Monday, April 30, 2012

उसकी ख़ामोशी के पीछे - नूतन


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सुंदरता के
स्निग्ध गालों के पीछे,
रेशमी बालों के नीचे ,
मदभरी आँखों की
हसीन झिलमिलाहट के अंदर….

दिल की जमीन पर -
खाई खंदक और
कितनी ही गहरी दरारें |
दरारों की भीतर
टीसते रिसते  बहते  हैं आंसू,
पर टपकते नहीं जो आँखों से |

कहीं पवित्रता की स्मिता का सबब
या कहीं मंडी में बिकती देह की मजबूरियां…
अस्वीकार कर अनसुना करती है उस  आवाज को
जो कशिश भरती लुभाती है  उसे
और अपने ही दिल को तोड़ कर बार बार
खामोश रहती है सुंदरता ||   ……..

Monday, April 16, 2012

आधुनिक ओस्वित्ज़ केम्प - डॉ नूतन गैरोला


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अक्सर अस्पताल मुझे किसी
आधुनिक ओस्वित्ज़ केम्प  से कम नहीं लगते
जिसके प्रांगण में गूंजती है आवाजें करहाने की|
जहां रेल में भर कर जोरजबरदस्ती कर लोग लाये नहीं जाते
बल्कि आते है लोग खुद बैठ कार टेक्सी इक्का तांगे रिक्शे में |
नाजी से कर्मी जुटे रहते है पुरजोर कडा अनुशासन बनाने में
और आये हुवे लोगो को भर्ती कर दिया जाता है मरीज का नाम दे कर]
उनके कपडे तुरंत बदल दिए जाते है
कैदी से कुछ कपड़ों के बदले
कुछ के पार्टप्रीपरेसन के नाम पर
बाल हटा दिए जाते हैं
कुछ महिलाओं की नसों द्वारा दवा चलाने के लिए 
चूड़ियाँ तोड़ दी जाती हैं
और रिश्तेदारों को दूर बाहर कर दिया जाता है
समय मिलने का फिक्स कर के|
थमा दिया जाता है एक कार्ड हाथ में
कि सिर्फ कार्डधारी मिल सकते है उक्त  फिक्स सिमित समय में
वह भी मुह में ताला लगा कर|


यहाँ गैस चेंबर तो नहीं होते है
पर चेंबर जैसे होते है- वार्ड, सी सीयू या आई सी यू
और एक अदद  ओपरेसन कक्ष|
उन पीड़ित मरीजों को अपनों से दूर रखने को
एक जल्लाद सा चेहरा लिए
निष्ठुर गेटमेन मिलने में रुकावट अड़चन सा
यमराज का जैसे द्वारपाल सा| 
कुछ काम का बहाना करते लोग
अंदर जाने को तरसते लोग
अपने मरीज से मिलने को व्याकुल लोग
गिडगिडाते हाथ जोड़ते लोग
वह निष्ठुर अपनी वर्दी का रोब दिखाता 
निरीह लोगो को दूर भगाता
आँख दिखाता
ड्यूटी पे डटा गेटमेन
और अपने ही आंसूओं को  रोकते लोग|


सुबह डॉक्टर के राउंड का वक़्त
कोइ नाजी अफसर जैसे आता हो केम्प में
वार्ड में मच जाती है अफरातफरी
तीमारदार भाग रहे छुप रहे होते है
और आया नर्स वार्डबॉय  जमदार
चिल्ला रहे होते है
भागो निकलो वार्ड करो खाली
डॉक्टर आ रहा है राउंड पर
निकलो भीड़ सारी
एक मरीज का नवजात शिशु
रो रहा होता है जोर से
छीन कर गोद से
भेज दिया जाता है बाहर,
पिछले मैदान वाले डोर से|

फिर चलता है दौर
सुइयों का, कैंचियो का, पट्टियों का
बड़ी क्रूरता से बेंधी जाती है सुईयां
खींचा जाता है जिस्मानी खून
जांच के लिए
धकेल दी जाती है दवा जिस्म में
नसों से, मांस से|
चीर फाड़ और पट्टियाँ
पट्टियाँ खींचते ही चीखते हैं लोग
कस कर पकड़ लिया जाता है उनका हाथ
और कर लिया जाता है मुह बंद
फिर तीखी जलती दवाएं,
की जाती हैं  घावों में प्रवाहित|
दुनियां भर की महामारियां
क्रंदन, रुदन, सिसकारिया
गूंजती है इस आधुनिक औस्विज़ केम्प में

