जब चाय बनाना एक ड्यूटी था कैसे दिन थे वो ..मेडिकल कॉलेज में प्रथम वर्ष .. रेगिंग बहुत हुआ करती थी .. और हम बेचारे पहले साल में जो पदार्पण किया कि सर पर ओले गिरने लगे .. एक तो नजर जमीन पर और ठुड्डी छाती से सटी होनी चाहिए जिससे गर्दन के तो मारे दर्द के बुरे हाल हो जाते थे ..तिस पर सीनियर को एक नजर पहचान भर के लिए भी नहीं देख सकते थे … उनकी पहचान या तो उनकी आवाज होती थी या उनके जूते या पैर| उनसे पूछना उनका परिचय तो - आ बैल मुझे मार जैसी स्तिथि हो जाती थी तो उन्हें सिर्फ पैरों जूतों और आवाज से पहचानना पड़ता था .. और किसी भी कार्य के लिए हम मग्घे ( मेडिकल भाषा में मग्घे का मतलब बेवकूफ) बालों में लगे टपकते तेल के साथ ( जो कि अनिवार्यता थी प्रथम वर्ष की छात्रों के लिए कि उनके सर के बाल कस कर बंधे हों और तेल से नहाये हों, पूरा मुह भी तेल तेल हुवा रहता था व सर नीचे और घुटनों से नीचे तक झूलता हुवा एप्रिन)… तो क्या कह रही थी -- हां बता रही थी कि अगर किसी कार्य के लिए प्रथम वर्ष का छात्रा कमरे से बाहर निकली नहीं कि सीनियर के हत्थे चढ़ जाती थी .. अगर रेगिंग नहीं हुवी तो गनीमत फिर भी स्नानागार तक या मेस तक जाते जाते कई सीनियर लड़कियों के साथ उनके कार्य निबटाने का अनुबंध हो जाता था ( मन से नहीं भय से और रेगिंग की आवश्यकता की वजह से) ..अनुबंध में तीन काम खास होते थे १) चाय/ कोफी बनाना २ ) बाजार जा कर उनके लिए परचेसिंग करना ३) नोट्स कॉपी करना ४) रेगिंग के लिए तैयार ५) अन्य कोई भी काम कोई सीनियर कहती ए लड़की कहाँ से आयी है तू और किस कमरे में रहती है .. हम अपना परिचय उनको बताते - वो भी मेडिकल भाषा में - फिर वो कहती आज रात डेढ बजे मेरे कमरे में चाय बनाने आ जाना … जी हाँ सर हिलाना ..और आगे बढ़ना कि दूसरी पकड़ लेती फिर वही अपना परिचय कि …मैं सड़ी गली चमन नूतन चमन अपने माता पिता की सड़ीगली संतान अपने सड़े गले शहर से ..जमात पास कर के आपके पवित्र पावन शहर कानपुर में मिया बीबी बच्चों सहित अपना घर बसाने आई हूँ .. वह भी एक खास अंदाज में उड़ते हुवे उन्हें सलाम बजाते हुए | फिर वही हुक्मनामा कॉफी बनाने आ जाना रात २ बजे .. जी कह कर सर हिलाना ..अपने मस्तष्क की डायरी में नोट कर लेना कि कैसी आवाज थी कौन सीनियर थी कहाँ कहाँ कमरा होगा कितने बजे का समय मिला.. इसी पशोपेश में होते की फिर कड़क आवाज और वही हुक्मनामा चाय बना देना ३ बजे आ कर .. जी हाँ … आगे बड़े की फिर एक सीनियर ने पकड लिया .. चल तू मेरे कमरे में कभी नहीं आई आज मेरे कमरे में डेड बजे चाय बना देना ..तब बेचारी प्रथम वर्ष की छात्र कहती कि डेड बजे तो मुझे पहले ही “अ जी” ने बुलाया है … तो डाँट पड़ जाती ज्यादा होशियारी मत बघार जो कहा गया वही करो .. और जब तक मेस या स्नानागार पहुचते झोली में चाय या कॉफी बनाने के बीसियों अनुबंध … अब तो सारी रात आँखों में गुजर जायेगी कल सुबह खुद बिना पढ़े कॉलेज जायेंगे और प्रोफ़ेसर की डाँट खायेंगे .. चलो ये ही सही कम से कम रात भर काम करेंगे तो रेगिंग से तो बच जायेंगे लेकिन यह भी तो रेगिंग ही थी … मेस में या बाथरूम में साथ की सहेली मिलती उस से पूछ कर कन्फर्म करते कि किस कमरे में कौन सी सीनियर है ..