवन बिताने के लिए, फिर उम्र के आखिरी पड़ाव में  उनको उनके अच्छे व्यवहार के लिए पेरोल पर छोड़ दिया जाता है| वो किन मानसिक यंत्रणाओं से गुजरते है जबकि उनको शारीरिक आघात भी कम नहीं पहुंचाए जा रहे होते है||
                 जेल के कैदी मानसिक रोगों से भी पीड़ित होते हैं जो बहुत लंबे समय तक अपना जीवन कैद में बिता रहे होते हैं उनमें “स्टॉकहोम सिंड्रोम  जैसी एक साईकोलोजिकल स्तिथि उत्पन्न  हो जाती है  और  कैदी जेल में दी जा रही यंत्रणाओं को व वहाँ के माहोल को पसंद करने लगता है….मानव मन, कैद की स्तिथि में कैसे प्रतिक्रिया करता है यह उसका उदाहरण है |
                       फिर  सोचती हूँ जमींदारी और सामंतवाद में कभी कभी जबरदस्ती दुल्हन बना ली गयी महिलायें भी  क्या ऐसा ही महसूस करती थी होंगी………………


                                              नूतन (नीति)

Friday, June 17, 2011

चंद्रग्रहण /Lunar Eclipse- 15 june 2011 –My Clicks My Photos- Dr Nutan Gairola


                 

                     आज के दिन

                                                      ( सोलह जून २०११ )

 

आज के दिन न मुझसे पूछो तुम

कितने अंधेरों ने बढ़ कर

मेरे दिन को सियह रातों में बदल दिया है|

मेरी खुशियों में पसर गए हैं कितने

दुःख भरे आंसू के बादल…….

आज के दिन छा रहे

घोर मायूसियों के सायों ने-

सितम के कितने नस्तरों से

मुस्कुराहटों का हक बींध लिया है|

आज के दिन पूर्णिमा को

ग्रहण के अंधेरों ने

बिन अपराध निगल लिया है|

हो कितना भी घना अँधेरा

 न हो निराश, वादा है

मिटा कर इन अंधेरों को,

चमकुंगा मैं फिर फलक पर

और मिल जाऊंगा धरा से

पाकिजा चांदनी बन कर |

 

     DSC_1672

 

                आज की रात जब शुरू हुवी थी, पहाड़ पर चाँद यूं चढ़ने लगा| कल रात का ग्रहण भुला कर और चांदनी बिखेरता हुवा| दिन भर की धुप से झुलसा हुआ जंगल, शीतल चांदनी में नहा कर मुस्कुराने लगा, लहराना लगा |

 

       DSC_1670



                                                        डॉ नूतन गैरोला




                                            पन्द्रह जून २०११



१५ जून की अर्धरात्रि को पूर्णमासी के दिन चंद्रग्रहण लगा था| मैंने कुछ तस्वीरें खींचीं थी| अगर किसी ने यह नजारा ना देखा हो तो  मैं उनमें से कुछ तस्वीरें यहाँ शेयर कर रही हूँ| पहली तस्वीर मैंने ००:१२ बजे से आखिरी १:३५ पर २ बजे पूर्ण चंद्रग्रहण था| मैंने देखा की चाँद पर बाई ओर से ग्रहण बढता हुआ दाई ओर फैलता गया और पूरी छाया ने चाँद को घेर लिया किन्तु ऐसा भी आभास हुवा कि इस बीच जब चाँद पर पूरी छाया थी तीन बार चाँद पर दाहिनी ओर से हल्का उजाला फ़ैल गया ..फिर बायीं ओर से अँधेरा .. ऐसा क्रम चल रहा था .. २ बजे बिलकुल अँधेरा था और उसके बाद मैं भी सोने चली गयी| ००:१२ से २:०० बजे तक के कुछ फोटो जो मेरे खींचे हुवे हैं…  


                  DSC_1577 

                                                  ००:१२ पर चाँद  .. बायीं ओर से फैलती छाया

                  DSC_1585 
                            
                                                                    00: १७ पर


                   DSC_1591 

                                                             ००:३७ पर लगभग 

                     DSC_1604 

                                                                   १:१५ पर


                         DSC_1615

                                                             चाँद नहीं दिखा १:२५ 

                        
                                            


                            DSC_1617
                           
                                          दाहिनी ओर से बढते प्रकाश में चाँद कभी हल्का भूरा सा दिखता था|
फिर दो बजे चाँद नहीं दिखा और शायद उसके बाद गहरा ग्रहण लगा हो|


                                         सभी तस्वीरें मेरी खींची - डॉ नूतन डिमरी गैरोला 
                                                       शटर १/४००० से १/२००

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                                                    नाईटमोड में खींची फोटों   

     
                                    सभी तस्वीरें मेरी खींची – डॉ नूतन डिमरी गैरोला            

 

Saturday, June 11, 2011

क्या भटका रहे हैं बाबा और अन्ना - जागो भारत जागो

 

                               india

 

       अरे!