मगर मकसद में  निहित रहा बुनियादी अंतर
ऑस्च्वित्ज़ केम्प में जान लेना
और इस आधुनिक औस्वित्ज़ केम्प में जान फूंकना
इस लिए मैंने क्रूरता से नफरत करके भी
आधुनिक औस्वित्ज़ केम्प की कमान उठाई है
पीड़ितों की पीड़ा  मिटाने के लिए स्नेहिल आवाज लगाईं है |
………डॉ नूतन गैरोला  .. १६/४ /२०१२ .. ११:४५ 

 

 

Sunday, April 8, 2012

तुम्हारा विस्तार - नूतन


 मन नहीं मानता कि तुझ बिन जी गए हम
आँख भर आई जब पिछले रास्ते देखे …… माँ

 आज माँ की पुण्यतिथि पर

माँ के बिना मैंने जीने की कल्पना नहीं की थी … और उनके बिना कैसे जी सकुंगी यह सोच भी मुझे डरा देता था …. जाने क्यों माँ बीमार ना होते हुवे भी अचानक एक ही दिन के पेट दर्द में चली गयीं … जबकि मैं उनके हाथ का सिरहाना बना के सोया करती थी… खूब गीत गाये थे हमने उस रात को जिसके बाद पेट में एक अजीब दर्द के साथ माँ ने हमें छोड़ दिया था ..आखिरी गाना जो माँ ने गाया था …वो था ..
मन तडपत हरी दर्शन को आज” बेजू बावरा का..
और माँ ने मदर इण्डिया के गीत भी गाये थे ..उनमे एक था - नगरी नगरी द्वारे द्वारे ढूंढू रे सावरिया, पिया पिया रटते मैं तो हो गयी रे बाव्रियां …..  उनकी पसंद पर मैंने मुकेश के कुछ गाने गाये थे उस रात … और एक गाना झिलमिल सितारों का आँगन होगा रिमझिम बरसता सावन होगा  यह हम दोनों ने गाया था ….एक गाना और था जो हमने खूब तान चढ़ा के गाया था ..नागिन फिल्म का..

