एक हल्की छुवन जैसे किसी ने मयूरपंख से छु कर प्रेम के अनजान सुप्त समुन्दर में लहरों को जगा दिया हो … . . अनुभूतियां तरंगित हुवी लाज से वह सिमट गयी … माथे पे बूंदें शबनम सी घबरा के निखर गयी … गालों पे सुर्ख गुलाब शरमा के उभर आये .. चितचोर की झलक पे पलकें झुकी जब उठ न पाए … कहने को तो जाने क्या कुछ बहुत न था आवाज बंद थी होंठ लरजाये… अंग अंग बोझिल हुआ मदभरा शुरूर छाये ….. . . यह पहला स्पर्श था सावन का.. बूंदों की रिमझिम पर छुईमुई सी वह लजा जाए |… .... . . डॉ नूतन गैरोला .. ८/१/२०१२,,, ८:१६ सुबह …….मेरी नीजि खींची तस्वीर … घर के आंगन में छुईमुई पे जब फूल खिला तो मैं तस्वीर लिए बिना न रह सकी .. तस्वीर भी आज ही की खींची हुई … |