                  जहाँ देखो लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं …क्या इन्हें इतना नहीं पता कि भ्रष्टाचार तो जनता को आसानी से प्राप्त एक बहुत बड़ी सुविधा है जिसके रहते हर काम आसानी से हो जाते हैं | फिर ऐसा क्यूं … क्यूँ उठा रहे हैं ये आवाज … अन्ना जी और बाबा जी भी नाहक ही भूख हड़ताल में बैठे रहे / हैं  …. और अपने दस नहीं दस हज़ारों  दुश्मन बड़ा रहे हैं … हमें गर्व होना चाहिए के हम ऐसी जगह/ देश में  हैं जहाँ हर कठिन से कठिन काम भी इतनी सुगमता से संभव हो जाता है ज्यूं फूंक से तिनका उड़ाना…. लक्ज़री कार फरारी ( अपना  देश ) में बैठ कर भ्रष्टाचार के ईधन से हम मक्खन सी रोड ( असंवैधानिक /नाजायज /भ्रष्ट  कार्य ) पर फिसलते जा  रहे हैं और अपनी सुखद यात्रा पर इतराते हुवे अपनी मंजिल ( अनंत पैसों का जमावडा नितांत निज स्वार्थ के लिए)  की ओर बेरोकटोक अग्रसर हैं … फिर ये बाबा जी और अन्ना जी को क्या हो गया जो मक्खन वाली सड़क पर कांच, गारे, पत्थर  फैंक कर रोड़ा उत्तपन कर रहे हैं |

                                   छी छी छी.. कोई उन्हें समझाए कि एक ही तो सुविधा इस देश में आसानी से मुहैया है … जो भ्रष्ट लोगों को खूब भाती है… और ताकत से भरपूर राजनीती के कुछ नुमाइंदे इस भ्रष्टतंत्र के पोषक हैं  …जिनके चलते  आप घूंस कहीँ भी ले या दे सकते हैं … फिर भ्रष्टाचार जैसी सुविधा को अन्ना , बाबा , और जनता क्यों देश से हटाने पर तुले हैं… भ्रष्टाचार जैसी सुविधायें तो आम है .. ये सुविधाएँ आपको खड़े खड़े भी प्राप्त हो सकतीं हैं , कभी मेज के नीचे से , कभी लिफाफों के रूप में , कभी मिठाई के डब्बों में  बंद, कभी धूप में  किसी निर्माण क्षेत्र में , कभी बंद एयरकंडीसन्ड रूम में |
                                  

भ्रष्टाचार में पैसे का आदान प्रदान तो आम है ..जिसे घूंस कहते है| देखिये मैं इसके कुछ फायदे सिर्फ थोड़े में ही कह पाऊँगी -

 

                  घूंस देने के लाभ -

  • आप बीच सड़क में कचड़ा फैंक सकते हैं,
  • आप किसी को भी नाहक बेवजह पीट सकतें हैं,
  • आप योग्य नहीं है तो क्या इसके रहते आप बहुत योग्य लोगों को पछाड कर उनको ठेंगा दिखा सकतें है,
  • आपको किसी राशन की, किसी टिकट लेने की खिडकी पर  क्यू / पंक्ति कितनी भी बड़ी हो आप आगे ही रहेंगे … आपका काम पीछे के दरवाजे / खिडकी से हो जायेगा ..
  • आपके बच्चे नशे में गाडी चला कर राहगीरों को कुचल सकतें हैं ..पर उनका बाल बांका भी नहीं होगा .. 
  • आपके सौ खून भी माफ हो सकते हैं .. इतनी ताकत है इस सुविधा में
  • आप खाद्यपदार्थ में मनमानी चीजे मिला सकते हो ..दूध में चूना .. धनिया पाउडर में बजरी ..फल असमय ही पक जायेंगे और रंग उनका होगा ऐसा की दूर से ही मुंह में पानी आ जाए .. पर जांच पड़ताल कर भी आपको कोई कुछ ना कहेगा
  • आप कीमतों को अपनी मर्जी से बड़ाचढा  सकतें है |
  • बिना पढ़े ही आप डिग्री हासिल कर सकते हो|
  • लिखने लगूंगी तो पूरा ना होगा क्यूंकि हर क्षेत्र में घूंस आपको सुविधा देता है …इस लिए सुविधा लेने के फायदे भी अनंत हैं |
  • - - - - - - - - - - - - - - - -  - - - - - - - -  रिक्त स्थान की पूर्ती करो - यानि हर वह काम जो निकृष्ट है, अमानवीय है, अवैधानिक है, आप इस रिक्त स्थान में डाल सकते हैं…. भ्रष्टाचार में वो ताकत है जो इन कामो को बना ले…