ऊँची नीची दुनिया की दीवारे सैंया तोड़ के
मैं आई रे तेरे लिए सारा जग छोड़ के

              पर माँ ने जाने क्यों उस से एक दिन पहले मुझे कहा था …” बबली तू बहुत सीधी है, तू जानती नहीं जीवन मृत्यु क्या होता है|    मैंने कहा - मै जान कर भी क्या कर सकती हूँ … मुझे नहीं जानना|
माँ बोली थी - देख कल मै नहीं रहूंगी इस दुनियां में ..तुझे बहुत कुछ समझाना है ..बताना है ,,( शायद उन्होंने कुछ समझा हो अपने महाप्रयाण के बारे में … आज सोचती हूँ वो घर की व्यवस्था या पिता जी के बारे में बताना चाहती थी ..लेकिन मैं अनजान ) … मैंने कहा तुझे क्या  हो रहा है जो ऐसी बातें कर रही है ..मुझे नहीं सुनना ..क्या तुम चाहती हो कि मैं आज ही रो जाऊं ( मेरी मति क्यों मारी गयी थी उस रोज मैं इतनी उदंडी और जिद्दी हो गयी थी जो मैंने सुना  नहीं, शायद कार्यभार ज्यादा था मैं थक कर नर्सिंगहोम से आई थी -  जबकि मैं तो एक एक बात सुनती और शेयर करती थी माँ से फिर उस दिन मुझे ऐसा क्या हुवा था जो मैंने कुछ नहीं सूना ) … वह फिर बोली थी …सुन ले बाद में मत कहना कि माँ उस दिन कुछ कहना चाहती थी जो मैंने नहीं सुनालेकिन खबरदार मैं दुनिया छोड़ कर चली भी गयी तो  रोना मत, आत्मा को कष्ट होता है, और जो दुनिया में है उसे जीना होता है, तुम्हारे बच्चे है उनके लिए  हँसो खेलो ..हमने अपना कर्तव्य पूरा किया …लेकिन वो जो कहना चाहती थी वो  मैंने नहीं सुना …. बस तीसरे दिन माँ बिन बात के पेट दर्द बता कर चली गयी और जाते जाते कहती गयी कि मुझे जरा सहारे से उठाओ …मैं तुम लोगो के लिए खाना बना देती हूँ … सब्जी ना भी बना पायी तो सलाद खा लेना ..पर भूखे मत रहना … माँ बहुत ही care taking थी और मन से मजबूत उनकी कितनी ज्यादा तबियत खराब रही होगी जो वो दुनियाँ छोड़ कर चली गयीं पर मैं उनकी पीड़ा नहीं समझ सकी और वो भी कराही नहीं … जब उन्होंने शरीर छोड़ा हम रो रहे थे लेकिन जब माँ के चेहरे पर नजर गयी वह इतनी शांत और मुस्कुरा रही थी … और मुस्कुराते हुवे ही उनके ओज पूर्ण चेहरे ने हमें अपने जाने के बाद भी मुस्कुराने का सबक दिया….. लेकिन मेरे दिल में नस्तर की तरह आज भी वह बात चुभती है जब माँ की बात मैंने सुनी नहीं और वह कह रही थी बाद में मत कहना कि मैंने उनकी बात नहीं सुनी … और सच में आज मेरी जुबान पर यही बात रह गयी कि उस दिन मैंने उनकी बात नहीं सुनी …
अब सोचती हूँ जीते जी हम अपनों की बात नहीं सुनते बाद में पछतावे के अलावा कुछ भी नहीं होता |  अगर कोई बीमार आदमी मृत्यु सैया पर भी कुछ कहना चाहता है तो उसके अपने कहते है कि तुम्हें कुछ नहीं होने वाला और उसकी बात को सुना नहीं जाता ….. मेरा मानना है कि हमें उनकी बात भी पूरी तरह से सुननी चाहिए …. बाद में उसकी कोई गुंजाइश नहीं होती… पछता कर भी कुछ नहीं मिलता ..

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फूलों की कोमलता

चाँद की शीतलता

सूरज की रौशनी

दूध  की सफेदी

सितारों की आँखमिचौली 

श्लोको का आध्यात्म

वचनों  की प्रतिबद्धता

पवित्र मंदिर में रमा देवत्व

पानी सी पारदर्शी घुलनशीलता 

शब्दों में बसी शहद की मिठास

संगीत की लय

प्यार का रेशमी अहसास

पूजा की घंटियों की आवाज

धरती सा विस्तार

आकाश सा अनंत असीम प्यार

समीर में बसा वेग

ब्रह्मांड की ऊर्जा

साधुवों का तेज

नदी सी निर्मलता

पेड़ की छाँव

मेरा गाँव

दादी चाची सखी का भाव     

सब तुझसे ही  था माँ

तेरे  आँचल की छाँव तले

सब मुझे मिलता था ||

 

अब तुम नहीं हो

न ही वो आँचल है  सर पर मेरे

लेकिन

फूल. चाँद सूरज सितारों में

वचन, शब्द, संगीत में

श्लोकों, पूजा, साधूओं में

धरती आकाश ब्रह्मांड में

भोर दिवस निशा गोधुली में

नदी पहाड़ पेड़ की छाँव में

शहर कस्बे गाँव  में

दादी नानी सखी बहन में

दूध शहद पानी में

पंछी मछली हर प्राणी में

जिधर भी नजर घुमाती हूँ

सब में तुम्हें ही पाती हूँ

तूमने  सबमे अपना विस्तार कर लिया है

और इस विस्तार में मुझे ऐसे घेर लिया है  

जैसे मुझे समेट लिया हो अपने आलिंगन में

मेरे बचपन को फिर से अपनी गोद में भर लिया हो

पहले तुम में मेरी सारी दुनियां थी माँ

अब मेरी सारी दुनिया में तुम ही हो माँ यहाँ ,

मुझे अपने घेरे में घेरे हुवे

अकेली कहीं से भी नहीं  मैं |……… नूतन

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