एक दिन कुबेर जी
साधू वेश में
मेरे घर आये|
कुछ दंभ में ऐंठे इतराये |
बोले - सुन
दुनियाँ जहां की दौलत है मुट्ठी में मेरी,
हर ख्वाहिश को मैं पूरी कर दूँगा तेरी|
मैं गर चाहूं तो एक नयी दुनियाँ बसा दूं,
तेरी टूटी झोपड़ी को भी महल बना दूं |
बोल बच्चा तुझे क्या चाहिए ?
मैंने तब उनके कान में
धीमे से बोला,
चंद शब्दों में
अपनी इच्छा का राज खोला |
कुबेर जी सकुचाए घबराये
उल्टे पैर दौड़ते नजर आये |
जानोगे मैंने उनसे क्या माँगा था?
मैंने मांगी थी सच्ची खुशियाँ
और गलती से मांग लिया था
कि इस दुनियां में मिले एक अदद
स्वार्थहीन सच्चा प्यार |
….. नूतन .. १५ – १२ – २०११ १६:४६ मं
आज की दुनियां में सच्चा प्यार मिलना असम्भव सा है... प्रेमी मन में स्वार्थ कब बिन दस्तक दिए प्रवेश कर जाता है और प्रेम के रंग में घुल मिल जाता है कि प्रेम और स्वार्थ अलग अलग नहीं दिखाई देते हैं| माँ जिसका प्रेम अपनी संतान के लिए इस संसार में सबसे ऊँचा दर्जा रखता है, बिना शर्त प्रेम / Unconditional love होते हुवे भी कहीं ना कहीं बच्चों से अपेक्षा रखता है| ऐसे में निस्वार्थ प्रेम की सुलभता पर यही कहूँगी कि यह अति अति अति ही दुर्लभ है |
सच्चा सुख तो आपसी प्रेम में निहित है जिसका मोल धन से नहीं लगाया जा सकता है..धन से भौतिक वस्तुवों को ख़रीदा जा सकता है यह खुशियों का क्षणिक भ्रम तो पैदा कर सकता है पर सच्चा सुख नहीं दी सकता जो रिश्तों में प्रेम भाव में हैं ..भौतिक वस्तुवों की भांति प्रेम वह भी निस्वार्थ प्रेम कभी भी पैसों से नहीं ख़रीदा जा सकता चाहे कुबेर जी ही क्यूं ना खरीदना चाहें .. इसलिए इस कविता में कुबेर जी इस खरीद के लिए उल्टे पैर वापस जाते दिखाई दिए |
बस एक ही प्रेम है जो निस्वार्थ होता है वो है ईश्वर का प्रेम अपने भक्त के प्रति .. और इस ओर राकेश जी ने ध्यान दिलाया उनका धन्यवाद | और हम "त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधू च सखा त्वमेव, की भावना को अंगीकार करें तो सारी खुशियाँ हमें सुलभ है|
सधन्यवाद - नूतन
|
प्यार के कुबेर की प्रतीक्षा हमको भी है।
ReplyDeleteस्वार्थहीन सच्चा प्यार कुबेर के खजाने में नही होता,
ReplyDeleteयह बात तो तय है जी ?
फिर कहाँ मिलेगा,यह भी तो विचारणीय है.
माँ के आँचल में,पिता की आँखों में
दोस्त की बाँहों में या... अब आप ही बताएं नूतन जी.
ईश्वर के रूप में ध्यान करें तो
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बंधू श्च सखा त्वमेव
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार आपका.
Waah !!
ReplyDeletesunder, aaj ki yahi sacchaai hai..
आदरणीय राकेश जी! यह कविता यही बात कहती है कि १)प्रेम में आज स्वार्थ कब मिल जाता है यह कोई नहीं जान पाता .. माँ बच्चे को कितना भी प्यार करती है और कितनी ही बुरी हो संतान वह उसे प्यार करती है किन्तु कहीं ना कहीं अपेक्षा भी रखती है .. और माँ पिता के तुल्य प्रेम मिलना बहुत कठिन है ..इसलिए स्वार्थहीन प्रेम बहुत दुर्लभ है .. २) सच्चा प्रेम और सच्ची खुशियाँ धन से अर्जित नहीं की जा सकती ..चाहे वह कुबेर ही क्यों न हो .. भौतिक वस्तुवों से मन बहलाया जा सकता है पर यथार्त में वे सच्ची खुशियाँ नहीं .. ईश्वर हां ईश्वर का प्रेम निस्वार्थ है.. आपकी टिपण्णी के लिए सादर आभार ..
