मन नहीं मानता कि तुझ बिन जी गए हम आँख भर आई जब पिछले रास्ते देखे …… माँ आज माँ की पुण्यतिथि पर माँ के बिना मैंने जीने की कल्पना नहीं की थी … और उनके बिना कैसे जी सकुंगी यह सोच भी मुझे डरा देता था …. जाने क्यों माँ बीमार ना होते हुवे भी अचानक एक ही दिन के पेट दर्द में चली गयीं … जबकि मैं उनके हाथ का सिरहाना बना के सोया करती थी… खूब गीत गाये थे हमने उस रात को जिसके बाद पेट में एक अजीब दर्द के साथ माँ ने हमें छोड़ दिया था ..आखिरी गाना जो माँ ने गाया था …वो था .. ”मन तडपत हरी दर्शन को आज” बेजू बावरा का.. और माँ ने मदर इण्डिया के गीत भी गाये थे ..उनमे एक था - नगरी नगरी द्वारे द्वारे ढूंढू रे सावरिया, पिया पिया रटते मैं तो हो गयी रे बाव्रियां ….. उनकी पसंद पर मैंने मुकेश के कुछ गाने गाये थे उस रात … और एक गाना झिलमिल सितारों का आँगन होगा रिमझिम बरसता सावन होगा यह हम दोनों ने गाया था ….एक गाना और था जो हमने खूब तान चढ़ा के गाया था ..नागिन फिल्म का.. ऊँची नीची दुनिया की दीवारे सैंया तोड़ के मैं आई रे तेरे लिए सारा जग छोड़ के पर माँ ने जाने क्यों उस से एक दिन पहले मुझे कहा था …” बबली तू बहुत सीधी है, तू जानती नहीं जीवन मृत्यु क्या होता है| मैंने कहा - मै जान कर भी क्या कर सकती हूँ … मुझे नहीं जानना| माँ बोली थी - देख कल मै नहीं रहूंगी इस दुनियां में ..तुझे बहुत कुछ समझाना है ..बताना है ,,( शायद उन्होंने कुछ समझा हो अपने महाप्रयाण के बारे में … आज सोचती हूँ वो घर की व्यवस्था या पिता जी के बारे में बताना चाहती थी ..लेकिन मैं अनजान ) … मैंने कहा तुझे क्या हो रहा है जो ऐसी बातें कर रही है ..मुझे नहीं सुनना ..क्या तुम चाहती हो कि मैं आज ही रो जाऊं ( मेरी मति क्यों मारी गयी थी उस रोज मैं इतनी उदंडी और जिद्दी हो गयी थी जो मैंने सुना नहीं, शायद कार्यभार ज्यादा था मैं थक कर नर्सिंगहोम से आई थी - जबकि मैं तो एक एक बात सुनती और शेयर करती थी माँ से फिर उस दिन मुझे ऐसा क्या हुवा था जो मैंने कुछ नहीं सूना ) … वह फिर बोली थी …सुन ले बाद में मत कहना कि माँ उस दिन कुछ कहना चाहती थी जो मैंने नहीं सुना…लेकिन खबरदार मैं दुनिया छोड़ कर चली भी गयी तो रोना मत, आत्मा को कष्ट होता है, और जो दुनिया में है उसे जीना होता है, तुम्हारे बच्चे है उनके लिए हँसो खेलो ..हमने अपना कर्तव्य पूरा किया …लेकिन वो जो कहना चाहती थी वो मैंने नहीं सुना …. बस तीसरे दिन माँ बिन बात के पेट दर्द बता कर चली गयी और जाते जाते कहती गयी कि मुझे जरा सहारे से उठाओ …मैं तुम लोगो के लिए खाना बना देती हूँ … सब्जी ना भी बना पायी तो सलाद खा लेना ..