उसने देखी थी
तस्वीर
अपनी ही सखी की
जिसमे स्त्री हो जाती है
जंगली
जिसके तन पर उग आती है
पत्तियाँ
बलखाती बेलें अनावृत सी
कुछ टीले टापू और ढलानें
और
जंगल के बीच अलमस्त बैठी वह
स्त्री
सारा जंगल समेटे हुए
प्रशंसक हैं कि टकटकी बाँध घेरे
हुए तस्वीर को
और चितेरे अपने मन के रंग भरते
हुए ..........
तब धिक्कारती है वह अपने
भीतर की स्त्री को
कि जिसने
देह के सजीले पुष्प और महक को
छुपा कर रखा बरसों
किसी तहखाने में जन्मों से
कितने ही मौसमों तक
और तंग आ चुकती है वह तब
कितने ही मौसमों तक
और तंग आ चुकती है वह तब
दुनिया
भर के आवरण और लाग लपेटों से.................
वह कुत्ते की दुम को सीधा
करना चाहती है
ठीक वैसे ही जैसे वह चाहती
है जंगली हो जाना
लेकिन उसके भीतर का जंगल
जिधर खुलता है
उधर बहती है एक नदी
संस्कारों की
जिसके पानी के ऊपर हरहरा
रहा है बेमौसमी जंगल
और वह देखती है एक मछली में खुद को
जो तैर रही है पानी में.....................
वह कुढती है खुद से
वह उठाती है कलम
और कागज में खींचना चाहती
है एक जंगल बेतरतीब
पर शब्द हैं उसके कि जंगली
हो नहीं पाते
ईमानदारी से जानने लगी
है वह
जंगली होना कितना कठिन है
असंभव
ही नहीं उसके लिए नामुमकिन है
वह छटपटाती है
हाथ पैर मारती है
वह छटपटाती है
हाथ पैर मारती है
वह मन के विषम जंगल से बाहर
निकल पड़ती है ......
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और जिधर से गुजरती है वह
उसके मन के जंगल से गिर जाता है सहज हरा धरती पर
प्रकृति खिल उठती है
हरियाली लहलहाने लगती है
प्युली खिल उठती है पहाड़ों
में
कोयल गीत गाती है
और बसंत मुस्कुराता है
................................ ~nutan~कोयल गीत गाती है
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बसंतपंचमी पर शुभकामनाएं