Sunday, August 7, 2011

तुम्हारे लिए …. डॉ नूतन गैरोला

 


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हे पुरुष!
तुम मायासुत जैसे,
मर्यादित..
तन मन की व्यथा भुला कर ..
भूख प्यास से ऊपर उठ कर ..
घर द्वार को पीछे रख कर ..
दंभ हिंसा से कोसों दूर 
दया, प्रेम को अपनाकर
निष्कपट हो कर…
नीतिपथ पर
निर्विकार
सतत कर्म की
मानवसेवा की अलख जगाये हो|


सुन !!
फिर भी तुम
मायासुत ना बन सकोगे …
जानती हूँ कि
यूँ तो
यश की तुम्हें कोई कामना नही|
फिर भी
सत्कर्म कर
नीतिपथ पर चल कर भी
उंगलियां उठती रहेंगी तुम पर कितनी
और तुम उनमें कुछ आभाविहीन उंगिलयों को जर्द जान
प्राण सिंचित कर दोगे
अपनी रक्त  लालिमा से|
और अडिग अपने पथ,
कर्तव्य की बेदी पर
मानवता की सेवा में
अदृश्य ही बलिदानी हो जाओगे|



इसलिए हे पुरुष !!
तुम वन्दनीय हो|
तुम श्रेष्ठ हो|
तुम पूर्ण हो|
तुम ह्रदयकोष्ठ में  हो|


डॉ नूतन डिमरी गैरोला … ७/८/२०११ … २२:४२

फोटो - मेरी खींची हुई

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