पर भूखे मत रहना … माँ बहुत ही care taking थी और मन से मजबूत उनकी कितनी ज्यादा तबियत खराब रही होगी जो वो दुनियाँ छोड़ कर चली गयीं पर मैं उनकी पीड़ा नहीं समझ सकी और वो भी कराही नहीं … जब उन्होंने शरीर छोड़ा हम रो रहे थे लेकिन जब माँ के चेहरे पर नजर गयी वह इतनी शांत और मुस्कुरा रही थी … और मुस्कुराते हुवे ही उनके ओज पूर्ण चेहरे ने हमें अपने जाने के बाद भी मुस्कुराने का सबक दिया….. लेकिन मेरे दिल में नस्तर की तरह आज भी वह बात चुभती है जब माँ की बात मैंने सुनी नहीं और वह कह रही थी बाद में मत कहना कि मैंने उनकी बात नहीं सुनी … और सच में आज मेरी जुबान पर यही बात रह गयी कि उस दिन मैंने उनकी बात नहीं सुनी … अब सोचती हूँ जीते जी हम अपनों की बात नहीं सुनते बाद में पछतावे के अलावा कुछ भी नहीं होता | अगर कोई बीमार आदमी मृत्यु सैया पर भी कुछ कहना चाहता है तो उसके अपने कहते है कि तुम्हें कुछ नहीं होने वाला और उसकी बात को सुना नहीं जाता ….. मेरा मानना है कि हमें उनकी बात भी पूरी तरह से सुननी चाहिए …. बाद में उसकी कोई गुंजाइश नहीं होती… पछता कर भी कुछ नहीं मिलता .. |
फूलों की कोमलता
चाँद की शीतलता
सूरज की रौशनी
दूध की सफेदी
सितारों की आँखमिचौली
श्लोको का आध्यात्म
वचनों की प्रतिबद्धता
पवित्र मंदिर में रमा देवत्व
पानी सी पारदर्शी घुलनशीलता
शब्दों में बसी शहद की मिठास
संगीत की लय
प्यार का रेशमी अहसास
पूजा की घंटियों की आवाज
धरती सा विस्तार
आकाश सा अनंत असीम प्यार
समीर में बसा वेग
ब्रह्मांड की ऊर्जा
साधुवों का तेज
नदी सी निर्मलता
पेड़ की छाँव
मेरा गाँव
दादी चाची सखी का भाव
सब तुझसे ही था माँ
तेरे आँचल की छाँव तले
सब मुझे मिलता था ||
अब तुम नहीं हो
न ही वो आँचल है सर पर मेरे
लेकिन
फूल. चाँद सूरज सितारों में
वचन, शब्द, संगीत में
श्लोकों, पूजा, साधूओं में
धरती आकाश ब्रह्मांड में
भोर दिवस निशा गोधुली में
नदी पहाड़ पेड़ की छाँव में
शहर कस्बे गाँव में
दादी नानी सखी बहन में
दूध शहद पानी में
पंछी मछली हर प्राणी में
जिधर भी नजर घुमाती हूँ
सब में तुम्हें ही पाती हूँ
तूमने सबमे अपना विस्तार कर लिया है
और इस विस्तार में मुझे ऐसे घेर लिया है
जैसे मुझे समेट लिया हो अपने आलिंगन में
मेरे बचपन को फिर से अपनी गोद में भर लिया हो
पहले तुम में मेरी सारी दुनियां थी माँ
अब मेरी सारी दुनिया में तुम ही हो माँ यहाँ ,
मुझे अपने घेरे में घेरे हुवे
अकेली कहीं से भी नहीं मैं |……… नूतन
सुन्दर रचना....
ReplyDeleteमाँ तो माँ होती है
तुम हो माँ , यहीं कहीं हो ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर वाह!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 09-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
माँ के आँचल में सब कुछ मिल जाता है।
ReplyDeleteजी भर आया........................
ReplyDeleteक्या कहूँ!!!!
ढेर सा स्नेह.........
अनु
आँखों से आंसू झरने लगे , मुझे भी माँ की याद आ गयी , आजकल बीमार चल रही है और मै उससे दूर हूँ , मुझे भी माँ से मिलने जल्दी जाना है|
ReplyDeleteमेरे बचपन को फिर से अपनी गोद में भर लिया हो
ReplyDeleteपहले तुम में मेरी सारी दुनियां थी माँ
बेहतरीन भाव पुर्ण प्रस्तुति,सुन्दर रचना...
RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...
