तुम कहाँ हो सीपी … सागर ने कभी बढ कर दो बूंद भर कर भी नहीं दिया पानी वह अपनी जगह लहराता रहा पानी से भरपूर है यह अहम जरूर भरमाता गया .. कहता था कि आओ कि डूब जाओ छोडो उस किनारे को| या दूर किसी पहाड़ के शिखर पर जाओ, चढते जाओ रात के सर्द अंधेरों में ग्लेशियरों में जाओ, जा कर जम जाओ| या रेत में जा कर भरी दोपहर में मरीचिका के पीछे दौड़ो, अतृप्त प्यास से मर जाओ | …………. और आंखे हैं कि बेहिसाब सागर को सोखती रही बस वह घूंट घूंट चुप चुप पीती रही नमक पानी से रोम रोम भिगोती रहीं जो तरल मिला नहीं कभी सागर से दीवारे सैलाब की फटती रही भीतर से … फिर आँखों में उसकी तलहट से छंट छंट कर कहाँ से आता रहा मोती सा | मोती सा ? हाँ मोती सा … जो अभिव्यक्त होने में सदा शेष रहा फिर भी व्यक्त होने के लिए पुरजोर रहा सिर्फ तुमसे हाँ सिर्फ तुमसे इस तरह जैसे .. कोई शब्द नहीं कोई गीत नहीं आवाज भी थी कोई नहीं| जो गिरा आँख से सिर्फ तुमसे था वह एक बूंद केन्द्र का बिंदु प्रेम का निचोड़ तुम्हारी झोली में आ गिरा, रे सागर! जिसमे मन का हँसना रोना मुस्कुराना प्यार मनुहार सभी कुछ मिला था भावनाएं सान्द्र अति सान्द्र बस ठोस नहीं हुई बचा गई अपना तरल जिसमें दिल की हर पुकार और घना प्यार निहित/बंधा बेहद सान्द्र| वह एक बूंद मौन चाँद को इंगित करता रहा जैसे कहता हो चाँद! बेशक तुम रात के रथ पर मगन कभी रोशन कभी धूमिल कभी आते कभी गुम जाते हो मुझे नजरअंदाज कर चले जाते हो फिर भी उत्तर दिशा की रात का एक ध्रुव हूँ मैं अटल तुम्हारे न आने, चुपके से चले जाने से बेशक अंदर से हिल जाता हूँ फिर भी बिन हिले बिन आशा के बस अडिग अटूट प्रतीक्षा में ! बेशक प्यार के सीपी में उस एक बूँद की मोती बनने को दौड जारी है लेकिन बहना उसकी प्रवृति है ठोस उसकी मृत्यु है वह मृत्यु को नहीं चुनेगा पर शास्वत मृत्यु की ओर सतत चलेगा तुमसे मिलने को …. |
जीती रही जन्म जन्म, पुनश्च- मरती रही, मर मर जीती रही पुनः, चलता रहा सृष्टिक्रम, अंतविहीन पुनरावृत्ति क्रमशः ~~~और यही मेरी कहानी Nutan
Sunday, April 21, 2013
तुम कहाँ हो सीपी
Wednesday, April 10, 2013
हाँ! ये तुम्हीं से हैं|
तुम मेरे अनछुवे ख्वाब हो पाकीजा| जैसे किसी बच्चे की झोली में आ गिरे एक डॉलर हो बेहद अनमोल, खर्च करने लायक नहीं हो जो सिक्कों की तरह| तंगहाली में भी पेट की भूख में भी रहता है उसकी जेब में बंद एक रोटी की तरह एक सूरज की तरह| तुम मेरी पलकों में छुपा कर रखे हुए अदेखे ख्वाब हो जिसे रोज प्रस्फुटित होते देखती हूं खुद के भीतर | जैसे एक पुरानी बंद बेशकीमती इत्र की शीशी में सुकूने जिंदगी की खुश्बू जो खुलती नहीं है बाहर सदा महकती रहती है ‘साँसों के साथ मन के भीतर| ख्वाब पूरा होने के लिए नहीं कि फिर एक नया ख्वाब ले जन्म तुम्हारा अधूरापन ही बेहतर है| इससे पहले की नींद पूरी हो और ख्वाब टूट जाए नहीं नहीं मैं तुम्हें बसने नहीं दूंगी पलकों पे पूर्ण हो कर तुम्हें लुप्त भी न होने दूंगी, तुम शेष रहोगे हमेशा अशेष संभावनाओं के साथ सदा रहोगे विशेष बन् कर मेरी आँखों में चमक मेरी आँखों की नमी | हाँ ! ये तुम्हीं से हैं |
…………………….~nutan~
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