वो झट से एक पर्ची निकालती जिसमे सीनियर्स के कमरा नंबर उनकी विशेषताएं लिखी रहती और यह भी कि वह कितनी खतरनाक होंगी | वापसी में भी वही सिलसिला और गलती से जब कहा की आज तो फुर्सत नहीं होगी रात भर में कई सीनियर ने चाय बनाने के लिए कहा तो फिर तो हल्ला मच जाता कि बहुत बकैत है यह जूनियर …चलो कमरा नंबर ५ में …वहाँ पहुँचते तो वहाँ अपने जैसे किसी एक को ना कहने वाली जूनियरों की भीड़ मिल जाती जिनकी अच्छी खासी रेगिंग कई सीनियर मिल ले रही होती.. बस तब तो डाँट खाते रहते ..पैर खड़े खड़े थक जाते और उलजलूल करतब करने को कहा जाता .. फिर घडी में नजर डेड बज गया ..उन्होंने चाय के लिए कहा था और उन्होंने डेड बजे काफी के लिए …जैसे तैसे कहते कि हमें चाय/ काफी बनाने के लिए बुलाया है ..पक्का करने के लिए एक जूनियर को भेजा जाता और कन्फर्म होने पर उस कमरे की कैद से निकल पाते लेकिन स्तिथि वही कि आसमान से गिरे खजूर पे अटके… अब ब जी की चाय बनानी है और र जी की कॉफी लेकिन ब जी तो दूसरे फ्लोर में रहती है वो भी नए खंड में ..जबकि र जी तो पुराने खंड में दूसरे हिस्से में तीसरे फ्लोर में रहती हैं … बस दौड भाग शुरू …बी जी त्योरी चढ़ा कर कहती है देर हो गयी उनके चाय का हीटर में पानी रखा चाय पत्ती डाली और दौड़े ओल्ड ब्लोक की और ..र जी खूंखार हो राखी हैं ..देर कर दी ..चलो अब माफ नहीं करुँगी.. कॉफी इतनी घोटो की सफ़ेद हो जाए ..लेकिन शोर नहीं मचना चाहिए चम्मच का .. पढाई में डिस्टर्ब नहीं करना … कमरे से बाहर फेंटो कॉफी .. और कमरे से बाहर निकलना सही रहता .. मौका मिल जाता फिर दौड कर ब जी की चाय बनाने और र जी की कॉफी फेटते हुवे .. बी जी चिल्लाई चम्मच कप का शोर नहीं .. तो हाथ रोक दिए ..चाय बनायीं ..उनको चाय छान कर दी उनके मेज पर ..उन्होंने किताब से नजर नहीं हटाई ..फिर उनका दरवाजा उड़का कर र जी की और भागी ..कॉफी अभी सफ़ेद नहीं हुवी थी ..उचित जगह देख कर रुकी तेज तेज हाथों से कॉफी फेंटी और दौडी उनके कमरे की ओर..जल्दी से दूध चढ़ाया ….और बस प्रथम वर्ष में यह में यह भागमभाग ही रहा करती थी… कभी सीनियर्स की चाय, कभी कॉफी, कभी नोट्स लिखते कभी उनके लिए परचेसिंग करते मेडिकल कॉलेज का प्रथम वर्ष इतनी जल्दी बीत गया कि मालूम ही नहीं पड़ा लगा कि साल इतना छोटा क्यों होता है, सारी रात जागरण होता था - आज लगता है कितने हसीन थे वो दिन |
जीती रही जन्म जन्म, पुनश्च- मरती रही, मर मर जीती रही पुनः, चलता रहा सृष्टिक्रम, अंतविहीन पुनरावृत्ति क्रमशः ~~~और यही मेरी कहानी Nutan
Friday, January 6, 2012
मेरा प्रेम मेरी चाय - डॉ नूतन गैरोला
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अरे बाप रे बाप !
ReplyDeleteचाय पर इतना कुछ.
चाय भी दम भरती है,
वाह!
