छत्तीसगढ़ में नसबंदी केम्प . एक नजरिया
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बहुत शर्मनाक ढंग से छत्तीसगढ़ का नाम आज सुर्ख़ियों में है ... यह होना ही था कहीं न कहीं, कभी न कभी ... और यह स्तिथि देश के किसी भी कोने में हो सकती है ... महिलायें कोई गाजर मूली नहीं कि पेट में चाक मारा और औजार अन्दर .. आखिरकार एक ओपरेटिव प्रोसीजर है यह ... जिसके लिए औजारों का प्रॉपर स्टर्लाइजेशन ही नहीं मरीजों का सही चयन भी जरूरी है जो इस तरह के ऑपरेशन को बर्दास्त कर सके और सही परिणाम भी हासिल हों मतलब कि अपने मकसद में सफल ऑपरेशन हों जिसमें नसबंदी हो जाने के साथ साथ महिला का स्वास्थ भी दुरुस्त रहे ... किन्तु बड़े बड़े टार्गेट और वह भी केम्पों में .. भेड़ बकरी की तरह महिलायें लायी जाती हैं ... और बहुदा ओपरेशन थियेटर से बाहर कभी किसी प्राइमरी स्कूल के कमरे में तो कभी कहीं भी उपलब्ध जगहों ने केम्प लगा दिया जाता है ... और बाहर भीड़ अपने नम्बरों की इंतजारी में .... नसबंदी केम्प में मरीजों के ओपरेशन के लिए संख्याएं लिमिटेड की जानी चाहएं ... ताकि चिकित्सक पर कोई अतिरिक्त दबाव न हो ...
केम्प के बाहर का परिदृश्य अलग ही होता है, किसी मज़मा मेला जैसा ... आशाएं (संपर्क कार्यकर्ता ) अपने अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए कभी कभी क्वालिटी बेस मरीज नहीं क्वानटीटी बेस मरीज / महिलायें ले आती है .... मतलब की जो महिलायें फर्टिलिटी के दायरे बाहर है उन्हें भी लाया जाता है क्यूंकि उनके ऊपर अधिक से अधिक केस लाने का भी दबाव होता है कि केम्प लग रहा है तुम लोग लक्ष्यों को पूरा करेंगी ( उनको कभी कभी बात करते सुनते है तो वे कह रही होती हैं कहाँ से लाये सबका तो ओपरेशन हो गया है अब जिनकी शादी अभी हुई है जिनको बच्चे चाहिए उन्हें तो नहीं लाया जा सकता है ) फिर प्रोत्साहन राशि अलग बात है जरूरी नहीं कि इसका प्रलोभन हो ... तब सभी आशाकार्यकर्ता, हेल्थ विसिटर यहाँ तक की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सब ध्येय की पूर्ती में लग जाते है .. और प्रत्येक केस पर उन्हें एक धनराशी भी दी जाती है ... महिला के केस के लिए जहाँ लगभग १५०रु ? प्रत्येक केस वहीँ पुरुष नसबंदी के लिए ३५०रु ? प्रत्येक केश ... फिर ३ केस एक ही आशा के होने पर उसे अतिरिक्त मान देय होता है और जनसंख्या नियंत्रण पखवाड़ों पर ५ केस पर भी अतिरिक्त राशि मिलती है ...
.हां! पर यह भी सत्य है कि पुरुष नसबंदी के लिए आगे नहीं आते ...जबकि उनका ऑपरेशन सुपरफिसियल स्किन पंक्चर जैसा है और पेट या आँतों के ऊपर से हो कर कोई औजार नहीं गुजरता .. फिर भी सामाजिक मान्यताओं के चलते और कुछ अदद अंधविश्वास के चलते कि पुरुष की पौरुषता चली जायेगी या पुरुष नामर्द हो जाएगा या कमजोर पड़ जाएगा, पुरुष तो पुरुष महिलायें भी अपने पति को ओपरेशन के लिए आगे नहीं करती| घर की माएं भी कहती हैं की अरे हमारा लल्ला / बेटा भारी काम करता है, ओपरेशन तो उसका नहीं कराना हमें .. मतलब औरत रह जाती है ओपरेशन के लिएचाहे वह बीमार हो या कमजोर .. और नहीं करवाएगी तो कितने बच्चों को जन्म देगी या फिर बार बार के गर्भपात ..या फिर दवाइयां खा कर दवाइयों के साइड इफेक्ट को झेलो या कभी दवा खाने में भूल हुई तो विड्रोल ब्लीडिंग का शिकार या फिर अनचाहा गर्भ ......... ऐसे ही इंट्रायूटेराइन कोंट्रासेप्टिव डिवाइस की भी अपनी एक क्षमता है और मरीज का अक्सेपटेंस भी जरूरी है ......... तो वह महिला ही है जिसे हार थक कर ओपरेशन करवाने आना पड़ता है ..... तिस पर गाँवों में महिला रक्ताल्पता का शिकार ( anemia , बच्चेदानी की, ट्यूब की सूजन ( PID, Salpingitis, Fibroid आदि से ग्रस्त भी होती है तो कब ख्याल किया जाता है .. उनका BP सुगर लेवल कैसा है यह भी कौन देख रहा .. घर गाँव के काम से समय निकाल आशा दीदी के साथ चल देती है ऐसे जैसे कोई मेटिनी शो देखने जा रही हों ... इसके लिए उनकी पहले ही जांच हो जानी चाहिए घरों में या ओपरेशन से पहले एक दो माह से अस्पताल में उनका पूरा चेकअप ... किन्तु आज कल नीतियों ने इसे इतना सरल दिखाया है कि लगता है मानो सच में यह ओपरेशन न हुआ कोई इंजेक्शन लगाना हुआ|
