अक्सर अस्पताल मुझे किसी आधुनिक ओस्वित्ज़ केम्प से कम नहीं लगते जिसके प्रांगण में गूंजती है आवाजें करहाने की| जहां रेल में भर कर जोरजबरदस्ती कर लोग लाये नहीं जाते बल्कि आते है लोग खुद बैठ कार टेक्सी इक्का तांगे रिक्शे में | नाजी से कर्मी जुटे रहते है पुरजोर कडा अनुशासन बनाने में और आये हुवे लोगो को भर्ती कर दिया जाता है मरीज का नाम दे कर] उनके कपडे तुरंत बदल दिए जाते है कैदी से कुछ कपड़ों के बदले कुछ के पार्टप्रीपरेसन के नाम पर बाल हटा दिए जाते हैं कुछ महिलाओं की नसों द्वारा दवा चलाने के लिए चूड़ियाँ तोड़ दी जाती हैं और रिश्तेदारों को दूर बाहर कर दिया जाता है समय मिलने का फिक्स कर के| थमा दिया जाता है एक कार्ड हाथ में कि सिर्फ कार्डधारी मिल सकते है उक्त फिक्स सिमित समय में वह भी मुह में ताला लगा कर|
यहाँ गैस चेंबर तो नहीं होते है पर चेंबर जैसे होते है- वार्ड, सी सीयू या आई सी यू और एक अदद ओपरेसन कक्ष| उन पीड़ित मरीजों को अपनों से दूर रखने को एक जल्लाद सा चेहरा लिए निष्ठुर गेटमेन मिलने में रुकावट अड़चन सा यमराज का जैसे द्वारपाल सा| कुछ काम का बहाना करते लोग अंदर जाने को तरसते लोग अपने मरीज से मिलने को व्याकुल लोग गिडगिडाते हाथ जोड़ते लोग वह निष्ठुर अपनी वर्दी का रोब दिखाता निरीह लोगो को दूर भगाता आँख दिखाता ड्यूटी पे डटा गेटमेन और अपने ही आंसूओं को रोकते लोग|
सुबह डॉक्टर के राउंड का वक़्त कोइ नाजी अफसर जैसे आता हो केम्प में वार्ड में मच जाती है अफरातफरी तीमारदार भाग रहे छुप रहे होते है और आया नर्स वार्डबॉय जमदार चिल्ला रहे होते है भागो निकलो वार्ड करो खाली डॉक्टर आ रहा है राउंड पर निकलो भीड़ सारी एक मरीज का नवजात शिशु रो रहा होता है जोर से छीन कर गोद से भेज दिया जाता है बाहर, पिछले मैदान वाले डोर से|
फिर चलता है दौर सुइयों का, कैंचियो का, पट्टियों का बड़ी क्रूरता से बेंधी जाती है सुईयां खींचा जाता है जिस्मानी खून जांच के लिए धकेल दी जाती है दवा जिस्म में नसों से, मांस से| चीर फाड़ और पट्टियाँ पट्टियाँ खींचते ही चीखते हैं लोग कस कर पकड़ लिया जाता है उनका हाथ और कर लिया जाता है मुह बंद फिर तीखी जलती दवाएं, की जाती हैं घावों में प्रवाहित| दुनियां भर की महामारियां क्रंदन, रुदन, सिसकारिया गूंजती है इस आधुनिक औस्विज़ केम्प में
मगर मकसद में निहित रहा बुनियादी अंतर ऑस्च्वित्ज़ केम्प में जान लेना और इस आधुनिक औस्वित्ज़ केम्प में जान फूंकना इस लिए मैंने क्रूरता से नफरत करके भी आधुनिक औस्वित्ज़ केम्प की कमान उठाई है पीड़ितों की पीड़ा मिटाने के लिए स्नेहिल आवाज लगाईं है | ………डॉ नूतन गैरोला .. १६/४ /२०१२ .. ११:४५
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वाह नूतन जी.................
ReplyDeleteकमाल की कल्पनाशक्ति.............
बहुत सुंदर!!!
अनु
अस्पताल के माहौल का सटिक शब्द-चित्रण!....सुन्दर प्रस्तुति!...आभार!
ReplyDeleteएक नया ही संदेश, पीड़ा को पीड़ा से मिटाने का।
ReplyDeleteमकसद ही तो किसी विषय और उसकी सार्थकता को निर्धारित करती है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
अच्छा लिखा है !
ReplyDeleteवाह क्या तुलना की है ... बहुत सुंदर
ReplyDeleteअस्पताल के माहौल का कितना यथार्थ चित्रण किया है आपने, आप जरूर मरीजों का इलाज बहुत प्रेम से करती हैं...बहुत बहुत शुभकामनायें!
ReplyDeleteshandar maksad ko sarthakta pradan karti post.
ReplyDeleteयथार्थ को आइना दिकाती सुन्दर पोस्ट!
ReplyDeleteबुनियादी अंतर तो है ही, एक जगह जान ली जाती है, एक जगह चंद सांसे और बढ़ा दी जाती है।
ReplyDeletebilkul sahmat hoon sachh likha hai apne
ReplyDeleteआप कर सकीं, ऐसे एक व्यक्ति की उपस्थिति भी कारुणिक माहौल को और अधिक मानवीय बनाती है।
ReplyDeleteपिछले दिनों कम सक्रिय रहा ब्लॉग पर.
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर हमेशा नए भाव और सोच
मिलती है,जो दिल को छूती है.
आपकी भावपूर्ण प्रस्तुति हृदयस्पर्शी और मार्मिक है.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
औस्वित्ज़ के बारे में आपकी जानकारी किन सूत्रों से हुयी है मुझे मालूम नहीं लेकिन औस्वित्ज़ और किसी भी तरह के हस्पताल की कोई तुलना संभव ही नहीं है...औस्वित्ज़ एक मृत्यु शिविर था जिसके निर्माण का उद्देश्य ही था एक बर में अधिक से अधिक यहूदियों का उन्मूलन करना. आपको कोई अंदाजा नहीं है कि किसी कांसेंत्रेशन कैम्प में लोगों पर किस तरह के अत्याचार होते थे तभी आप लोगों को हुयी साधारण परेशानियों को औस्वित्ज़ से कम्पेयर कर रही हैं. एक डॉक्टर का राउंड पर आना जैसे नाज़ी अफसर का राउंड पर आना...आपको मालूम है कि नाज़ी अफसर जब राउंड पर आते थे तो उनका प्रिय शगल होता था रैंडम लोगों को गोली मारना...ऊपर गार्ड टावर से खड़े होकर बस ऐसे ही लोगों को शूट करना...क्या डॉक्टर ऐसा करते हैं?
ReplyDeleteऔस्वित्ज़ के बारे में थोड़ी रिसर्च करते हुए इस पोस्ट तक पहुंची हूँ...और देख कर क्षुब्ध हूँ. होलोकास्ट एक बेहद भयानक घटना है और औस्वित्ज़ उसका सबसे हौलनाक प्रतीक...कृपया उसे हस्पताल से कम्पेयर करके उन लाखों लोगों के प्रति असम्मान न दिखाएँ जो वहाँ बिना किसी गलती के मारे गए थे.
एक जिम्मेदार डॉक्टर होने के बावजूद आप ऐसी हलकी तुलना कैसे कर सकती हैं?