Saturday, June 29, 2013

मन देशी परदेश से




rudra17b


शायद मैं अपना सब कुछ बचा जाना चाहती थी

तुमसे दूर कूच कर जाना चाहती थी .....

पेड़ पहाड़ झरने गाँव

खेत खलिहान रहट छाँव

सबसे दूर कहीं दूर

मेहराब वाली घनी आबादियों में ..

इसलिए मैंने सांकलों में

जड़ दिए थे ताले

और तुम देते रहे दस्तक

कि कभी तो दस्तक की आवाज पहुँच सके मुझ तक

और मैंने कान कर लिए थे बंद

नजरे फेर ली थी

लेकिन दिल और दिमाग

के लिए

न हाथ थे कोई न ऐसी कोई रुई

बस वो चलते रहे चलते रहे .......

इसलिए आकाश मे जब भी उमड़ते है बादल

बित्ता भर खुशी के पीछे हजार आंसुओं का गम लिए

मैं व्याकुल हो जाती हूँ

अपनी जड़ों तक पहुँच जाती हूँ

समझने लगती हूँ कि

इन जड़ों के बचे रहने का मतलब

कितना जरूरी है मेरे लिए,

जैसे बनाए रखना पहचान को

बनाए रखना अपने होने के भान को....

नहीं तो सूखा दरख़्त हो जाउंगी

ध्ररधरा के गिर जाउंगी

ढहते पहाड़ों की तरह ………..

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मेरे अस्तित्व का पहाड़ बना रहे|………………. ~nutan~

Friday, June 28, 2013

तुम्हें याद न करूँ तो बेहतर

उत्तराखंड में अपने पीडितों के दर्द को देख दिल रो उठता है बार बार
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 wound-graham-dean


तुम्हें याद न करूँ तो बेहतर ....

मेरी परछाइयाँ

जब

डूब गयी पानी मे

और बेअदब

चिल्लाते हुए बादल

फिर उमड़ रहे है ....

परछाइयां

सतहों से उठ उठ मांगती हैं

हिसाब अपना

लेना देना ...……………….

अभी हजारों जीवन बन् चुके है कर्ज तुझ पे

माटी से रूह खंडित की है तुने

चलती फिरती वो परछाइयां

किधर खो गयी है

मिट्टी पानी हो गयी हैं ...……. ..

उन परछाइयों को छूना चाहती हूँ अब भी

और इस प्रयास में

दिल पर इक गहरा जख्म टीस करता है

लहू धार धार बिखरने लगता है .............. ~nutan~


Monday, June 10, 2013

मुझे मेरी पहचना चाहिए -



और मुजरा चलता रहा” 

मेरी लिखी एक कहानी से ….

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शहर की बस्ती में

जब झिलमिलाने लगती है लाल बत्तियां

छन से घुंघुरू गीत गाते हैं

तेरे लिए ...

रातों की स्याही से लिख देती हूँ

चांदनी के उजालो में

कुछ दर्द कुछ मुहब्बत

तेरे हिस्से के .....

के गीत किसी दिन बन पड़े

के गुनगुनाये सारा जहाँ

दिन के उजालों में

मेरे लिए ....

अबकी आओ तो न जाने के लिए आना

जाओ तो संग मुझे लेते जाना

आना तो समझ के यह आना

के मुझे मेरी पहचान चाहिए

मुझे तेरा नाम चाहिए ........………………….. ~nutan~



Monday, June 3, 2013

तेरा मेरा होना - डॉ नूतन गैरोला



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तेरा मेरा होना
जैसे न होना एक सदी का
वक्त के परतों के भीतर
एक इतिहास दबा सा |
जैसे पत्थरों के बर्तनों मे
अधपका हुआ सा खाना
और गुफा मे एक चूल्हा
और चूल्हे में आग का होना |
तेरा मेरा होना
जैसे खंडहर की सिलाब में
बीती बारिश का रिमझिम होना
और दीवारों की नक्काशियों में
मुस्कुराते हुए चेहरों का होना|

........................................
तेरा मेरा होना
जैसे कोयले का आग के पीछे
हरेभरे बरगद का होना
और एक सकुन भरी शीतल छाया में
कुछ पल तेरा मेरा होना ...
तेरा मेरा होना
समय रेखा के दूसरे छोर के पर 
जैसे धरती के सीने से

प्रस्फुटित होने वाले बीज के भीतर
अंकुरित नवकोपल में
एक पीपल का होना|

...............................
तेरा होना होगा
कि जैसे बारिश का होना,

एक अरसे सूखे के बाद

और

धरती का सोंधी खुश्बू से

भीग भीग तर हो जाना|

तेरा मेरा होना
कि जैसे हो महकती हुई बासमती,

किसी भूख से भरी लंबी दोपहर के बाद

और तृप्त हो जाना |
कि जैसे एक सूखी सुराही में
भर दिया हो पानी
महकने लगे सुराही माटी की
पानी का

शीतल मीठा हो जाना|

तेरा मेरा होना है
कि जैसे जन्मों की प्यास

बुझाने का संकल्प

अमृत और क्षुधा का|

......................................

तेरा मेरा होना,

जैसे होना रहा हो
सूत्रधार प्राचीनतम इतिहास का
कि जैसे दो रूहों से संस्कृतियों का उदय होना

और दो रूहों का होना विलय जीवन में|

औरयह होना जैसे आज इस तारीख में

स्पंदन हो जीवन का
जिससे धडक रहा है

दिल माटी की देह के भीतर |
और तेरा भविष्य के आँचल में खोना

होगा मेरा, तेरे इतिहास में होना|

.........................................

तेरा मेरा होना

एक अकाट्य सत्य का होना

जैसे सूरज को

चाँद का, रात के घूंघट मे

शीतलता से भर देना|

और सुबह सवेरे सूरज का

रात के ठन्डे चाँद को

अपनी गुनगुनी नीली बाँहों के

आगोश में

छुपा कर भर लेना|

और चाँद सूरज कहते हैं

तुम हो, मैं हूँ और है वही तथस्ट आसमान

तभी लिखती है माटी कि
पूर्वार्ध मे भी तेरा होंना था,

उत्तरार्ध में भी तेरा होना है
जैसे आदि भी तुम थे, अनादी भी तुम्ही हो

और रहोगे तुम्ही सदा
तुम मेरे आगे और मैं तुम्हारे आगे
तुम मेरे पीछे और मैं तुम्हारे पीछे

इस ब्रह्मांड की परिधि में
एक दूजे की परछाई से
जन्मों से जन्मों तक
इस मिट्टी को जीवन देते
कतरा कतरा रूह बन कर|
तेरा मेरा होना
होगा शास्वत निरंतर
सृष्टि से सृष्टि तक
पुनश्च पुनश्च क्रमशः |

……………………………………………….. ~nutan~


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