ReplyDeleteप्रवीण जी, संतोष जी और डॉ रूप चन्द्र शास्त्री जी को सादर धन्यवाद !
ReplyDeleteवाह।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
मांग सही थी मगर समय और दाता?
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteप्रिय नूतन जी, सच्चा प्यार तो कोई खुद को खुद ही कर सकता है..लेकिन उसके लिये खुद से मिलना भी तो होगा...
ReplyDeleteबेहतरीन कहा है आपने ..!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ...!
मेरे ब्लॉग पे आपका हार्दिक स्वागत है !
मनुष्य निस्वार्थ प्रेम नहीं कर सकता।
ReplyDeleteऐसा प्रेम भगवान ही करते हैं, अपने भक्तों के प्रति।
सुंदर रचना।
बहुत सुन्दर भावप्रधान रचना..मेरी नई पोस्ट में आप का स्वागत है...
ReplyDeleteaisi maang ho to kuber ji ko to bhaagna hi thaa. kahaan se dete wo swaartyheen prem? bahut achchhi rachna, badhai.
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है आपने! उम्दा रचना! बधाई!
ReplyDeleteमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
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sach jahan pyar nahi wahan sab vyarth hai..
ReplyDeleteishwariya prem hi niswarth hai yah bilkul sahi hai lekin log ishwar se bhi kuch n kuch mangne se kahan baaj aate hain...
..sundar prerak rachna aur chintanshell aalekh ...
My greetings from France!
ReplyDeleteThank you for your visit to my blog, and especially for your comment
After visiting your blog, I could not leave without putting a comment.
My Blog Is in French, on the right goal Is The Google translator!
And for me, you who is in Hindi I come to understand
very nice poem at the beginning!
I commend you for your blog
Every day is unique, every year is a promise of joy and discovery.
That 2012 is a special year for you, thousands of small joys embellish your life, and that the next twelve months or months for you all the success, professional success and personal success.
So for this New Year, I wish you to dare.
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friendly
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मुबारक हो तुम और तुम्हारे पूरे परिवार को नव वर्ष होगा
is correct?
डॉ.नूतन जी, आपसे ब्लॉग जगत में परिचय होना मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है.बहुत कुछ सीखा और जाना है आपसे.आपके सुवचन मेरे लिए सदा ही बहुत प्रेरक रहे हैं.इस माने में वर्ष २०११ मेरे लिए बहुत शुभ और अच्छा रहा.
ReplyDeleteमैं दुआ और कामना करता हूँ की आनेवाला नववर्ष आपके हमारे जीवन
में नित खुशहाली और मंगलकारी सन्देश लेकर आये.
नववर्ष की आपको व आपके समस्त परिवार को बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
डॉ.गैरोला जी और भाई श्री प्रकाश जी से मेरी तरफ से अनुरोध कीजियेगा कि वे भी मेरी पोस्ट 'हनुमान लीला भाग-२'पर दर्शन
दें.आप सभी के प्यार और स्नेह का मैं अत्यंत आभारी हूँ.
बहुत सुंदर प्रस्तुति.....नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteआपको सपरिवार नववर्ष २०१२ की हार्दिक शुभकामनायें..
ReplyDelete▬● नूतन , अच्छा लगा आपकी पोस्ट को देखकर...
ReplyDeleteयह पेज देखकर और भी अच्छा लगा... काफी मेहनत की गयी है इसमें...
नव वर्ष की पूर्व संध्या पर आपके लिए सपरिवार शुभकामनायें...
मेरे ब्लॉग्स की तरफ भी आयें तो मुझे बेहद खुशी होगी...
[1] Gaane Anjaane | A Music Library (Bhoole Din, Bisri Yaaden..)
[2] Meri Lekhani, Mere Vichar..
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bahut hi sundar ...kuch mange badi muslil hoti hai ....
ReplyDeleteआभार इस असाधारण प्रस्तुति के लिए .नव वर्ष मुबारक .साल की हर सुबह शाम मुबारक .
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