 

 

        घूंस लेने के फायदे -

  • लोगों के बीच -  आप देवता बन सकते हैं - लोग कहेंगे देखो वह कितना अच्छा इंसान है कम से कम काम करवा तो देता है |
  • आप अच्छे नेता बन सकते हैं - जनता को बड़ी बड़ी योजनाओं का आश्वासान दें - बदले में मिलेगा योजनाओं से रिसता अकूत धन
  • आप जिस भी क्षेत्र में हैं ( जैसे घोड़े वाला, स्टोक वाला, टीचिंग वाला, निर्माण वाला, ऑफिस वाला मेज कुर्सी वाला या बस कंडकट्री वाला, इत्यादि)  आप ऐसी युक्ति अपनाइए की लोग घुंस देने के लिए बाध्य हों -- फिर आप अपनी तिजोरी देखिएगा ..दिन दुनी रात चौगुनी
  • रिश्तेदारों में, आस पड़ोस में  और देश में बड़ा नाम होगा ..लोग झुक झुक कर सलाम करेंगे|
  • घर में भी बहुत प्रेम मिलेगा , सुख सुविधा तो बेमिसाल होगी  ही आने वाली पीडियों के भी तारणहार होंगे आप ….   
  • समय कम है मेरे पास इस लिए ज्यादा नहीं लिखूंगी - आप भी वाकिफ होंगे फायदे से .. घर घर में घूंस की दौलत होगी तो देश का तो अपने आप जीर्णोद्धार हो जायेगा .. उसके नागरिक फलेंगे फुलेगे | … ४०० लाख करोड जैसी धनराशि विदेशों तक नाम कमाएगी …
  • आप के पास ताकत का साम्राज्य होगा जिस के रहते आप किसी से कुछ भी करवा या मनवा सकतें है या किसी पर भी डंडा चलवा सकतें है |

 

    जब आप के पास इतनी घूंस की दौलत हो तो  कोई पागल कुत्ते ने काटा है क्या जो बाबा जी  और अन्ना जी के साथ आंदोलन में बैठें या उनका साथ दें या खुद आवाज उठायें भ्रष्टाचार के खिलाफ|| आराम से घर में बैठेंगे या फिर कही छुपी गोष्ठी कर आंदोलनकारियों पर डंडे बल्लम की मार कर  अश्रु गोलों फैंकवायेंगें या उनके कपडे फाड़ेंगे … लोकतंत्र की सरेआम ह्त्या कर भ्रष्टाचार का साथ देंगे और इसके खिलाफ आवाज लगाने वालों के साथियों रिश्तेदारों पर भी डंडा कर देंगे, ताकि वो आवाज दुबारा ना उठा सके या फिर एन वक्त कोई और बेसरपैर की बात का  मुद्दा बना लिया जायेगा जैसे नृत्य विवाद- या अमुक इंसान  अपने देश का नहीं है ..और भोलीभाली जनता का ध्यान और चिंतन उस ओर मुड जाए , और असली मुद्दे से वो भटक जाएँ - तो हैं ना भ्रष्टाचार में अजब की ताकत

 

                        तो आओ क्यूं ना इस भ्रष्टाचार रुपी देवता की आरती उतारें   

 

 

जय भ्रष्टाचार देवा, जय भ्रष्टाचार देवा

जो कोई तुझको पुजत, उसका ध्यान धरे 

जय भ्रष्टाचार देवा …

तुम निशिदिन जनता का गुणी खून पिए

भ्रष्ट लोगन को खूब धनधान्य कियो

जय भ्रष्टाचार देवा

भ्रष्ट लोग जनता पर खूब खूनी वार कियो

दुष्ट भ्रष्ट लोगन को तुम असूरी ताकत दियो

जय भ्रष्टाचार देवा

जो कोई भ्रष्टी मन लगा के तुमरो गुण गावे

उनका काला धन विदेश में सुरक्षित हो जावे

जय भ्रष्टाचार देवा 

 