यह एक बहुत दुखद स्तिथि है कि सरकार जिस चिकित्सक को उसके त्वरित सेवा के लिए सम्मानित करती है अगले ही साल उसके सधे तेज हाथों से इतने सारी महिलायें कालकल्पित हुई ... अगर एक चिकित्सक की तरह सोचूं और गहरे इन तथ्यों को खंगालूं .... तो यही साफ़ दृष्टिगत होता है कि किसी भी औजार को पूरी तरह से स्टरिलाइज होने में कम से कम आधा घंटा लगता है और यहाँ दो ओपरेशन के बीच आधा घंटे का स्पेस देना मतलब एक बहुत बड़ी मुसीबत को बुलावा देना होगा ... अक्सर यह देखा गया है कि किसी के ओपरेशन में देर हो रही हो या किसी को मना किया जा रहा हो तो केम्प में हंगामा खडा हो जाता है ... चिकित्सक के ऊपर शासन का ही दबाव नहीं होता बल्कि महिला के परिवार के साथ उन्हें वहां तक लाने वालों का भी बहुत बड़ा दबाव होता है| जहाँ तक लगता है यह किसी तरह का संक्रमण था जो शल्य के बाद महिलाओं में फैला| एक दिन में अगर कई ओपरेशन रखे जाएँ तो यह हश्र जो हुआ उसकी संभावना बनी रहती है| और जो हुआ वह बहुत ही दुखद और हृदयविदारक है कि महिलाएं किन किन सपनों के साथ आयीं थी होंगी वे और अपना घर परिवार सब छोड़ चल दी|
जहाँ तक मेरा मानना है
· बंधीकरण इतिहास में वास्तव में पशुवों का किया जाता था, स्थायी तरीकों के अलावा भी हमारे पास अन्य बेहतर तरीकें हैं जिनकी जानकारी लाभार्थी को होनी चाहिए पर अगर आज के आधुनिक युग में जबकि साधन उपब्ध है, जानकारी उपलब्ध है अच्छे एंटीबायोटिक हैं ओपरेशन के लिए दूरबीन है तब भी तमाम ऐहतियात के साथ ही बंधीकरण/नसबंदी किया जाना चाहिए|
· शासन की ओर से कार्यकर्ताओं पर कोई भी दबाव नहीं होना चाहिए| टारगेट जैसी संख्याएं नहीं होनी चाहिए| शिविर में लिमिटेड संख्या को ही एक दिन के लिए रजिस्टर करना चाहिए ताकि औजारों को ईस्टरलाइज करने का समय मिले|
· बड़ी संख्या में लाभार्थियों के आने से केम्प में अफरा तफरी सी बनी रहती है| यह बहुत ज्यादा लोगो का आना सबसे ज्यादा गड़बड़ी को फैलाता है|
· चूँकि परिवार नियोजन केम्प में काफी तादाद में ओपरेशन होते है अतः वहां लेप्रोस्कोप और अन्य टाँके लगाने और ओपरेशन के औजार कई होने चाहिए ताकि जब शल्य क्रिया हो रही हो उस वक्त कुछ अन्य औजार और लेप्रोस्कोप स्टेरीलाईजेशन में संक्रमण विहीन हो रहें हों जो कि दुसरे तीसरे केस के लिए प्रयोग करने के लायक सही हों||
· इसके लिए प्रोत्साहन राशि अलग से न हो| महिलाओं और पुरुष को प्रोत्साहन राशि मिल जाने की ख़ुशी के लिए नहीं बल्कि स्वस्थ परिवार स्वस्थ समाज, और छोटा परिवार सुखी परिवार जैसी उनकी निजी और सामाजिक उपलब्धता के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए|
· मुझे लगता है कि हर अस्पताल में एक अलग यूनिट होनी चाहिए जो नसबंदी के लिए आने वाले लाभार्थी को पूरी साफ़ सफाई और समय के साथ हर रोज नसबंदी के लिए आने वालों को यह सुविधा दें|
· अगर केम्प हो तो लाभार्थी महिला पुरुष का स्वास्थ परिक्षण और परिवार नियोजन सम्बंधित काउंसलिंग नियोजित तरीके से पहले ही होनी चाहिए|
---------------------- इसके लिए चिकित्सकों को इधर से उधर पटका जाए या उनको गुनाहगार ठहराने की बजाये शासन परिवार नियोजन शिविर के लिए सही नीतियों का निर्धारण करें... संख्याओं पर ही आधारित नहीं बल्कि गुणवत्ता पर ज्यादा ध्यान दें|