माँ को नमन ..... हृदयस्पर्शी भाव
ReplyDeletenutan ji aapki rachna padkar humko bhi kuch yaad aaya jo aapse share kar rahe hain ,,,,,,,hamari maa bhi 2001 mein dwarika bhagvat path sunne gayi thi wapsi per delhi se phone kiya aur khoob batein karna chahati thi par humne na suni aur kaha yaad aa rahi hai jaldi ghar aa jao tabhi baat karengepar vo wapis na ayi road accident mein gajraula par expire ho gayi
ReplyDeleteमाँ को समर्पित बहुत सुंदर पोस्ट ... माँ बस आस पास ही हैं ...
ReplyDeleteह्रदय स्पर्शीय ... माँ को सजीव लिखा है आपने ... दिल को गहरे में जा के छूती है आपकी पोस्ट ...
ReplyDeleteमां .. खामोश रहकर भी बहुत कुछ कह जाती .. मां का प्रत्येक अहसास मन को छूता हुआ ...मां को नमन ..वो तो दूर रहकर भी हमेशा पास ही होती हैं ... सादर
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी भाव ममता के ....
ReplyDeleteनाम आँख से पढ़ रही हूँ ....
बहुत ठंडक देते से भाव .....
जैसे माँ का आशीष समेटे हुए .....!!
माँ को नमन ...!!
maa ko samarpit sunder shraddha fool is se badhiya aur kya ho sakta hai.
ReplyDeletemaa ko naman.
डॉ नूतन माँ ने जो कहना था वो शायद कह दिया “रोना मत ! “ और “अपना कर्तव्य पूरा करना”
ReplyDeleteमाँ मेरे लिये हमेशा सबसे ऊँची पदवी पर रही हैं – आज भी जब वो इस दुनिया मे नही हैं ! मुझे पूरा विश्वास है कि आप आज जो भी हैं उसका श्रेय आप अपनी माँ को ही देत्ती होंगी और आप दोनों को जानने वाले ज़रूर कहते होंगे कि आप अपनी माँ की तरह ही हैं ...
... उनका आशीर्वाद हमेशा आप महसूस करती भी होंगी
नमन माँ – भरत
माँ तो पल पल साथ ही होती है, चाहे कहीं भी चली जाए...
ReplyDeleteमाँ को भावभीनी श्रद्धांजलि ! माँ कहीं नहीं जाती नूतन जी ....हम उसके अंश से बने होते हैं जब तक ये शरीर है इसको जन्म देने वाली भला कैसे दूर जा सकती है आपकी स्मृतियों को नमन !
ReplyDeleteमित्र एक एक शब्द अपने आप में पूरी एक कहानी समेटे हुए है आपने जो खोया है उसे आपका दिल ही जानता है पर अब माँ हर पल आपके आस-पास हैं...एक शाश्वत सत्य बनकर ...इसीलिए बिलकुल भी अफ़सोस ना करें ...
ReplyDeleteमाँ की तरह मुझे भी अपनी इस मित्र पर फख्र है ...blss u alwayzzz...
▬● नूतन , माँ बिना जीने की कल्पना असंभव है मगर नियति भी अपनी जगह है..... वे उनके साथ जिए पल ही हैं जो शायद हमारे आगे जीते चले जाने का संबल बनते चले जाते हैं.......
ReplyDelete▬● नूतन , पढ़ा मैंने जो तुमने लिखा..... अच्छा लगा कुछ मन में चुभा भी कि क्यों हमारे अपने हर दम साथ नहीं रह पाते हैं........... माँ बिना जीने की कल्पना असंभव है मगर नियति भी अपनी जगह है..... वे उनके साथ जिए पल ही हैं जो शायद हमारे आगे जीते चले जाने का संबल बनते चले जाते हैं.......
ReplyDeleteमाँ से बढ़ कर दुनिया में कोई नहीं होता...जब मेरी जननी मुझे छोड़ कर चली गई थी..याद है मुझे वो घडियां!...
ReplyDeleteमाँ का नाम पढ़ते,सुनते ही मुझे मेरी माँ याद आती है। बहुत मार्मिक रचना।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना... मां के बारे में जितना सब कवियों ने लिखा है- सबको मिलाकर तूने लिख दिया नूतन.... स्वगत्
ReplyDeleteओह! स्नेहमयी ममतामयी माँ जी को शत शत नमन.
ReplyDeleteवही ईश्वर तो माँ के रूप में प्रकट हुआ हमारे समक्ष
और अब सर्वत्र उसी का तो विस्तार है.
आपकी भावमयी अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.