फिर आता हूँ,
सच ...चाय बिन तो सारा आलम सूना ..बेहद रोचकता से आपने यह प्रस्तुति दी बहुत ही अच्छी लगी ..आभार सहित बधाई ।
ReplyDeleteबहुत ही मजेदार पोस्ट बिल्कुल चाय की तरह...मेरी छोटी बहन भी डॉक्टर है मेडिकल कॉलेज की आपकी यादें पढ़कर उसकी भी कुछ इसी तरह की बातें याद आ गयीं. बहुत बहुत बधाई इस चाय नामा के लिये...
ReplyDeleteचाय की ताजगी से भरी पोस्ट, पढ़कर आनन्द आ गया।
ReplyDeleteआप ने इतनी चाय पीला दी कि मजा आ गया!....नूतन जी!...नूतन वर्ष की मंगलमय शुभकामनाएं!
ReplyDeletechay ki aadat kabhi jati nahin ant men kali chay par aakar ruk jati hain .tajgi aaa gayi
ReplyDeleteचाय की चुस्की के बगैर तो नींद भी नहीं खुलती| बहुत सुन्दर प्रस्तुति|
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को नये साल की ढेर सारी शुभकामनायें !
ReplyDeleteख़ूबसूरत चित्रों के साथ शानदार प्रस्तुती! चाय की महक और ताजगी के साथ उम्दा पोस्ट!
डाक्टर ने चाय बन्द कर दी है और आप यहां हमें चाय का लालच दे रही हैं। हाय।
ReplyDeleteमुंह में पानी आने लगा... और चाय का मज़ा भी :)
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!!
ReplyDeleteचाय...बहुत कुछ छिपा है इसके प्याले में.
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.com
Chai ka swad bhi banane aur peene kahar umra ke saath badal jata hai,ek chai par etna kuch
ReplyDeleteKAMAL HAI
Padh kar peene ka maja aa gaya
वाह! ताजगी भरी पोस्ट....
ReplyDeleteसादर.
ताज़गी ही ताज़गी, वाह चाय !
ReplyDeleteHello from France
ReplyDeleteAlways great to come to your blog
I wish you a very pleasant day especially since it is the w-end, the rest does not hurt
kisses
Chris
http://nsm01.casimages.com/img/2009/03/27//090327025323505743381382.jpg
फ्रांस से नमस्ते
हमेशा के लिए अपने ब्लॉग के लिए आते हैं महान
मैं एक बहुत ही सुखद दिन आप चाहते हैं, खासकर के बाद से यह w के अंत है, बाकी चोट नहीं करता है
चुम्बन
क्रिस
http://nsm01.casimages.com/img/2009/03/27//090327025323505743381382.jpg
chay ki piyaliyon ke dekhkar chay peene ka man hone laga..mujhe bhi chay bahut pasadan hai aur thand mein chay ka to kya kahana...pahadon mein to aajkal safar mein chay peene se nayee jaan aa jati hain...
ReplyDeletebahut hi sundar prastuti... laga ham bhi jaise in vadiyon mein kahin gum ho gaye hon......
वाह!! चाय? अपना पसंदीदा पेय!! क्या खूब कड़क जानकारी लाई है है आप। आपके ब्लॉग नाम की तरह "अमृतरस है चाय"। आभार
ReplyDeleteवाह! चाय के साथ इतनी रोचक और लंबी गपशप...आभार
ReplyDeleteचाय री चाय
ReplyDeleteआपको इतनी भाय
कि इस बिन रहा न जाये
आपकी पोस्ट पढकर तो
अब जो न पीवे उसको
भी लत जरूर लग जाये.
नूतन जी,मग्गा शब्द मुझे भी याद आ रहा है.हमारे रूडकी युनिवर्सिटी
में इंजीनियरिंग के दौरान. इसी शब्द से पुकारा जाता था , उनको जो बिचारे सीधे साधे पढ़ने में ही लगे रहते थे.
रैगिंग आपने भी जरूर की होगी,उसके बारे में भी बताईयेगा,प्लीज
आपने भी तो चाय बनवाई होगी फ्रेशर्स से.
आपके सुन्दर आलेख को पढ़ कर लगा कि
गरमागरम मस्त चाय का पान कर तन मन
में स्फूर्ति जाग गई हो.
आभार.
आपकी अगली पोस्टों पर मेरे कमेंट्स दिखलाई नही पड़ रहें हैं.
Deletechay aur singapur sb kuchh majedar ....aisa laga jaise sigapur hi pahuch gaya ...achhi prastuti abhar.
ReplyDeleteचाय की तरह ता्जगी भरी पोस्ट..
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