बहुत खेद के साथ कटाक्ष के रूप में उपरोक्त बातें  लिखी हैं | जब मैंने पाया सत्याग्रहियों और जनता पर आधी रात को इस तरह से आक्रमण किया गया जैसे आजादी से पूर्व अंग्रेजों के हाथ जलियावाला बाग था| तिस पर कई साथी लेखकों ने सत्याग्रह के खिलाफ, बाबा के खिलाफ,आवाज उठायी … और कुछ अजीब से नए मुद्दे बना डाले …मैं उनसे भी कहना चाहूंगी अभी मुद्दा  सिर्फ भ्रष्टाचार के खिलाफ है.. इस पर राजनीति नहीं चाहिए - सिर्फ और सिर्फ देशहित चाहिए |

 

  
जागो भारत जागो
देशहित के लिए आह्वाहन करती यह कविता अन्याय के खिलाफ सब को एकजुट होने के लिए प्रेरित करती है और वीररस से भरपूर है | इसके रचियता श्री अशोक राठी जी हैं  जिनकी कर्मभूमि कुरुक्षेत्र है| देश भक्ति की भावना से लबरेज  , स्त्री विमर्श पर और जीवन मृत्यु जैसे  दर्शन पर आपकी कवितायें खासा आकर्षित करतीं हैं | यहाँ पर देशहित के लिए हुंकार भरती अशोक जी की कविता को सबसे साझा कर रही हूँ 
 
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                                                  श्री अशोक राठी जी 

  

जागो भारत जागो देखो

आ पहुंचा दुश्मन छाती पर

पहले हारा था वो हमसे

अब फिर भागेगा डरकर  

शीश चढ़ाकर करो आरती

ये धरती अपनी माता है

रक्तबीजों को आज बता दो

हमें लहू पीना आता है

नहीं डरेंगे नहीं हटेंगे

हमको लड़ना  आता  है |

काँप उठा है दुश्मन देखो

गगनभेदी हुंकारों से

डरो न बाहर आओ तुम

लड़ना है मक्कारों से

आस्तीन में सांप पलें हैं

अब इनको मरना होगा

उठो जवानों निकलो घर से

शंखनाद अब करना होगा

देखो घना कुहासा छाया

कदम संभलकर रखना होगा

वीर शिवा, राणा की ही

तो हम सब संतानें हैं

कायर नहीं , झुके न कभी 

हमने परचम ताने हैं |

अबलाओं, बच्चों पर देखो

लाठी आज बरसती

हाथ उठे रक्षा की खातिर

उसको नजर तरसती

जागो समय यही है

फिर केवल पछताना होगा

क्या राणा को एक बार फिर

रोटी घास की खाना होगा

माना मार्ग सुगम नहीं है

दुश्मन अपने ही भ्राता हैं

लेकिन मीरजाफर, जयचंदों को

अब तो सहा नहीं जाता है

ले चंद्रगुप्त सा खड्ग बढ़ो तुम

गुरु  दक्षिणा देनी होगी

महलों में मद-मस्त नन्द को

वहीँ समाधि देनो होगी |

 

चढ़े प्रत्यंचा गांडीव पर फिर

महाकाली को आना होगा

सोये हुए पवन-पुत्रों को

भूला बल याद दिलाना होगा

बापू के पथ पर चलने वाले

हम सुभाष के भी अनुयायी

समय ले रहा करवट अब

पूरब में अरुण लालिमा छाई

आज दधीचि फिर तत्पर है

बूढी हड्डियां वज्र बनेंगी

और तुम्हारे ताबूत की

यही आखिरी कील बनेंगी

सावधान ! ओ सत्ता-निरंकुश

अफजल-कसाब के चाटुकारों

राष्ट्र  रहा जीवंत सदा यह

तुम चाहे जितना मारो | 

 


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जय भारत माता |

 

Monday, June 6, 2011

पतंग इच्छाओं की - डॉ नूतन गैरोला

   

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  उसकी पलकों में
सपनों की कीलों पर
इच्छाएं जीवनभर लटकती रहीं
उतरी नहीं जमीं पर
ठीक उसी तरह
जिस तरह
उसके बचपन की पतंग
शाखाओं के सलीब पर  अटकी रही
फड़फड़ाती रही, फटती रही
और बचपन अबोध आँखों से
पेड़ के नीचे इन्तजार करता रहा
डोर का, पतंग का|
कितने ही मौसम बदले
गर्मी आई बारिश आई
और कागज की लुगदी
टुकड़ा टुकड़ा टपकती गयी, बहती गयी
रह गया सिर्फ पंजर
बारिक बेंत का क्रोस
डाल पर झूलता
और वो पेड़ भी तो अब गिरने को है|

०६-०६ –२०११  २२:१५
डॉ नूतन गैरोला  

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